बहरूपिया संन्यासी (उपन्यास) : मणि भूषण मिश्र ‘गूँजो’

Bahrupiya Sanyasi (Hindi Novel) : Mani Bhushan Mishra Gunjo

पूर्वकथन

यह है बहरुपिया संन्यासी ; इसके यथार्थ और मेरी कल्पना के रंगों के संयोग से बावन रूपों की रचना हुई है ! बहरूपिया के सभी बावन रूपों में संतों-संन्यासियों जैसी विरक्ति भावना का पुट है । किसी रूप में वह असिजीवी दिखता है तो किसी रूप में मसिजीवी ! बंदूक और कलम दोनों ही उसकी शाश्वत पहचान हैं ; हर रूप में वह एक नया तिलस्म गढ़ता है और फिर एक निर्मोही संन्यासी जैसी कठोरता तथा एक पेशेवर बहरुपिया जैसी निपुणता के साथ नया रूप धारण कर नया तिलस्म गढ़ने लगता है ।

इस 'बहरुपिया संन्यासी' की खातिर बोली-ठोली मैंने भी खूब सुना है ! इसके बावन रूपों को बेनकाब करते-करते मैं भी बेनकाब हो गया हूँ ! बेनकाबी का आलम यह है कि गली का एक कुत्ता भी मुझे देखकर भौंकता है, नंग-धरंग बावला समझकर ! तो क्या इन कुक्कुरों के डर से बेनकाबी का यह मजेदार धंधा मैं छोड़ दूं? बोली-ठोली की बात अलग है ; वह सबको सुनना पड़ता है !

सुधी पाठकगण से आग्रहपूर्वक कहना चाहता हूं कि कड़वे सच की कड़वाहट को अपने दिल की जुबान पर न आने दें ; आपकी शंकेतर समझदारी ही मेरी रचना की तरफदारी होगी !

आपका स्नेहाकांक्षी
मणि भूषण मिश्र 'गूँजो'

रूप - एक

आज शिलानाथ बाबू ने एक सपना देखा । सपने में कुलदेवी उनसे कह रही थी , " तुम्हारे घर एक पुत्र जन्म लेगा ; वह अपने कुल-खानदान और 'औराही हिंगना' गांव ही नहीं , बल्कि समस्त कोसी- मिथिला अंचल की संस्कृति-चेतना-भाषा को यूँ अभिव्यक्त करेगा कि समस्त हिंदी साहित्य खिल उठेगा...! दमन-शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ वह एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में बंदूक थामे रणभूमि में अजेय योद्धा बना रहेगा ! "

अग्रत: सकलं शास्त्रं पृष्ठत: सशरं धनु: !

शिलानाथ बाबू ने सपने में कुलदेवी से पूछा , "मां, ऐसा यशस्वी पुत्र मेरे घर में कब जन्म लेगा ?"

कुलदेवी ने कहा , " इसी वर्ष के अंत में फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा ।"

सपना सच हुआ ! उन दिनों शिलानाथ बाबू गांधीजी के 'असहयोग आंदोलन' में व्यस्त रहा करते थे । खेती - गृहस्थी कुछ थी, पर घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी । पुत्र के जन्म के वक्त उन्हें ऋण लेना पड़ा । उस दिव्य बालक का जन्म फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि संवत 1977, तदनुसार 4 मार्च 1921 ईस्वी को हुआ ।

जन्म के छठे दिन गौंवा-गिरामिन के लिए भोज-भात का प्रबंध किया गया ; नामकरण संस्कार में बालक का नाम रखा गया - फनीसर ! बाद में वह इस देश-दुनिया में फणीश्वरनाथ 'रेणु' के नाम से विख्यात हुए ।

रूप - दो

बालक फणीश्वरनाथ अकेले गाछी की ओर चल पड़ते हैं । जेठ महीना के अंतिम दिनों में आम भी पकने लगता है और जामुन भी ! गाछी में आम, जामुन और कटहल के बहुत सारे पेड़ हैं - फलों से लदे हुए । फलों से लदा हुआ गाछी फणीश्वर का मन मोह लेती है ! खासकर काला - काला जामुन ... गाछ से धब्-धब् गिरता है और फणीश्वरनाथ नाथ उसे चुन - चुन कर खाते हैं ।

गाछी में आम के पेड़ों के अलग-अलग नाम है - खटकी , सिनुरिया, धुनीमा, केलवा, बंबइया, सिफिया, सुकुल ....सब के रंग ,आकार और स्वाद भी अलग-अलग ! जामुन के पेड़ पर कई पंछी जामुन-भोज कर रहे हैं । फणीश्वर नाथ पेड़ के नीचे खड़े होकर गुहार लगा रहे हैं--

" मैनी के बच्चा सुरिलिया गेऽ ...
दू गो जामुन गिरा...
कच्चा गिरैबें तऽ मारबौ गे,
दू गो पक्का गिरा...!"

पूर्व दिशा में , आसमान में काले - काले बादल चढ़ते जा रहे हैं ! पाट के पौधों की हरियाली बढ़ती जा रही है...! बारिश की भूमिका बांधते ये काले बादल ठंडी हवाओं के साथ आसमान में पूरब से पश्चिम की ओर भागे जा रहे हैं । गाछी में चिड़ियों की चहल-पहल बढ़ गई है ! फणीश्वर नाथ जामुन के गाछ पर टकटकी लगाए हैं," इ कोइली सब पाकल जामुन खा जाएगी...!" फणीश्वर नाथ इस बार कोइली से गुहार लगाते हैं -

"कोइली के बच्चा सुरिलिया गेऽ...
दू गो जामुन गिरा,
कच्चा गिरैबें तऽ मारबौ गे,
दू गो पक्का गिरा...!"

हवा तेज होती जा रही है! काले - काले बादलों से घिरी गाछी फणीश्वर नाथ को डरा रही है ! हवा का तेज झोंका फणीश्वर को धकेले जा रहा है ; सैकड़ों जामुन फणीश्वर के आसपास गिरे ...धब् - धब्, फट्-फट् । कुछ जामुन उसके सिर और कंधे पर भी गिरे । जल्दी-जल्दी जामुन चुनकर वह एक जगह जामुन के पेड़ के निकट जमा कर रहा है -बीच-बीच में जामुन भी खा रहा है ! आंधी बहुत तेज हो गई है । आंधी का एक और झोंका आया ; जामुन के गाछ की एक मोटी डाली टूटकर फणीश्वर के सामने गिरी... झड़ाक्...धराम् ! फणीश्वर चीख पड़ा, "बाप रे....! अभी माथा पर गिर जाता तो...!"

चुने हुए जामुन को छोड़कर वह घर नहीं जाएगा ! केला के पत्तल पर फणीश्वरनाथ ने जाामुन को समेटा और दौड़ते हुए घर पहुंच गया । अपनी दादी को जामुन थमाकर उसने अपनी जीभ दादी को दिखाया...जमुनिया जीभ ! गाछी में जामुन की डाली गिरनेवाली खबर सुनकर दादी ने फणीश्वर को गले से लगा लिया ! पूर्णिया जिला के औराही हिंगना गांव का बालक फणीश्वरनाथ अपने पिता शिलालानाथ मंडल और अपनी माँ पानो देवी से अधिक अपनी दादी को मानता है । वह नहाने चला गया ; स्कूल भी तो जाना है !

रूप - तीन

गांव के स्कूल में फणीश्वरनाथ तीसरे दर्जे में पढ़ता है । स्कूल में सिर्फ दो खपडै़ल कमरे हैं - वर्ग एक से लेकर पांच तक के सभी विद्यार्थी एक कमरे में बैठते हैं और दूसरे कमरे में ऑफिस है । आज कुल चौंतीस बच्चे उपस्थित हैं । आठ साल का फणीश्वरनाथ तीसरे दर्जे में ही है, लेकिन वह बिना हिज्जे लगाए बेधड़क पढ़ता है । बारह साल का लालमोहर चौथे दर्जे में पढ़ता है, लेकिन उसे हिज्जे लगाकर भी पढ़ना नहीं आता !

आज लालमोहर अपने बस्ते में एक नई चमचमाती हुई किताब लेकर आया है ! बस्ते से नई किताब निकालकर लालमोहर अपने बगल में बैठे फणीश्वरनाथ को दिखाता है, "अरे फनीसर, इस किताब में पढ़ो तो, क्या लिखा है? "

फणीश्वरनाथ किताब देखकर पूछता है - "कहां से लाए यह किताब? "

लालमोहर फणीश्वरनाथ की आंखों में झांकता हुआ कहता है -"कहीं से लाया ; तू पढकर तो बता , लिखा क्या है?"

फणीश्वरनाथ किताब पर नजर डालते हुए पढ़ते हैं -

' पिता का पत्र- पुत्री के नाम' लेखक- जवाहरलाल नेहरू । किताब के कवर पर एक रंगीन चित्र में एक गांधी टोपीधारी वयस्क पुरुष और उसके साथ दस-बारह साल की एक अत्यंत सुंदर किशोरी लड़की का चित्र !

फणीश्वर नाथ उस चित्र को देर तक निहार कर बोल उठता है, "अपरूप रूप !"

लालमोहर पूछता है ,"अपरूप रूप कौन है ?"

फणीश्वरनाथ अचकचा जाता है, "...कोई नहीं ! यह टोपी वाला आदमी तो जवाहर लाल नेहरू है, लेकिन इस इंग्लिश परी को मैं नहीं चीन्हता हूं ।"

लालमोहर उत्सुक होकर पूछता है, " तू जवाहरलाल को चीन्हता है !... कौन है जवाहर लाल? "

फणीश्वरनाथ उसे समझाता है, " मेरे बाबू के पास बहुत सारी किताब है-' सरस्वती', 'चांद', 'हिंदूपंच', 'माधुरी', 'सुधा'...उसमें जवाहरलाल का भी फोटो है, इसलिए चीन्ह गया...लेकिन यह अपरूप रूप!...इंग्लिश परी...!"

तभी क्लास में स्कूल के इकलौते गुरुजी आते हैं । वे हाजिरी लेने के बाद पढ़ाने लगते हैं, परंतु फणीश्वरनाथ का मन बार-बार लालमोहर की किताब वाली इंग्लिश परी पर अटक जाता है- अपरूप रूप!...फणीश्वर नाथ ने तय कर लिया है - इस इंग्लिश परी का फोटो घर ले जाकर वह बाबूजी को दिखाएगा जरूर कि यह है कौन?

छुट्टी होने से थोड़ी देर पहले लालमोहर गुरुजी से 'पांच मिनट' मांग कर बाहर जाता है । फणीश्वरनाथ चुपके से लालमोहर की किताब का कवर फाड़कर इंग्लिश परी का फोटो निकालकर अपने बस्ते में रख लेता है । लालमोहर के आते ही छुट्टी की घंटी बज जाती है ।

...बेखबर लाल मोहर अपना बस्ता उठाकर घर की ओर भागता है । घर पहुंच कर फणीश्वरनाथ देखता है कि उसके पिता शिलानाथ मंडल और उसकी दादी दरवाजे पर बैठ कर बात कर रहे हैं । अपने बस्ता से फोटो निकालकर अपनी उंगली से इंग्लिश परी की ओर इशारा कर फणीश्वरनाथ पूछता है, "बाबू जी इ कौन है? "

शिलानाथ मंडल फोटो को गौर से देख कर कहते हैं -"यह तो नेहरू जी की बेटी इंदिरा प्रियदर्शिनी है ! क्यों ?...क्या बात है ?"

फणीश्वर अचकचा जाता है , "बात?...कुछ नहीं...! इसे नहीं चीन्हता था, इसलिए पूछा ...!"

फणीश्वर की दादी अपने बेटे शिलानाथ मंडल के हाथ से फोटो लेकर देखती है -" बड़ी सुंदर लड़की है... ! "

शिलानाथ मंडल मुस्कुराकर कहते हैं, "सुंदर है इसलिए तो तुम्हारा पोता...!

दादी फणीश्वर की चुटकी लेती हुई पूछती है , "क्यों रिनुआ, इससे ब्याह करोगे? "

फणीश्वरनाथ अपनी दादी के हाथ से फोटो झपट लेता है , "हमको ब्याह नहीं करना है... !"

फोटो लेकर वह घर के भीतर चला जाता है, लेकिन हमेशा उसका ध्यान इंग्लिश परी के अपरूप रूप पर ही टिका रहता है ।

अगले दिन फणीश्वर जब विद्यालय पहुंचता है, तो क्लास के गेट पर ही लालमोहर उसे रास्ता रोके खड़ा मिलता है, "किताब वाली फोटो तुमने चुराई है ?"लाल मोहर ने पूछा ।

"चुराई नहीं, ले ली है ।" फणीश्वर ने अकड़कर कहा ।

'तो लाओ ' लालमोहर गुर्राया ।

"नहीं दूंगा, क्या कर लोगे ?" फणीश्वर ने चिढ़ाया ।

अब लालमोहर ने खुली धमकी दी -"फोटो देना पड़ेगा नहीं तो मारते - मारते मुंह फुला देंगे ।"

लालमोहर ने फणीश्वरनाथ की कमीज का कॉलर पकड़कर उसे जमीन पर पटक दिया!...फणीश्वर चिल्लाया, " स्साला छोड़, नहीं तो ...! फणीश्वर जल्दीबाजी में अपने बस्ता से टिन का किनारा वाला स्लेट निकालकर लालमोहर के माथे पर जोर से मारता है - फटाक् !... लालमोहर के माथे से खून बहने लगता है ! खून बहता देख फणीश्वर अपना बस्ता संभालता है और नौ दो ग्यारह...!

रूप - चार

फणीश्वरनाथ के घर के दालान में भदैया मकई के बाइल का बड़ा ढेर है, जिसे घेरकर फणीश्वर की दादी, चाची, मां, बहन, भाई , बाबूजी ... सब बैठे हैं । लोहे की खोभनी से बाइल में धारी लगाकर शिलानाथ मंडल सबको दाना छुड़ाने के लिए दे रहे हैं । फणीश्वरनाथ नेरहा से 'नेरहाघर' बना रहे हैं ।

दादी फणीश्वरनाथ को अढ़ाती है, "अरे रिनुआं, एक सूप लेकर आ ।"

नेरहाघर बनाने में मगन फणीश्वर जवाब देता है,"मेरा नाम फणीश्वरनाथ है, रिनुआं नहीं । कितनी बार समझाया है , मुझे रिनुआं मत कहे कोई ।"

दादी हंस कर कहती है , "नाम तो तुम्हारा रिनुआं ही रहेगा...! जब तुम जनमा था, शिलानाथ को ऋण लेना पड़ा था । विश्वास नहीं हो तो पूछ लो अपने बाप से । क्यों शिलानाथ... ?"

शिलानाथ मंडल ने फणीश्वर को चिढ़ाने के लिए मुस्कुराकर कहा ," हाँ माई, ऋण के पैसे पर जन्म लेने वाला रिनुआं ही तो कहलाएगा... हा - हा - हा...!"

फणीश्वरनाथ ने तमककर कहा, "तब मैं सूप लाकर नहीं दूंगा...!"

दादी ने खुशामद की, "जा रिनुआं, सूप ला दे...दाना उठाना है, जल्दी जा ... कहानी सुनाऊंगी ।"

फणीश्वर ने शर्त रखी-" परी वाली कहानी सुनाओगी?...तब सूप ला कर दूंगा ,आंगन से । सुनाओगी ना? "

दादी शर्त मान लेती है,"जा, जल्दी से सूप ला दे ,कहानी सुनाऊंगी ।

'नेरहाघर' को तोड़कर फणीश्वर आंगन की ओर जाता है और सूप लाकर दादी के सामने पटक देता है, "अब सुनाओ कहानी।" दादी मुकर जाती है,"अभी बहुत काम है,शाम में बेफिक्र बैठना, तब सुन आऊंगी कहानी।"

फणीश्वर जिद करता है, "नहीं, अभी सुनाओ ! "...

शिलानाथ मंडल बीच-बचाव करते हैं, " जिद मत करो फनीसर, मकई का पथारी भी देना है और रामदेनी तिवारी 'द्विजदेनी' जी भी आते ही होंगे। जाकर बस्ता निकालो और पढ़ने के लिए बैठ जाओ, नहीं तो...! "

तिवारी जी का नाम सुनते ही फणीश्वरनाथ सकुचा जाता है । वह अपने बाबू से भी ज्यादा तिवारी जी से डरता है । जब भी तिवारी जी आते हैं, उसके बाबू के साथ बैठकर देश और स्वराज की बात करते हैं ; आर्यसमाज, स्वाधीनता, गांधीजी, स्वदेशी, खादी-चरखा और शहादत जैसे मुद्दों पर ऐसी चर्चा जमती है कि ये लोग खाना-पीना भी भूल जाते हैं ।

फणीश्वरनाथ तिवारी जी से डरता भी है और उनका सम्मान भी करता है । फणीश्वर भी तिवारी जी जैसा पढ़ा - लिखा संस्कारी आदमी बनकर देश के लिए कुछ करना चाहता है । वह अपने गांव औराही हिंगना में रहकर ही पढ़ना चाहता है, लेकिन जब सब लोग उसे अररिया हाई स्कूल में पढ़ने के लिए भेजने की बात करते हैं, तो वह उदास हो जाता है । फणीश्वर अपनी मां पानो देवी से कहता है,"मैं गांव में ही पढूंगा, अररिया नहीं जाऊंगा ।"

मां पानो देवी उसे अपनी गोद में बैठा कर फुसलाती है,"पढ़ोगे नहीं, तो इंग्लिश परी तुमसे ब्याह करेगी...?"

फणीश्वर झुंझलाकर कहता है, "मुझे ब्याह नहीं करना है! मैं पहले गोरे अंग्रेजों को भगाऊंगा।"

रूप - पांच

अररिया हाईस्कूल के हॉस्टल में रहते हुए फणीश्वरनाथ को मालूम हुआ कि इंदिरा 'प्रियदर्शिनी' गांधी जी की वानर सेना में भर्ती है ।फणीश्वर ने भी अपने स्कूल के दोस्तों के साथ मिलकर 'वानरसेना' का गठन कर लिया । नमक सत्याग्रह के दौरान गांधीजी गिरफ्तार हुए । गिरफ्तारी के खिलाफ अररिया में भी हड़ताल और विरोध प्रदर्शन हुआ । अररिया हाई स्कूल को भी बंद कराने का निर्णय लिया गया ।

इंकलाब...जिंदाबाद !

गांधीजी को ...रिहा करो !!

भारत माता की ...जय !!!

अररिया हाई स्कूल के छात्रों की बानरी सेना ने हेडमास्टर को स्कूल में प्रवेश करने से रोका ; सबसे आगे फणीश्वरनाथ और पीछे - पीछे उनकी वानर सेना...। गुस्सा से कांपते हुए हेडमास्टर की लाल-लाल आंखें फणीश्वर को देखकर गुर्रायी, "कल देखता हूं तुम्हें...!"

अगले दिन हेडमास्टर साहब ने लिखित नोटिस सुनाया - जुर्माना...क्षमायाचिका...शारीरिक दंड...!

फणीश्वर के हिस्से आया - दस बेंत की सजा !

हेडमास्टर ने आदेश दिया ," स्ट्रेच योर हैंड...!"

फणीश्वर ने भी ताव दिखाया, " राइट ऑर लेफ्ट सर...?"

सब हंस पड़े, फणीश्वर की निर्भय दृढ़ता को देखकर!

फणीश्वर की हथेली पर पहला बेंत पड़ा - सटाक् ! उसके मुंह से देशाभिमान प्रकट हुआ ,"भारत माता की ... जय !"

दूसरा बेंत पड़ा - सटाक् !

"महात्मा गांधी की... जय ! "

तीसरा बेंत पड़ा- सटाक् !

"जवाहरलाल नेहरू की...जय ! "

जनसमूह से आवाज आई - "बहुत बहादुर विद्यार्थी है...असली सुराजी !"

हथेली पर दस बेंत की सजा झेलकर असली सुराजी हेडमास्टर के चंगुल से आजाद हुआ । उपस्थित जनसमूह ने उसे अपनी गोद में उठाकर कंधों पर बैठा लिया - भारत माता की ...जय ! वंदे ...मातरम !! अररिया की अंग्रेजी पुलिस की डायरी में असली 'खतरनाक सुराजियों' की सूची में एक नया नाम जुड़ गया - फणीश्वरनाथ मंडल !

अंग्रेजी पुलिस ने फणीश्वरनाथ को गिरफ्तार कर लिया । उससे कड़ी पूछताछ की गयी । पुलिस ने पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है ?"

असली सुराजी ने चुटकी भरे अंदाज में कहा, "जवाहरलाल नेहरू !"

अंग्रेजी पुलिस की आंखें आश्चर्य से गोल हो गई !

पुलिस ने फिर पूछा, "बाप का नाम?"

"मोतीलाल नेहरू !"

पुलिस ने चिढ़कर पूछा, "तब तो पता आनंद भवन , इलाहाबाद ही होगा ?"

'खतरनाक' सुराजी ने हामी भर दी ,"सही पकड़े !"

सुराजी के अड़ियल रुख और छोटी उम्र को देखते हुए उसे चौदह दिनों के लिए हिरासत में भेज दिया गया । अररिया हाई स्कूल के हेडमास्टर को फणीश्वर के जेल जाने की खबर हुई, उसका कलेजा ठंडा हो गया, "ऐसे उद्दंडों को तो फासी पर चढ़ा देना चाहिए... ! "

फांसी की सजा पाना क्रांतिकारियों के लिए गौरव की बात हो गई है । 'चांद' पत्रिका का फांसी अंक जब से प्रकाशित हुआ है, अंग्रेजी पुलिस उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गई है । पुलिस को खबर मिली कि शिलानाथ मंडल के घर में 'चांद' पत्रिका का फांसी अंक है...! फणीश्वरनाथ घर में ही थे, जब इंस्पेक्टर उनके पिता शिलानाथ मंडल से पूछ रहा था, "तुम्हारे घर में 'चांद' पत्रिका का फांसी अंक है?"

शिलानाथ मंडल ने होशियारी से जवाब दिया, "हां, हां...आप सही कह रहे हैं । 'हिंदू पंच' का बलिदान अंक और 'भारत में अंग्रेजी राज' किताब भी मेरे घर में था, लेकिन अभी कोई संबंधी उसे पढ़ने ले गए हैं ।"

बहादुर सुराजी अपने पिता को झूठ बोलता देख हतप्रभ था !

ये किताबें तो उसके पिता के बिछावन के सिरहाने में रखी हैं ! यदि पुलिस घर में घुसी तो उसके पिता की गिरफ्तारी तय है!...नहीं, वह ऐसा नहीं होने देगा ! वह चुपचाप अपने पिताजी के कमरे में घुसा... इसकुलिया झोले में किताबें समेटी और घर से निकलकर सड़क की ओर चल पड़ा ।

दरवाजे पर पुलिस उसके पिता से पूछताछ कर रही थी !...

सड़क की ओर बढ़ते बहादुर सुराजी को देख पुलिस ने टोका, " झोला में क्या लेकर जा रहे हो? "

असली सुराजी ने बहादुरी और निर्भीकता से जवाब दिया, "सिमराहा जा रहा हूं, फारबिसगंज की गाड़ी पकड़ने ; स्कूल जाना है ।

अंग्रेजी पुलिस झांसे में आ गई !

चालाक सुराजी ने अपनी बुद्धिमानी से पिता को गिरफ्तार होने से बचा लिया ।

रूप - छ:

असली सुराजी की बहादुरी, निडरता और बुद्धिमानी के किस्से औराही हिंगना गांव की चारों दिशाओं में फैल गए ।

जिस प्रकार जौहरी की आंखें हीरा का मोल परख लेती है, उसी प्रकार नछत्तर माली की आंखों ने इस नायाब हीरा को पहचान लिया...बहादुर सुराजी ! नछत्तर माली को मालूम हुआ एक इसकुलिया

विद्यार्थी असली सुराजी निकला है ...बहादुर सुराजी !

समेली गांव का नछत्तर माली...पूर्णिया का रॉबिनहुड!

अंग्रेजी पुलिस की डायरी में लिखा था - नछत्तर माली ... ए नोटोरियस कम्युनिस्ट ... डकैत !

पूर्णिया के गरीब- गुरबे कहते, "नछत्तर रॉबिनहुड !"

कम्युनिस्ट रोबिनहुड नछत्तर माली; तीस साल का कड़क जवान!...घोड़े की सवारी...पीठ पर बंदूक !

सन् चौतीस के भूकंप में पूर्णिया जिला ही नहीं, पूरे नेपाल और बिहार में तबाही मच गई । पंद्रह जनवरी के दो बजे दिन में धरती ऐसी डोली की मिट्टी के मकानों में ही अनगिनत लोग मिट्टी हो गए ; उनकी लाशें लापता लिख दी गई ! पुरनिया जिला तबाह हो गया...! दो मिनट के भूकंप ने पूर्णिया जिला के सैकड़ों गांव को महा श्मशान बना दिया । बहादुर सुराजी भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए गांवों में घूम रहा था कि कम्युनिस्ट रॉबिनहुड नछत्तर माली से उसकी अचानक मुलाकात हो गई ।

जौहरी ने हीरे को पहचान लिया!

भूकंप के बाद पीड़ितों की सहायता हेतु गांधीजी समेत अनेक नेताओं को रिहा कर दिया गया । गांधीजी पुरनिया आए । असली सुराजी अपने आदर्श महामानव के आगमन एवं दर्शन पर प्रफुल्लित होकर हुंकार भरने लगा -

"भारत माता की... जय!
महात्मा गांधी की ... जय !!"

भूकंप इतना प्रबल था कि तालाबों और कुओं के जल बाहर छलक गए । अधिकांश लोगों के घर धराशाई हो गए । पुरनियावासी बदहाल और कंगाल हो गए । ...घर बनाना आसान कार्य नहीं है ! राहत और पुनर्वास कार्य कभी पूरे नहीं हुए ! फणीश्वरनाथ और नछत्तर माली ने मिलकर इस भयावह आपदा को महसूस किया ; दोनों ने राजनीति के प्रपंच और सत्ता के छल को गहरे मन में महसूस किया । जयप्रकाश नारायण की सुशलिंग पार्टी का विचार नछत्तर और फणीश्वर दोनों को अच्छा लगता है!.. नछत्तर को मालूम है कि मुजफ्फरपुर के 'किसान सम्मेलन' में जयपरगास जी आने वाले हैं । जौहरी अपने हीरे को तराशने लगा ,"सभा देखने चलेगा ...मुजफ्फरपुर ?"

फणीश्वरनाथ ने हामी भर दी ।

रूप - सात

मुजफ्फरपुर के किसान सभा में फणीश्वरनाथ ने जयप्रकाश नारायण,, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा आचार्य नरेंद्र देव के क्रांतिकारी विचारों को सुना । सोनपुर के समर स्कूल आफ पालिटिक्स में कमलादेवी चट्टोपाध्याय, मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, मेहर अली, अशोक मेहता जैसे महापुरुषों के विचारों की अमिट छाप पंद्रह वर्षीय फणीश्वरनाथ के मन-मस्तिष्क पर जीवन भर के लिए पड़ गई... पत्थर की लकीर!

जौहरी नछत्तर माली अपने अनमोल हीरा फणीश्वरनाथ को प्रायः तरासते रहते, "देखो फनीसर, देश आजाद होने से ज्यादा जरूरी है गरीबी से आजादी...भुखमरी से छुटकारा ।"

"वह कैसे? "

नछत्तर माली समझाते,"देखो सुराजी, तुम्हारे सुराज का मतलब है -अंग्रेजों से आजादी । अंग्रेज देश छोड़कर जाएंगे, देसी अंग्रेजों का राज शुरू हो जाएगा । जमींदारों और जमाखोरों की लालच गरीबों को भूखा को मार देगी ; गरीबों की बहू बेटियों की इज्जत... !"

नछत्तर और फणीश्वर के विचार मिलने लगे ।

सोनपुर के समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स में संचालक जयप्रकाश ने नछत्तर माली को पहचान लिया है ; ए ग्रेट रेडिकल कम्युनिस्ट ! ... ओनली बिलिव्स इन एक्शन ! रोबिनहुड...!"

समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स में मिडिल से एम. ए. तक के किसी भी दर्जे का विद्यार्थी पढ़ सकता है, लेकिन नछत्तर तो किसी दर्जे का विद्यार्थी नहीं है !... उसका नाम स्कूल में कैसे लिखाएगा ?

"तुम्हारा ओरिजिनल नाम क्या है ?",जयप्रकाश ने पूछा ।

"नछत्तर माली "

"बाप का नाम ?"

"लब्बो माली"

" घर कहाँ है ? "

"समेली ...जिला - पूर्णिया ।"

" आज से तुम्हारा नाम है - नक्षत्र मालाकार ।" जयप्रकाश ने नछत्तर माली के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।

"और दर्जा... ? "

"दर्जा ?... लिख दो - ऊंचा दर्जा !", जय प्रकाश नारायण ने कहा ।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने नछत्तर माली को ऊंचे दर्जे का नक्षत्र मालाकार बना दिया!

फणीश्वरनाथ नाथ इस घटना के चश्मदीद गवाह ही नहीं, सूत्रधार भी थे ।

सोनपुर के 'समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स' के भंडारे में नछत्तर माली ने देखा ; नेताओं के लिए अलग और कार्यकर्ताओं - छात्रों के लिए अलग प्रकार का खाना बन रहा है । नछत्तर माली ने जयप्रकाश से पूछा, "खाना अलग - अलग क्यों ?"

जय प्रकाश निरुत्तर...!

नछत्तर ने ठेठ अंदाज में समझाया, "जयप्रकाश जी, यह सब भेदभाव और दोरंगी नीति से ना तो कभी सुराज मिलेगा और ना समाजवाद कायम होगा ।"

जयप्रकाश विस्मित...!

अनपढ़ ... गरीब... डकैत ... रॉबिनहुड... हीरो ऑफ लिबर्टी एंड इक्वलिटी... रेडिकल कम्युनिस्ट... ओनली बीलिव्स इन एक्शन... नछत्तर माली !

नछत्तर ने फणीश्वरनाथ से कहा, "तुम पढ़ा-लिखा लड़का होकर भी इस भेदभाव के खिलाफ चुप हो !... जा कर जयप्रकाश जी से कहो ।

रूप - आठ

पढ़ा-लिखा लड़का !... विशेश्वर बाबू और सुशीला मैडम ने भी कहा था, "पढ़ा-लिखा लड़का है !" विशेश्वर बाबू और सुशीला मैडम को फणीश्वरनाथ कभी भूल सकता है? सन् सैतीस के बरसात की बात है ; फारबिसगंज टीशन के बाहर चाय की दुकान पर सिगरेट सुलगाते हुए फणीश्वरनाथ का ध्यान टीशन के भों-पें पर ही था - यात्रीगण कृपया ध्यान दें, गाड़ी नंबर 1734 ; कटिहार - जोगबनी पैसेंजर गाड़ी, आधा घंटा विलंब से प्लेटफार्म नंबर दो पर...!

सिगरेट पीकर चाय का आर्डर देकर जब फणीश्वरनाथ कुल्ला करने दुकान के बाहर आए तो देखा ; दक्खिन दिशा से आसमान में बादल चढ़ते आ रहे हैं ।

चाय दुकानदार ने कहा, " चाह बनवा लिए हैं, पी लीजिए ।"

फणीश्वरनाथ ने कहा "बरसा आ रही है, कहीं भींग न जाएं ।"

दुकानदार ने मुंह बिचकाया, "चाह पी लीजिए, बरसा नहीं होगी ; दक्खिन का मेघ और सोलकन का गुस्सा... !"

चाय पीने के बाद फणीश्वर के दिमाग पर सिगरेट का नशा जल्दी चढ़ जाता है, दक्खिन के मेघ के बादल भी आकाश में जल्दी छा जाते हैं । बूंदा - बूंदी भी शुरू हो गई ; ट्रेन आ रही है, लाट फारम पर ! सिगरेट के नशे में धुत्त फणीश्वरनाथ रेलगाड़ी के जिस डिब्बे का पौदाम पकड़ कर लटके, उसका तो दरवाजा ही बंद है, भीतर से !...अब क्या होगा? ट्रेन ने स्पीड पकड़ ली , बारिश भी तेज हो गई । दक्खिन का मेघ भी बरसता है और...! सिगरेट के नशा में बारिश में भीगने का सुख... आनंद ...! पौदाम की बगल वाली खिड़की से फणीश्वर ने भीतर झांक कर देखा ; सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित बाइस - तेइस वर्ष का एक संस्कारी नेपाली युवक और उसकी सजी-धजी दुल्हन ! पूरे डिब्बे में बस दो ही लोग ! फिर भी डिब्बे का दरवाजा भीतर से बंद ; अजगैबी बात!... फणीश्वर को अचरज हुआ !

फणीश्वरनाथ ने दुबारा झांक कर देखा ; नेपाली दूल्हा-दुल्हन आपस में बात कर रहे थे । दूल्हा ने कहा, "गेट नहीं खोलना ... कोई चोर उचक्का...!

दुल्हन ने प्रतिकार किया,"बेचारा गिर जाएगा, बारिश में भीग रहा है ... गेट खोल दो ।

दूल्हा ने चेतावनी दी, "जाओ, खोलो ... फिर देखना !"

दुल्हन सीट से उठी और दरवाजा खोल दिया । फणीश्वरनाथ संकोचपूर्वक डिब्बे में घुसे और दूल्हा से मुखातिब हो जा बैठे । कुछ देर तक तीनों चुप बैठे रहे । फणीश्वर नाथ सोच रहे थे - होगा कोई अमीर आदमी, मैं क्यों टोकूं?

दूल्हा ने ही पूछा, "कहां जाना है? "

फणीश्वरनाथ ने कहा, "जोगबनी."

दुल्हन ने पूछा, "किस गांव से आए हो ?"

फणीश्वरनाथ ने कहा, "औराही हिंगना ।"

"औराही हिंगना !"... दूल्हे ने आंखें सिकोड़कर पूछा, "शिलानाथ मंडल को जानते हो?...कांग्रेसी - आर्यसमाजी शिलानाथ बाबू...!"

फणीश्वरनाथ बीच में ही बोल पड़ा "वे मेरे पिताजी हैं ।"

दूल्हा उछल पड़ा, "तुम शिलानाथ मंडल के बेटे हो ?"

फारबिसगंज से जोगबनी तक बतियाते-बतियाते कितनी आत्मीयता महसूस की थी फणीश्वरनाथ ने, विशेश्वर बाबू और सुशीला मैडम से ! "

विशेश्वर बाबू ने पूछा था, "कहां पढ़ते हो? "

फणीश्वरनाथ ने बताया, "कहीं नहीं, पढ़ाई छूट गई है!"

विशेश्वरबाबू को अचरज हुआ - ऐसा होनहार लड़का और कहता है, पढ़ाई छूट गई । उन्होंने पूछा, "मेरे पिता कृष्ण प्रसाद कोइराला विराटनगर में स्कूल चलाते हैं, उसमें पढ़ोगे ?"

फणीश्वरनाथश्वर ने कहा, " सोचूँगा । "

जोगबनी टीशन पर उतरने के बाद फणीश्वर उनके साथ विराट नगर तक गए । क्या शान- शौकत थी विराट नगर में विशेश्वरबाबू की !....बड़े लोगों की बात ही बड़ी होती है ।

नछत्तर ने टोका,"कहां खो गए, पढुआ सुराजी? खाना खाने चलो ।"

फणीश्वर को लगा मानो वह सपना देख रहा था ।...

खाना खाते समय नछत्तर को महसूस हुआ , मन के भीतर का विश्वास डगमगा रहा है मानो । कांग्रेस पार्टी के सभा - मीटिंग में जाना उसने छोड़ दिया है ; कांग्रेस के कथनी और करनी में फर्क है । पार्टी के बड़े पदों पर ऊंची जाति के जमींदारों का कब्जा है । उस दिन फुलमतिया धनुकाइन की बकरी जमींदार की खेत चर गई , छोटे जमींदार बकरी पकड़ लाए । बकरी के दाम से चार गुना ज्यादा जुर्माना... ! ऐसे जमींदारों की पीठ पर हाथ रखकर कांग्रेस सुराज लाना चाहती है ! ऐसे कंगरेसिया जमींदारों का तो नाक - कान काट कर उसे बधिया... !

सुशलिंग पार्टी वाले कहते हैं - हमारी पार्टी में सब बराबर ! जात - पात, ऊंच - नीच का भेदभाव नहीं !... तो फिर भंडारे में खाना अलग-अलग क्यों? सुशलिंग पार्टी पर से भी नछत्तर का विश्वास उठने लगा है । भूखी- नंगी - बीमार जनता का पेट सोनपुर में भाषण देने से नहीं भरेगा । पुरनिया की जनता को अनाज, कपड़ा और दवाई चाहिए । अनाज जमींदारों और साहूकारों के गोदाम में बंद है । नहीं, अब नछत्तर भाषण सुनने सोनपुर मैं बैठा नहीं रहेगा । उसे आज ही जाना है ...पूर्णिया ! एक बार फिर नछत्तर ने फणीश्वर से पूछा, "घर चलेगा? अभी ...! "

रूप - नौ

कार्तिक का महीना आ गया । इस महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है, फणीश्वर को । आसिन तक बाढ़ भी चली जाती है और बरसा - बुन्नी का झमेला भी समाप्त हो जाता है । कार्तिक की सुहानी हवा और धूप के साये में हैजा, मलेरिया, कालाजार का प्रकोप भी घटने लगता है , पर्व-त्यौहार की तैयारियां शुरू हो जाती है । दीपावली, छठ, गोवर्धन पूजा... ! फणीश्वरनाथ की मां पानो देवी ने इस बार जोड़ा खस्सी कबूला है, खड़गेश्वरी काली माई को!

बोलो, बोलो खड़गेश्वरी काली माई की... जय हो !
हुक्का - पाती हुइक ले... दाल - भात सुरुइक ले...!

हुक्का - पाती खेलने के बाद खा-पीकर जाना है ; जोड़ा खस्सी चढ़ाने, खड़गेश्वरी काली माई को ! दिवाली की भयावह काली रात का पहला पहर बीतने के पहले ही सब लोग तैयार हो गए । गाड़ीवान कुसुमलाल ने दोनों खस्सी को बैलगाड़ी पर चढ़ाया, गोद में उठाकर ! फणीश्वर के साथ उसकी मां, चाची, बहन और भाभी भी जा रही है, खस्सी चढ़ाने । माता काली का गीत पूरे रास्ते में बैलगाड़ी पर गूंजता रहा -

" हे काली मैया !...
हमहूँ चढैबै अरहुल फूल... हे काली मैया...! "

खड़गेश्वरी काली मंदिर चौक पर खच्चम् - खच्च् भीड़... । फणीश्वर की मां बैलगाड़ी से उतर कर पान - परसाद खरीदती है - सिंदूर, लहठी, चुनरी... । चौक पर से लेकर मंदिर के फाटक तक लोगों की छिटपुट भीड़ लगी थी । कचरी - बरी - झिल्ली - जिलेबी - मुरही - खेलौना... कितनी ही चीजें ! सड़क के दोनों ओर....बेचनेवाले और खरीदने वालों में मोलजोल खूब होता है!

बैलगाड़ी से उतर कर सब लोग मंदिर के प्रांगण में पहुंच गए । खंडेश्वरी काली माता की कहानी फणीश्वर बचपन से ही सुनता आया है, साक्षात काली मैया...! काली मैया के आगे जमीन पर बनी सात लाल - लाल पिंडियां !... सात बहन । पिछले साल पैंतीस खस्सी चढ़ा था, काली माय को !इस बार तो ज्यादा...। खस्सी चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के लिए तंबू - पंडाल बनाया गया है । मंदिर कमेटी का आदमी खस्सी चढ़ाने आए श्रद्धालुओं का नाम लिखकर उसे नंबर वाली पर्ची देता है -

" नंबर सैतालीस -
शिलानाथ मंडल,
औराही हिंगना,
जोड़ा खस्सी"

पर्ची लेकर फणीश्वरनाथ और कुसुमलाल सबको समझाता है, "तुम लोग खस्सी अगोड़कर थोड़ी देर यहीं बैठो, हम घूमकर आते हैं । पट खुलने में अभी देरी है ।

कुसुम लाल बैलगाड़ी के बक्से से चिलम और गांजा निकाल लाया है ; पट खुलने के पहले काली मैया का दर्शन निषिद्ध है ! मंदिर के काठ का फाटक मोटे पर्दे से ढ़ँका है !...काली मंदिर के पीछे सिंघाड़ा फूल का विशाल पेड़ है ; पेड़ के नीचे बैठे कुसुम लाल ने चिलम सुलगाते हुए फणीश्वरनाथ को काली मैया की महिमा सुनाया -

" एक बार की बात है । काली मैया का पट खुलने के पहले ही भत्तन माली की बेटी जमुनिया फूल माला लेकर मंदिर में घुस गई , बिना पुजारी को बताए ! भत्तन माली अररिया जेल में बंद था, खून के जुर्म में । उसकी बारह साल की बेटी जमुनिया को मंदिर के नियम का परतीत नहीं था , सो घुस गई मंदिर में...पुजारी को बिना बताए ! माता काली क्रोधित हो गई - जमुनिया सर्वग्रास ! जब तक पुजारी दौड़कर आया, जमुनिया के आंचल का एक बित्ता छोर ही मैया के मुंह के बाहर बचा था । अररिया जेल में बंद काली मैया के परम भक्त भत्तन माली ने सपना देखा -" अड़हुल फूल की सात माला गूंथ कर जेल से भेजो, सातों पिंडियों पर चढ़ाने...तब बेटी को उगलेंगे!

अररिया जेल से अड़हुल फूल की सात माला गूंथकर भेजा भक्तन माली ने, तुरत !...अगले दिन जमुनिया बेहोश पड़ी मिली - परमान नदी के श्मशान घाट पर ! सात दिन बाद भत्तन माली भी जेल से रिहा हो गया, बाइज्जत बरी ! उसी दिन से अररिया जेल में बंद खून के जुर्म के कैदी अड़हुल फूल की माला गूंथ कर भेजते हैं और तब माता खरगेश्वर काली मैया के मंदिर का पट खुलता है । " बोलो, बोलो खड़गेश्वरी काली माई की... जय हो!

मंदिर का पट खुला । कुसुमलाल के साथ फणीश्वरनाथ - दोनों खस्सी को पकड़े लाइन में खड़ा हो गए । माता काली के साक्षात् दर्शन हुए, ...गले में राक्षसों के मुंडो की माला, ...कमर में कटे हुए हाथों की घेराबंदी, ...चमकता हुआ खड्ग, ...लाल-लाल आंखें, ...मुंह से निकली हुई लाल जीभ, अगल - बगल में जोगनी - भोगनी ... भयावह ! फणीश्वरनाथ भयभीत हो गया होता यदि साथ में कुसुमलाल ना होता । बोलो, बोलो खड़गेश्वरी काली माई की ... जय हो !

आधी रात के बाद खस्सी कटने का सिलसिला शुरू हुआ, जो एक - डेढ़ घंटे तक चला । काली माता प्रसन्न हुई, फणीश्वरनाथ का दोनों खस्सी 'एकछप्पा' रहा !

आस-पड़ोस से खस्सी चढ़ाने आए श्रद्धालु रात में ही चलते बने । फणीश्वरनाथ और कुसुमलाल दोनों बलिदानी खस्सियों को बोरा में बांधकर बैलगाड़ी पर चले आए, सबके साथ ! सब भोर होने का इंतजार करने लगे ।

बैलगाड़ी पर बैठे फणीश्वर के मन में उत्कंठा हुई , "श्मशान घाट में जमुनिया को होश आया?"

कुसुम लाल ने किस्सा आगे बढ़ाया , "परमान नदी के श्मशान घाट में बेहोश पड़ी जमुनिया को गांव के लोग उठा लाए । ओझा - भगत ने झाड़-फूंक शुरू कर दिया । तभी ना जाने कहां से एक सिद्ध अघोरी गांव में आया और जमुनिया को अपने वश में कर लिया । जमुनिया भी आखिर भत्तन माली की बेटी थी, सिद्ध अघोरी से सारे तंत्र - मंत्र सीख लिए ! जमुनिया जब नस्तर- बान चलाती है, तो दुश्मन... चारों नाल चित्त! दसॉंय की सातवीं रात - कालरात्रि!... जमुनिया के साथ सिद्ध अघोरी पहुँच गया श्मशान घाट, परमान नदी के किनारे... मंत्र सिद्धि के लिए! एक-एक कर सभी सिद्धियां प्राप्त कर ली, जमुनिया डायन ने ।

मांस ... मदिरा ... मैथुन!

जब अघोरी तांत्रिक को पता चला कि जमुनिया उसके बच्चे की मां बनने वाली है, तो वह गांव छोड़कर भाग गया - गांववालों के डर से । कुंवारी जमुनिया तांत्रिक के बच्चे की मां बन बैठी ! जमुनिया डायन के किस्से !... जमुनिया डायन बड़े - बड़े पेड़ों को मंत्र के सहारे उखाड़ कर उसे नाव की तरह हॉंकती है, परमान नदी में! ... गरतुआ में गड़े हुए बच्चे को निकाल कर उसे जिंदा कर नचाती है! भूत-प्रेत और डायन के किस्से सुनकर फणीश्वर को डर लगता है । अंग्रेजों - जमींदारों के जुल्म की कहानियां सुनकर उसे गुस्सा आता है । गरीबों की बदहाली देखकर फणीश्वर मन ही मन रोता है । फणीश्वर का वश चले तो वह सभी अंग्रेजों को गोली मारकर स्वराज हासिल कर ले और जमींदारों की जमीन छीन कर भूमिहीनों - मजदूरों में बांट दे!... इसके लिए उसे ताकतवर बनना होगा ...पावरफुल ! नछत्तर ठीक कहता है, " बंदूक से ज्यादा पावर कलम में है।" इसलिए तो नछत्तर लेखकों - साहित्यकारों को ऊंचा आदमी समझता है, भगवान जैसा ! ताकतवर योद्धाओं की तस्वीरें उसकी आंखों के सामने घूमने लगती हैं - जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, नरेंद्र देव, राम बृक्ष बेनीपुरी ... फणीश्वर नाथ ने तय कर लिया है - वह विसेसर बाबू और सुशीला मैडम से मिलकर विराटनगर पढ़ने जाएगा । ताकतवर बनकर वह गरीबों के लिए लड़ेगा ।

रूप - दस

जोगबनी और विराटनगर फणीश्वरनाथ को अपने ही घर जैसा लगता है । विशेश्वर बाबू, गिरजा बाबू, मातृका... सबका व्यवहार अपनों जैसा लगता है । कृष्ण प्रसाद जी के विचार तो महात्मा गांधी की तरह हैं । ...कितनी इज्जत करते हैं नेपाल के लोग, इन लोगों की! विराटनगर के आदर्श विद्यालय में पढ़ते हुए फणीश्वरनाथ को राजनीति समझ में आने लगी है... कृष्ण प्रसाद कोइराला के परिवार में रहकर उसने राजनीति के विचारों को 'महसूस' किया है!..

विराट नगर के जंगली इलाके में जब फणीश्वरनाथ घूमने जाते हैं, तो वहां के लोगों के सादगीपूर्ण और कलात्मक जीवन को देखकर मुग्ध हो जाते हैं । विराटनगर तो मशीनों और कारखानों का शहर है - मिलों और मशीनों की आवाज शहर की गलियों में गूंजती रहती है -

फर्र...फर्र...
चर्र... चर्र...
घर्र... घर्र... !

विराट नगर के मिल मजदूरों की बदहाल स्थिति!... देसी - विदेशी शराबों और वेश्यालयों में आकंठ डूबे नगर के लोग...! विराट नगर में फणीश्वर मन लगाकर पढता है - साहित्य, इतिहास और राजनीतिशास्त्र तो वह बखूबी समझता है , साइंस के महत्व को फणीश्वर नकारता नहीं है, लेकिन गणित!... साइन - कोस - टेन थीटा उसकी समझ के बाहर की चीज है...फालतू !

विराट नगर में रहते हुए फणीश्वर को अपने गांव की खूब याद आती है । जोगबनी टीशन तक के तीन कोस का सफर वह विराटनगर से पैदल ही पूरा करता है ,कई बार ! जोगबनी - कटिहार पसिंजर ट्रेन तो मानो फणीश्वर का ही इंतजार करती रहती है, कितनी बार !

मैट्रिक की डिग्री पाकर फणीश्वरनाथ बहुत प्रसन्न हैं । गांव के लोग भले ही उसे फनीसर या रिनुआं कहते हैं लेकिन सर्टिफिकेट पर लिखा है - ' फणीश्वरनाथ मंडल' ।

औराही हिंगना गांव में फणीश्वरनाथ की चर्चा आम है - फनीसर मैट्रिक पास कर गया है ...आगे की पढ़ाई के लिए काशी जाएगा । बड़ा पढु़आ लड़का है ...बहादुर सुराजी... !

रूप - ग्यारह

पहली बार बनारस पहुंचने से पहले ही फणीश्वरनाथ ने पत्र-पत्रिकाओं में इस पवित्र शहर के बारे में बहुत कुछ पढ़ रखा था -बनारस मतलब भारतीय संस्कृति की पाठशाला... कबीरदास, तुलसीदास, रैदास, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और मदनमोहन मालवीय की कर्मभूमि बनारस !... बनारस मतलब धर्म, संस्कृति और साहित्य का अनूठा संगम । काशी विश्वनाथ, बालाजी और संकटमोचन आदि भव्य मंदिरों का दर्शन कर फणीश्वरनाथ नाथ का सिर श्रद्धा से झुक गया, बनारस में!

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आइ. ए. में नाम लिखवा कर फणीश्वरनाथ बेहद संतुष्ट और आत्मविश्वासी बन गए हैं । बनारस में छपने वाली पत्र-पत्रिकाओं से उन्हें दुनिया भर की जानकारी मिलती है । दूसरा महायुद्ध शुरू हो चुका है... गांधी - नेहरू की जोड़ी देश को आजादी दिलाने को कटिबद्ध है । जयप्रकाश जी सशस्त्र क्रांति करवाना चाहते हैं ।सुभाष चंद्र बोस भी सैन्य बल मजबूत कर रहे हैं । साहित्य में फणीश्वर की मौलिक अभिरुचि है, लेकिन देश की आजादी का प्रश्न उससे बड़ा है । 'आवाम' कविता लिख कर भी संतुष्ट नहीं हैं फणीश्वरनाथ । स्टूडेंट फेडरेशन का सचिव बनकर सभा - मीटिंग में अपना अकाट्य तर्क प्रस्तुत करने में फणीश्वर नाथ माहिर हो गए हैं, परंतु उनकी समझ में आज तक यह बात नहीं आई कि शिव के त्रिशूल पर स्थित काशी नगरी में 'लंका' क्षेत्र अस्तित्व में कैसे आया?

बनारस के गंगा घाटों की मनोरम छवियॉं फणीश्वरनाथ की आंखों में कैद हो जाती है, हमेशा के लिए! दशाश्वमेध घाट पर तो भजन - कीर्तन की गंगा बहती रहती है, प्रतिदिन ! शाम के वक्त गंगा तट पर घूमने आए फणीश्वर की आंखें किसी को ढूंढती रहती है - मृगनैनी... सखा... सहचरी... प्राण... ! सुमित्रानंदन पंत की स्वर लहरियां फणीश्वरनाथ को खूब भाती है और पंत जी का आकर्षक व्यक्तित्व व बड़े - बड़े बाल भी । फणीश्वर भी बाल बढ़ाएगा पंत जी की तरह...क्लीन शेव ! मृगनैनी अपरूप रूप बंगाली ब्राह्मण कन्या के स्वप्न में डूबे फणीश्वर नाथ को अपने पिता शिलानाथ मंडल का पत्र मिला - शादी पक्की हो गई है, घर आ जाओ । गांव पहुंचकर फणीश्वर नाथ ने अपनी मां से पूछा, "कहां का बरतुहार है ?"

मां ने प्रसन्न होकर कहा, "बेलवा गांव , कटिहार से पांच कोस पूरब । लड़की का नाम है - रेखा ।"

रूप - बारह

फणीश्वरनाथ के ब्याह के दिन उसके दोस्तों के चेहरे पर उमंग झलकता है, बरियाती जाने का । फणीश्वरनाथ का घर मेहमानों से भरा है । मामा - मामी, फुआ - फूफा, बहन - बहनोई सब आए हैं । बारात जाने वाले लोगों को खिलाया - पिलाया जा रहा है ।घर भर में रौनक फैली हुई है । ...गांव भर में बात फैल गई है, बाराती के साथ मनुआ नटुआ की नाच मंडली भी जाएगी । ...नहीं तो अब बारात कौन जाना चाहता है, दो रात की उजगी!

फणीश्वर के बचपन का दोस्त सनिचरा उससे पांच साल बड़ा है, लेकिन अब तक उसका ब्याह नहीं हुआ है! वह फणीश्वर से मिलने सुबह में आया, "तू तो करमसॉंढ़ है फनीसर, तुम्हारी पालकी कितनी सुंदर सजी है !... मैं तो तुम्हारी पालकी के ठीक पीछे वाली बैलगाड़ी पर बैठूंगा । चिलम- साफी- सलाई- गांजा... सब रेडी है । आज चलेगा, रास्ते में? " मनुआ नटुआ की नाच मंडली कुसुमलाल की बैलगाड़ी पर अपना झाल - मृदंग लेकर बैठ गई है । कुसुमलाल गर्व से कहता है "मेरी गाड़ी मनुआ नटुआ के लिए रिजफ् !" तीन दिन पहले तक तो गांव में बरियाती जाने वाले लोग एक दूसरे से कानाफूसी करते थे ," सौ - सवा सौ बारातियों के लिए अभी तक सिर्फ चार बैलगाड़ी की व्यवस्था की है, शिलानाथ ने ! आधी बारात को तो पैदल ही जाना पड़ेगा ... बीस पच्चीस कोस! ऐसी बाराती कौन जाए ...परंतु, जब कल सबको मालूम हुआ कि बारात में नाचने के लिए मनुआ नटुआ का साटा हुआ है, लोगों के सुर बदल गए, "बीस-पच्चीस कोस जाना है, तो दोपहर ढलते ही गाड़ी हांकना होगा । आखिर, गांव की इज्जत का सवाल है...जाना तो है ही!

दोपहर होने से पहले ही दरवाजे पर आठ बैलगाड़ियां लग चुकी हैं । सात बैलगाड़ियों में बारात जाएगी और एक ... कुसुमलाल की बैलगाड़ी पर मनुआ नटुआ की नाच मंडली! सजी-धजी पालकी में बैठा दूल्हा फणीश्वरनाथ, सबसे आगे ! औराही हिंगना से चली बारात रानीगंज में आकर रुकी । कुछ बारातियों ने पान- बीड़ी खरीदी और कुछ ने...!

बेलवा गांव पहुंचते-पहुंचते रात के बारह बज गए । जनवासा पर रस्म अदायगी के बाद दूल्हा फणीश्वरनाथ को गोद में उठाकर ले जाया गया, मड़वा पर! इधर, बारातियों की खूब खातिरदारी हुई।

अगले दिन, सुबह में कोरंजा खाने के बाद मनुआ नटुआ की नाचमंडली ढोल मंजीरा लेकर बैठ गई, जमनिका देने । गांव - टोला के लोग धीरे-धीरे जुटने लगे । बीच में मनुआ नटुआ की नाचमंडली बैठी है, गोलाकार! उसे चारों ओर से घेर कर बैठी है,औराही हिंगना से आई बारात और बारात के चारों ओर गांव - टोला के खड़े लोग जुट रहे हैं! मनुआ नटुआ सिर्फ कजरी - चैता ही नहीं फिल्मी गीत भी गाता है -

"मधुर - मधुर वृंदावन नाचै...
मधुर श्याम की मुरली बाजै! "...

"इस गाने पर खुश होकर बेलवा गांव निवासी श्री हरीशचंद्र श्रीवास्तव की ओर से दो रूपये का इनाम "...

"मैं नाचमंडली की ओर से हरीशचंद्र जी को शुक्रिया अदा करती हूं... ठक् ... ठॉंय्...मधुर..."

बेलवा गांव के लोगों ने आज तक ऐसा सुंदर नाच नहीं देखा था, मनुवा जैसा सुंदर नटुआ भी नहीं !

मनुआ को जवाब देने की ताकत है - बेलवा गाँव के बिदापत नाच मंडली में!

"औराही हिंगना के लोग मजाक उड़ाएंगे यदि बिदावत नाच ना किया गया । एक पहर बाद औराही हिंगना से आए बारातियों ने देखा - विदापत नाच मंडली जनवासा पर पहुंच गई है । नाचमंडली का मूलगैन बड़ा लटपटिया आदमी लगता है, "समधी और दूल्हा से भेंट करवाइए, निछावर पहले तय कर लेंगे !"

समधी शिलानाथ मंडल से निछावर की रकम तय करने के बाद बिदावत नाच मंडली के मूलगैन ने नर्तक और विकटा से कहा,"आज ऐसा नाच दिखाओ कि औराही हिंगना से आए बाराती लोग सात जन्म तक याद रखें ।"

एक बरियाती ने मुंह बिचकाकर कहा, "धानुक- कुर्मी के बाराती में दुसाध- मुसहर वाला विदापत नाच !... जा रे जमानाऽ...! "

विदापत नाच शुरू हुआ, मृदंग और मजीरे की आवाज पर लोग झूमने लगे । सामाजिक की जगह पर बाराती लोग बैठे हुए थे, विरहिनी नर्तकी के पीछे - पीछे बिकटा मुंह बिचका - बिचका कर घूम रहा था -

"जनम अवधि हम रूप निहारलौं
मन तिरपित जनु भेलि !"...

शाम को महफिल खत्म हुआ । बारात वापस जाने को तैयार होने लगी । दुल्हन के पिता और सरातियों ने 'मरजाद' ठहरने का अनुरोध किया,"मछली का आर्डर हो गया है ...और आप लोग जा रहे हैं! " बारातियों ने मरजाद कबूल नहीं किया, "भतखै करा दीजिए, बस! "...

भतखै के समय ओसारे पर बैठकर गांव भर की औरतें- लड़कियां गीत गाने लगी... गालियां! गीत में समधी और बारातियों की मां - बहन - दादी- मौसी- फुआ सबका खुले मन से उद्धार कर रही थी, गाने वाली औरतें और लड़कियां!

... ई समधी भरुआ के कुर्ता नहीं है,
... बहिन वाला ... पहनाओ....
... सुनाओ मेरी सखियां...
... स्वागत में गाली सुनाओ! ...

भतखै के बाद समधी और बारातियों को सम्मान पूर्वक विदा कर दिया गया, धोती पहना कर! ससुराल में रह गए दूल्हा फणीश्वरनाथ , अकेले ! साली - सरहज और नई दुल्हन का आकर्षण भी फणीश्वरनाथ को पहली बार ससुराल में ज्यादा दिनों तक बांधे ना रख सका । चौथारी की रस्म पूरी कर एक दिन शाम को फणीश्वरनाथ ने अपने ससुर से कहा, "शाम तक कटिहार से लौट आऊंगा ।"

कटिहार पहुंचकर फणीश्वरनाथ सीधे स्टेशन पर पहुंचे । उन्होंने कटिहार - जोगबनी पैसेंजर ट्रेन पकड़ ली, सिमराहा का टिकट कटा कर ! घर पहुंचने पर लोगों ने सवाल किया, "इतनी जल्दी क्यों आ गए ,ससुराल से ? दुल्हन सुंदर नहीं है क्या? "फणीश्वर ने सबको एक ही जवाब दिया, "मन नहीं लगता था, ससुराल में ।"

ससुराल से भाग कर आए फणीश्वरनाथ को यार दोस्तों ने घेर लिया, "गोरलगाई वाला रुपया में से एक भरी गांजा का दाम निकालो और कोहबर का किस्सा! "...फणीश्वर के यार दोस्त अलबेले हैं, बिना किसी पर्दा के मन की बात बोल देते हैं । फणीश्वर भी कुछ कम नहीं है, यार दोस्तों की मंडली में वह खुलकर बोलता है - बेफिक्र- बेपर्द होकर । बेपर्द होकर तो उसकी बरौनी वाली सरहद भी मजाक करती है -

"बेलवा के केलवा खिलायब हो पहुना...!"

बेलवा गांव के लोग फणीश्वर के साथ इतना मजाक और गाली-गलौज क्यों करते हैं?...ये गालियां इतनी मीठी क्यों लगती है, फणीश्वरनाथ को ! गालियां सुन कर मुस्कुराने के सिवा और कोई चारा नहीं; गुस्सा दिखाया तो छोटकी साली सब को सुनाकर जोर - से चिल्लाएगी -

"पढु़आ पाहुन चलन बाजार ...
पाहुन के बहिनि बड़ी...! "

रूप - तेरह

आइ. ए. की परीक्षा पास कर फणीश्वर नाथ ने बी. ए. में नाम लिखवा लिया है, बनारस में ही । पढ़ते वक्त किताब के पन्नों पर फणीश्वरनाथ को अपनी पत्नी रेखा की छवि दिखाई पड़ती है । रेखा का मौन समर्पण फणीश्वर को विचलित करता है-

" तोहें शरण यह तन- मन- जीवन...
अरज यही बस रहूं सुहागन...!"

पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने विश्वयुद्ध की खबरों से भरे पड़े हैं, पूरी दुनिया में दूसरा विश्वयुद्ध चरम पर है । जर्मनी, इटली और जापान मिलकर लड़ रहे हैं । इंग्लैंड, फ्रांस और रूस के छक्के छूट रहे हैं । खबरें पढ़कर फणीश्वरनाथ के मन में उम्मीद जगती है, "यही सही समय है, अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए !"

बनारस की पत्र-पत्रिकाओं में रामवृक्ष बेनीपुरी, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और निराला की रचनाओं का बोलबाला है ! दिनकर की ओजस्वी कविताएं मानो युद्ध का ही शंखनाद कर रही है । युद्ध होना तय है, आज हो या कल !

फणीश्वर का मन युद्ध की तैयारियों में व्यस्त है, युद्ध की आहट उसे स्पष्ट सुनाई पड़ती है । फणीश्वर एक सपना देखता है -आजादी का सपना! देश आजाद हो गया है ! फणीश्वरनाथ ने सभी अंग्रेजों को देश से खदेड़ दिया है, जयप्रकाश और सुभाषचंद्र के साथ मिलकर ! सुराज स्थापित हो गया है, देश भर में आजादी का जश्न मनाया जा रहा है । जमींदारों की जमीन भूमिहीन गरीबों में बांटी जा रही है ।

मुस्लिम लीग ने अलग देश की मांग छोड़ दी है...! नछत्तर माली दारू पीकर नाच रहा है! फणीश्वर पूछता है, "तो अब कैसा लग रहा है, नछत्तर जी? " जवाब देता है नछत्तर, " मन का सपना पूरा हो गया, फनीसर! ...अब ना किसी की नाक - कान काटने की जरूरत होगी, ना गोदाम लूटने की । फुलमतिया धनुकाइन को चार बीघा जमीन मिली है, अब वह अपने ही खेत में बकरी चराएगी ।

फणीश्वरनाथ का सपना टूटा । कोई बाहर से आवाज दे रहा था, " फणीश्वर जी, सो गए क्या ?" स्टूडेंट फेडरेशन के कुछ साथी फणीश्वरनाथ से मिलने आए हैं । फणीश्वरनाथ फेडरेशन के सचिव हैं, इसलिए सभी कार्य उनकी सहमति से ही होता है । फेडरेशन के साथियों ने सूचना दी, "कांग्रेस की बैठक में गांधीजी बड़ा ऐलान करने वाले हैं, सबको होशियार रहने को कहा गया है, ऊपर से । " रातों-रात गांधीजी का ऐलान चप्पे-चप्पे में गूंजने लगा -

अंग्रेजों ... भारत छोड़ो!
करो... या ...मरो !
इंकलाब... जिंदाबाद !
भारतमाता की... जय!
वंदे ... मातरम!

फणीश्वरनाथ का मन मान गया, सपना सच होकर रहेगा । उसे पूर्णिया जाना होगा । नछत्तर उसका इंतजार कर रहा होगा ।

रूप - चौदह

पूर्णिया - कटिहार - अररिया - फारबिसगंज! सब जगह एक ही नारा, "अंग्रेजों ...भारत छोड़ो! "

"क्विट इंडिया! "

गांधीजी को गिरफ्तार कर पूना के आगा खांके राजमहल में नजरबंद कर दिया है अंग्रेजों ने, कस्तूरबा के साथ । सभी बड़े नेता या तो जेल में हैं या नजरबंद! जनता उग्र और आक्रामक हो गई है । फणीश्वरनाथ सबको समझाते हैं, "अभी नहीं तो कभी नहीं ।"

नछत्तर माली के साथ मिलकर फणीश्वरनाथ ने जयप्रकाश का निर्देश माना - पुलिस थाना फूंक दिया, रेल की पटरी उखाड़ी, सरकारी गोला- बारूद-हथियार लूट लिए !... फणीश्वर और नछत्तर के कारनामे अंग्रेजी पुलिस की डायरी में लिखे जाने लगे ।

अंग्रेजी पुलिस किसी भी कीमत पर फणीश्वर नाथ को गिरफ्तार करना चाहती थी । गिरफ्तारी से बचने के लिए फणीश्वरनाथ आस-पास के गांव में छुपने लगे । अंग्रेजी पुलिस वारंट लिए उन्हें ढूंढ रही थी । अपने पड़ोस के एक गांव में फणीश्वरनाथ दोस्तों के साथ छुपे हुए थे । एक दिन गांव में बात अचानक फैल गई, "गांव को चारों ओर से पुलिस ने घेर लिया है! "

फणीश्वरनाथ और उनके साथियों को लगा, फरार होना नामुमकिन है !... परंतु, फणीश्वर नाथ के लिए कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं... उन्हें फरार होने का उपाय सूझ गया! एक घर में घुसकर उन्होंने दुल्हन जैसे साड़ी पहन ली, सिंगार- पटार कर लिया और अपने दोस्तों से कहा, " मैं टप्पर वाली बैलगाड़ी में बैठकर गांव से बाहर निकलूंगा, तुम लोग मेरे साथ रहना । यदि पुलिस पूछे तो तुम लोग कहना कि दुल्हन को विदा कराने आए हैं ।"

सचमुच फरार होने का उपाय सफल रहा । अंग्रेजी पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर 'दुल्हन' फरार हो गई ! किंतु फणीश्वरनाथ अधिक दिनों तक पुलिस की आंखों में धूल नहीं झोंक सके । पुलिस ने आखिरकार उन्हें गिरफ्तार करने के लिए 'जाल' बिछाना शुरू कर दिया और अंततः उसने फणीश्वरनाथ को दबोच लिया ।

फणीश्वरनाथ को गिरफ्तार कर अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें बुरी तरह पीटा । उनके शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं बचा, जिससे लहू ना बहा हो । लोहे की कील वाली बूट पहने एक अंग्रेज इंस्पेक्टर ने फणीश्वरनाथ की छाती पर अपने बूट से ऐसा जोरदार प्रहार किया कि फणीश्वरनाथ के प्राण निकलते- निकलते बचे, परंतु फणीश्वरनाथ ने मुंह नहीं खोला । उसने पुलिस को कोई सुराग नहीं बताया, क्रांतकारियों के खिलाफ !

गुस्साई अंग्रेजी पुलिस ने उसका मुंह खुलवाने के लिए उसके दोनों हाथों को रस्सी से बांधकर घसीटने का हुक्म दिया, दो घोड़ों की मदद से ! दोनों घोड़े फणीश्वरनाथ को घसीटते - घसीटते अररिया पहुंच गए, लेकिन फणीश्वरनाथ ने मुंह नहीं खोला । फणीश्वरनाथ ने उन्हें कुछ नहीं बताया ।

ढाई साल की सजा मुकर्रर कर फणीश्वरनाथ को पूर्णिया जेल में डाल दिया गया । इस बेरहम पिटाई ने फणीश्वरनाथ के शरीर को हमेशा के लिए तोड़कर बीमार बना दिया । कील वाली बूट के प्रहार ने उनकी छाती में असहनीय दर्द पैदा कर दिया । दर्द से छटपटाते फणीश्वरनाथ को जेल में ना भरपेट भोजन दिया जाता था, ना सही दवाई । टीबी रोग के रोगाणुओं ने उनके फेफड़ों में मजबूत घर बना लिया, खून की उल्टियां ...!

जेल में फणीश्वरनाथ की भेंट गुरू रामदेनी तिवारी 'द्विजदेनी' जी से हुई, उसे सहारा मिला । बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार सतीनाथ भादुरी जी से फणीश्वर नाथ का आत्मीय संबंध स्थापित हो गया । जेल के नीरस और एकांत वातावरण में फणीश्वरनाथ को साहित्य और साहित्यकारों का संबल प्राप्त हुआ । फणीश्वरनाथ जेल में प्रायः अपने गुरु द्विजदेनी जी को उपन्यास पढ़कर सुनाते- रवींद्रनाथ का 'योगायोग', अज्ञेय का 'शेखर : एक जीवनी ' और प्रेमचंद का 'गोदान' । भादुरी जी के उपन्यास 'ढोढ़ाईचरित मानस' और 'जागरी' फणीश्वरनाथ को पसंद आई । गुरु जी की सेवा को फणीश्वरनाथ अपना सौभाग्य समझते हैं, बीमारी की हालत में भी!

पूर्णिया जेल में बंद फणीश्वरनाथ को कस्तूरबा गांधी की मृत्यु की खबर ने उद्वेलित कर दिया । भावावेश में आकर फणीश्वरनाथ ने एक कविता लिखी - 'आगा खां के राजमहल में '। जेल में बंद गांधीवादियों को फणीश्वर नाथ ने जब यह कविता सुनाई तो उन्होंने इस कविता को बिल्कुल पसंद नहीं किया । गांधीवादी कैदियों ने कविता सुनकर नाक -भौं सिकोड़ना शुरू कर दिया, "आलिंगन ... चुंबन!.. छि: , छि:..।" नैतिकता और शुचिता के कर्णधार गांधीवादियो ने फणीश्वरनाथ की कविता को फूहड़ - अश्लील कहकर तिरस्कृत किया ।

गांधीवादियों की प्रतिक्रिया से फणीश्वरनाथ उदास और निराश हो गए । तब सतीनाथ भादुरी ने उन्हें सहारा दिया, "गांधीवादियों को यदि यह लगता है, कि गांधी जी ने कभी कस्तूरबा को आलिंगन- चुंबन नहीं किया तो उनकी बुद्धि तरस खाने योग्य है!... लेकिन तुम मेरी बात मानो तो कविता से ज्यादा कहानी लिखने का प्रयास करो । मुझे यकीन है, तुम अच्छी कहानी जमा सकते हो ।" फणीश्वरनाथ को भादुरी जी की बात सोलह आने सच लगी ।

अब फणीश्वरनाथ ने तय कर लिया है, वह कविता नहीं कहानी ही लिखेगा । जेल में फणीश्वरनाथ की बीमारी बढ़ने लगी । सीने में दर्द से बेचैन होकर फणीश्वरनाथ प्रायः बेहोश हो जाते हैं, खून की उल्टियां रुकती ही नहीं । हाथ पैर में बेड़ी- हथकड़ी डालकर उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया, इलाज के लिए!

रूप - पंद्रह

पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरणासन्न फणीश्वरनाथ प्रायः बेहोश ही रहते हैं ।मूर्छित अवस्था में वे तरह-तरह का सपना देखते हैं, शुभ सपना और अशुभ सपना ! अस्पताल के बेड पर पड़े फणीश्वरनाथ ने सपने में देखा- परमान नदी के श्मशान घाट पर एक अघोरी तांत्रिक का यजमान बनकर वे तंत्र-साधना कर रहे हैं...!

"ऊं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै...
ऊँ ह्रिं... ऊं क्लीं...
ऊं फट्... ऊं स्वाहा...!"

फणीश्वरना के सामने खोपड़ी में - मांस, मदिरा...!

"ऊं ह्रीं क्लीं फट् स्वाहा...
ऊं फट् फट्... स्वाहा...!"

फणीश्वरनाथ की तंत्र - साधना सफल हुई ! तांत्रिक के आह्वान पर साक्षात् खड़गेश्वरी माता काली प्रकट हुई, जोगनी - भोगनी के साथ ! अमावस के घनघोर तिमिर से व्याप्त श्मशान घाट दिव्य प्रकाश से चमक उठा ।शंख और घंटियों की आवाज गूंजने लगी ,

" ऊं...ऊं...टन्...टन्..!"

जोगनी - भोगनी के साथ यह तीसरी देवी कौन... ? जमुनिया डायन!

जजमान फणीश्वर के लिए तांत्रिक अभय मांगता है । जमुनिया डायन फणीश्वरनाथ से कहती है, "प्रेम में धोखा देना हत्या से भी बड़ा पाप है । यदि तुम किसी को प्रेम में धोखा नहीं दोगे तो तुम्हें अभय मिलेगा, बीमारी से तुम बचे रहोगे । यदि किसी सच्चा प्रेम करनेवाली को धोखा दिया, तो काली मैया तुम्हारे प्राण...!"

जमुनिया की बातों को सुनकर तांत्रिक अपना सिर झुका लेता है !

किसी की पुकार फणीश्वरनाथ का सपना तोड़ देती है, " उठिए फणीश्वरनाथ मंडल जी, दवा लेने का वक्त हो गया है ! " फणीश्वरनाथ को महसूस हुआ जमुनिया डायन उससे कुछ और करना चाहती थी, सपना ही टूट गया ! फणीश्वर ने पूछा ,"कौन...नर्स? "

"हां, हां...मैं ही हूं । उठो, दवा ले लो ।" नर्स ने फणीश्वरनाथ को दवाई दे दी, बाहों के सहारे उठाकर ! बिछावन पर तकिया ठीक से रख दिया और चली गई । फणीश्वरनाथ ने लक्ष्य किया ; इस नर्स का बोली-व्यवहार एकदम अलग है, अपनों जैसा व्यवहार !...और बोली ,एकदम फेनूगिलासी !

दवा लेकर फणीश्वरनाथ फिर से सपने में बात करना चाहते हैं, जमुनिया डायन से ! जमुनिया की आवाज अभी भी उनके कानों में गूंज रही है...सच्चा प्रेम करने वाली को धोखा दिया, तो काली मैया तुम्हारे प्राण... !

... सच्चा प्रेम ! अपरूप रूप बंगाली ब्राह्मण कन्या... बनारस का असमेघ घाट ! बंगाली मोहल्ले के जिस मकान में रहकर फणीश्वर नाथ बनारस में पढ़ते थे, उसकी छत पर खड़े होकर शाम के वक्त वह सड़क पर आते जाते लोगों को देख रहे थे, यूं ही ! अचानक उनकी नजर उस बंगाली सुंदर लड़की पर अटक गई- अपरूप रूप.. मृगनयनी.. अनिर्वचनीय सौंदर्य ! छत पर से तेजी से उतरकर फणीश्वरनाथ ने उस लड़की का पीछा किया, लगभग दौड़ते हुए । लड़की तुरंत कहां लापता हो गई?... असमेघ घाट की कीर्तन मंडली की भीड़ में गुम हो गई, वह मृगनैनी !... बहुत ढूंढने के बाद वह फणीश्वरनाथ को फिर दिखाई पड़ी ! उस अद्भुत सौंदर्य को फणीश्वर नाथ निहारते रहे, देर तक !

उठते-बैठते- सोते- जागते फणीश्वरनाथ को बस वही चेहरा दिखाई पड़ता है । उसी अलौकिक सौंदर्य के बारे में फणीश्वर नाथ सोचते रहते हैं, हमेशा ! ... एक- एक क्षण उसी मृगनैनी की चिंता में बीता है, फणीश्वर नाथ का ! फणीश्वरनाथ ने पता लगा लिया है ; बबली नाम है उस बंगाली ब्राह्मण लड़की का ; इसी मोहल्ले में रहती है ।

बबली जब घर से निकलती है, फणीश्वरनाथ चुपचाप उसके पीछे लग जाते हैं...अलौकिक सौंदर्य निहारने ! परंतु बबली को टोकने की हिम्मत कभी नहीं हुई फणीश्वरनाथ को ! असमेघ घाट, कालीस्थान गली, अंधी गली, बांस फाटक, गोदौलिया... हर जगह उसने अपनी मृगनैनी का अपरूप रूप निहारा, चुपचाप ! परंतु उसे टोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाये फणीश्वर नाथ । बबली भी मुड़ - मुड़कर फणीश्वर नाथ को देखती थी, मुस्कुराकर !

एक दिन अचानक मिठाई की दुकान पर बबली और फणीश्वर नाथ आमने-सामने हो गए । फणीश्वरनाथ को अप्रतिम देखकर बबली ने ही पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?" फणीश्वरनाथ ने चौंक कर कहा, " फणीश्वरनाथ मंडल " ; बबली कुछ कहना चाहती थी शायद," मुझसे प् ...!" तभी उसकी बंगालिन मां वहां पहुंच गई और सब गुड़ गोबर हो गया ।

...शायद बबली का प्रेम सच्चा था, जिसे धोखा देकर फणीश्वरनाथ ने हत्या से भी बड़ा पाप किया था ! और उसी का परिणाम है यह जानलेवा बीमारी.. टीबी ! जमुनिया की बात सच निकली, "सच्चा प्रेम में धोखा दिया तो काली मैया तुम्हारे प्राण...!"

पी.एम.सी.एच. में इलाजरत फणीश्वरनाथ की तबीयत धीरे-धीरे सुधर रही है । उस नर्स की दिन-रात की समर्पित सेवा ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है । खून की उल्टियां बंद हो गई है, दर्द भी कम हो गया है । लेकिन आज तक फणीश्वरनाथ की हिम्मत नहीं हुई है, उसका नाम पूछने की ! वह नर्स रात में दो- तीन बार आती है, चेक करने । नर्स को वार्ड में आता देख फणीश्वरनाथ आंखें बंद कर लेते हैं ,जान-बूझकर ! जागते हुए भी सोये रहने का नाटक ! वह नर्स आकर फणीश्वरनाथ का नब्ज टटोलती है, सिर के नीचे तकिया ठीक कर देती है और चादर भी ओढ़ा देती है, ठीक से ! सचमुच निस्वार्थ सेवा की प्रतिमूर्ति है, वह ! कल रात वार्ड की बिजली गुल थी ; वह नर्स एक हाथ में लैंप और दूसरे हाथ में पानी भरा गिलास लिए आई, चुपचाप ! फणीश्वर को ग्लास देते वक्त लैंप की रोशनी में उसका चेहरा दमक रहा था...!

द लेडी विद द लैंप... फ्लोरेंस नाइटिंगेल !

यह नर्स सभी मरीजों के साथ ऐसा ही कोमल व्यवहार करती है या सिर्फ फणीश्वर के साथ? आज फणीश्वर उसका नाम पूछ कर ही रहेगा...! सुबह में जब वह नर्स दवाई देने आई, फणीश्वरनाथ ने पूछ ही लिया, "आपका शुभ नाम क्या है ?"

"लतिका "

"फ्लोरेंस नाइटिंगेल को जानती हो ? "

"सी इज माय आइडियल ! "

"इस हॉस्पिटल में कब से...?"

अब नर्स लतिका खुल कर चहकने लगी, " पांच साल पहले पटना आए थे, हजारीबाग से । यही रहकर दो साल की नर्सिंग की ट्रेनिंग ली और पिछले तीन साल से यहीं नौकरी कर रही हूं, नर्स की । मेरे पिता हजारीबाग में एक कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं ।"

फणीश्वरनाथ की हिम्मत बढ़ी, " मेरे बारे में क्या ख्याल है?"

"बदमाश.. जंगली... वारियर...! इसलिए तो हाथ-पैर में बेड़ी डाल दी गई है । हा..हा..हा...!"

फणीश्वरनाथ हंसते हुए अपने बेड़ियों को निहारने लगे ।

माता काली की कृपा और नर्स लतिका की सेवा से फणीश्वरनाथ स्वस्थ हो गए हैं । एक दिन पुलिस ने उन्हें सूचना दी, "ढाई साल की सजा में डेढ़ साल की सजा तुम काट चुके हो, शेष सजा सरकार बहादुर ने माफ कर दिया है, बीमारी के कारण । "

फणीश्वर की बेड़ियां काट दी गई । वह आजाद हो गया, घर जाने के लिए । दासता की बेड़ियों से आजाद होकर फणीश्वरनाथ पीएमसीएच से विदा हो रहे हैं, लतिका की भीगी हुई पलकों को निहारते हुए ; टुकुर-टुकुर ! लतिका ने फणीश्वरनाथ की जेब में एक पर्ची रखते हुए कहा," चिट्ठी लिखना, समझे? "

गेट से निकलते हुए फणीश्वरनाथ ने अपनी जेब से पर्ची निकाल कर पढ़ा -

"लतिका चौधरी,
पी.आर.डी.क्वार्टर,
सेकंड फ्लोर, ब्लॉक नंबर - 2,
राजेंद्र नगर, पटना ।"

रूप - सोलह

औराही हिंगना गांव के लोगों ने लक्ष्य किया ; जेल से छूटने के बाद फणीश्वर नाथ का मन- मिजाज बदला -बदला नजर आता है । जीवन की कड़वी सच्चाइयों का सामना कर बहुत कुछ सीखा है, फणीश्वरनाथ ने । पत्नी रेखा फणीश्वरनाथ से लिपट-लिपट कर रो रही थी, " औरत का संसार पति से शुरू होकर पति पर ही समाप्त हो जाता है । आपसे शादी हुई तो मेरा मन सातवें आसमान पर था, धरती पर पॉंव ही नहीं पड़ते थे मेरे ! मुझे अभिमान हो गया था कि बनारस में पढ़ने वाले लड़के से शादी हुई है । गांव के बटबाबा का भी अपमान कर दिया था मैंने, गाछ - पत्थर समझ कर ! अभिमान में जल चढ़ाने नहीं गई, मां जी के कहने पर भी । बटबाबा के अपमान की सजा मुझे मिली, आपको ढाई साल की सजा हुई और टीबी रोग ! देवता- पित्तर की बात तब समझ में आई , बटबाबा से माफी मांग कर मैंने बरसाइत के दिन जल चढ़ाकर प्रसाद कबूल दिया ।आप जल्द से जल्द रिहा भी हो गए और टीवी रोग भी छूमंतर...!

फणीश्वरनाथ अपनी पत्नी रेखा को बहुत मानते हैं , दो दिल... एक जान ! जब वह जेल में थे, उनकी पत्नी रेखा को कम दुख भोगना पड़ा ? किसी ने साथ नहीं दिया, फिर भी रेखा ने हिम्मत नहीं हारी ।

बटबाबा की कृपा को यादगार बनाने के लिए फणीश्वरनाथ एक कविता लिखना चाहते हैं- ' बटबाबा' । नहीं, कविता नहीं... सतीनाथ भादुरी जी ने कहा था, कहानी लिखो !

सन् चौवालीस के अगस्त महीने में फणीश्वरनाथ की पहली कहानी 'बटबाबा' कोलकाता से प्रकाशित होने वाली साप्ताहिक पत्रिका 'विश्वमित्र' में छपी । नए लेखकों की रचनाओं को महत्व देने वाली पत्रिका थी विश्वमित्र ! इस पत्रिका को लेकर फणीश्वरनाथ अपनी दादी के पास पहुंचे, "दादी बचपन में तुमने मुझे बहुत-सी कहानियां सुनाई, आज मैं तुम्हें बटबाबा की कहानी सुनाऊंगा ।" बटबाबा की कहानी सुनकर दादी को अपने पोते फणीश्वरनाथ पर गर्व हुआ, "बटबाबा की कहानी लिखकर तुमने अपने पुरखों को पानी देने जैसा काम किया है, फनीसर ।" दादी की बातों से उत्साहित होकर फणीश्वरनाथ अपनी अगली कहानी के लिए प्लॉट ढूँढने लगते हैं ।

....लेकिन, कहानी लिखने से पेट भरने वाला तो है नहीं । पेट भरने के लिए तो फणीश्वरनाथ को खेती - मवेशी करना ही पड़ेगा । फणीश्वरनाथ दिनभर खेतों में काम करते हैं, रात में देर तक जागकर कहानियां - रिपोर्ताज लिखते हैं । अपने खेतों में लहलहाते धान, मकई और पाट की फसल देखकर उनकी आंखें जुड़ा जाती हैं । रेखा उनके लिए खाना बनाती है, उन्हें प्रेम पूर्वक खिलाती है और उनका हौसला बढ़ाती है ।

कोसी और परमान नदी की बाढ़ में आसपास के इलाके में कई गांव-टोले डूब गए हैं । संयोग है कि औराही हिंगना गांव तक बाढ़ का पानी नहीं पहुंचा है, नहीं तो फणीश्वर की फसलों का डूबना भी तय था । अंग्रेजी सत्ता के शोषण-दमन के कुचक्र में पड़े किसानों-मजदूरों की फसलें बह गयी ।

गाय - भैंस - बकरी घास के बिना भूखी है, घरों में पानी घुस आया है । हैजा - मलेरिया - कालाजार और भूख से मरे लोगों की लाशों को जलाने के लिए सूखी लकड़ियां नहीं मिलती है, चारों ओर भय का वातावरण व्याप्त है !

फणीश्वरनाथ के मन में हाहाकार मचा हुआ है । शाम ढलते ही चारों ओर भय और सन्नाटा पसर जाता है । सियारों और कुत्तों के रोने की आवाज अपशकुन की आशंका पैदा कर देती है, मन में ! दो-चार लाशें रोज उठती है, प्रत्येक गांव से । भूख और बीमारी से लड़ते हुए लोग हिम्मत हार चुके हैं, पूरी तरह से । दूसरा विश्वयुद्ध पांच वर्षों के बाद भी जारी है । जमींदार, साहूकार और महाजन गरीबों का खून चूसने का मौका नहीं छोड़ रहे हैं । दिनभर जमींदारों, किसानों और साहूकारों की 'गोरी' में खटने वाले मजदूरों को भरपेट भोजन नसीब नहीं होता है । बाढ़ और महामारी लोगों को लीलती जा रही है, प्रतिदिन ! फणीश्वरनाथ देर रात तक जाग कर लिखते हैं, कहानी और रिपोर्ताज । लुट्टन पहलवान की ढोलक की आवाज मरते हुए लोगों की पीड़ा- छटपटाहट को कम कर सकती है, उसे मरने से बचा नहीं सकती ! इस सत्य का वर्णन फणीश्वर अपनी कहानी 'पहलवान की ढोलक' में करते हैं और प्रकाशित होने के लिए कहानी को कोलकाता भेज देते हैं, 'विश्वमित्र' में ।

भूखमरी, गरीबी, अभाव, रोग और महामारी से लड़ते हुए लोग दोहरी गुलामी महसूस करते हैं ; विदेशी अंग्रेजों का कानून और देसी अंग्रेजों की निष्ठुरता । इस विपरीत जीवन परिस्थिति में भी लोग अपना उत्साह- उमंग बचाए रखना चाहते हैं । परब - त्यौहार और उत्सव बुझते हुए जीवन - दीपों में संजीविनी तेल बन जाते हैं ! हलवाहा, चरवाहा, गाड़ीवान और खेतिहर मजदूरों के जीवंत लोकगीत के स्वर फणीश्वर नाथ का मन मोह लेते हैं -

"चढ़ल चैत चित लागे ना रामा,
बाबा के भवनवा...
वीर बभनवां सगुन विचारै,
कब होइहें पिया से मिलनवां हो रामा..
चढ़ल चैत....! "

'बिदापत नाच' को लोग भले ही दुसाध-मुसहर जाति का नाच कह कर उसे नीचा ठहराने का प्रयास करें, लेकिन फणीश्वरनाथ को 'बिदापत नाच' आकर्षित करता है । गरीबों के जीवन के शाश्वत दुख में क्षणिक उत्साह उमंग लाने वाला संजीवनी ... विदापत नाच! इस लोकनृत्य पर आधारित एक रिपोर्ताज फणीश्वर नाथ ने लिख कर छापने भेज दिया है ।

जेल से लौटने के बाद फणीश्वरनाथ इलाके का चर्चित व्यक्ति बन गए हैं । सन् बयालीस की लड़ाई में 'आजाद दस्ता' में शामिल होकर फणीश्वरनाथ ने अपनी जान - पहचान खूब बढ़ाई है । जयप्रकाश नारायण, नरेंद्र देव और राम मनोहर लोहिया भी उसे जानते हैं, अच्छी तरह ! 'आजाद दस्ता' में काम करते हुए वह देश के लिए प्राणों की बाजी लगा चुके हैं । बाढ़ और महामारी से पीड़ित लोगों की सहायता में वे सबसे आगे रहते हैं । औराही हिंगना में उनका शरीर रहता है ; उनका मन तो घूमता रहता है, पटना -विराटनगर- जोगबनी- फारबिसगंज और बनारस में ! बनारस में रहते हुए फणीश्वरनाथ अनेक अविस्मरणीय विशिष्ट लोगों से मिले , उनमें से शरदेंदु बनर्जी सबसे अलग था, कलाकार आदमी ! शरदेंदु बनर्जी पर आधारित 'कलाकार' कहानी में फणीश्वर ने कला की उदारता और पूंजीवाद की संकीर्णता को बखूबी उकेर दिया है ।

'प्राणों में घुले हुए रंग' कहानी में फणीश्वरनाथ एक ओर प्रेम के शाश्वत मूल्यों को स्थापित करते हैं तो दूसरी ओर मगहिया डोम जैसी खानाबदोश जाति के भीख मांगने के दबंग तरीके का वर्णन करते हुए यह सिद्ध करते हैं कि इन जातियों को जरायम पेशा और असभ्य कहने वाले तथाकथित सभ्य लोग मगहिया डोम से भी गए गुजरे हैं ।

'ना मिटने वाली भूख' कहानी में फणीश्वर नाथ ने आदमी की कामवासना की कभी न मिटने वाली भूख का पर्दाफाश किया है, जो उषा देवी जैसी विधवा शिक्षिका और मृणाल जैसे बंगालन भिखारिन को पागल बनने को विवश कर देती है ।

रूप - सत्रह

विराट नगर का जंगली - पहाड़ी क्षेत्र फणीश्वरनाथ को खूब मनोरम लगता है , लेकिन विराटनगर के मिलों में काम करनेवाले मजदूरों की बदतर स्थिति फणीश्वरनाथ को रुलाती है । नेपाल के पहाड़ी जंगलों में रहने वाले लोगों के सरल जीवन पर आधारित कहानी 'रखवाला' लिखकर फणीश्वरनाथ आत्ममुग्ध हो जाते हैं ।

...दूर-दूर के गांवों और शहरों के सुराजी क्रांतिकारी फणीश्वरनाथ को केवल जानते ही नहीं, उससे मिलने भी आते हैं । नछत्तर माली तो साफ-साफ कहता है, "इस एरिया में एक ही मर्द है, फनीसर ।" सब जानते हैं कि फणीश्वरनाथ जयप्रकाश जी के सुशलिंग पार्टी का आदमी है, फिर भी फॉरवर्ड ब्लॉक और कम्युनिस्ट पार्टी के लोग उसे अपना पार्टी मेंबर बनाना चाहते हैं । फणीश्वरनाथ सभी पार्टी के लोगों को एक ही बात समझाते हैं, " बीमारों की मदद करो, पीड़ितों की सहायता करो और मजदूरों का उनका वाजिब हक दिलाओ । जमीन पर जोतने वालों का मौरूसी हक होना चाहिए ।" फणीश्वरनाथ किसी पार्टी को नाराज नहीं करना चाहते हैं । लेकिन अपने मन का भड़ास निकालने के लिए वह 'पार्टी का भूत' कहानी लिखकर छपवाते हैं, विश्वमित्र में । पार्टी -पॉलिटिक्स को बखूबी समझते हैं फणीश्वरनाथ, "काम लगने पर ये लोग गधा को भी बाप बना लेते हैं और काम निकल जाने पर बाप को भी गधा से बदतर बना देते हैं ।"

दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया है । 'फैटमैन' और 'लिटिल बॉय' नामक अमेरिकी परमाणु बमों ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों के अनगिनत लोगों का अस्तित्व मिटा दिया है । अंग्रेजों की शक्ति इस युद्ध में क्षीण हो गई है । सन् बयालीस की लड़ाई के बाद से ही अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए सही मौका की तलाश कर रहे हैं । विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद अंग्रेज अपने मुल्क लौटने को तैयार हो रहे हैं, मन ही मन ! फणीश्वरनाथ को विश्वास है, अब देश की आजादी का सपना पूरा होकर रहेगा ।

फणीश्वरनाथ स्वीकार करते हैं, " जिस प्रकार दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान चिकित्सा विज्ञान ने पेनिसिलिन का आविष्कार किया, उसी प्रकार साहित्य में रिपोर्ताज विधा का परिष्कार हुआ ।" फणीश्वरनाथ की दृष्टि में अपने क्षेत्र की तीन प्रमुख समस्याएं हैं - बाढ़, महामारी और जमीन का असमान वितरण । नदी को बांध दिया जाए, महामारी का इलाज ढूंढा जाए और गरीबों के बीच जमींदारों की जमीन सही तरीके से बांट दिया जाए...लोग खिलखिला उठेंगे!

आजादी की आहट सुनकर फणीश्वरनाथ उमंग में हैं । दूसरों की सहायता करने के लिए वह ' रसूल मिसतिरी' की तरह अपना जीवन खपा देना चाहते हैं, परंतु झूठी आधुनिकता उन्हें चिढ़ाती है । 'रसूल मिसतिरी' कहानी में वे इन भावनाओं को व्यक्त कर छपवाते हैं, विश्वामित्र में!

फणीश्वरनाथ को अपने समाज में जड़ जमाए जाति प्रथा अखरती है । गांव के टोले जाति के आधार पर बसे हुए हैं । अधिकांश जमीन और संसाधन ऊंची जाति के लोगों के कब्जे में है । ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, भूमिहार और बनिया जाति के लोगों का वर्चस्व है -आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक - हर दृष्टि से! यादव, कुशवाहा, धानुक, कुर्मी आदि जातियों के पास भी जमीन - जायदाद है, परंतु इनकी सामाजिक हैसियत मामूली है । दुसाध, चमार, डोम, मुसहर आदि अछूत कहीं जाने वाली जाति के लोगो की स्थिति बदतर है । दिन भर खटने के बाद भी इन्हें भरपेट भोजन नसीब नहीं होता है । बाभन जाति के लोगों का बोली- व्यवहार मिथ्याभिमान से आग जैसी जलन देता है । बभनटोली के फुटंगी झा ने उस दिन फणीश्वरनाथ की जाति का कैसा बेहूदा मजाक उड़ाया, " धा - धा करने पर जो डर से घर में 'नुक' जाए, उसे 'धा-नुक' कहते हैं ।" अपनी जान हथेली पर रखकर चलने वाले स्वाभिमानी फणीश्वरनाथ को हंसी भी आई और गुस्सा भी, "बभनटोली का फुटंगी और हम्मर लुंगी...बराबर !" बतकुट्टी करने में फुटंगी भी कम नहीं है । उसने फणीश्वरनाथ को चिढाकर उखाड़ने का मन बना लिया, " बाभन का बहिया- खबास..धानुक, कुर्मी और कहार ।" फुटंगी झा की विषैली बोली चुभती है, फणीश्वरनाथ को । वह जाति प्रथा को समूल नष्ट कर देना चाहता है, कानूनी रूप से !...कानून बना दिया जाए कि कोई भी व्यक्ति अपनी जाति में शादी नहीं कर सकता, जातिप्रथा खत्म हो जाएगी ।

फुटंगी झा जैसे जहरीले जातिवादियों को जवाब देने के लिए फणीश्वरनाथ कठोर शब्दों की तलाश करते हैं । फणीश्वरनाथ जब लिखते हैं, तो घटनाओं और विचारों को हू-ब-हू चित्रित करने के लिए उचित शब्दों को ढूंढते हैं। पशु - पक्षियों की आवाज और बोली को लिखते वक्त फणीश्वरनाथ को देवनागरी लिपि की वर्णमाला में वर्णों का अभाव महसूस होता है । हवा, पानी, आग जैसी प्राकृतिक चीजों की आवाज को व्यक्त करने के लिए उन्हें उचित अक्षर नहीं मिलता है, बने - बनाए परंपरागत वर्णों और अक्षरों से फणीश्वरनाथ किसी तरह काम चला लेते हैं ।

अंग्रेज भारत छोड़कर जाने को राजी हो गए हैं । 'अंग्रेजों, भारत छोड़ो ' का नारा सफल होते देखा, फणीश्वरनाथ ने । संविधान निर्माण के लिए विचार-विमर्श हो रहा है ; सभाएं चल रही हैं । जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम प्रधानमंत्री चुन लिया गया है । आजादी के दीवानों को जेल से रिहा करने की बात चल रही है, परंतु अचानक ही यह क्या हो गया है ! ... हिंदू-मुसलमान आपस में मारकाट क्यों कर रहे हैं ? इस बार बाढ़ का रूप बड़ा भयावह है ; हिंदू-मुस्लिम दंगों का चेहरा उससे भी भयावह है ! डूबते-मरते-कटते लोगों की लाशों की दुर्गंध असहनीय है ; महामारी ने हाहाकार मचा दिया है ! आसमान में गिद्ध मंडराते रहते हैं, दिनभर ! ...कुत्तों-सियारों के रोने की भयावह आवाज!.. फों-फों कर लहराता हुआ कोसी का पानी... कोसी की विनाश-लीला को लक्ष्य कर फणीश्वरनाथ ने एक रिपोर्ताज लिखा है... 'डायन कोसी' और गंगा नदी की बाढ़ पर आधारित रिपोर्ताज लिखा है - 'जै गंगा'!

विराट नगर के मिल मजदूरों की बेबसी और लाचारी फणीश्वरनाथ से देखी नहीं जाती । राणाशाही पूंजीपतियों को शोषण करने की छूट दे चुकी है । राजा के साथ मिलकर मिलों के मालिक मजदूरों का खून चूस रहे हैं । मिल मजदूरों को यूनियन बनाने और हड़ताल करने का भी अधिकार नहीं है । मिल मजदूरों को संगठित कर फणीश्वर उनकी वास्तविक स्थिति पर एक रिपोर्ताज लिखते हैं - ' सरहद के उस पार ' । इस रिपोर्ताज के छपने के दो दिन बाद ही विराटनगर के मिल मजदूरों ने हड़ताल कर दिया! फणीश्वरनाथ ने कोइराला परिवार के हाथों में इस आंदोलन का नेतृत्व सौंप दिया । तारणी प्रसाद कोइराला के साथ मिलकर फणीश्वरनाथ ने 'स्वतंत्र प्रजातंत्र नेपाल रेडियो' का संचालन शुरू कर दिया । विराटनगर के इस आंदोलन का चश्मदीद गवाह बने फणीश्वरनाथ ने इस घटना पर आधारित रिपोर्ताज लिखा - 'विराट नगर की खूनी दास्तान ' । लड़ाई में फणीश्वरनाथ बुरी तरह घायल हुए । उन्हें पूर्णिया जेल में डाल दिया गया, परंतु शीघ्र ही वे जेल से रिहा हो गए ।

रूप - अठारह

जेल से लौटकर आये फणीश्वरनाथ अपनी पत्नी रेखा को देखकर सन्न रह गए... डॉक्टर ने कह दिया है, "पैरालाइसिस का अटैक है, रेखा को! " मिट्टी की बेजान मूर्ति जैसी बन गई है रेखा । उसका शरीर हिलता- डुलता भी नहीं है । दिनभर बिछावन पर लेटी रहती है... बेजुबान कवितिया का रो-रो कर बुरा हाल है । कवितिया को जन्म देने के दिन से ही बीमार है रेखा । डॉक्टर इलाज कर के थक गए हैं, कोई सुधार नहीं हो रहा है । डाक्टर ने फणीश्वरनाथ से साफ-साफ कह दिया है, "कलकत्ता ले जाइए ।"

बाढ़ के बाद हैजा-पीलिया-मलेरिया-कालाजार का प्रकोप बढ़ गया है । सब विपत्तियाँ एक साथ ही आती है... किस-किस से लड़ेगा अकेला फणीश्वरनाथ ! ...बाढ़ से ? ... महामारी से ? ...रेखा की पैरालाइसिस से ?...अब तो बस काली मैया का ही एकमात्र सहारा है ! 'बीमारों की दुनिया में' कहानी के पात्र वीरेन के माध्यम से फणीश्वरनाथ अपनी पीड़ाओं- विचारों को व्यक्त करते हैं।

ऐसी विवशता फणीश्वरनाथ में कभी महसूस नहीं की, अपने जीवन में । मृत्युशैय्या पर लेटी रेखा के हिलते हुए ओठ फणीश्वरनाथ से कुछ पूछ रहे हैं । गूंगी रेखा की भावनाओं को समझ रहे हैं फणीश्वरनाथ ... कवितिया की खातिर दोसर ब्याह!... नहीं , फणीश्वरनाथ दूसरा ब्याह नहीं करेंगे । रेखा के जीते जी उसे धोखा नहीं दे सकते फणीश्वरनाथ! फणीश्वरनाथ को बार-बाथ जमुनिया डायन की बातें याद आती हैं - सच्चा प्यार करने वाली को धोखा दिया तो काली मैया तुम्हारे प्राण...!

अंग्रेज अपने मुल्क लौट रहे हैं, देश को कपड़े की तरह दो हिस्सों में चीरकर ! जगह-जगह से हिंदू-मुस्लिम दंगों की खबर आ रही है...गांधीजी अनशन पर बैठ गए हैं । हिंदुओं का कटा हुआ सिर पाकिस्तान ने रेलगाड़ी में भरकर भेजा है ... कोलकाता में सैकड़ों मुसलमान मारे गए ... फणीश्वरनाथ के मन में हाहाकार मच रहा है ! चारों ओर चीख-पुकार और भगदड़ की आवाज सुनाई देती है, उसे ।

यह क्या हो रहा है देश में?...
हिंदू राष्ट्र ... मुस्लिम राष्ट्र ...!
मारो , मारो ... काट दो...!
मुसलमान इस देश में सुरक्षित नहीं ...
हिंदुओं ने मुसलमानों की दुकान लूट ली....
हो...हो...हो...हो...!

बहुत से राजे-रजवाड़े देश के भीतर ही अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहते हैं, सरदार पटेल ने सेना भेजकर...! इन खबरों को सुनकर फणीश्वरनाथ स्तब्ध रह जाते हैं ...क्या ऐसी ही आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने बलिदानी दी? अपनी भावनाओं को फणीश्वरनाथ मनमोहन नामक पात्र के माध्यम से व्यक्त करते हैं, 'इतिहास : मजहब और आदमी' कहानी में । ' रेखाएं : वृत्तचक्र' कहानी भी फणीश्वरनाथ ने लिखा है, हाल ही में!...

यह रेखा को क्या हो गया ! ... दस दिनों से बिना कुछ खाए-पिए टुकुर-टुकुर ताकत रही है, बिछावन पर !... और आज रेखा ने सुबह में आंखें मूंद ली, सदा के लिए!... दुधमुंही कवितिया को अकेली छोड़कर रेखा संसार से विदा हो गई ! फणीश्वरनाथ के माथे पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा । उनकी आंखों से दिन-रात आंसू की धारा बहती ही रहती है, अविरल । स्वयं बाम विधाता जिसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाए, उसे कोई क्या सांत्वना दे ?

भयानक विनाश-लीला के बाद फणीश्वरनाथ के जीवन में चारों ओर वीरानी और उदासी फैल गई । ख्वाबों का महल देखते ही देखते खंडहर बन गया । 'खंडहर' कहानी लिखकर फणीश्वर अपने मन की बात कह जाते हैं ।

रूप - उन्नीस

एक दिन चाची ने कहा , "देख फनीसर, जीवन-मृत्यु पर तो किसी का वश है नहीं ; रेखा दुलहिन लौटकर तो आएगी नहीं । तुम अपनी नहीं तो कम से कम कवितिया के बारे में तो सोचो । मैं कहती हूं, दोसर ब्याह कर लो । सुनो, महमदिया गांव के खूबलाल विश्वास ने रिश्ता भेजा है, लड़की होशियार और कर्मठ है ; भरी जवानी में विधवा हो गई है, बेचारी...! "

फणीश्वरनाथ की गोद में बैठी दुधमुही कवितिया चाची का मुह ताक रही है, टुकुर-टुकुर !

कवितिया की खातिर फणीश्वरनाथ दोसर ब्याह करेंगे ! ...अब तो जमुनिया डायन का श्राप भी नहीं लगेगा, फणीश्वरनाथ को ! जब रेखा जीवित ही नहीं, तो उसको धोखा कैसा ? फणीश्वरनाथ निश्चिंत हैं । शादी के लिए उन्होंने एक शर्त रख दी, "शादी चुपचाप होगी ; ना ज्यादा बाराती और ना ज्यादा निमंत्रण ।" महमदिया गांव के लड़की वालों ने शर्त मान ली ।

जब से पदमा फणीश्वरनाथ की दुल्हन बनकर औराही हिंगना आई है, दिन-रात खटती रहती है । कवितिया को तो वह अपनी बेटी से भी ज्यादा दुलार करती है । है किसी में हिम्मत, जो उसे ' सतबा माँ' कह कर दिखाए ! पदमा खुद खेती करती है, गाय दुहती है, खाना पकाती है... लक्ष्मी है, लक्ष्मी !

फणीश्वरनाथ को तो पदमा ने घर- गृहस्थी की चिंता से मुक्त ही कर दिया, बिल्कुल ! फणीश्वरनाथ अब बेफिक्र होकर सुबह-शाम चिलम-चौकड़ी जमाते हैं, अपनी पदमा की खूब प्रशंसा करते हैं । अब फणीश्वरनाथ खुलकर लिखना चाहते हैं । कवितिया भी पदमा को अपनी असली मां समझ चुकी है । वह फिर से चहकने- फुदकने लगी है।

फणीश्वरनाथ के जीवन को एक नयी दिशा मिली है । पूर्णिया शहर में 'नयी दिशा' पत्रिका शुरू की है, फणीश्वरनाथ ने । 'नयी दिशा' पत्रिका में फणीश्वरनाथ कई नामों से लिखते हैं ।

इस बार 'नयी दिशा' पत्रिका के होली अंक में फणीश्वरनाथ ने 'होलैया जी' उपनाम से जोगीरा लिखा-

"एक रात में महल बनाया, दूसरे दिन फुलावारी !
तीसरी रात में मोटर मारा, जिनगी सुफल हमारी !!
कांगरेस का टिकट कटाया, बनकर खद्दर धारी !
मोरंग की सीमा पर हमने, रात में पलटी मारी !!
बाप हमारा पुलिस सिपाही, बेटा है पटवारी !
हाल साल में बना सुराजी, तीनों पुस्त सुधारी !!
खादी पहनो, चांदी काटो, रहे हाथ में झोली!
दिनदहाड़े करो डकैती, बोल स्वदेशी बोली !!
जोगी जी, सारा...रा...रा...! "

'नयी दिशा' पत्रिका में फणीश्वरनाथ संजय नाम से भी लिखते हैं । जिंदगी के महाभारत का वर्णन वे रूप, रस, गंध, स्पर्श, नाद और बिंबों के माध्यम से करते हैं । वे कलियुगी महाभारत की सारी वास्तविकता, सत्य, घृणा, हिंसा, मानवता, आवेश और दुर्घटनाओं को बयां करते जा रहे हैं ; उनके ऊंचे माथे पर मानो महर्षि वेदव्यास का आशीष अंकित है...दिव्य दृष्टि ! एक ही फणीश्वरनाथ कई नामों से क्यों लिखता है ?...पैसों के लिए ? प्रसिद्धि के लिए... ?

कुसुमलाल गाड़ीवान फणीश्वरनाथ के इतने सारे नामों का रहस्य जानता है, "पिता और छोटे भाई के श्राद्ध कर्म में फणीश्वरनाथ पर बहुत कर्जा गिर गया है, उसी को चुकाने के लिए फणीश्वरनाथ दिन-रात लिखता है, अलग-अलग नामों से ! "...कुसुम लाल की बात को बीच में ही धनिकलाल ने काट दिया, "अरे, इतना कर्जा तो महमदियावाली कनियां धान और पाट बेचकर चुका देगी ।"

पूर्णिया की 'नई दिशा' को फणीश्वरनाथ ने अपने जीवन का धर्मक्षेत्र बना लिया है । एक हाथ में रिवाल्वर और दूसरे हाथ में 'पार्कर फिफ्टीवन' कलम लेकर वे कूद पड़े हैं, धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में ! संजय छद्मनाम से फणीश्वरनाथ 'नई दिशा' में एक कहानी लिखते हैं- 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे' ।

पूर्णिया जिला के हजारों गरीब मजदूरों की विशाल सेना लेकर फणीश्वरनाथ कूच कर जाते हैं, किसान सम्मेलन पटना के लिए ! आजाद हिंदुस्तान के लाखों हिंदुस्तानियों के जीवन में वे 'नया सवेरा' लाना चाहते हैं । 'नए सवेरे की आशा में' रिपोर्ताज लिखकर फणीश्वरनाथ अपने भावों-विचारों को व्यक्त करते हैं ।

भारत का संविधान लागू हो गया । फणीश्वरनाथ को विराटनगर से डाक आया है । विश्वेश्वर बाबू की चिट्ठी पढ़कर फणीश्वरनाथ को याद आता है, जोगबनी और विराटनगर ! ...महुआ, अंगूर और केले से बनी शराब ; जोगबनी टीसन के बाहर चाय की दुकान पर चिलम-चौकड़ी...! विराटनगर पहुंचकर तो इस बार फणीश्वरनाथ ने तहलका मचा दिया । मिल मजदूर लोग तो फणीश्वर को अपना मसीहा मानते हैं...मुक्तिदाता ! पहाड़ी दारू और पहाड़ी लड़की जल्द चढ़ जाती है, माथे पर ! फणीश्वरनाथ की बंदूक हिमालय को हिला कर रख देगी ; मुक्तिसंग्राम का योद्धा फणीश्वरनाथ, जिसकी बंदूक और तलवार आग उगल रही है ! पार्कर फिफ्टीवन से 'हिल रहा हिमालय' रिपोर्ताज लिख कर फणीश्वरनाथ घोषणा कर देते हैं, "राणाशाही का अंत...! घायल और लहूलुहान होकर भी फणीश्वरनाथ बेफिक्र होकर लड़ते हैं । जेल जाने का डर उन्हें बिल्कुल नहीं है ! कवितिया को 'माय' मिल गई है ; पदमा सब संभाल लेगी ।

विशेश्वर बाबू का परिवार कितना ऊंचा है ! सब देश-विदेश में पढ़े हुए लोग...फैशनेबल कपड़ा पहनते हैं । गरीबों की खातिर मर- मिटने को तैयार रहते हैं, कोईराला परिवार के लोग ! अच्छा कपड़ा पहनना और सौम्य- कुलीन आचरण करना तो विश्वेश्वर बाबू के परिवारवालों से ही सीखा है, फणीश्वरनाथ ने । फणीश्वरनाथ को बहुत मानते हैं ये लोग ! विसेसर बाबू तो सबसे कहते भी हैं, "प्रजातंत्र में फणीश्वरनाथ को गहरी आस्था है । गरीबों पर अत्याचार करनेवाले नेपाली राजा का राज अब नहीं चलने देगा, वह ।"

फणीश्वर को नेपाल पराया मुल्क नहीं लगता है । वे अक्सर कहते हैं, "भारत यदि मेरी मां है तो नेपाल मेरी मौसी है ; नेपाल मेरी सानोअम्मा ! "

राणाशाही के दमन के खिलाफ फणीश्वरनाथ उग्र हो गए, ज्वालामुखी बनकर ! घायल फणीश्वरनाथ को फिर से टीवी की बीमारी के लक्षण...! सीना में दर्द, खून की उल्टी...उसे पटना जाना होगा, इलाज के लिए!

रूप - बीस

"फ्लोरेंस नाइटिंगेल!
पीआरडी क्वार्टर, सेकंड फ्लोर,
ब्लॉक नंबर -2
राजेंद्र नगर, पटना ।"

इस पते पर फणीश्वरनाथ कई चिट्ठियां लिख चुके हैं । चिट्ठियों का जवाब पढ़कर वे डर जाते हैं ...मेरे मनमीत, ...मेरे दिलबर... जान दे दूंगी ! ... लतिका की चिट्ठियां फणीश्वरनाथ को डरा देती है । सच्चा प्यार ...! जमुनिया डायन का श्राप... !

पानी का ग्लास फणीश्वरनाथ के हाथों में देती हुई लतिका ताना मारती है, "जब बीमार पड़ते हो तो मेरे पास आ जाते हो और ठीक होने पर फिर नजर नहीं आते ।" लतिका के हाथ से पानी का गिलास लेते हुए फणीश्वर नाथ ने लक्ष्य किया - लतिका के हाथ पर नीले-काले रंग का गोदाया हुआ अंग्रेजी का तीन अक्षर - F. N. M.

फणीश्वरनाथ से रहा नहीं गया । उन्होंने पूछ ही लिया, "हाथ पर यह क्या गुदवाई हुई हो, एफ. एन. एम. ?" मुस्कुराती हुई लतिका ने फणीश्वरनाथ की आंखों में आंखें डालकर कहा, "नहीं समझे बुद्धू... ! एफ. एन. एम. मतलब 'फणीश्वर नाथ मंडल'!" मुस्कुराती हुई लतिका सिर झुकाकर चली गई, लजाकर ! अचरज और असमंजस में पड़े अप्रतिम फणीश्वरनाथ अचकचा गए ...! लतिका के सच्चे प्यार को धोखा कैसे दें, वह !

इस बार फणीश्वरनाथ पटना में बीमार पड़े हैं, लेकिन उनके हाथ-पैर में बेड़ियां नहीं हैं । वह शहर में आजादी के साथ घूमते हैं । 'विश्वमित्र' तथा दूसरी पत्रिकाओं में उनकी कहानियां-रिपोर्ताज छप चुके हैं । 'हड्डियों की सड़क' और 'हड्डियों का पुल' रिपोर्ताज तो हाल ही में छपा है । पटना के लेखक, कवि, नेता... सब पहचानने लगे हैं, फणीश्वरनाथ रेणु को । पटना के गंगा घाटों पर घंटों बैठकर फणीश्वरनाथ गंगा नदी की जलधारा को एकटक निहारते रहते हैं । गांधी मैदान में बैठकर घंटों सोचते रहते हैं कि लतिका को क्या कहें ... कि मेरी दो शादियां पहले ही हो चुकी है !... नहीं, लतिका के सच्चे प्यार को धोखा दिया तो जमुनिया डायन का श्राप मुझे छोड़ेगा नहीं ।

एक दिन चाय पीते हुए फणीश्वरनाथ ने लतिका से पूछ ही लिया, "फ्लोरेंस नाइटिंगेल जी, मुझमें कौन-सी खूबी देखकर मेरा नाम 'एफ. एन. एम' अपने हाथ पर खुदवा कर आप बावरी हो गई हैं ? "

लतिका ने चौंककर कहा , " खूबी?... यू आर अ राइटर... अ फ्रीडम फाइटर... अ सोल्जर... अ पोयट... अ वारियर... अ रिवोल्यूशनिस्ट... अ लीडर... अ वाइल्ड लवर... इन टोटल यू आर एन इंपर्सोनेटर...बिल्कुल बहरूपिया हो तुम । आई लव यू!"

" बस कीजिए लतिका जी, इतना मत फुलाइए मुझे कि फूलकर गुब्बारे की तरह बर्स्ट...!"

"नहीं, यह सच है! तुम बिल्कुल बहरूपिया हो । बावन रूप हैं तेरे, सब एक से बढ़कर एक ! मुझसे शादी कर लो, मैं धन्य हो जाऊंगी । "

" मुझ जैसे आदमी से शादी कर बहुत पछताओगी ।"

" आई डोंट माइंड ! "

"आपके उच्चकुल प्रोफेसर पिता इस इंटरकास्ट मैरिज को एक्सेप्ट करेंगे?"

"मुझे पापा की चिंता नहीं, बस तुम हां कह दो ... पापा को मैं मना लूंगी ।"

सच्चे प्रेम की आहट... ! फणीश्वरनाथ कैसे धोखा दे सकते हैं, सच्चा प्रेम करनेवाली लतिका को ; जमुनिया डायन का श्राप...काली मैया तुम्हारे प्राण...!

असमंजस में पड़े फणीश्वरनाथ को कहना पड़ा, "देखो लतिका, मुझे कोई एतराज नहीं है लेकिन मेरे परिवार वाले इस मैरिज को एक्सेप्ट नहीं करेंगे । इस शादी में मेरे घर-परिवार से कोई नहीं जाएगा ।" लतिका ने उत्साहित मन से कहा " ओके... ! हम हजारीबाग में शादी कर लेंगे ! तुम कुछ दिनों तक अपने गांव नहीं जाना, जब तक सिचुएशन नॉर्मल न हो जाए ।"

"ठीक है ।" फणीश्वरनाथ ने कह दिया ।

बीमार फणीश्वरनाथ लतिका के साथ तीसरी शादी रचाने के लिए हजारीबाग पहुंचते हैं, एक- दो दोस्तों के साथ ! शादी के मंडप में भी खून की उल्टियां ; किसी तरह शादी संपन्न होती है । लतिका फणीश्वरनाथ को पटना लाकर उनकी खूब सेवा-सुश्रुषा करती है, दिन-रात ! फणीश्वरनाथ स्वस्थ हो जाते हैं, धीरे-धीरे !

एक दिन लतिका पूछती है, "क्यों मिस्टर नोटोरियस राइटर, फिर कहीं फतह हासिल करने जाना है, मोर्चे पर ?" अखबार पढ़ते हुए फणीश्वरनाथ जवाब देते हैं, " नहीं, अब तुम्हारे साथ पटना में ही रहना है, जीवन भर !"

पटना के अखबारों में फणीश्वरनाथ पूर्णिया की खबरों को खोज - खोज कर पढ़ते हैं । अररिया, फारबिसगंज, जोगबनी और सिमराहा की खबरों के लिए उनका मन बेचैन रहता है । पूर्णिया जिला में जमीन का सर्वे सेटेलमेंट शुरू हो गया और वह पटना में बैठे हैं, पत्रिकाओं की बेगारी करने ! फणीश्वरनाथ ने हिम्मत कर लतिका से पूछ ही लिया,"बहुत दिन हो गए गांव गए, घूम-फिर कर आ जाऊँ? "

लतिका सहमत हो गई," ह्वाई नोट.. जाओ, लेकिन जल्दी चले आना ।"

फणीश्वरनाथ थोड़ा हाथ-पैर फैलाते हैं, "गांव में कुछ कर्ज है, रुपए चुकाने होंगे ।"

लतिका बेपरवाही से कहती है," रुपये बक्से में रखा है, जितनी जरूरत हो ले जाओ ।"

रूप - इक्कीस

फणीश्वरनाथ के औराही हिंगना पहुंचते ही रातों- रात गांव भर में खबर फैल गई ; फनीसर सालभर के बाद गाँव लौटकर आया है, बड़ा आदमी बनकर ! एक बक्सा नमरी नोट की खबर सुनकर दरवाजे पर बकायेदारों-महाजनों की आवाजाही शुरू हो गई, किरिन फूटते ही ! सूद- ब्याज जोड़कर सब का रुपया चुका देते हैं फणीश्वरनाथ, खुले मन से ! फिर भी कुछ रुपए बच जाते हैं उसके पास, कवितिया और पदमा के लिए ।

सुबह से ही औराही हिंगना गांव में सब ओर बस फणीश्वरनाथ की ही चर्चा है ; जितना मुंह, उतनी बातें !

"फणीश्वरनाथ को पटना में कुबेर का खजाना हाथ लग गया है, एक बक्सा नमरी नोट ...! "

"रिक्शा की ठेकेदारी में इतना रुपया कमाया है, फणीश्वरनाथ ने! "

"अरे, हमने तो सुना है एक लाखपति की बेटी को फंसा कर रखा है, पटना में !"

औराही हिंगना गांव के अधिकांश युवक रुपया कमाने के लिए पटना जाना चाहते हैं, फणीश्वरनाथ के साथ ! रात में सोने से पहले पदमा ने सवाल-जवाब किया, "इतना रुपया कहां से लाए? कोई गलत काम...?" फणीश्वरनाथ ने बीच में ही पद्मा की बात काट दी, "अरे नहीं, एक लाटरी फंस गई बस... ! लेकिन यह तो बताओ, गाय-बैल का घास-भूसा कौन ला देता था, खेत से? पदमा ने मान-भरे स्वर में कहा, "बेचारा धनिकलाल, और कौन ? तुम तो इस बार ऐसा गायब हुए कि...!"

फणीश्वरनाथ का मन गांव में रम गया है । उनके मन में कुछ बड़ा लिखने की चाहत है । वह पात्रों और घटनाओं की तलाश में रहते हैं, हरदम ! फणीश्वरनाथ अपनी रचनाओं में उन्हीं लोगों को पात्र के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, जिन्हें वे अच्छी तरह जानते-समझते हैं । वे अपने पात्रों से पहले आत्मीय संबंध स्थापित करते हैं, फिर उसके मन की थाह लेते हैं ।

दिनभर मचान पर बैठकर फणीश्वरनाथ ताश खेलते हैं । आजकल पूर्णिया जिला में ट्वेंटी नैन का खेल खूब चलता है । फणीश्वरनाथ के मचान पर ट्वेंटी नैन के साथ-साथ चिलम-चौकड़ी और लाल पानी का खेल भी चलता है । दिनभर चिलम-चौकड़ी और शाम के बाद इंग्लिश ब्रांड दारू! अमीरचंद के बेटे सुमरचन्ना के ब्याह का किस्सा इसी मचान पर सुना है, फणीश्वरनाथ ने ! ब्याह के मंडप से भाग गई दुल्हन, दूसरे लड़के के साथ ! इस घटना पर आधारित कहानी 'ट्वेंटी नैन का खेल' लिखकर फणीश्वरनाथ उसे छापने भेज देते हैं, पूर्णिया !

अपनी कहानियों के लिए जीवंत पात्रों और मिर्च-मसालों को अपने सफरी झोले में भरकर एक दिन सुबह-सवेरे फणीश्वरनाथ चुपचाप फरार हो जाते हैं, पटना !

रूप - बाईस

फणीश्वरनाथ जब पटना पहुंचते हैं, लतिका उनपर टूट पड़ती है,"सब पैसे लेकर क्यों चले गए थे? गांव में इतना कर्जा क्या मेरे भरोसे लिया था? मेरी बारह साल की जमापूंजी तीन महीने मैं ही लूटा आए, गांव में !"

फणीश्वरनाथ ने अनुनय भरे स्वर में कहा, "जो हो गया, सो हो गया ; अब मैं तुम्हारा एक पैसा भी नहीं लूंगा । अब मैं कहानी नहीं, उपन्यास लिखूंगा । उपन्यास बेचकर तुम्हारे सारे रुपए लौटा दूंगा। इस बार गांव से दो-ढाई सौ पात्रों को साथ लेकर लौटा हूं ।"

लतिका थोड़ी देर चुप रही, फिर मुस्कुराकर बोलने लगी, "इस बार मोटे-ताजे होकर लौटे हो, किसके हाथ का बनाया हुआ खाना देह में लग गया ?" फणीश्वरनाथ को चुटकी लेने का मौका मिला, "मां के हाथ का खाना ही बेटे के देह में लगता है । पत्नी तो दिन रात...!"

फणीश्वरनाथ ने निश्चय कर लिया है, "वह एक ऐसा उपन्यास लिखेंगे कि लोग देखते रह जाएंगे ! तीन महीने गांव में रहकर रानीगंज का किस्सा उन्होंने खूब सुना है । रानीगंज का पोस्ट ऑफिस मेरीगंज कहलाता है । मेरीगंज पर आधारित उपन्यास लिखेंगे, वह !...लेकिन सबसे पहले वह अपना एक फोटो खिंचवाएंगे । अभी वह मोटे-ताजे हैं । पता नहीं बाद में ऐसा हृष्ट- पुष्ट शरीर फिर रहे या ना रहे । कई स्टूडियो के बारे में पता लगाने के बाद अंततः अपना फोटो बनवा ही लेते हैं फणीश्वरनाथ ! लेकिन इस क्रम में वह एक आश्चर्यजनक स्टूडियो का दर्शन करते हैं । इस स्टूडियो पर आधारित 'वंडरफुल स्टूडियो' कहानी लिखकर वे छापने भेज देते हैं, 'अवंतिका' पत्रिका में ।

फणीश्वरनाथ अपने दो-ढाई सौ पात्रों को मेरीगंज की कथा के अनुरूप सजाने लगते हैं । कई महीनों के परिश्रम के बाद उनका उपन्यास पूर्ण हो गया । लेकिन उपन्यास का टाइटल अर्थात नाम क्या रखें? सुमित्रानंदन पंत की कविता 'भारतमाता ग्रामवासिनी' की पंक्तियां फणीश्वरनाथ के अंतर्मन में प्रायः गूंजती रहती है -

" भारतमाता ग्रामवासिनी ,
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला- सा आंचल
गंगा-यमुना में आंसू जल
मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी !"

"धूल भरा मैला- सा आंचल" पंक्ति से फणीश्वरनाथ अपने उपन्यास का शीर्षक निकालते हैं- 'मैला आँचल'!

गांधी मैदान में 'मैला आंचल' उपन्यास की पांडुलिपि पढ़कर जब नलिन विलोचन शर्मा ने इसकी प्रशंसा की, तो फणीश्वरनाथ का आत्मविश्वास बढ़ गया । परंतु पटना का कोई भी प्रकाशक 'मैला आंचल' को प्रकाशित करने के लिए राजी नहीं हुआ । 'मैला आंचल' उपन्यास की पांडुलिपि लेकर फणीश्वरनाथ कई महीनों तक एक प्रकाशन से दूसरे प्रकाशन तक भटकते रहे, व्यर्थ !

एक प्रकाशक ने कहा, "गंवई-गंवारू भाषा में लिखा गया है यह उपन्यास, कौन पढ़ेगा इसे ?"

दूसरे प्रकाशक ने कहा, "इस उपन्यास में अश्लील गाली- गलौज लिखा है... तौबा-तौबा !"

तीसरे प्रकाशक ने कहा, "इस उपन्यास को कोई क्यों पढ़ेगा ?...बिना सिर पैर की कहानी ! "

फणीश्वरनाथ थक-हार कर बैठ गए । कोई प्रकाशक 'मैला आँचल' को प्रकाशित करने के लिए राजी नहीं हुआ । लेकिन फणीश्वरनाथ को अपने पाठकों पर पूरा भरोसा है । शहर में बैठे ये प्रकाशक-समीक्षक अपने को साहित्य का भाग्य-विधाता और मठाधीश समझते हैं... बेवकूफ गदहे ! गांव की भाषा ही तो ओरिजिनल भाषा है । गाली-गलौज तो समाज की एक सच्चाई है । जिस साहित्य में समाज का सच और भाषा ओरिजिनल ना हो, वह कैसा साहित्य होगा?

लतिका ने जब 'मैला आंचल' उपन्यास की पांडुलिपि को पढ़ा तो उसे लगा कि यह उपन्यास तो बिल्कुल सच पर आधारित है । सच छापने से लोग परहेज क्यों करते हैं ? उदास फणीश्वरनाथ को उसने सहारा दिया, "मेरी शादी के गहने बेचकर तुम इस उपन्यास को छपवाओ । मुझे विश्वास है, सच की जीत अवश्य होगी ।"

रूप - तेईस

समता प्रेस से 'मैला आंचल' उपन्यास प्रकाशित हुआ । साहित्य-समीक्षा की दुनिया में आंधी और बवंडर उठ गया । पटना, कोलकाता, बनारस, इलाहाबाद, और दिल्ली के पत्र-पत्रिकाओं में 'मैला आंचल' उपन्यास की जबरदस्त आलोचना हुई । कोई आलोचक 'मैला आंचल' को हिंदी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास साबित कर रहा था, तो कोई आलोचक इसे बिल्कुल घटिया और बेकार उपन्यास साबित करने पर तुला हुआ था । मैला आंचल की जबरदस्त प्रसिद्धि ने फणीश्वरनाथ 'रेणु' को सिरमौर उपन्यासकार के रूप में स्थापित कर दिया । अपनी करनी और व्यवहार पर खेद व्यक्त करते हुए राजकमल प्रकाशन ने 'मैला आंचल' उपन्यास को फिर से प्रकाशित किया । कुछ ही दिनों में 'मैला आंचल' उपन्यास की हजारों प्रतियां बिक गई ।

हिंदी कथा और साहित्य के आकाश में एक नया तारा जगमगा उठा- फणीश्वरनाथ 'रेणु' । उपन्यास की मोटी कमाई से लतिका के गहने भी खरीदे गए और उसकी बारह वर्षों की लुटी हुई जमापूंजी भी उसे वापस मिल गई!...और सबसे बढ़कर उसे मिला एक प्रसिद्ध नाम -लतिका रेणु ।

'मैला आंचल' उपन्यास इतना ज्यादा प्रसिद्ध हुआ, जिसकी कल्पना स्वयं फणीश्वरनाथ 'रेणु' ने भी नहीं की थी । देश-विदेश के बड़े-बड़े नामी लेखकों ने 'मैला आंचल' उपन्यास को पढ़ा भी, पसंद भी किया । साधारण पाठकगण तो रेणु की स्पष्टवादिता और सपाटबयानी के कायल ही हो गए । लेकिन साहित्य के राजदार पंडितों-समीक्षकों-आलोचकों को रेणु का 'मैला आंचल' उपन्यास समझ में नहीं आया । एक आलोचक ने रेणु के व्यक्तित्व की समीक्षा की, "एक जीवन दर्शनहीन अपदार्थ अप्रतिबद्ध व्यर्थ रोमांटिक प्राणी !" दूसरे मठाधीश ने लिखा,"साहित्य के तालाब को गंदा करने वाला जीव है, फणीश्वर नाथ 'रेणु'!"

सच बात तो यह है कि रेणु के उपन्यास 'मैला आंचल' की प्रसिद्धि को द्विज आलोचक-समीक्षक पचा नहीं पा रहे थे । अपने प्रथम उपन्यास की अद्भुत प्रसिद्धि से रेणु स्वयं भी हतप्रभ थे । साहित्य के मठाधीशों को यह बात पच नहीं रही थी कि एकमात्र उपन्यास लिखकर कोई लेखक इतना ज्यादा प्रसिद्ध कैसे हो सकता है ! मठाधीश समीक्षकों ने 'मैला आंचल' उपन्यास का पोस्टमार्टम करना शुरू किया, "आंचलिक उपन्यास 'मैला आंचल' सतीनाथ भादुरी के बांग्ला उपन्यास 'ढोढ़ाईचरितमानस' की नकल है ।" समीक्षकों की नागरी बुद्धि 'मैला आंचल' को समझने में नाकामयाब रही । उनकी आलोचना के घिसे- पिटे उकरण 'मैला आंचल' की समीक्षा करने में असमर्थ साबित हो गए ! ये लोग बेवजह रेणु जी से ईर्ष्या करने लगे ।

फणीश्वरनाथ 'रेणु' दिन प्रतिदिन प्रसिद्ध होते जा रहे थे । देसी भाषाओं के अलावा विदेशी भाषाओं में भी 'मैला आंचल' उपन्यास का अनुवाद हुआ । रूस में तो मैला आंचल उपन्यास खूब लोकप्रिय हुआ । देश से आगे बढ़कर रेणु विदेश में भी खूब लोकप्रिय हुए । एक ग्लोबल अर्थात वैश्विक लेखक को ईर्ष्यालु आलोचकों- समीक्षकों की दयनीय बुद्धि आंचलिक कथाकार और आंचलिक उपन्यासकार साबित कर खारिज करने की असफल कोशिश कर रही थी ।

रूप - चौबीस

रेणु को पसंद करने वाले पाठकों-लेखकों के मन में 'मैला आंचल' उपन्यास को अविस्मरणीय रचना बनाने का विचार आया । अपनी आलोचनाओं से बेपरवाह रेणु को पटना के साइंस कॉलेज में एक हाथी पर बैठाया गया । 'हाथी जुलूस' में शामिल होने के लिए सैकड़ों की संख्या में पाठक, लेखक और राजनीतिक लोग साइंस कॉलेज में जुटे । 'हाथी जुलूस' साइंस कॉलेज से निकलकर पी.एम.सी.एच. के रास्ते गांधी मैदान की ओर चला । ढोल- नगाड़ों की आवाज के तर्ज पर सैकड़ों लोगों का जुलूस 'मैला आंचल - मैला आंचल' का नारा लगा रहा था । गांधी मैदान से पटना जंक्शन पहुंचते-पहुंचते इस हाथी जुलूस में हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई । आज तक पटना के साहित्य प्रेमियों ने किसी अन्य लेखक को ऐसा सम्मान नहीं दिया था ।

ईर्ष्यालुओं से फिर कुछ बोलते न बना । एक बार फिर वे ईर्ष्या से जल-भुन गए, "बहरूपिया... नौटंकी करता है !"

'मैला आंचल' उपन्यास का विमोचन फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने गांव औराही हिंगना में किया । विमोचन के अवसर पर रेणु जी ने अपने पिता शिलानाथ मंडल की समाधि पर भजन-कीर्तन का आयोजन किया । नागार्जुन, दिनकर और बेनीपुरी जैसे चर्चित लेखक-कवि इस विमोचन समारोह में शिरकत करने आए थे । फणीश्वरनाथ अपने पिता की समाधि पर खूब रोए, "आज यदि पिताजी और द्विजदेनी जी जीवित होते तो कितने खुश होते !"

मैला आंचल की प्रसिद्धि के किस्से ...!

लेखक रामकुमार 'भ्रमर' जी चंबल घाटी के डाकुओं के जीवन पर आधारित एक उपन्यास लिखना चाहते हैं । चंबल घाटी के गांवों में मंडरा- मंडरा कर भ्रमर जी डाकूओं से संबंधित सूचना इकट्ठा कर रहे हैं । डाकूओं ने पुलिस का जासूस समझ कर भ्रमर जी को बंधक बना लिया । भ्रमर जी के सफरी झोले की जांच- पड़ताल में डाकुओं को 'मैला आंचल' उपन्यास भी प्राप्त हुआ । डाकूओं ने जिज्ञासा प्रकट की, "इस किताब में क्या लिखा है ?" भ्रमर जी बोले, "इस उपन्यास में अमीरों को लूट कर गरीबों में बांटने वाले नछत्तर मालाकार के जीवन का वर्णन है, चलित्तर कर्मकार के नाम से !" डाकूओं ने 'मैला आंचल' उपन्यास पढ़ा और वे इसके दीवाने हो गए ! फिर क्या था ; डाकूओं ने पैसे चंदा किया और भ्रमर जी को पचास उपन्यास खरीदकर लाने को कहा । राजकमल प्रकाशन की दुकान से 'मैला आंचल' उपन्यास की पचास प्रतियां खरीद कर भ्रमर जी ने डाकूओं को दिए । प्रसन्न डाकूओं ने स्वयं कई सूचनाएं भ्रमर जी को देकर उन्हें उपन्यास लिखने की अनुमति भी दे दी! 'मैला आंचल' के इस जादू से भ्रमर जी अचंभित रहे, जीवन भर !

दूसरा किस्सा...! रूस के एक यूनिवर्सिटी के छात्रों ने ' मैला आंचल' उपन्यास पढ़ा । उपन्यास में वर्णित मेरीगंज अंचल को देखने की जिज्ञासा उनके मन में हुई । मेरीगंज को देखने की लालसा लिए दर्जन भर रूसी शोधार्थी पटना आ धमके, रेणु जी के राजेंद्रनगर आवास पर । अब रेणु जी मुश्किल में पड़ गए । दर्जनभर विदेशी छात्रों को अपने गांव ले जाने का मतलब वे समझ रहे थे ; माथापच्ची, झमेला और मुसीबत ! रेणु जी उन शोध छात्रों के साथ गांव नहीं गए । ... बाल-बाल बचे !

'मैला आंचल' उपन्यास ने रेणु जी को जीते जी किंवदंती बना दिया । ...इधर, ईर्ष्यालुओं की कुक्कर टोली 'रेणु' नाम सुनते ही भूंकने लगती है, "आंचलिक ... गंवार... भदेस...!"

फणीश्वरनाथ अपनी रचनाओं की आलोचना करनेवालों पर टीका-टिप्पणी करना मुनासिब नहीं समझते हैं । उन्हें लोकतंत्र और जनमत में गहरी आस्था है । किसी के बोलने-लिखने की आजादी में हस्तक्षेप करना रेणु जी को बिल्कुल पसंद नहीं है । साहित्य के उच्चकुल सामंत-मठाधीश-आलोचक-समीक्षक-रक्षक-लठैत रेणु जी से स्पष्टीकरण पूछते हैं, दबाव देकर ! रेणु सहजता से प्रतिवाद करते हैं, "मुझे जो लिखना था, वह बात तो मैंने अपनी रचना में ही लिख दिया । अलग से कोई स्पष्टीकरण ...जस्टिफिकेशन लिखने की जरूरत मुझे नहीं लगती है -

"बात बोलेगी, हम नहीं
भेद खोलेगी, बात ही ।"

... लेकिन, अब तो हद हो गई ! ईर्ष्यालुओं ने खुलेआम चुनौती दे दी, "कोई दूसरा उपन्यास लिखकर दिखाएं, तब मान लूंगा !"

फणीश्वरनाथ के कानों में चुनौती का नगाड़ा बजने लगा :

तक्- तक्- धाड़िनिंगा... तक्- तक्-धाड़िनिंगा...!

फणीश्वरनाथ रेणु ने स्पष्ट सुना, कोई अखाड़े में उसे चुनौती दे रहा है-

हिम्मत है तो आ जा बेटे ...हिम्मत है तो आ जा बेटे ...!

फणीश्वरनाथ ने अखाड़े में उतरने का मन बनाकर लंगोटा कसना शुरू किया,"ठहर मादर्च... अभी आता हूँ !"

कोई दूसरा उपन्यास ?... विषय, घटना और पात्रों के लिए फणीश्वरनाथ रेणु फिर गांव चले, औराही हिंगना !

रूप - पच्चीस

सिमराहा स्टेशन पर उतरकर प्लेटफार्म से बाहर आते ही फणीश्वरनाथ की नजर गाड़ीवान कुसुमलाल पर पड़ी । कुसुमलाल चाय की दुकान पर बेंच पर बैठे बीड़ी पी रहा था । कुसुमलाल ने अब अपनी टप्परवाली बैलगाड़ी खरीद ली है । फणीश्वरनाथ ने कुसुमलाल के बगल में बेंच पर बैठते हुए पूछा, "गांव चलोगे? "

कुसुम लाल ने जवाब दिया,"जा तो रहे थे फारबिसगंज, लेकिन आपको गांव जाना है तो चलिए गांव...!"

गाँव पहुंचकर फणीश्वरनाथ अपना शहरी लिबास उतार फेंकते हैं । लुंगी-गंजी पहनकर फणीश्वरनाथ खेतों की ओर निकल जाते हैं , कमठौनी कर रहे मजदूरों का 'पनपियाय' (कलेवा) लेकर ! जेठ की तपती दुपहरी में झड़जामुन की छाया में पनपियाय रखकर फणीश्वरनाथ चारों ओर नजर डालते हैं ; दूर की परती में बैलों को चराते हुए चरवाहे लड़के, आसमान में उड़ती हुई टिटकारी भरती चील, पास के खेत में हल जोतता हलवाहा और उसके सामने खेतों में खुरपी चलाते मजदूर ...

"हाँ... रे, हल जोते हलवाहा भैया रे...
खुरपी रे चलावे... म-ज-दू-र !
एहि पंथे, धनी मोरा हे रूसलि...!"

झड़जामुन की छाया में खिचड़ी दाढ़ी वाला मिरदंगिया कब आकर बैठ गया ?...बैल चराने वाला वह लड़का मिरदंगिया को देखकर 'करैला- करैला' क्यों चिल्ला रहा है? मिरदंगिया केले के पत्ते पर मुरही-आम खा रहा है !

दिनभर खेत में मजदूरों से काम करवाकर शाम में पेठिया पहुंच जाते हैं, फणीश्वरनाथ ! पेठिया से मांगुर माछ खरीदकर लौटते हुए फणीश्वरनाथ की नजरें गांजा- भांग- दारू- ताड़ी पर टिकी रहती है । जब सब लोग माछ-भात खाकर सो जाते हैं, पदमा दालान में चौकी पर मुसहरी लगा देती है । मुसहरी के भीतर चौकी पर फणीश्वरनाथ पट लेट जाते हैं, सीना के नीचे तकिया रखकर ! पेट्रोमैक्स की रोशनी में फणीश्वरनाथ दिनभर की घटनाओं- ध्वनियों- दृश्यों- मुलाकातों को याद करते हैं ; मृदंगिया की टेढ़ी अंगुली, चरवाहा मोहना, चील की टिटकारी.... रसप्रिया गीत !

फणीश्वरनाथ की पार्कर फिफ्टी वन कलम अब जिम्मेदार और भावप्रधान होना चाहती है । रूप, रस, रंग, गंध, स्पर्श ; और सबसे प्रधान है - भाव ! काम- वासना- श्रृंगार : मानव की उत्पत्ति का मूल भाव ! फणीश्वरनाथ की कलम इन सब को चित्र के रूप में अंकित करना चाहती है... रसप्रिया !

'रसप्रिया' कहानी लिखने में फणीश्वरनाथ को काफी वक्त लगता है, मैला आंचल के बाद ! ईर्ष्यालुओं की चुनौती रेणु के कानों में गूंजती ही रहती है , प्रायः! "कोई दूसरा उपन्यास लिख कर दिखाएं ।"

कोसी नदी की भयावह विनाश-लीला को फणीश्वरनाथ बचपन से देखते आए हैं । कोसी की बाढ़ के महाविनाश को उन्होंने अपने रिपोर्ताजों में चित्रित भी किया है ; हजारों लोग डूब कर मर जाते हैं, लाखों बेघर हो जाते हैं ! यह बाढ़ अपने पीछे लाखो एकड़ उपजाऊ जमीन पर बालू की मोटी चादर छोड़ जाती है । अन्नपूर्णा धरती को बंध्या- बांझ -बंजर बनानेवाली डायन कोसी ! बंजर परती जमीन ; जमीन नहीं, जमीन की लाश और इस लाश पर सफेद बालू का कफन !

कोसी की बाढ़ की समस्या को फणीश्वरनाथ रेणु अपनी व्यक्तिगत समस्या भी मानते हैं । कोसी की बाढ़ के प्रहार से कमर टूट चुके लोगों को बाढ़ के बाद हैजा, मलेरिया, कालाजार, पीलिया, प्लेग... ना जाने कितनी बीमारियां और महामारियों का सामना करना पड़ता है । मांस-रक्तहीन लाखों लोगों का भूखा-बीमार शरीर और मन 'कोसी बांध परियोजना' का नाम सुनकर ही खुशी से नाचने लगता है । फणीश्वरनाथ कोसी के इस 'परती क्षेत्र की कथा' को अपने उपन्यास में अंकित करना चाहते हैं ।

रूप - छब्बीस

बाढ़ और महामारी के बाद आसन-कार्तिक का महीना आ जाता है । आसिन में दसांय का दस दिन अद्भुत और रसमय होता है । मंदिरों में देवी दुर्गा की प्रतिमा बनाई जा रही है । कलस बैठने के दिन ही कुसुमलाल ने कहा, "फनीसर मालिक, आज रात में फारबिसगंज में नौटंकी नाच शुरू हो रहा है, चलिएगा देखने....बैलगाड़ी से ? कुसुमलाल की टप्परवाली बैलगाड़ी में बैठकर फणीश्वरनाथ रोज रात में फारबिसगंज पहुंच जाते हैं, नौटंकी नाच देखने ! कुसुमबाई का नाच पूरे मेले में चर्चा का विषय है....गुलबदन ! कुसुमबाई को कटिहार स्टेशन से फारबिसगंज के मेले में कुसुमलाल गाड़ीवान ने ही लाया है । कुसुमलाल खुद भी फणीश्वरनाथ को बता चुका है, "कुसुमबाई उसे 'मीता' कहती है, एक ही नाम है इसलिए ! फणीश्वरनाथ ने दसमी के मेला के दिन सुना, " कुसुमलाल ने किरिया(शपथ) खाया है कि चोरबाजारी का माल, बांस की लदनी और नौटंकी की बाई का भाड़ा वह नहीं गछेगा... तीन किरिया !

रात में कहानी लिखते वक्त फणीश्वरनाथ सोच रहे थे - गुलबदन... कुसुमबाई, गुलफाम...कुसुमलाल ! ...तीन कसम, गुलबदन के फेर में 'मारे गए गुलफाम'!

कातिक के महीने में दीपावली, काली पूजा और छठ पर्व के समय तो गांव की हवा ही बदल जाती है । सर्वे सेट्लमेंट के बाद गाँव के लोग खुशहाल हुए हैं । पर्व-त्यौहार, मेला-नौटंकी और साज- श्रृंगार पर लोग खूब खर्च करते हैं । शनिचरा को ही देखिए ना, सर्वे सेटेलमेंट में पांच बीघा जमीन हाथ लग गया ! धान-पाट की खेती कर जोड़ा बैल खरीद लाया है । सनिचरा की बीवी कह रही थी कि बलरामपुर का नाच देखने जाएगी, बैलगाड़ी पर !

सर्वे सेटेलमेंट के बाद परिवर्तन हुआ है, लेकिन थोड़ा बहुत और छिटपुट ! शनिचरा की बीवी के मन में बैलगाड़ी पर बैठकर नाच देखने जाने की इच्छा प्रकट हुई है । नाच देखने की इच्छा नहीं, बैलगाड़ी पर चढ़कर जाने की इच्छा ! सर्वे सेट्लमेंट से गरीबों को फायदा हुआ है । जवाहरलाल नेहरु की सोच साइंटिफिक है, इसमें शक नहीं । गांधीजी महामानव थे, इसमें दो राय नहीं ; परंतु कांग्रेस की नीति ठीक नहीं है । नछत्तर माली को झूठा खून केस में फंसा कर सजा करवा दिया, कांग्रेस ने ! फिर भी, लोगों में जीने की कामना प्रबल हुई है ! पांच बीघा जमीन हासिल कर शनिचरा की बीवी तो 'लाल पान की बेगम' हो गई है, एकदम बहुत भेलू वाली औरत !

रूप - सत्ताइस

इस बार फणीश्वरनाथ अपने सफरी झोले में अनेक कच्चे-पक्के पात्रों और मिर्च-मसालों को समेटकर पटना ले आए हैं, औराही हिंगना से ! कुछ कथाओं की रचना-प्रक्रिया पूरी हो गई है, कुछ की अधूरी है ! फणीश्वरनाथ रेणु के अंतर्मन में 'परती परिकथा', 'रसप्रिया', 'मारे गए गुलफाम', 'लाल पान की बेगम'...कितनी ही कहानियाँ आकार ग्रहण कर रही है ।

पटना में फणीश्वरनाथ लिख नहीं पा रहे हैं । चारों ओर भूंकने वाले कुक्कुरों का जमावड़ा है, पटना में । कुक्कुरों का कोरस फणीश्वरनाथ को फिर सुनाई पड़ता है, "कोई दूसरा उपन्यास...!"

राजकमल प्रकाशन के चौधरी जी कह रहे थे, "फणीश्वर बाबू, आप अपना अगला उपन्यास इलाहाबाद में रहकर लिखिए, वहां रहने का खर्च मैं दूंगा । फणीश्वरनाथ रेणु अपनी 'मोको रानी' लतिका को सारी बात बता कर इलाहाबाद चले जाते हैं । इलाहाबाद के लूकरगंज मोहल्ले में रहकर रेणु जी ने 'परती परिकथा' उपन्यास लिखा । प्रयागराज के संगम को साक्षी मानकर लिखा गया उपन्यास ... 'परती परिकथा'! सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', धर्मवीर भारती, हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा जैसे दिग्गजों का शहर इलाहाबाद ! धर्मवीर भारती ने 'निकष' में 'रसप्रिया' छापी । 'रसप्रिया' कहानी ने हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्र में एक चुनौती खड़ी कर दी, आलोचकों के सामने ! आलोचना के सारे टूल्स फेल...! कुक्कुरों ने समवेत रोना शुरू किया, "अश्लील... घटिया... कामुक... छि: छि: !"

'कहानी' पत्रिका में 'लालपान की बेगम' कहानी छपी । 'तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम' कहानी पटना के 'अपरंपरा' में प्रकाशित हुई । इलाहाबाद के लूकरगंज में रहते हुए फणीश्वरनाथ को बसंत पंचमी का वह दिन जीवन भर याद रहेगा । माता सरस्वती की पूजा हो रही थी, वेद मंत्र पढ़े जा रहे थे :

" या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रावस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभि: देवैसदा वन्दिता
सा मा पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजा...!"

कुछ बंगालिन महिलाएं अपने बच्चों का विद्यारंभ संस्कार कराने आई थी, पूजा स्थल पर । उन्हीं में से एक पंद्रह- सोलह साल की सुंदर लड़की पर रेणु जी की नजर अटक गई ; अरे, यह तो बनारस वाली बबली है ! रेणु जी ने उस लड़की के पास जाकर पूछा, "तुम्हारा नाम बबली है ? " उस लड़की ने अपने पीछे खड़ी औरत की ओर इशारा कर कहा, "मेरी मां का नाम बबली है ! "

मृगनैनी... अपरूप रूप...! बनारस वाली बबली ने फणीश्वरनाथ को देखते ही पहचान लिया, "अरे, तुम वही बनारस वाले... मेरे पीछे-पीछे...!

फणीश्वरनाथ लजा गए, "जी... जी...!"

'परती परिकथा' उपन्यास अब पूरा होने वाला है । इसे पूरा करने से पहले फणीश्वरनाथ एक बार कोसी अंचल को देखना चाहते हैं, अपनी आँखों से ! गांव उन्हें फिर बुला रहा है...!

रूप - अठाइस

अपने गाँव औराही हिंगना पहुंचकर फणीश्वरनाथ को मालूम हुआ - गोतिया- दियाद में खून खराबा हो गया है । सब एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं, बाहरी क्रिमिनल को भी बुला कर रखते हैं । गांव का टोला-टोला लड़ाई- झगड़ा, केस-मुकदमा में उलझा हुआ है । जोरू, जमीन, जड़ ; सब फसाद की जड़ !

धनिकलाल रोज शाम होते ही पेट्रोमैक्स जलाने आ जाता है । धनिकलाल पटना के टेंट-पंडाल में काम कर चुका है । उसे छोड़कर पूरे धनुकटोली में कोई आदमी पेट्रोमैक्स बालना नहीं जानता है ।

धनुकटोली के पंचों की सभाचट्टी के द्वारा लाया गया 'पंचलाइट' सबसे पहले धनिकलाल ने ही जलाया था, उसे जाति में मिला लिया गया ; भोज- भात, हुक्का- पानी सब फ्री...!

धनिकलाल के द्वारा जलाए गए पेट्रोमेक्स की रोशनी में ही फणीश्वरनाथ रेणु ने एक कहानी लिखी- 'पंचलैट' !

'सिर पंचमी का सगुन' कहानी लिखते समय फणीश्वरनाथ को बाहरी क्रीमिनल से जान का खतरा हुआ महसूस हुआ ; कोई उन पर नजर रख रहा हो जैसे । पटना पहुंचकर रेणु जी ने लतिका की सहायता से कोलकाता से एक रिवाल्वर मंगवाया, आत्मरक्षार्थ ! इस रिवाल्वर का नाम रखा गया - 'बबली' । अब 'बबली' हमेशा फणीश्वरनाथ के साथ रहती है । फणीश्वरनाथ ने रिवाल्वर का लाइसेंस बनवा लिया है ।

रेणु जी के मन में कई कहानियां हैं, कुछ पूरी कुछ अधूरी । इलाहाबाद पहुंचकर 'परती परिकथा' उपन्यास को पूर्ण करके प्रकाशित करवाने के बाद उन्हें सही अर्थों में लोकप्रिय किताब के आर्थिक मूल्य का एहसास हुआ । पत्रिकाओं में कहानियां छपपाने से अधिक फायदेमंद है अपना कहानी संग्रह छपवाना । 'तीर्थोदक', 'तीन बिंदिया' और 'नित्यलीला' कहानी को उन्होंने संग्रह के लिए रखता है, छुपाकर ! राजकमल प्रकाशन को पत्र लिखकर रेणु जी ने कह दिया है, "मैं अपने रिपोर्ताजों का एक संग्रह छपवाना चाहता हूंँ ।" 'जीत का स्वाद' रिपोर्ताज उन्होंने हाल ही में लिखा है ।

'रसप्रिया' से लेकर 'नित्यलीला' तक कुल नौ कहानियां , सबमें रूप-रस-गंध-स्पर्श-श्रृंगार और सबसे ऊपर भाव ... ठुमरी! नौ अपूर्व कहानियों का संग्रह - ठुमरी !

पटना रेडियो स्टेशन की नौकरी कर रेणु जी ने ज्यादा पाया या ज्यादा खोया, यह तो स्वयं रेणु जी को भी मालूम नहीं । लेकिन 'मैला आंचल', 'परती परिकथा' और 'ठुमरी' - तीनों किताबों ने फणीश्वरनाथ को बहुत कुछ दिया है ; नाम, पहचान और सम्मान ।

रूप - उनतीस

'कपड़घर' कहानी में रेणु जी 'नैन' देने वाले की खोज कर ही रहे थे कि हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार शंकर शैलेंद्र की एक चिट्ठी उन्हें मिली - " आपकी कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर फिल्म बनाना चाहता हूं । आप की सहमति हो तो समय निकालकर मिलें ।"

" फिल्म ?...तो शुभ काम में विलंब कैसा ! "

रेणु जी ने शैलेन्द्र को पत्र लिखा, "दिल्ली आ रहा हूं, वही मिलेंगे ।"

पटना रेडियो स्टेशन के सौजन्य से पटकथा लेखन के एक वर्कशॉप में शिरकत करने फणीश्वरनाथ दिल्ली पहुंचे । रेडियो स्टेशन के कार्यालय में शैलेंद्र और रेणु की वह यादगार मुलाकात हुई ।

शैलेंद्र और रेणु...! एक ही माटी की बनी दो मूरतें...! विद्रोही-स्वाभिमानी-देशभक्त-संघर्षशील !

फिल्म निर्माण की बात पक्की हो गई । शैलेंद्र ने फिल्म में पैसा लगाने का वादा किया, रेणु ने फिल्म निर्माण में उनका साथ देने का । रेडियो स्टेशन की नौकरी छोड़कर रेणु मुंबई पहुंचे, शैलेंद्र के आमंत्रण पर । शैलेंद्र ने भी खूब सत्कार किया, रेणु का ।

शैलेंद्र और रेणु...! एक ही माटी की बनी दो मूरतें!

भावना और प्रेम के भूखे रेणु गीतकार शैलेंद्र के कायल हो गए । फिल्म निर्माण की योजना बनने लगी । बासु भट्टाचार्य को शैलेंद्र ने डायरेक्टर चुना, नवेंदु घोष स्क्रिप्ट लिखने लगे । डायलॉग लिखने की जिम्मेदारी रेणु ने अपने पास रखी, सुब्रत मित्र कैमरामैन बने । हसरत जयपुरी और शैलेंद्र गीत लिखने लगे -

" सजनवा बैरी हो गये हमार...
चिठिया हो तो हर कोई बाँचे
भाग ना बाँचे कोय
करमवा बैरी हो गये हमार...! "

मिट्टी की सोंधी हांडी के स्वादिष्ट रसगुल्ले खा- खाकर रात-रात भर जागकर तीसरी कसम फिल्म के गीत और डायलॉग लिखे गए -

"सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है,
न हाथी है ना घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है...! "

पान और सिगरेट की महफ़िल में बैठे रेणु और शंकर शैलेंद्र की नजरें एक दूसरे से मिलती हैं और दोनों अचानक एक साथ गाने लगते हैं -

"अरे,तेरी बांकी अदा पर मैं खुद हूं फिदा,
तेरी चाहत का दिलवर बयां क्या करूं?
यही ख्वाहिश है कि तू मुझको देखा करे-
और दिलोजान मैं तुझको देखा करूं...! "

...मरे हुए मुहूर्तों की गूंगी आवाजें मुखर होना चाहती हैं !

शंकर शैलेंद्र ने शोमैन राजकपूर को 'तीसरी कसम फिल्म में हीरामन का किरदार निभाने के लिए कहा । राज कपूर ने फिल्म में काम करने का मेहनताना मांगा...एक रुपया !

'मारे गए गुलफाम' कहानी सुनकर वहीदा रहमान की आंखें नम हो गई । हीराबाई का किरदार निभाने की चुनौती उसने स्वीकार ली । सन् 1960 ई. के जनवरी महीने में फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई, मकर संक्रांति के दिन । औराही हिंगना गांव में पहुंचे फिल्मकारों ने शूटिंग का उद्घाटन करने के लिए बैलगाड़ियां दौरायी! रेणु जी के आंगन में सबके फोटो खींचे गए । 'तीसरी कसम' फिल्म के हीरामन की बैलगाड़ी आज भी सुरक्षित है, रेणु के भांजे के घर पर !

'इमेज मेकर्स' के बैनर तले फिल्म निर्माण का वास्तविक कार्य शुरू हुआ । कमाल स्टूडियो में 'तीसरी कसम' फिल्म का एक-एक दृश्य फिल्माया जाने लगा, हू-ब-हू कहानी की तरह ! रेणु के हीरामन और हीराबाई को राज कपूर और वहीदा रहमान अपने अभिनय से जीवंत कर लगे । लच्छू महाराज वहीदा रहमान को डांस सिखा रहे हैं ; शंकर- जयकिशन की धुन और आशा भोंसले की आवाज पर वहीदा नाच रही है-

"पान खाये सैंया हमार हो...
सांवली सुरतिया होंठ लाल-लाल
हाय-हाय मलमल का कुर्ता,
मलमल के कुर्ते पे पीक लाल-लाल
पान खाए सैंया हमार हो...

हमनें मंगाई सुरमेदानी
ले आया ज़ालिम बनारस का जर्दा...! "

रूप - तीस

मुंबई ... पटना... औराही हिंगना...! फिल्मी जीव रेणु !

पटना में सुनाई पड़ता है, " रेणु जी की कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर फिल्म बन रही है, बंबै में!"

औराही हिंगना के लोग कहते हैं, " फनीसर बंबै में फिल्म बना रहा है !"

धर्मवीर भारती के आग्रह पर रेणु जी ने 'धर्मयुग' पत्रिका के लिए दो कहानियाँ लिखी हैं, समय निकालकर - 'टेबुल' और 'कस्बे की लड़की' । शैलेंद्र फुर्सत ही नहीं देते हैं रेणु को, "फिल्म का खर्चा बढता जा रहा है, शूटिंग जल्दी समाप्त कीजिए !"

मुंबई... पटना... औराही हिंगना...! फिल्मी जीव रेणु!

'सारिका' के लिए 'अतिथि सत्कार' और 'कल्पना' के लिए 'तबे एकला चलो रे' कहानी लिखकर रेणु जी अब 'एक लोकगीत के विद्यापति' को ढूँढ रहे हैं, 'ज्योत्स्ना' पत्रिका के लिए ! उजागिर ने जब प्रदीप कुमार की माय से समझौता नहीं किया तो नेहरू ने पंचशील समझौता क्यों किया ? चीन से युद्ध हारकर भी जवाहरलाल 'अच्छे आदमी' बने हुए हैं । नेहरू जी की गुलाबवाली तस्वीर हमेशा अपने सिरहाने में रखते हैं फणीश्वरनाथ, पटना में ! धर्मवीर भारती ने 'धर्मयुग' पत्रिका में 'अच्छे आदमी' कहानी छाप भी दिया है ।

क्या फिल्म है तीसरी कसम ...! शूटिंग खत्म ही नहीं हो रही । तीन लाख खर्च का अनुमान था ... बीस लाख खर्च हो चुके हैं । रिनुआ फणीश्वरनाथ के चक्कर में पड़कर शैलेंद्र भी रिनुआ हो गए - आकंठ ऋण में डूबे शैलेंद्र...!

राज कपूर कहते, " कितना कुछ करूँ एक रुपये मेहनताने में! "
शैलेंद्र कहते, "कोई भी नहीं रहा अपना इस जमाने में! "
रेणु कहते, "न आशियाने के बाहर, न आशियाने में! "

मुंबई ...पटना... औराही हिंगना...! फिल्मी लेखक रेणु!

कटिहार स्टेशन पर हरगोबिन 'संवदिया' से मिलकर फणीश्वरनाथ को बड़ी बहुरिया के दुख का एहसास हुआ । बहुत दिनों के बाद बंबै-पटना से गाँव लौट रहे फणीश्वरनाथ को सिमराहा स्टेशन से गाड़ीवान कुसुमलाल ने औराही हिंगना पहुंचाया है । टप्परवाली बैलगाड़ी में बैठे फणीश्वरनाथ को कुसुमलाल ने फिर एक किस्सा सुनाया - जग्गू पसारी के 'हाथ का जस और बाक का सत्त ' !

'एक श्रावणी दोपहरी की धूप' कहानी को 'ज्योत्सना' पत्रिका और 'संवदिया' कहानी को 'सारिका' पत्रिका के लिए भेजकर फणीश्वरनाथ बंबै पहुँच जाते हैं । बंबै पहुँचकर रेणु ने कमाल स्टूडियो में कदम रखा ; हू-ब-हू पूर्णिया के गुलाबबाग मेले जैसा दृश्य ! 'द ग्रेट भारत नौटंकी कंपनी' का मंच, टप्परवाली बैलगाड़ी पर बैठी गुलबदन वहीदा रहमान... सिया सुकुमारी की चरण-सेवा में लगा पलटदास ...!

" मारे गए गुलफाम, अजी हां मारे गए गुलफाम...
उल्फत भी रास न आई, अजी हां मारे गए गुलफाम...! "

मुंबई की फिल्मी दुनिया भी बड़ी अजीब है ! राज कपूर का जोड़ा नहीं ... शो मैन ! फिल्म की शूटिंग समाप्त होने वाली है, राजकपूर उदास और नाराज हैं, "फिल्म का अंत बदल दो ! हीरामन और हीराबाई को मिला दो, नहीं तो...? नहीं तो, ऐसी भयावह ट्रेजरी 'तीसरी कसम' कौन देखने आएगा सिनेमाघरों में ?"

शैलेंद्र राज कपूर को समझाने की कोशिश करते हैं, "यह कहानी मेरी लिखी नहीं है, "फणीश्वरनाथ से पूछ लेते हैं ।" रेणु जी भी असहमत, "हीरामन की भौजी मानेगी? नाचने वाली हीराबाई को गोतनी मानकर रहने देगी? बसने देगी ?...हरगिज़ नहीं ! फिल्म का अंत नहीं बदला जा सकता । हीराबाई को जाना ही होगा, ट्रेन पकड़कर ! कुसुमलाल... नहीं, हीरामन को छोड़कर !"

शोमैन राज कपूर ने साफ कह दिया,"जो मन में आए करो, लेकिन फिल्म को वितरक मिलेगा?"

मुंबई ... पटना...औराही हिंगना...! फिल्लम स्टार रेणु !

पटना के लोग जब पूछते हैं, "फिल्म रिलीज हुई फणीश्वर बाबू ?" तो रेणु जी बात को घुमा देते हैं,"अभी 'दीर्घतपा' उपन्यास प्रकाशित करवाया हूं । 'जुलूस' उपन्यास भी कंप्लीट है।"

"...और कहानी ?"

" कहानी... ? 'रोमांश शून्य प्रेम कथा की भूमिका' के बाद ' काक चरित' और 'एक आदिम रात्रि की महक'...! "

सुननेवाला कब गायब हो गया ? ये पटना के लोग भी खूब है ! कहानी-उपन्यास का नाम सुनकर नाक-भौं सिकोड़ते है, फिल्म में बड़ा इंटरेस्ट है ! खूब चर्चा करते हैं ये लोग- रेणु के लंबे बाल, क्लीन शेव, चश्मा, सिगरेट.. कहानी-उपन्यास से भी ज्यादा ! पटना से ज्यादा तो औराही हिंगना अच्छा है । सड़क पर घूमते कुक्कुरों की टोली वहां नहीं है !

रूप - इकतीस

कुसुमलाल की बैलगाड़ी आज सिमराहा स्टेशन पर दिखाई नहीं पड़ रही है । एक घंटे... दो घंटे... तीन घंटे ... इ स्साला करमा कितना साल से इसी टेशन पर अड्डा जमाए है । ब्याह करके यहीं बसना चाहता है । चायवाले से बतियाते हुए फणीश्वरनाथ को कर्मा का किस्सा मालूम हुआ - 'एक आदिम रात्रि की महक' । तीन घंटा इंतजार कराने के बाद टीशन पर आया कुसुमलाल !

औराही हिंगना में चर्चा का बाजार गरम है - "फणीश्वरनाथ की फिल्म बन गई है, बंबै में! "

रमबिलसा धानुक पटना से मातबर बनकर आया है, मिसिर जी का कर्जा भी तोड़ दिया और दिनभर मचान पर चीलम- चौकड़ी... अंग्रेजी खेला करता है! रमबिलसा धानुक की घरवाली तो शिवधरिया के साथ..!

'उच्चाटन' कहानी में रमबिलसा धानुक को कमौआ पूत साबित कर रहे रेणु जी को गनपत का किस्सा भी मालूम हुआ । 'ज्ञानोदय' पत्रिका में 'उच्चाटन' कहानी छपवाने के बाद गनपत का किस्सा रेणु जी के दिल को छू गया । गनपत... एक समर्पित कम्युनिस्ट कार्यकर्ता, जिसने अपनी परबतिया से ज्यादा कम्युनिस्ट पार्टी से प्यार किया ! परंतु, कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन की त्रासदी भोगना पड़ा गनपत को ! राजनीति की विद्रूपता का साक्षात्कार कर गनपत की आत्मा 'आत्मसाक्षी' कहानी में कह रही है, " छि: - छि: ! ऐसे नेता... ऐसी राजनीति ! धन्न है परबतिया ! "

'संकट', 'नैनाजोगिन', 'विकट संकट' और 'अभिनय' कहानियों का प्रकाशन हो गया 'जुलूस' और 'कितने चौराहे' उपन्यास भी कंपलीट हो गया । 'तीसरी कसम' की शूटिंग के बाद रेणु जी की बीस से अधिक कहानियाँ और चार उपन्यास प्रकाशित प्रकाशित हो गए, लेकिन 'तीसरी कसम' अब तक रीलिज नहीं हुई... क्यों?

अंततः 'तीसरी कसम' रीलिज हो गई । परंतु फिल्म डिस्टिब्यूटर्स ने फिल्म के साथ बेअदबी दिखाई । डिस्ट्रीब्यूटरों ने 'तीसरी कसम' फिल्म के साथ वैसा ही व्यवहार किया, जैसा व्यवहार 'मैला आँचल ' के साथ प्रकाशकों' - आलोचकों ने किया था... बेवकूफ गदहे! इन वितरकों को फिल्म की समझ कितनी है?

फिल्म रीलिज होने के महीनों बाद तक पटना के सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन नहीं हो पाया । लोग कटाक्ष करते, "क्यों फनीसर बाबू, फिल्म का क्या हाल है?... बंबै में ही रहेगी या पटना भी आएगी कभी आपकी फिल्म?

बीमार शैलेंद्र ने चिट्ठी लिखा, " प्रिय रेणु, बहुत बीमार हूँ । अंतिम बार मिलने आ जाओ... बंबई ! " पीएमसीएच के प्राइवेट वार्ड के बेड नंबर 21 पर बीमार पडे़ फणीश्वरनाथ कैसे जाएं शैलेंद्र से मिलने ? सीने में दर्द... खून की उल्टियां...!

रूप - बत्तीस

पीएमसीएच में भर्ती रेणु के वार्ड से गंगातट दूर नहीं है ; शाम के वक्त गंगातट पर टहलते हुए फणीश्वरनाथ को याद आती है- बीती हुई बातें!

एक दिन दोपहर बाद पीएमसीएच में रेणु जी से मिलने के लिए नछत्तर माली आए, एक युवक के साथ ! वर्षों बाद अचानक नछत्तर से मिलकर रेणु भाव विह्वल हो गए । रेणु नछत्तर माली का चरण-स्पर्श करने के लिए झुके लेकिन नछत्तर ने रेणु जी को गले लगा लिया ।

एक ही माटी की बनी दो मूरतें एकाकार हो गई !

रेणु जी ने नछत्तर से पूछा, "जेल से कब आए? "

नछत्तर माली ने कहा, " दो महीने पहले ; चौदह साल की सजा काटकर ! जिस खून केस में मुझे सजा हुई, उसमें तो मैं था भी नहीं ! "

रेणु जी ने आश्चर्य व्यक्त किया, "जब क्राइम में शामिल नहीं थे तो सजा कैसे हो गई? "

नछत्तर माली ने हंसकर कहा, " फनीसर बाबू, तुम सब जानते हो ; कंगरेसिया जमींदार का खेला ! "

रेणु जी ने मरहम लगाने की कोशिश की, "अब कांग्रेस ऐसी ही पार्टी हो गई, तो उसे किया भी क्या जा सकता है? "

नछत्तर माली ने उम्मीद भरे लहजे में कहा, "अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है ; बंदूक से नहीं, कलम से बदलाव लाया जा सकता है । उस रात मैंने तुम्हारी नाक-कान इसीलिए नहीं काटी...!"

"किस रात? "

"जब तुमने लिखा था कि अनाज का गोदाम लूटने वाले नछत्तर माली ने औरत की इज्जत...! इस झूठ की 'उचित सजा' देने के लिए दोपहर रात को मैं तुम्हारे घर पर गया था । दरवाजे पर मुशहरी लगाकर तुम लिख रहे थे, पंचलाइट की रोशनी में ! "

रेणु जी ने विस्मय भरे स्वर में पूछा, " तो फिर आपने मेरी नाक-कान क्यों नहीं काटी? "

नछत्तर माली ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "पंचलाइट की रोशनी में चमकते हुए तुम्हारे चेहरे पर चश्मा... नाक-कान पर चढ़ा हुआ चश्मा ! ... चश्मा के बिना तुम लिख नहीं सकते जबकि तुम्हारा लिखना जरूरी है, इसलिए नाक-कान और चश्मा भी जरूरी है । ... तो मैंने छोड़ दिया यह सोचकर कि फनीसर की कलम अगर नछत्तर को राक्षस बना सकती है, तो देवता भी...! "

फणीश्वरनाथ चुपचाप नछत्तर माली की बात सुन रहे हैं, टुकुर- टुकुर !

नछत्तर माली ने जाते-जाते कहा, " अब चलता हूँ ; पटना आया था, सो तुमसे मिल लिया । जाते - जाते एक विनती किये जाता हूँ ; जो भी लिखो, सच लिखो! "

फणीश्वरनाथ रेणु ने उस दिन नछत्तर माली की बात की गठरी बांध ली - " जो लिखो, सच लिखो ।"

... लेकिन, सच लिखने का परिणाम?

इस बीच रेणु जी ने कई अविस्मरणीय कहानियाँ लिखी । 'विघटन के क्षण', 'जलवा', 'न जाने केहि वेश में', जड़ाऊ मुखरा' और 'प्रजा सत्ता' कहानियाँ विभिन्न पत्रिकाओं में छप भी गयी ; लेकिन, पटना के सिनेमा घरों में 'तीसरी कसम' फिल्म देखने का सपना रेणु जी अबतक अधूरा रहा ही रहा!

रूप - तैंतीस

अंततः पटना के सिनेमा घरों में 'तीसरी कसम' फिल्म का प्रदर्शन शुरू हुआ! पटना ही नहीं, बिहार के कई शहरों में 'तीसरी कसम' प्रदर्शित हुई । यूपी-बिहार में तो 'तीसरी कसम' ने तहलका मचा दिया । कई-कई हफ्तों तक हाउसफुल शो चलते रहे ! सिनेमा घरों में टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग होती रही ! चारों ओर फिजाओं में 'तीसरी कसम' फिल्म के गाने गूंजने लगे । रेणु जी भी लतिका के साथ रिक्शा पर सवार होकर पटना के सिनेमाघर में 'तीसरी कसम' फिल्म देखने गए ; लेकिन, यह दिन देखने के लिए शैलेंद्र इस दुनिया में नहीं रहे !

फणीश्वरनाथ रेणु को 'तीसरी कसम' फिल्म की गगनस्पर्शी सफलता की खुशी से ज्यादा दुख है, शैलेंद्र को खोने का ! 'तीसरी कसम' फिल्म को कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला, लेकिन शैलेंद्र? रेणु जी को बार-बार एक ही चेहरा याद आता है- शंकर शैलेंद्र!

कुछ महीने पहले तक जिस 'तीसरी कसम' फिल्म को वितरक नहीं मिल रहा था, आज वही फिल्म समीक्षकों की नजर में मील का पत्थर बन गया । तीसरी कसम फिल्म की अपार सफलता ने रेणु के व्यक्तित्व में चार चांद लगा दिया ।

'तीसरी कसम' की आशातीत सफलता के बाद बिहार में भी फिल्म निर्माण के सपने देखे जाने लगे । सन् चौतीस के भूकंप में महाराजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर का 'महालक्ष्मी थिएटर' जमींदोज हो गया था । उस थिएटर में बनी फिल्म 'पुनर्जन्म' के बाद फिर किसी फिल्म ने बिहार में जन्म लेने की हिम्मत नहीं दिखाई । लेकिन जब मैथिली भाषा की पहली फिल्म 'कन्यादान' के निर्माण की बात चली, तब रेणु जी इस फिल्म का डायलाग लिखने को राजी हो गए । बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के रेणु जी ने 'तीसरी कसम' और 'कन्यादान' जैसी चर्चित फिल्मों के संवाद लिखे, प्रभावशाली और यादगार ! दो-तीन वर्षों तक रेणु जी 'तीसरी कसम' फिल्म की सफलता के चकाचौंध में रहे, कहानी-उपन्यास की दुनिया से लगभग बेखबर ! राजनीति अब रेणु जी को चिढ़ाती है । किसी नेता और सरकार से अब रेणु को न कोई उम्मीद है, न आशा ! जनता वोट डालने की मशीन बनकर रह गई है । बाढ़, सुखाड़, मंहगाई और पलायन जैसी समस्याएं जनता को बदहाल किए हुए है । सरकारी तंत्र निकम्मा और आत्ममुग्ध हो चुका है । सत्ता में बैठे लोग चापलूसों से घिरे हुए हैं । अनपढ़ और जाहिल जनता अपने भक्षक को ही रक्षक मानकर उसका गुणगान किए जा रही है ।

अज्ञेय जी जिद्द मारकर बैठ गए हैं, " हे धरती के धनी कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु जी, आप भी मेरे साथ सूखाग्रस्त धरती क्षेत्र का दौरा करने चलिए । सुना है, भीषण अकाल पड़ा है ।" रेणु जी को किसी चमत्कार और परिवर्तन की उम्मीद नहीं है । किंतु अज्ञेय जी ने कहा है तो उनके आग्रह का मान रखने के लिए उन्हें हामी भरनी पड़ी, "चलिए देखते हैं, क्या हाल है...! "

दक्षिण बिहार के सूखाग्रस्त जिलों में 'भूमिदर्शन की भूमिका' बांध रहे रेणु जी बिलकुल यथास्थितिवादी दिखाई पड़ते हैं ! अकालग्रस्त भूखी-नंगी जनता आफत में है और सरकारी लोग उन्हें पूरी बांटते वक्त फोटो खिंचवाना प्रमुख कार्य मानते हैं ! सरकार की ऐसी संवेदनहीनता पर तरस खाने के अलावा रेणु जी कर भी क्या सकते हैं? बंध्या भूमि और भूख से बिलबिलाते भूमिपुत्रों का दर्शन करते हुए रेणु स्वयं को 'बोतल प्रसाद' ही समझते रहे !

रूप - चौतीस

भारत के राष्ट्रपति वी.वी. गिरि का संदेश आया है; फणीश्वरनाथ रेणु के नाम, "आपके व्यक्तिगत गुणों के सम्मान में भारत सरकार आपको पद्मश्री की उपाधि प्रदान करना चाहती है...।"

राष्ट्रपति का संदेश पाकर रेणु को अचरज हुआ ! एक जीवनदर्शनहीन अपदार्थ अप्रतिबद्ध व्यर्थ रोमांटिक प्राणी में सरकार ने आखिर कौन- सा 'व्यक्तिगत गुण' देखकर पद्मश्री देने का विचार किया है !

आलोचकों की कक्कुरटोली फिर भूंकने लगी, " यह गलत है... ! रेणु जैसे दोयम दर्जे के लेखक को पद्मश्री दिया जाना साहित्य का अपमान है ! एक अस्वस्थ परंपरा की नींव पड़ रही है, पद्मश्री भी राजनीति का शिकार हो गया है ।"

रेणु जी उदारतापूर्वक सोचते हैं कि आज तक किसी संस्था ने मुझे पुरस्कृत करने की हिम्मत नहीं दिखाई ; अब भारत सरकार ने पद्मश्री दे ही दिया है, तो स्वीकार कर लेने में हर्ज ही क्या है? सन् सत्तर के अप्रैल महीने में जब राष्टपति वराह वेंकट गिरि रेणु जी को उनके व्यक्तिगत गुणों के सम्मान में पद्मश्री प्रदान कर रहे थे ; प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी वही खड़ी थीं, दोनों हाथ जोड़कर !

रेणु जी की नजर जब प्रणाम की मुद्रा में हाथ जोड़े इंदिरा गांधी पर पड़ी, उनका 'व्यक्तिगत गुण' अकस्मात प्रकट हो गया ! पचास वर्ष के रेणु दस वर्ष का रिनुआ बनकर गाँव के स्कूल में पहुँच गए ... अपरूप रूप इंग्लिश परी !

पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने के बाद रेणु पर फिर से लिखने का स्वाभाविक दबाब पड़ा । 'भूमिदर्शन की भूमिका' और पटना में आए बाढ़ पर रिपोर्ताज लिखने के अलावा उन्होंने पिछले दो-तीन वर्षों में ज्यादा कुछ नहीं लिखा था । कहानी तो एक भी नहीं ! लंबे अंतराल के बाद रेणु जी ने एक कहानी लिखी । लेकिन उन्हें इस कहानी का कोई शीर्षक ही नहीं सूझ रहा था । अंततः रेणु जी ने कहानी का शीर्षक रखा- 'शीर्षकहीन'! शिवचंद्र शर्मा की पत्रिका ' स्थापना' में यह कहानी प्रकाशित हुई ।

'मैला आँचल', 'परती परिकथा', 'ठुमरी', 'तीसरी कसम' और अब 'पद्मश्री' ; रेणु की थाती बढ़ती ही जा रही है, दिन प्रतिदिन ! बिहार की संस्थाओं पर रेणु को सम्मानित करने का दबाब बढ़ रहा है । बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के अधीन संचालित 'साहित्यकार- कलाकार कल्याण परिषद' ने रेणु को मासिक वृत्ति देने का फैसला लिया है, तीन सौ रूपये प्रति माह !

फिल्म 'तीसरी कसम' ने जब से सफलता के झंडे गाड़े हैं, रेणु जी की रचनाओं पर आधारित फिल्म बनाने के लिए फिल्मी दुनिया के लोग उत्सुक हो गए हैं । 'मैला आँचल' उपन्यास पर आधारित फिल्म 'डागडर बाबू' की शूटिंग शुरू हो गई ; फिल्म का तेरह रील बनकर तैयार भी हो गया ! 'तीसरी कसम' फिल्म का 'अंत बदल दो' वाला प्रसंग रेणु जी को अबतक आहत किए है । 'मैला आँचल' की कहानी को फिल्म में किसी भी तरह दिखाया जाए, फिल्म रीलिज होने के बाद ही रेणु उसे देखना चाहते हैं ; सीधे सिनेमा हॉल में !

रूप - पैंतीस

जयप्रकाश नारायण के पत्र को रेणु जी बड़े गौर से पढ़ते हैं, "किसानों-मजदूरों की बदहाल स्थिति मुझसे देखी नहीं जाती । आपकी रचनाओं में इनका दुख एक त्रासदी के रूप में व्यक्त होता है । नये साहित्य के सृजन का केंद्र गाँव ही होगा... आपकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन का लोकतंत्रीकरण परिलक्षित होता है । आपका 'मैला आँचल' और भी मैला होता जा रहा है ; अठारह तारीख को पटना में रहूंगा, मिलने की कोशिश कीजिए । "

जय प्रकाश जी का पत्र पढ़कर रेणु चिंतित नहीं होते, चिंतन करते हैं ! परेशानियों से परेशान होना अब रेणु जी ने छोड़ दिया है । 'तीसरी कसम' और 'पद्मश्री' के बाद राजेन्द्र नगर के कॉफी हाउस में रेणु से मिलने वाले लोगों की भीड़ बढ़ने लगी ... भीड़? नहीं, ... नागार्जुन, अज्ञेय, दिनकर, जुगनू और सुवास को कोई भीड़ कह सकता है भला? लेकिन, कॉफी हाउस के रेणु कॉर्नर में सबके केंद्र में रेणु ही होते हैं... शाहखर्च रेणु !

पटना के साहित्य प्रेमियों के बीच आजकल रेणु के साहित्य की अपेक्षा रेणु-लुक, रेणु-गेटअप और रेणु-स्टाइल की चर्चा ही अधिक होती है । देहाती, आंचलिक, देशज, गंवई और गंवार रेणु अब अचानक स्टाइलिश दिखने लगे हैं ! नजर का फर्क है भाई... रेणु तो वही हैं, लोगों का नजरिया बदल गया है !

' मैला आँचल' से उठी आंचलिकता की हवा 'परती परिकथा' के बाद आंचलिकता की आंधी बन गई ! लेकिन, हिंदी साहित्य के जर्मन अध्येता डा. लोठार लुत्से ने जब 'आत्मसाक्षी' कहानी का जर्मन भाषा में अनुवाद किया तो जर्मनी में यह कहानी खूब लोकप्रिय हुई । 'आत्मसाक्षी' कहानी का गनपत कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन का शिकार है ; जर्मनी की जनता जर्मनी के विभाजन से दुखी है ! गनपत का दुख जर्मनी के लोगों को अपना दुख लगता है । 'आत्मसाक्षी' कहानी से लोठार लुत्से इतना अधिक प्रभावित हुए कि वे रेणु जी से मिलने के लिए बेताब हैं । रेणु ने भी लुत्से को पत्र लिखकर उन्हें मिलने का समय देने का निर्णय कर लिया है ।

कॉफी हाउस में ही रेणु ने घोषणा कर दी है, " धान रोपने के लिए गाँव जा रहा हूँ, नागार्जुन भी साथ जाएंगे ।" नागार्जुन का मन खूब प्रसन्न है आज! रेणु के साथ औराही हिंगना में धान रोपने का मज़ा! नागार्जुन ने उत्सुकता दिखाई, "कब चल रहे हो औराही हिंगना? "

ब्राह्मण नागार्जुन के पास मात्र तीन कट्ठा खेती योग्य जमीन है, वह भी भरना लगा हुआ है! ... नहीं तो खेती करने का शौक नागार्जुन को भी है! फणीश्वरनाथ को सब मालूम है, नागार्जुन के बारे में ... नागार्जुन औराही हिंगना जाएंगे, अपनी कुछ किताबें लेकर! अपनी किताबों के ग्राहक ढूंढते फिरेंगे । औराही हिंगना में धान रोपते रेणु और नागार्जुन कैसे दिखते हैं? ... साहित्य अपनी माटी में समा जाना चाहता हो जैसे!

औराही हिंगना से रेणु ने अपनी 'मोको रानी' अर्थात लतिका को पत्र भेज दिया है, पटना !... इस बार पटना आने में कुछ देरी होगी, नागार्जुन भी साथ हैं और खेती का बहुत सारा काम भी बचा हुआ है ।

रेणु अपनी प्रसिद्धि के बारे में भी खूब मंथन करते हैं । नाम और प्रसिद्धि भी बड़ी अजीब चीज है ; जिसके पास नहीं है, वह इसे पाने के लिए व्याकुल रहता है और जिसके पास है वह इससे परेशान रहता है । इस बार औराही हिंगना में रेणु जी नये- नये खोजी रामों से बहुत परेशान रहते हैं, खूब चिढ़े हुए ! ये खोजी राम पहले तो दिखाई नहीं देते थे, 'तीसरी कसम' और 'पद्मश्री' के बाद नजर आने लगे हैं ! अपने को लेखक और शोधार्थी बतलाने वाले ये खोजी राम प्रायः हिंदी से एम. ए. कर चुके होते हैं । पटना के कॉफी हाउस में तो रेणु जी ऐसे-ऐसे खोजी राम को अपने सिगरेट के धुआँ से ही उड़ा देते हैं ! खोजी राम नाक पर हाथ रखकर सोचता है, " हें-हें... कैसा लेखक है, सिगरेट पीता है ! "

कॉफी हाउस से बाहर आकर खोजी राम खोज करता है, "अरे, यह तो रिवाल्वर भी रखता है ! ... हद हो गई, भांग- गांजा- दारू- ताड़ी - बीड़ी- सिगरेट सबकुछ ! छि: - छि: ... मुझे नहीं लेना है इंटरव्यू ! किसी दूसरे 'अच्छे' लेखक की खोज में निकल जाता है, बेचारा खोजी राम ।

लेकिन एक खोजी राम हो, तब तो रेणु को छुटकारा मिले । यहाँ तो हिंदी भाषा- साहित्य में बी.ए.- एम. ए. कर चुका हर बेरोजगार रेणु के निकट खोजी राम ही बनकर आता है और रेणु जी से पूछने लगता है, "हिंदी साहित्य में आंचलिक लेखन के क्षेत्र में बहुत नाम है आपका... हें - हें... अपने बारे में कुछ बताने की कृपा करें ।"

रूप - छत्तीस

आज तो हद्द हो गई ! फणीश्वरनाथ सुबह सबेरे खेती-मवेशी के कामों में लगे हुए हैं । एक खोजी राम रेणु जी के दरवाजे पर आज सुबह से ही अड्डा जमाए हुए हैं, इंटरव्यू लेने के लिए । 'इटरव्यू' का नाम सुनते ही रेणु जी की आत्मा कलपने लगती है । टालने की नीयत से रेणु जी ने खोजी राम से कहा, "अभी काम में व्यस्त हूँ, शाम में आइए ।" खोजी राम ने दांत निपोड़कर कहा, "जी, आप काम कर लीजिए... मैं तबतक इंतजार कर लूंगा ।

रेणु जी समझ गए कि इस खोजी राम से पिंड छुड़ाना आसान नहीं है । बैलों को सानी लगाकर रेणु जी बैठ गए, खोजी राम से मुखातिब होकर, " बताइए, क्या पूछना है? "

प्रसन्नचित्त खोजी राम ने पहला सवाल दागा, "आप इतने बड़े लेखक होकर भी अपना बहुमूल्य समय खेती-मवेशी जैसे साधारण कार्यों में क्यों बर्बाद करते हैं? ये किसान जैसा जीवन...! "

रेणु जी ने बीच में ही बात काट दी, " खेती को आप साधारण कार्य कहते हैं ! मुझे तो एक बीघा खेत में धान की खेती करने में पांच कहानी और पांच लेख लिखने से ज्यादा आनंद मिलता है ।... झमाझम बरसते बादलों के नीचे भींगते हुए हल-बैल लेकर खेत में पहुंचता हूँ । खेत के मेड़ों को ऊंचा बांधकर उसमें पानी ठहराता हूँ । दिनभर हल-बैल से कादो करता हूँ, अगले दिन धान का बिचरा उखाड़कर उसकी मुट्ठियाँ बनाकर उसमें से एक- एक बिचरा एकसमान दूरी पर रोपने का प्रयास करता हूँ ; कभी-कभी तो नागार्जुन भी साथ होते हैं ! धान के बढ़ते हुए पौधों को देखने जाता हूँ, लगभग प्रतिदिन ! धान की पकती हुई बालियों को देखकर मन झूमने लगता है । धान की कटनी के बाद उसे अटियाकर- झाड़कर उससे धान को अलग करता हूँ । यह साधारण कार्य है?.... या चुपचाप बैठकर सोच- सोचकर बारिश, धान और किसान के बारे में लिखना साधारण कार्य है, बताइए? "

लाजवाब खोजी राम का मन उकता जाता है, रेणु के इस जवाब को सुनकर । वह उठकर जाने की तैयारी करने लगता है । रेणु उसे रोकते हैं, "बैठिए-बैठिए, कहाँ चल दिए? अब आ ही गये हैं तो थोड़ा चूड़ा-दही-गुड़ खाकर ही जाइए ।"

खोजी राम को विवश होकर बैठना पड़ता है । रेणु जी घर के भीतर जाते हैं और कुछ देर बाद बाहर आकर फिर खोजी राम से मुखातिब होते हैं, "अभी तक तो धान के खलिहान तक आने की कहानी बताई है आपको, धान को चावल- चूड़ा में परिणत करने की कहानी अभी बाकी है । दही और गुड़ को समझने के लिए तो आपको भैंस, गाय, ईख, कोल्हू और बैल की कहानी सुननी पड़ेगी । कहानी की किताब का पन्ना चबाकर तो भूख नहीं मिटायी जा सकती है ।

खोजी राम को अपने सवालों का जवाब मिल गया, रेणु जी से ! वे दही-चूड़ा का भोग लगाने लगे । रेणु जी ने प्रश्न किया, "कुछ और पूछना है? " खोजी राम ने दही-चूड़ा का कौर निगलते हुए सिर हिलाया, " नहीं, पानी चाहिए ।"

रूप - सैंतीस

पटना के कॉफी हाउस में शाहखर्च रेणु आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं, हमेशा ! रेणु जी मेजबान की भूमिका में होते हैं और सबलोग मेहमान ! कॉफी हाउस के रेणु कॉर्नर में बड़े लेखकों-साहित्यकारों की बैठकी चलती है ; कॉफी, सिगरेट, पान, कोला वगैरह का खर्च रेणु जी ही उठाते हैं , प्रायः!

रामवृक्ष बेनीपुरी की मृत्यु का दुख सबको है ; रेणु, नागार्जुन, दिनकर और अज्ञेय... सबलोग बेनीपुरी जी को बेइंतहा याद करते हैं । परंतु साहित्य से ज्यादा राजनीति पर ही चर्चा होती है, रेणु कॉर्नर में!

पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना का हस्तक्षेप ... मुक्ति सेना की जीत... नब्बे हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया... बांग्लादेश आजाद हो गया । हजारों की संख्या में शरणार्थी इवैक्वी स्पेशल ट्रनों में भरकर आ रहे हैं । कटिहार स्टेशन पर रेणु ने देखा है, शरणार्थियों का जत्था ! 'तव शुभ नामे' कहानी में रेणु जी ने इसका वर्णन कर 'सारिका' पत्रिका में छपवाया भी है! 'रेखाएँ वृत्तचक्र' कहानी भी 'सारिका' में ही छपी ; अक्ल और भैंस' कहानी पहले ही 'ज्योत्स्ना' पत्रिका में छपवा चुके हैं रेणु जी !

सिर्फ जय प्रकाश के सामने रेणु जी सिगरेट नहीं पीते हैं, मालूम नहीं क्यों? जयप्रकाश को छोड़कर रेणु जी किसी नेता को चिताते नहीं हैं । जयप्रकाश जी में कुछ तो अलग और विशेष है, जिससे रेणु प्रभावित हैं ; जादुई आवाज, दृढ विचार, गरीबों की पक्षधरता, अद्भुत संगठन क्षमता और सत्ता सुख से विरक्ति... एक महान नेता के सभी गुण हैं जयप्रकाश नारायण में !

जयप्रकाश नारायण से मिलकर रेणु जी स्वत:स्फूर्त हो जाते हैं । समाजवाद जयप्रकाश से शुरू होता है ! भारत में समाजवाद रूपी गाड़ी की धुरी जयप्रकाश ही हैं ; लोहिया, नरेंद्र देव, बेनीपुरी, कर्पूरी... सब जयप्रकाश के दिव्य प्रकाश से चमकते हैं ! जयप्रकाश के बाद समाजवाद किधर जाएगा, रेणु जी को मालूम नहीं !

इन दिनों जयप्रकाश जी इंदिरा गांधी से प्रसन्न नहीं हैं ; लोकतंत्र में डिक्टेटरशिप पसंद नहीं है जयप्रकाश को ! उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाने की कोशिश भी की है ; जनता को मुद्दों से भटकाकर धर्म की अफीम पिलाना कबूल नहीं है, लोकनायक को ! 'लोक' की शक्ति को लोकनायक जानते-समझते ही नहीं, उसका इस्तेमाल करना भी जानते हैं ।

रेणु जी भी अपने नायक की बात बात मान लेते हैं ; संसदीय लोकतंत्र में चुनाव जीतकर ही परिवर्तन लाया जा सकता है, चुनाव जीतकर जनता के मुद्दों को विधानसभा में बेहतर तरीके से उठाया जा सकता है । लोकनायक ने निर्देश दिया है तो रेणु जी चुनाव अवश्य लड़ेंगे, परिणाम चाहे जो भी हो !

रूप - अड़तीस

राजेन्द्र नगर के कॉफी हाउस में साहित्य और राजनीति के बड़े-बड़े मुद्दों पर बात होती है, परंतु यहाँ भी रेणु को ईर्ष्यालु कुक्कुरों की भूंक सुनाई पड़ती है, "आंचलिक... भदेस... देशज... गंवार ! " रेणु जी को अब चिढ़ होने लगी है, 'आंचलिक' शब्द से ! 'मैला आँचल' और 'परती परिकथा' को आंचलिक कहें, परंतु 'दीर्घतपा', 'जुलूस', और 'कितने चौराहे' भी आंचलिक?

आंचलिक... आंचलिक... आंचलिक...!

... लेकिन, जर्मन विद्वान लोठार लुत्से ने रेणु को कभी आंचलिक लेखक नहीं माना । रेणु की रचनाओं की संवेदना हमेशा वैश्विक यानि ग्लोबल महसूस की है, लोठार लुत्से ने ! इसलिए लुत्से जब रेणु से मिले, तो उन्होंने रेणु से पूछा, "आप सही मायने में वैश्विक... ग्लोबल राइटर हैंं, तो फिर यहाँ आपको आंचलिक या रिजनल राइटर क्यों कहा जाता है? "

लोठार लुत्से का यह प्रश्न रेणु के उन घावों को कुरेद गया, जो घाव उन्हें ईर्ष्यालु कुक्कुरों के काटने से हुआ है । जख्मों को सहलाते हुए रेणु कहते हैं, "गलती मुझसे ही हुई है । 'मैला आँचल' उपन्यास की भूमिका में मैंने 'आंचलिक' शब्द लिख दिया । ईर्ष्यालुओं ने इस शब्द को मेरेे खिलाफ इतना ज्यादा दुहराया कि मेरी हर रचना पर 'आंचलिकता' का ठप्पा लगने लगा, इसका अर्थ समझे बिना !"

रेणु की बातों से सहमत लोठार लुत्से ने फिर सवाल किया, "यहाँ के लोगों में समझ नहीं है?"

अब रेणु जी और लोठार लुत्से की बातचीत अंतरंग हो जाती है । रेणु जी लुत्से की कान में धीमी आवाज में कहते हैं, "समझ की बात मत कीजिए यहाँ । एक आदमी ने एक बार ट्रेन में मेरे उपन्यास का नाम 'मैला आंचल' नहीं बल्कि 'मेला चल' बताया, दावे के साथ ! एक जमींदार साहब ने 'मैला आँचल' का तहसीलदार स्वयं को समझते हुए मुझपर मुकदमा ही ठोक दिया, पुरनियां कोर्ट में ! आप साहित्य के समझ की बात करते हैं ! "

लोठार लुत्से सवाल करते हैं, "आंचलिकता का क्या मतलब है, आपकी दृष्टि में? "

अब रेणु जी सहजता पूर्वक बतलाते हैं, "मैं अपनी रचनाओं में लोकजीवन की भाषा, संस्कृति, व्यवहार, कला, पर्व- त्योहार, रीति- रिवाज, लोकगीत, लोकमत और लोक धारणाओं का समावेश करता हूँ । लोकजीवन से उत्पन्न साहित्य ही तो असली साहित्य है । किसी क्षेत्र विशेष की लौकिकता ही आंचलिकता है । मेरी रचनाएँ सर्वप्रथम कहानी हैं, उपन्यास हैं, रिपोर्ताज हैं । उसके बाद आप उसे आंचलिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक... या 'धारावाहिक'... जो मन में आए कह लीजिए ।

लोठार लुत्से ने रेणु के जख्म कुरेदने के अंदाज में पूछा, "मानक भाषा के विपरीत ठेठ देहाती भाषा का अधिक प्रयोग है, आपकी कहानियों में? "

रेणु जवाब देते हैं, "मानक भाषा में एक प्रकार की कृत्रिमता है, बनावटीपन है; ठेठ ग्राम भाषा नेचुरल... एकदम प्राकृतिक है । ठेठ ग्रामभाषा में रस है, प्रवाह-प्रभाव है; लोकोक्तियाँ- मुहावरे हैं... सब नेचुरल! "

लोठार लुत्से अगला प्रश्न पूछते हैं, "आप अपनी किस कहानी को सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं? "

रेणु कठोरतापूर्वक जवाब देते हैं, "किसी को नहीं ; एक संदर्भ में जो कहानी महत्वपूर्ण है, दूसरे संदर्भ में वही कहानी महत्वहीन हो जाती है !"

लोठार लुत्से ने अगला प्रश्न किया, "आप अपनी रचनाओं में लोकगीतों का ज्यादा प्रयोग करते हैं, क्यों? "

रेणु जी ने लुत्से को समझाने की शैली में कहा, " लोकगीत तो लोकजीवन की आत्मा है । विवाह- उपनैन, मुंडन- छेदन और पर्व- त्योहार आदि तो लोकगीत के बिना संपन्न ही नहीं हो सकता है । लोकगीत तो लोकसंस्कृति की आत्मा और विरासत है ; जो आज भी है, पहले भी था और आगे भी रहेगा । हलवाही, चरवाही, रोपनी, कटनी और कुटौनी- पिसौनी के गीतों के बिना कृषि-संस्कृति का वर्णन संभव है क्या? "

लोठार लुत्से ने फिर प्रश्न किया, "आपकी रचनाओं में रूप, रस, गंध... "

रेणु बात को बीच में ही काट देते हैं, "प्रकृति की प्रत्येक वस्तु में रूप, रस, गंध और भाव है । रूप, रस और गंध का वर्णन किए बिना भाव का वर्णन संभव है क्या? भाव ही प्रधान है; रूप, रस, गंध, स्पर्श... सब सहायक हैं ।"

लोठार लुत्से अंतिम प्रश्न पूछते हैं, "आपकी रचनाओं में भद्दी गालियों का प्रयोग क्यों? "

रेणु जी हंसकर जवाब देते हैं, "हा, हा, हा... गालियाँ भी परम सत्य हैं, लोकजीवन का ! लोकजीवन में गालियाँ सुनना भी पड़ता है और जरूरत पड़ने पर गालियाँ देना भी पड़ता है ; इस सत्य से साहित्य को वंचित कैसे रखा जा सकता है ! "

लोठार लुत्से बहुत कुछ पूछना चाहते हैं, रेणु से! लेकिन वे जानते हैं कि रेणु जी अपनी रचनाओं के पात्रों के बारे में कोई स्पष्टीकरण या जस्टीफिकेशन देना पसंद नहीं करते हैं । फिर भी रेणु जी से अंतरंगता का फायदा उठाकर लुत्से ने साहसकर पूछ ही लिया, "आत्मसाक्षी' के गनपत को क्या करना चाहिए था?... और 'मारे गए गुलफाम' की हीराबाई क्या वाकई हीरामन से प्यार करती थी? "

रेणु जी ने लुत्से की जिज्ञासा का मान रखने के लिए कहा, "परबतिया को छोड़कर गनपत ने गलती की ; अपना जीवन खराब कर लिया । और हीराबाई ? ... कुसुमलाल... नहीं... हीरामन का तो दावा था कि यदि उसे भौजी का डर नहीं होता और हीराबाई नौटंकी कंपनी छोड़ने को तैयार हो जाती, तो वह हीराबाई को ब्याह कर अपने घर ले आता !

रूप - उनचालीस

'एक अकहानी के सुपात्र' छोटेलाल से मिलकर रेणु जी को सचमुच विश्वास हो गया कि बहुत सारी कहानियों लिखी जानी अभी बाकी है, रंगीनियाँ और जवानियां अभी बाकी हैं ! विधानसभा का इलेक्शन लड़ना भी अभी बाकी है ! इलेक्शन से पहले रेणु जी अपने चुनाव क्षेत्र में अपनी धाक जमाना चाहते हैं ; इसलिए इस बार वे अपने गाँव औराही हिंगना पूरी तैयारी के साथ जाना चाहते हैं । घर में भी तो सबकी अलग- अलग फरमाइश है ; पद्मपराग के लिए किताब, अप्पू के लिए रसगुल्ले और दक्षिणेश्वर के लिए खिलौने ! वहीदा तो रेणु जी को देखते ही नाचने लगती है, " पटना वाले बाबू आए, पटना वाले दादा आए ! "

रेणु जी ने लतिका से भी कह दिया है, "इसबार औराही हिंगना पूरी तैयारी के साथ जाना है ! " रेणु जी की बात सुनकर लतिका ने चौंक कर पूछा, "क्यों?... कोई खास बात है क्या, गाँव में? "

रेणु जी ने उत्साहपूर्वक कहा, "जयप्रकाश जी ने कहा है, फारबिसगंज से चुनाव लड़ना है इस बार ! "

लतिका चौंक गई, "इतने पैसे कहाँ से लाओगे, चुनाव लड़ने के लिए? "

रेणु जी ने दृढ़तापूर्वक कहा, "कहीं से भी ; अपनी जमापूंजी खर्च करने के बाद घटेगा तो चंदा मांग लूंगा, लोगों से ! "

लतिका जानती है कि रेणु जी ने ठान लिया है तो वह चुनाव अवश्य लड़ेंगे, इसलिए वह कहती है, "जो मन में आए, करो ; गाँव कब जा रहे हो? "

रेणु ने उत्साहित होकर कहा, "आज शाम तुम मेरे साथ पटना मार्केट चलो, सामान खरीदने ! कल सुबह की ट्रेन पकड़कर गाँव जाऊंगा ।"

सिमराहा स्टेशन पर कुसुमलाल 'ट्रेन टाइम' से पहले ही पहुँच गया, फणीश्वरनाथ को अपनी बैलगाड़ी पर बैठाकर गाँव लाने ! फणीश्वरनाथ का पटना से औराही हिंगना आना परिवार भर के लोगों के लिए तो उत्सव जैसा होता ही है ; बहुत सारे गौंवा-गिरामिन भी अपने फनीसर को देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं ।

आज पदमा स्वयं अपने 'मालिक' फणीश्वरनाथ के पसंद का खाना बना रही है । घर-आंगन लीपा जा रहा है । बच्चे अपने अरमानों को बयां कर रहे हैं । शाम होने से एक घंटा पहले ही कुसुमलाल की बैलगाड़ी सिमराहा स्टेशन से फणीश्वरनाथ को लेकर औराही हिंगना पहुँच गयी । घर में चहल-पहल का वातावरण छा गया । ... रसगुल्ला वाला बर्तन बैलगाड़ी पर से धीरे से उतारो, ठोकर न लग जाए ! दक्षिणेश्वर के लिए पटना से इंग्लिश खिलौना आया है, बैटरी वाला हवाई जहाज ! चाबी घुमाओ और जहाज फुर्र ...! घर के लोग आज बहुत प्रसन्न दिख रहे हैं !

बहुत दिनों बाद पटना से घर आए फणीश्वरनाथ से मिलकर पदमा अत्यंत उत्साहित है, "पहले खाना खा लीजिए, फिर कहीं जाइएगा ।"

पदमा की नजरों में नजरें डालकर फणीश्वरनाथ कहते हैं, "अब रात में ही खाऊंगा, कबूतर बना दोगी? एक जोड़ा ले आऊं? "

पदमा हुलसकर कहती है, "ले आइए, बना दूंगी... नहीं तो पटना वाला बिरानडेड लाल पानी बर्बाद हो जाएगा । हा - हा - हा....! "

फणीश्वरनाथ कुछ ही देर में फुलची मालिन के खोह से एक जोड़ा कबूतर लाकर उसका अंतिम संस्कार करते हैं, दक्षिणेश्वर इंग्लिश खिलौने का अंतिम संस्कार करता है । रसगुल्ला की हांडी आधी हो चुकी है, धनिक लाल आकर पैट्रोमैक्स जला चुका है! कबूतर के मांस के चखना के साथ बिरानडेड लाल पानी, चीलम का कश... लाजवाब ! धनिक लाल को पैट्रोमैक्स जलाते देख 'पंचलैट' के गोधन की याद आती है, फणीश्वरनाथ को !

रूप - चालीस

'जैव', 'मन का रंग' और 'लफड़ा' कहानी को 'ज्योत्स्ना' पत्रिका में प्रकाशित करवाने के बाद रेणु जी फिर पटना चले जाते हैं । सन् बहत्तर का बिहार विधानसभा का चुनाव सिर पर है । फणीश्वरनाथ रेणु जी ने फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मन बना लिया है । लेकिन क्या सोसलिस्ट पार्टी फणीश्वरनाथ को विधानसभा क्षेत्र संख्या 124 ,फारबिसगंज, से चुनाव लड़ने के लिए टिकट देगी? ... बिल्कुल नहीं ! सोसलिस्ट पार्टी ने लखन लाल कपूर को फारबिसगंज से टिकट दिया है, चुनाव लड़ने के लिए ! अब क्या होगा? कांग्रेस के प्रत्याशी सरयू लाल मिश्र के खिलाफ रेणु जी निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत पाएंगे?... जीतना तो नामुमकिन लगता है ; जब सोसलिस्ट पार्टी वालों ने ही साथ नहीं दिया तो रेणु को चुनाव लड़ना ही नहीं चाहिए । समाजवादियों ने धोखा दिया है रेणु जी को !

रेणु जी इस बात को भलीभाँति जानते हैं कि निर्दलीय चुनाव लड़कर जीतना संभव नहीं है, लेकिन चुनाव जीतने से से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव लड़ना है । जयप्रकाश जी भी यही चाहते हैं । फारबिसगंज से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रेणु जी को अनेक लोगों ने खुलकर मदद की । रेणु जी भी फारबिसगंज की जनता से वोट और चावल मांगने निकल पड़े -

"चावल दीजिए पाव भर,
वोट दीजिए नाव पर !"

अपने चुनाव चिह्न 'नाव छाप' पर वोट देने के लिए रेणु फारबिसगंज के गावों में नारा लगाते -

" कह दो गाँव - गाँव में,
वोट देंगे नाव में ;
भैया गांठ बांध लो अबकी इस चुनाव में,
वोट देना नाव में ! "

विपक्षी प्रत्याशियों पर निशाना साधते हुए रेणु कहते -

"दलों के दलबदलू लोग,
उड़ाते मोहन हलवा भोग,
लुटाते हैं ईमान सस्ते भाव में,
वोट देना नाव में ! "

नाव छाप पर वोटिंग तो हुई लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी सरयू लाल मिश्र फारबिसगंज के विधायक बनने में सफल रहे । इस चुनावी हार ने रेणु की आंखें खोल दी । चुनाव परिणाम आने के बाद रेणु जी ने कहानी- उपन्यास लिखना लगभग छोड़ ही दिया । उन्होंने साहित्य लेखन को स्थगित कर सक्रिय राजनीति में उतरने के लिए कमर कस लिया । गरीबों, जरूरतमंदों और बाढ़ पीड़ितों को वे सरकार के खिलाफ गोलबंद करने लगे । अब तक जो कहानियाँ लिखी जा चुकी थी, उसे रेणु जी ने छापने के लिए भेज दिया ; इस संकल्प के साथ कि अब आगे नहीं लिखना है । 'ज्योत्स्ना' पत्रिका को रेणु जी ने तीन कहानियाँ भेजी - 'अग्नि संचारक', 'एक रंगबाज की भूमिका' और 'दसगज्जा के इसपार और उसपार' । 'धर्मयुग' पत्रिका में 'अगिनखोर' कहानी छपी और रेणु जी ने अपनी अंतिम कहानी 'भित्तिचित्र की मयूरी को 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' में छपवाया ।

चुनाव हारने के बाद रेणु जी राजनीति को बेहतर समझने लगे हैं । इस कड़वे सच को वे जान चुके हैं कि चुनाव में जाति के आधार पर ही टिकट का बंटवारा होता है । चुनाव में पार्टी प्रमुख हो जाती है, प्रत्याशी का व्यक्तित्व गौण हो जाता है । लोकतंत्र अब जातितंत्र बन गया है । धर्म और आरक्षण के नाम पर राजनीतिक पार्टियां जनता को बरगलाने का काम करतीं है । गरीबों, आपदा पीड़ितों, और जरूरतमंदों की सुधि लेनेवाला कोई नहीं है ।

रेणु जी गरीबों- आपदा पीड़ितों के पक्ष में डटकर खड़े हो जाते हैं । शासन की निष्ठुरता के खिलाफ वे उग्र रूप धारण कर लेते हैं । सरकार के खिलाफ सभा- मीटिंग का दौर शुरू हो जाता है । पटना यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है ।

छात्रों में सरकार के तानाशाही रवैया के प्रति क्षोभ है, गुस्सा है ! इंदिरा गांधी से ज्यादा संजय गांधी का मौखिक हुक्म चलता है, मंत्रालय और सचिवालय में । लोगों के बोलने की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है । पटना यूनिवर्सिटी के छात्र इस स्थिति में परिवर्तन लाना चाहते हैं । यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ में काबिल और होनहार लड़कों की कमी नहीं है । सुशील कुमार मोदी, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव... लेकिन रेणु जी को सबसे अच्छा लगता है इंजीनियरिंग कॉलेज वाला लड़का नीतीश कुमार !

रूप - इकतालीस

'धर्मयुग' पत्रिका पढ़ते हुए रेणु जी को अचरज हुआ... अजगैबी बात ! इंजीनियर लड़का नीतीश कुमार को दहेज में बाईस हजार रुपया मिला ; नीतीश ने दहेज के रुपये लड़की के पिता को वापस कर दिया और आदर्श विवाह कर लिया । 'धर्मयुग' पत्रिका में नीतीश कुमार का इंटरव्यू छापने वाले लेखक जुगनू शारदेय को फोन लगाया, फणीश्वरनाथ रेणु ने !

ट्रिं... ट्रिं... ट्रिं...

"हलौ, कौन? "

"मैं फणीश्वरनाथ रेणु बोल रहा हूँ । जगनू शार...! "

" जी... प्रणाम सर ! "

" खुश रहो... तुमने 'धर्मयुग' जो इंटरव्यू छापा है, वह लड़का नीतीश कुमार... वही इंजीनियरिंग कॉलेज वाला ही है न? "

"जी सर, वही है ।"

"बहुत संस्कारी और विचारवान लड़का है नीतीश कुमार । दहेज जैसी सामाजिक बुराई पर प्रहार कर उसने जयप्रकाश जी के सपने को साकार किया है । स्त्रियों की आजादी और आत्मनिर्भरता के संबंध नीतीश कुमार ने जो जो विचार प्रस्तुत किया है, एकदम लाजवाब और अनुकरणीय है ! "

"जी सर, नीतीश कुमार तो आपसे कई बार आपसे मिल भी चुके हैं ।"

"हाँ- हाँ, याद आया, हम मिल चुके हैं । जुगनू, एक बात कहूँ? "

"जी सर, कहिए...! "

" मैं भी नीतीश कुमार जैसे किसी दृढ निश्चयी और विचारवान लड़के को अपना दामाद बनाना चाहता हूँ । तुम्हारी नजर में कोई ऐसा लड़का हो, तो मुझे बताना ।"

"जी सर, देखेंगे... प्रणाम सर ! "

खट्... फोन कट गया ।

'धर्मयुग' पत्रिका पढते हुए रेणु जी देर तक सोचते रहे ; नीतीश कुमार जैसे विचारवान और योग्य लड़का के हाथों में यदि शासन की बागडोर सौंप दी जाए, तो समाज में सुशासन- सुराज आ जाएगा । स्त्रियाँ आजाद और निर्भय होकर घरों से बाहर आएंगी, आत्मनिर्भर बनने ! ... बहुत होनहार लड़का है !

पटना के छात्र नेताओं में सबसे अलग हैं नीतीश कुमार । उन्हें साहित्य, संस्कृति और समाजवाद की अच्छी समझ है । नीतीश को भी जयप्रकाश पर ही विश्वास है, रेणु की तरह ! जयप्रकाश जी ने पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों की सभी में शिरकत करने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है; रेणु जी भी जयप्रकाश के साथ आएंगे ।

रूप - बयालीस

जयप्रकाश नारायण ; उम्र सत्तर साल से अधिक, प्रधानमंत्री का पद ठुकराने वाले भारत के एकमात्र नेता ! सन् बयालीस के आंदोलन में हजारीबाग सेंट्रल जेल से फरार होने होनेवाले जयप्रकाश नारायण ! चंबल घाटी के लुटेरों ने जिनके चरणों में अपनी बंदूकें समर्पित कर दी, वही क्रातिवीर... क्रांतिधर्मा... क्रांति सम्राट् लोकनायक जयप्रकाश नारायण !

इंदिरा गांधी के झूठे अहंकार और तानाशाही को यदि कोई राजनेता नियंत्रित कर सकता है, तो वह जयप्रकाश नारायण ही होंगे ; इस बात को सिर्फ पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नेता ही नहीं बल्कि देश के बड़े- बड़े नेता भी बखूबी समझते हैं । छात्रों की ताकत का अहसास जयप्रकाश जी को भी है । इसलिए तो उन्होंने आंदोलन का नेतृत्व स्वीकारने की बात कही है, सोचकर !

अब सोचने का वक्त नहीं है । इंदिरा अपराजिता नहीं है । गुजरात में छात्रों की मेस फीस बढ़ाना बहुत मंहगा पड़ गया, गुजरात सरकार को ! इंदिरा गांधी की कांग्रेस गुजरात में हार गई । यदि जयप्रकाश जी विपक्ष का नेतृत्व करना स्वीकार कर लें, तो इंदिरा गांधी को पूरे देश में हारना होगा ।

फणीश्वरनाथ ने जयप्रकाश नारायण से स्पष्ट शब्दों में कह दिया है, "यदि आप नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं भी पीछे हट जाऊंगा । मैं आत्महत्या कर लूंगा । इस तानाशाही की बंद कोठरी में मेरा दम घुटा जा रहा है । जयप्रकाश जी, इस दमघोटू कोठरी की एकमात्र खिड़की आप ही हैं । इसलिए आप नेतृत्व स्वीकार कर लीजिए, वरना मैं आत्महत्या कर लूंगा ।"

जयप्रकाश जी ने नेतृत्व स्वीकारने की शर्त रख दी, "सबकी बात सुनूँगा, लेकिन अंतिम निर्णय मेरा होगा ।" जयप्रकाश जी की बात सबने मान ली । अब रेणु जी को पूरा विश्वास हो गया है कि क्रांति अवश्य होगी । संपूर्ण विपक्ष ने एकजुट होकर तानाशाह इंदिरा गांधी की सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया, जयप्रकाश जी के नेतृत्व में!

अंधेरी दमघोटू कोठरी का रोशनदान बनकर बूढ़े जयप्रकाश ने क्रांति का अगुआ मशाल अपने हाथों में ले लिया । पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश की सभा और सभा के बाद मौन जुलूस का कार्यक्रम निर्धारित किया गया ।

गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण को सभा करने की अनुमति नहीं दी गई, परंतु जयप्रकाश अपने फैंसले पर अडिग हैं ; सभा भी होगी और जुलूस भी निकलेगा ! फणीश्वरनाथ कमर कसकर तैयार हैं, जयप्रकाश का साथ देने के लिए !

गुप्त रूप से जयप्रकाश के साथ गांधी मैदान की ओर बढते हुए फणीश्वरनाथ ने लक्ष्य किया - गांधी मैदान की ओर जानेवाली सड़कों और गलियों को बांस- बल्लियों से घेरकर जाम कर दिया गया है । पुलिस और बांस- बल्लियों का इंद्रजाल बन गया है पटना, जेपी को रोकने के लिए ! जाएं तो किधर से...? लेकिन, जयप्रकाश तो करिश्माई नेता हैं, कोई न कोई करिश्मा जरूर करेंगे । यह लो, जयप्रकाश ने सचमुच करिश्मा दिखाया ; गांधी मैदान में अचानक प्रकट हो गए, देवता की तरह !

इंकलाब... जिंदाबाद !
जयप्रकाश... अमर रहे!!

बांस - बल्लियों और पुलिस के इंद्रजाल को तोड़ते हुए हजारों लोगों का हुजूम गांधी मैदान में घुस गया । फणीश्वरनाथ रेणु, नाना जी देशमुख... हजारों लोगों का जत्था गांधी मैदान से शुरू हुए इस जुलूस में शामिल हो गया । इनकम टैक्स गोलंबर पर फिर से पुलिस और बांस- बल्लियों का इंद्रजाल दिखाई पड़ा । हजारों लोग इस इंद्रजाल को तोड़ने टूट पड़े -

तोड़ दो... तोड़ दो!
एक धक्का... और दो!
इंद्रजाल... तोड़ दो!
तोड़ दो... तोड़ दो!

सत्ता का इंद्रजाल टूटने लगा, जयप्रकाश के करिश्मा के सामने! पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया । पुलिस की बेरहम लाठियों के प्रहार से लहूलुहान बूढ़े जयप्रकाश सड़क पर गिरे, नाना जी देशमुख का हाथ टूटा और फणीश्वरनाथ के कंधे पर गहरी चोट आई । सैकड़ो आंदोलनकारी घायल हो गये । आजाद हिंदुस्तान की पुलिस अंग्रेजी पुलिस से भी ज्यादा बर्बर, दमनकारी और निष्ठुर सिद्ध हुई, जेपी आंदोलन के मामले में!

लोकमानस ने एक स्वर में लोकनायक पर लाठीचार्ज की निंदा की, घोर निंदनीय! नहीं, सिर्फ निंदा करने से काम नहीं चलेगा । इस सरकार को सबक सिखाना होगा, रेणु जी ने निश्चय कर लिया है !

रूप - तैतालीस

सन् चौहत्तर के अप्रैल महीने में फणीश्वरनाथ रेणु ने खुलेआम घोषणा कर दी है, "जिस सरकार ने मेरे व्यक्तिगत गुणों के सम्मान में 'पद्मश्री' दिया, उन्हीं गुणों के प्रदर्शन मात्र पर उसने हमपर लाठियां बरसाई । क्या मैं 'पद्मश्री' और सरकार का पक्ष लेकर इदिंरा-संजय की तानाशाही और दमन का जयघोष कर दूं? नहीं, हरगिज नहीं ! जयप्रकाश पर चलाई गई लाठियां इस सरकार के ताबूत की कील साबित होगी । जिस सरकार ने हम पर लाठी चलाई, उसके द्वारा दिया गया 'पद्मश्री' मेरे लिए 'पाप श्री' है ! "

भारत के राष्ट्रपति को रेणु जी ने 'पाप श्री' वापस कर दिया । उन्होंने बिहार के राज्यपाल को पत्र लिखकर 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्' का मासिक वृत्ति बंद करने का आग्रह किया । रेणु जी के ऐसे विद्रोही रूप को पहले किसी ने नहीं देखा था । ईर्ष्यालु कुक्कुरों ने भूंकना बंद करके एक दूसरे से कहा, "पागल हो गया है, अपने टांग पर खुद कुल्हाड़ी मार ली!"

'पद्मश्री' वापस करने के बाद रेणु जी बीच चौराहों पर बैठकर अनशन करने लगे, गांधी की तरह और गांधी की शैली में ! रेणु जी को यह बात बहुत अखरती है कि बहुत सारे लोग आंदोलन से तटस्थ दिखने का प्रयास करते हैं । समर के वक्त तटस्थ दिखने वाले लोग निश्चय ही अवसरवादी है - जीत मामू जीत, हम तुम्हारे दिश! इन अवसरवादियों की खबर लेते हुए रेणु जी हुंकार भरते हैं -

" समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध !
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध !! "

दिनकर जी मद्रास में थे । वहीं हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई । दिनकर की असामयिक मृत्यु की खबर किसी असहनीय सदमा से कम नहीं था, रेणु के लिए! पटना के गंगा तट पर दिनकर की जलती हुई चिता के सामने खड़े रेणु अप्रतिम हैं, हतप्रभ! इस तरह भी कोई छोड़कर जाता है भला? सच में यह दिनकर की ही चिता जल रही है या कोई सपना... !

बेनीपुरी की तरह दिनकर भी रेणु को छोड़कर चले गए । श्मशान घाट से लौटकर घर आए रेणु की आंखों में दिनकर की चिता की लपटें कौंध रहीं हैं, बिजली की तरह! दिनकर के साथ बिताए गए लमहों की स्मृति उन्हें भावुक कर देती हैं । रेणु जी की कलम से कविता की पंक्ति फूट पड़ती है -

"अपनी ज्वाला से ज्वलित आप जो जीवन...! "

रेणु अपनी कविताएँ दिनकर को अवश्य सुनाया करते थे । 'इमरजेंसी', 'सुंदरियों', 'जागो मन के सजग पथिक', 'यह फागुनी हवा', 'मिनिस्टर मंगरू', 'साजन, होली आई है', 'गत मास का साहित्य', 'मेरा मीत सनिचरा' और 'बहरूपिया' आदि लगभग तीस कविताएँ लिखी हैं, रेणु जी ने! इन तीस कविताओं में अठाइस हिन्दी में, एक मैथिली में और एक बंगला भाषा में रचित है । लेकिन दिनकर पर आधारित कविता 'अपनी ज्वाला में ज्वलित आप जो जीवन' सुनने के लिए दिनकर नहीं रहे ।

हिंदी साहित्य के आकाश का दिनकर अस्त हो गया... सूर्य अस्त हो गया!

दिनकर जैसा सच्चा और पारखी कोई दूसरा मित्र मिल सकता है, रेणु को? रेणु जी का कवि मन व्याकुल है, दिनकर को खोकर!

दिनकर से जुड़ी स्मृतियाँ रेणु पर छायी रहती हैं, कई दिनों तक! ... , दिनकर और अज्ञेय के नेतृत्व में साहित्यकारों का एक सरकारी शिष्टमंडल विदेशी ट्रिप पर रूस गया है । रूस के साहित्य प्रेमी शिष्टमंडल से पूछते हैं, "आपलोगों में रेणु कौन हैं ? " अज्ञेय जी ने बात को संभाला, "बीमार होने के कारण रेणु जी नहीं आ सके! "

रेणु को न पाकर रूसी साहित्य प्रेमी उदास हो गए । राजकपूर, तीसरी कसम, मैला आँचल और फणीश्वरनाथ रेणु की रूस में लोकप्रियता को देखकर सब अचंभित थे । दिनकर ने खुद ही यह किस्सा रेणु को सुनाया था, रूस से भारत आने के बाद!

सूर्य अस्त हो गया... !

रूप - चवालीस

लेकिन, प्रत्येक सूर्यास्त के बाद नया सवेरा आता है । सुबह के सूर्य की किरणों में रेणु जी को सात रंग दिखाई पड़ते हैं ... सतरंगी किरण! इंद्रधनुष के सातों रंग सात क्रातियों का प्रतीक बनकर राजनीति के अंबर में फैलते जा रहे हैं । सात रंगों की सप्तक्रांति... संपूर्ण क्रांति!

जयप्रकाश और रेणु का एकमात्र सपना है- सप्तक्रांति... सपूर्ण क्रांति!
राजनीतिक क्रांति... !
सामाजिक क्रांति... !
आर्थिक क्रांति... !
सांस्कृतिक क्रांति ... !
बौद्धिक क्रांति... !
शैक्षणिक क्रांति... ! और
आध्यात्मिक क्रांति.... !... सप्तक्रांति !

जयप्रकाश के उद्घोष से पहले पटना के गांधी मैदान में रेणु ने हुंकार भरी-

" सदियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है! "

लोकनायक जयप्रकाश ने पटना के गांधी मैदान में उपस्थित लाखों लोगों को संबोधित करते हुए बहुत सारी सारगर्भित बातें समझाई । भ्रष्टाचार, तानाशाही, संसदीय लोकतंत्र, पार्टी विहीन लोकतंत्र... अनेक मुद्दों पर जेपी ने खुले मन से लोकमानस से संवाद स्थापित किया । उन्होंने संपूर्ण क्रांति के उद्देश्य और तरीके को भी बताया । सांकेतिक रूप से उन्होंने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी-

" सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ! "

इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता रद्द करके इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दे दिया है - सिंहासन खाली करो ! सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को लगभग बरकरार रखा है । अब इंदिरा गांधी क्या करेगी?

जयप्रकाश ने साफ शब्दों में कह दिया है, "लोकतंत्र की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे ।"

लेकिन इंदिरा गांधी ने इस्तीफा नहीं दिया । सत्ता पर जबरदस्त रूप से काबिज इंदिरा इतनी आसानी से सत्ता त्यागने के लिए तैयार नहीं थी । आयरन लेडी ने सत्ता में बने रहने के वैकल्पिक तरीकों का सहारा लिया.... इमरजेंसी-ई-ई...! पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रॉय को भारतीय संविधान का विशेषज्ञ यूँ ही नहीं माना जाता! उन्होंने इमरजेंसी की ऐसी स्क्रिप्ट लिखी कि सब देखते ही रह गए ।

पचीस जून सन् पचहत्तर की मध्य रात्रि में इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के प्रस्ताव पर भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने मुहर लगा दी । छब्बीस जून की सुबह इंदिरा गांधी ने रेडियो पर घोषणा की, "प्यारे देशवासियों, राष्ट्रपति जी ने देश में इमरजेंसी लगा दी है, इससे आतंकित होने कोई कारण नहीं है...।"

इमरजेंसी को प्रभावी बनाने के लिए अनेक उपाय किए गए । अखबारों की बिजली काट दी गई, प्रेस पर सेंसरशिप थोप दिया गया, अदालतों को बंद कर दिया गया और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जाने लगा ।

जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर गांधी शांति प्रतिष्ठान में कैद कर दिया गया । मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी... सैकड़ो नहीं, हजारों विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया । जेल में जगह नहीं है... हाउसफुल !

एक व्यक्ति के पद त्यागने का संकट पूरे देश का संकट बन गया ... इमरजेंसी- ई-ई...!

'देश की भलाई' के लिए थोपी गई इमरजेंसी की सूचना इदिंरा गांधी ने अपने अपने मंत्रिमंडल को तब दी, जब विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका था । सत्ता की मलाई चाटने वाले एक कुत्ते ने भी इमरजेंसी के प्रस्ताव का विरोध करने का साहस नहीं दिखाया ।

लेकिन रेणु नहीं माने । उन्होंने फारबिसगंज क्षेत्र के हजारों लोगों के जुलूस का नेतृत्व करते हुए रानीगंज की ओर मार्च किया... संपूर्ण क्रांति ! रानीगंज के बी.डी.ओ. ने जुलूस के रास्ते में बैरिकेटिंग लगाकर घोषणा की, "ऊपर से आदेश है... नो इंट्री !

लेकिन रेणु नहीं माने । संपूर्ण क्रांति आंदोलन के आंदोलनकारियों का जत्था बैरिकेटिंग को तोड़कर रेणु जी के नेतृत्व में आगे बढ़ा । पुलिस की ताबड़तोड़ लाठीचार्ज ने जुलूस को तितर - बितर कर दिया । रेणु समेत सैकड़ों आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर अररिया लाया गया, जेल में डालने के लिए ! अररिया जेल के जेलर ने कहा, " जेल में इतने लोगों के लिए जगह नहीं है... हाउसफुल ! " अधिकांश आंदोलनकारियों को छोड़ दिया गया । वर्षा में भींगते हुए ये आंदोलनकारी अपने घरों को लौट आए । परंतु रेणु जी को पूर्णिया जेल भेज दिया गया ।

रूप - पैंतालीस

लेकिन रेणु नहीं माने । पूर्णिया जेल में भी रेणु चुप नहीं बैठे । उन्होंने जेल में बंद राजनीतिक बंदियों के लिए सरकार से 'ए ग्रेड' सुविधाओं की मांग की । जेल प्रशासन को विवश होकर उनकी मांगें माननी पड़ी । अखबार, किताब, चाय-सिगरेट और चिट्ठी लिखने की सुविधा रेणु को दी गई, पूर्णिया जेल में !

पूर्णिया जेल में बंद फणीश्वरनाथ ने लक्ष्य किया- सन् बयालीस में जब वे इस जेल में आए थे, यहाँ साफ - सफाई की अच्छी व्यवस्था थी । अब तो जेल परिसर में चारों ओर गंदगी और बदबू फैली रहती है ; दूषित परिवेश रेणु जी को बीमार बना रहा है, फिर से!

जेल में रेणु जी के बीमार पड़ने की खबर सुनकर जयप्रकाश चिंतित हैं । उन्होंने रेणु जी को जमानत पर रिहा होने की सलाह दी, लेकिन रेणु नहीं माने । रेणु ने कहा, "इंदिरा की सरकार ने मुझे गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया है , इसलिए वह मुझसे माफी मांगकर मुझे बाइज्जत रिहा करे; मैं जमानत नहीं लूंगा ।"

फणीश्वरनाथ रेणु कई दिनों से गौर कर रहे हैं कि जेल का एक सिपाही उनपर नजर रख रहा है । फणीश्वरनाथ रेणु को भी वह सिपाही जाना-पहचाना नजर आता है । एक दिन सुबह सबेरे उस सिपाही ने पूछा, " तुम फणीश्वरनाथ मंडल हो, औराही हिंगना वाले? "

रेणु उसकी आवाज सुनते ही उसे पहचान गए," तुम लालमोहर हो?"

सिपाही ने जवाब दिया "हाँ, मैं वही लालमोहर हूँ, जिसका सिर तुमने स्कूल में स्लेट से फोड़ दिया था । अब किसका सिर फोड़कर जेल में आए हो? "

लालमोहर की बात सुनकर फणीश्वरनाथ अचकचा गए, "मैं किसी का सिर फोड़कर जेल में नहीं आया हूँ । इमरजेंसी के खिलाफ जुलूस में गिरफ्तार 'ए ग्रेड' राजनीतिक बंदी हूँ। ... और जहाँ तक सिर फोड़ने की बात है लालमोहर, तो यदि तुम मुझे पटकते नहीं, तो मैं तुम्हारा सिर नहीं फोड़ता ।"

अब लालमोहर ने चुटकी लेते हुए कहा, " लेकिन एक बात सच है फनीसर, जिस 'इंग्लिश परी' के लिए तुमने मेरा सिर फोड़ दिया, उसी इंग्लिश परी ने तुम्हें जेल में डाल दिया और मुझे उस जेल का पहरेदार बना दिया! हा-हा-हा...! "

अब रेणु भी हंसे बिना नहीं रह सके । आखिर लालमोहर झूठ भी तो नहीं बोल रहा था । फिर रेणु ने मान भरे स्वर में कहा, " इंग्लिश परी को मेरे सामने झुकना पड़ेगा; उसे मुझसे माफी मांगकर ... !"

लालमोहर ने बीच में ही बात काट दी, " मैं तो कहता हूँ फनीसर, जमानत पर निकल लो जेल से; इमरजेंसी और भी टाइट होनेवाला है । सुनो, बाहर क्या नारा लग रहा है ! "

फणीश्वरनाथ ने कान लगाकर सुना । कुक्कुरों की टोली आजादी से घूमते हुए भौंक रही थी-

" इदिंरा तेरे सुबह की जय हो,
इंदिरा तेरे शाम की जय हो;
इंदिरा तेरे काम की जय हो,
इंदिरा तेरे नाम की जय हो ! "

फिर भी रेणु नहीं माने। उन्होंने जमानत पर रिहा होने से इनकार कर दिया । अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने इंदिरा गांधी के तानाशाही और अलोकतांत्रिक व्यवहार की खूब निंदा की । यदि इंदिरा गांधी के वश में होता, तो वह भारतीय मीडिया की तरह ही अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के मुंह पर भी सेंसरशिप के ताले जड़ देती ।

भारत की जनता सरकार के रवैये से दुखी होने लगी । जनमत बदलने लगा । दवाब में आकर सरकार को राजनीतिक बंदियों को आजाद करना पड़ा । जयप्रकाश नारायण और फणीश्वरनाथ रेणु समेत अधिकांश आंदोलनकारियों को जेल से रिहा कर दिया गया ।

रूप - छियालीस

पूर्णिया जेल से छूटकर बाहर आने के बाद रेणु जी को फारबिसगंज क्षेत्र की जनता अपना नेता मानने लगी हैं, मन ही मन ! रेणु जी को विधानसभा चुनाव लड़े तीन साल से अधिक ही गए, लेकिन उनका चुनावी नारा आज भी गाँव के बच्चा- बच्चा को याद है, जस का तस! गांव के बच्चे रेणु को देखकर चिल्लाने लगते हैं-

" कह दो गाँव- गाँव में, वोट पड़ेगा नाव में!
शोर मचा हर बस्ती में, वोट पड़ेगा कश्ती में!! "

रेणु के 'नाव छाप' पर वोट नहीं देने वालों को अब अफसोस होता है । चुनाव जीतने के बाद मिसिर जी अब दर्शन देने भी नहीं आते । फणीश्वर बाबू जीतते तो फारबिसगंज का कल्याण हो जाता ।

रेणु जी सबकी बात सुनते हैं । वे अब ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुँच बनाना चाहते हैं । सबकी खोज-खबर लेना रेणु की फितरत - सी हो गई है ।

जेल से छूटने के बाद रेणु जी अपने ससुराल महमदिया गाँव जा रहे हैं । उन्हें नहीं मालूम कि यह उनकी अंतिम ससुराल यात्रा है ! कटिहार स्टेशन से महमदिया गाँव तक जाने वाले रास्ते में भी रेणु जी की अनेक लोगों से जान - पहचान है ।

आज महमदिया गाँव के चौक पर पेठिया लगा हुआ है । महमदिया हाट बाजार के अधिकांश दुकानदार चीन्हते है रेणु जी को... पढ़ुआ मेहमान ! पेठिया में ही रेणु जी की मुलाकात अपने साले से हो गई । साले साहब ने रेणु जी से कहा, "मेहमान जी, आप चाह दुकान पर बैठिए; हम माछ खरीद कर आते हैं ।"

चाय दुकान पर बैठे अनेक लोग रेणु जी को जानते-पहचानते हैं । माछ का नाम सुनकर एक बूढ़ा-सा आदमी रेणु जी के साला से कहता है, " मेहमान के लिए सिर्फ माछ की ही व्यवस्था है या कुछ और भी? " रेणु प्रतिकार करते हैं, " न - न ... अब उ सब छोड़ दिए हैं ! "

साले जी के साथ रेणु पेठिया से ससुराल पहुंचते हैं । कुछ ही देर में आस - पड़ोस के लोगों की भीड़ जुट जाती है, पढ़ुआ मेहमान को देखने के लिए ! पढ़े - लिखे लोगों से लेकर निरक्षर - अनपढ़ तक... सब रेणु के कायल !

बरौनी वाली सरहज तो अब साठ साल से ऊपर की हो गई है, लेकिन रेणु जी को देखते ही बोल देती है, " उमर पचपन का और दिल बचपन का ! "

एक पढ़े- लिखे चचेरे साले ने रेणु जी से पूछा, " इधर हाल में कौन किताब छपी है आपकी?

रेणु जी गंभीरतापूर्वक जवाब देते हैं, " कहानी तो इधर दो - तीन वर्षों में एक भी नहीं छपी है । रिपोर्ताजों का संग्रह 'ऋणजल धनजल ' राजकमल प्रकाशन से छपवाने का प्रयास कर रहा हूँ । 'पल्टूबाबू रोड' उपन्यास पूरा हो चुका है । 'कागज की नाव' और 'रामरतन राय' उपन्यास अधूरा ही है ।"

रेणु जी की एक सढ़बेटी साहित्य-सिनेमा में खूब रुचि रखती है । वह रेणु जी से पूछती है, "फुफा जी, 'मारे गए गुलफाम' कहानी में तो ठाकुर विक्रम सिंह नहीं है, तो फिर 'तीसरी कसम' फिल्म में विक्रम सिंह कहाँ से आ गया? "

रेणु जरा सोचकर उत्तर देते हैं, "फिल्म की जरूरत के हिसाब से कुछ नए पात्रों को जोड़ना पड़ा, हीराबाई के चरित्र को जस्टीफाई करने के लिए । रेणु जी देर रात तक बतियाते रहे ; रेणु उनकी जिज्ञासा को इत्मीनान पूर्वक शांत करते रहे । सुबह उठकर रेणु जी पड़ोस के बेलवा गाँव की ओर चले, अपनी बेटी कवितिया से मिलने । बहुत लगाव है रेणु जी को, अपनी बेटी कवितिया से ! बेलवा गाँव के ज्यादातर लोगों ने पानी के लिए घर में चापाकल गड़वा लिया है, लेकिन कवितिया को अभी भी नदी - कुआँ से ही पानी लाना पड़ता है ! अपनी बेटी के घर चापाकल गड़वाने के लिए रेणु जी कटिहार से नया चापाकल का सामान खरीदकर लाते हैं । अपनी बेटी को दुखी नहीं देख सकते हैं फणीश्वरनाथ रेणु ! आज भी वे पदमा को 'कवितिया माय' कहकर ही पुकारते हैं ।

रूप - सैतालीस

इमरजेंसी के पहले भी और इमरजेंसी के बाद भी, परिवर्तन की राजनीति का केंद्र पटना ही है । जयप्रकाश जी ने स्पष्ट निर्देश दिया है, "इदिंरा जैसे तानाशाह को पराजित करने के लिए विपक्ष को एकजुट होना होगा ।"

जनता पार्टी से समाजवादी पार्टियां मिल गईं। फणीश्वरनाथ इस महासमर में कूदने के लिए बेचैन हैं । कांग्रेस पार्टी के विभाजन की खबर सुनकर रेणु बहुत प्रसन्न हुए । बाबू जगजीवन राम के नेतृत्व में 'कांग्रेस फोर डेमोक्रेसी' पार्टी बनी, कांग्रेस से टूटकर !

लेकिन इन कम्युनिस्टों का क्या होगा? कम्युनिस्ट पार्टियां हमेशा से ही रेणु जी के समझ से बाहर की चीज रही है । इमरजेंसी के दौरान भी कम्युनिस्टों ने इंदिरा गांधी का खुलकर विरोध नहीं किया और अब चुनाव भी अलग लड़ रहे हैं... आखिर ये पालिटिक्स क्या है? वर्षा मास्को में होती है और छाता तान लेते हैं दिल्ली-पटना-कलकत्ता के कम्युनिस्ट !

तटस्थ दिखने वाले इन कम्युनिस्टों को रेणु जी कर्तव्य याद दिलाते हैं -

"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध ।
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध ।।"

इमरजेंसी के दौरान की गई ज्यादतियों को इन तटस्थों का मौन समर्थन प्राप्त है । रेणु जी को पूरा विश्वास है कि एक न एक दिन देश की जनता इन कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों को सबक सिखाएगी, जरूर!

सन् सतहत्तर का चुनाव भारतीय राजनीति के मील का पत्थर साबित होगा, रेणु यह जानते हैं! जनता पार्टी के बैनर तले जयप्रकाश ने जब विपक्ष को एकजुट किया, रेणु ने कदम- कदम पर उनका साथ दिया । रेणु अपनी बीमारी के बावजूद सभाओं में सक्रिय रहते हैं ।

दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की सभा में लोगों की भीड़ न जुटे, इसके लिए सभा के दिन दूरदर्शन पर 'बॉबी' फिल्म चलाया गया! परंतु पब्लिक सब समझती है । जयप्रकाश की सभा में रामलीला मैदान में पैर रखने की जगह नहीं थी ... हाउसफुल ! इस सभा ने इंदिरा सरकार की उलटी गिनती की घोषणा कर दी । गंभीर रूप से बीमार पड़े रेणु इस सभा में रंग भरने के लिए दिल्ली नहीं पहुंच सके ; इस सभा में रेणु को न देखकर निर्मल वर्मा बहुत उदास हो गए !

निर्मल वर्मा कई बार रेणु से मिल चुके हैं । रेणु जी के झूलते-लटकते बाल, अरिस्टोक्रेटिक हाव-भाव और संत प्रवृत्ति निर्मल वर्मा को आकर्षित करते हैं ! निर्मल जी हिंदी कथा साहित्य का असली विरक्त 'संन्यासी' रेणु जी को ही मानते हैं, आरिजिनल संत ! उनकी दृष्टि में रेणु एक ऐसे कथाकार थे, जिन्होंने एक छोटे से भूखंड की हथेली पर संपूर्ण उत्तर भारतीय किसानों की नियति को उजागर कर दिया है ! इसलिए अपने परम प्रिय रेणु को रामलीला मैदान में न पाकर निर्मल वर्मा उदास थे ।

चुनावी सभाएँ इंदिरा गांधी बनाम जयप्रकाश हो गईं । लोकतंत्र में आस्था रखने वालों ने जयप्रकाश नारायण का खुलकर समर्थन किया ।

इंदिरा... बनाम... जेपी!

बूथ लूट, हिंसा और जाल- फरेब के बीच चुनाव संपन्न हुआ । इंदिरा गांधी बरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गई, कांग्रेस पार्टी पूरे देश में चुनाव हार गई ।

लोकतंत्र, लोकमानस और लोकनायक में रेणु की आस्था और भी दृढ़ हो गई । रेणु का मनोरथ भी पूरा हो गया, सत्ता के अहंकार को पराजित करने का मनोरथ! चुनाव परिणाम घोषित होने से पहले रेणु जी अपने पैप्टिक अल्सर का आपरेशन करवाने के लिए तैयार नहीं थे । पूर्णिया जेल से निकलने के बाद ही डाक्टर ने उन्हें आपरेशन करवाने की सलाह दी थी, लेकिन रेणु नहीं माने । जयप्रकाश नारायण की चुनावी सभाओं और कार्यक्रमों में फणीश्वरनाथ ने अपना तन मन धन और जीवन... सबकुछ झोंक दिया । जेपी के संपूर्ण क्रांति यज्ञ के हवन कुंड में रेणु ने अपनी जिंदगी की आहुति दे दी ।

चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में भारत की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी । सत्ता सुख एवं पद से विरक्त जयप्रकाश ने फिर राजनीति के नेपथ्य में चले जाने का मन बना लिया । रेणु जी ने पैप्टिक अल्सर का आपरेशन करवाने के लिए पीएमसीएच में भर्ती होने का मन बना लिया ।

रूप - अड़तालीस

पीएमसीएच में भर्ती होने के समय रेणु को इस बात का बिलकुल एहसास नहीं था कि बीस दिन बाद उनकी लाश यहाँ से निकलेगी । रेणु जी के आपरेशन की सारी तैयारियां पूरी कर ली गई ; दिल्ली के प्रसिद्ध सर्जन डॉ. यू् एन. शाही को रेणु जी के आपरेशन के लिए बुलाया गया ।

डॉ. शाही ने रेणु जी को एनेस्थेसिया का डोज़ दिया ; रेणु बेहोश हो गए । अचानक आपरेशन थियेटर के दरवाजे पर चीफ अथोरिटी ने दस्तक दी, " इस आपरेशन को रोको ; अभी एक वीआईपी पेशेंट एडमिट हुआ है, पहले उसका आपरेशन जरूरी है ! "

डॉ शाही ने प्रतिवाद किया, "सर, पहले इसका आपरेशन होना जरूरी है ; इसे एनेस्थेसिया का डोज दिया जा चुका है !"

चीफ़ अथोरिटी ने डांटकर डॉ शाही को चुप करा दिया, " आई डोंट केअर ! वीआईपी इज वीआईपी ; आपरेट हिम फर्स्ट ।"

चीफ़ अथोरिटी का आर्डर मानते हुए आपरेशन थिएटर में पहले वीआईपी पेशेंट का आपरेशन हुआ । एनेस्थेसिया के प्रभाव से अचेत रेणु के बॉडी को साइड कर दिया गया । वीआईपी पेशेंट के आपरेशन में करीब ढाई घंटे का वक्त लगा । अब डॉ. शाही ने आपरेशन के लिए रेणु के बॉडी को लाने का आर्डर दिया ।

कंपाउंडर ने चिल्लाकर कहा, " सर, फणीश्वरनाथ को होश आ रहा है ; एनेस्थेसिया का प्रभाव समाप्त हो रहा है ।"

डा. शाही को अचरज हुआ, " ह्वाट ! ... हाउ इज इट पॉसिबल ? "

कंपाउंडर ने डाक्टर से कहा, " सर, इसे फिर से बेहोश करना होगा ।"

एनेस्थेसिया का डबल डोज़ लेने के बाद रेणु पूरी तरह अचेत हो गए ! उनके पैप्टिक अल्सर का आपरेशन किया गया । डॉक्टर को उम्मीद थी कि कुछ घंटों के बाद फणीश्वरनाथ को होश आ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ । रेणु की टूटती सांसों को जोड़ने के लिए कृत्रिम जीवन रक्षक प्रणाली का उपयोग किया गया, परंतु टूटती सांसें जुट न सकी । दिन बीतता गया ; डॉक्टरों की उम्मीदें जाती रही ।

रेणु के परिजनों को सूचित किया गया ; पीएमसीएच आकर बॉडी ले जाएं । औराही हिंगना गांव में शोक के बादल छा गए ; सबके होठों पर एक ही बात, रेणु नहीं रहे ! पूरे औराही हिंगना गाँव का चूल्हा- चौका ठप हो गया । जब तक रेणु की चिता जल नहीं जाती, गाँव का एक भी चूल्हा नहीं जलेगा ; औराही हिंगना गाँव के लोगों का यह संकल्प रेणु के प्रति उनकी सच्ची श्रद्धांजलि है ।

ग्यारह जून सन् सतहत्तर को पीएमसीएच में डॉक्टरों ने कृत्रिम जीवन रक्षक प्रणाली का सहारा हटा लिया ; परिजनों को रेणु की डेड बॉडी सौंप दी गई । निर्णय लिया गया कि पटना में ही गंगा के किनारे रेणु के शव को जलाया जाएगा ।

रेणु की अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए ; खास से लेकर आम तक ! बांस घाट तक आते-आते रेणु की शवयात्रा एक जुलूस में तब्दील हो गया ! गंगा को साक्षी मानकर माटी से उत्पन्न साहित्य का पुतला माटी में विलीन हो गया, जलकर भस्म !

रूप - उनचास

रेणु की मृत्यु के उपरांत पत्र- पत्रिकाओं में रेणु-साहित्य पर विमर्श प्रारंभ हुआ ! हिंदी साहित्य की एक अजीब विशेषता यह है कि यहाँ जिंदा साहित्यकार का 'समग्र मूल्यांकन' नहीं किया जाता है । रेणु की मृत्यु के पश्चात सुधी आलोचकों ने रेणु की भी सुध ली ! सरकार बहादुर ने रेणु की सभी रचनाओं को सरकारी खर्चे पर 'रेणु रचनावली' नाम से छपवाने की घोषणा की !

अंततः सुधी आलोचकगण इस निष्कर्ष पर पहुँचने में कामयाब हो गए कि रेणु सचमुच एक कथाकार, उपन्यासकार और रिपोर्ताज लेखक थे ! अब प्रश्न यह उठा कि उन्हें किस 'वाद' या 'धारा' में रखा जाए? सबने रेणु के साहित्य को अपने-अपने चश्मे से देखना शुरू किया । अलग-अलग चश्मों में रेणु के साहित्य का अलग- अलग रूप दिखाई पड़ा ; प्रगतिवादी, साम्यवादी, समाजवादी, आंचलिक, वैश्विक, जनवादी...!

ईर्ष्यालु कुक्कुरों की टोली अब भी रेणु के खिलाफ भौंकती है,"आंचलिक...! आंचलिक...!! आंचलिक...!!!"

हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्र में सर्वथा एक नई भावभूमि का उन्मेष करने वाले फणीश्वरनाथ नाथ को 'आंचलिक कथाकार' विशेषण से नवाजा गया । पुरस्कारों और सम्मानों को कसौटी एवं मानक मानने वालों की नजर में रेणु महत्वहीन ही बने रहे ; एक 'पद्मश्री' था, वह भी रेणु ने 'पापश्री' कहकर वापस कर दिया !

रेणु के प्रसंशको ने मांग की, "ज्ञानपीठ नहीं तो कम से कम साहित्य अकादमी पर तो रेणु का नैसर्गिक अधिकार है ; रेणु को अकादमी पुरस्कार मिलना ही चाहिए !"

ज्ञानपीठ और अकादमी अवार्ड मांगने से नहीं मिलता है, भैया ! यहाँ पहले सेटिंग और फिर गेटिंग होता है ! गुरु द्विवेदी और चेला नामवर का किस्सा याद है न आपको?

" तोरा ब्याह में हम नटुआ ; हमरा ब्याह में तू नटुआ !"

रेणु जी अपने जीते जी कभी पुरस्कारों के इतने तीव्र आकांक्षी नहीं रहे, जितने उनके प्रशंसक । रेणु जी के लिए साहित्य परिवर्तन का माध्यम था ; पुरस्कार प्राप्त करने का साधन नहीं ! रेणु की मृत्यु के बाद दशक दर दशक उनका साहित्यिक महत्व बढ़ने लगा । मुंशी प्रेमचंद के बाद रेणु को निर्विवाद रूप से हिंदी का दूसरा सबसे बड़ा कथाकार- उपन्यासकार मान लिया गया !

स्कूलों की हिंदी पुस्तकों में रेणु की कहानियाँ छपने लगी ; 'ठेस', 'लाल पान की बेगम', 'संवदिया', 'पंचलैट' और 'रसप्रिया' जैसी कहानी के बिना हिंदी की किताबें सूनी लगने लगी । कालेज और यूनिवर्सिटी की किताबों में रेणु के कहानियों का संग्रह 'ठुमरी' और 'आदिम रात्रि की महक' का बोलबाला हो गया ! लोकसेवा आयोग के पाठ्यक्रम में रेणु के उपन्यास 'मैला आँचल' और 'परती परिकथा' ने अपनी धाक जमा ली ! लोकमानस में पीढ़ी दर पीढ़ी रेणु की कथाओं ने अपनी जड़ें जमा ली ! रेणु की कहानियों को पढते वक्त अपनी मिट्टी की सोंधी गंध, अपनी लोकसंस्कृति और लोकाचरण का तीव्र अहसास होता है ! रेणु की कहानियाँ गहरे कोमल मन पर स्थायी प्रभाव डालती हैं ।

शताब्दी के अंतिम दशक में छद्म समाजवादियों ने रेणु की कहानियों के प्रसंगों का 'उल्टा पाठ' करके उन्हें दलित और स्त्री विरोधी मनुवादी मानसिकता का लेखक सिद्ध करने का प्रयास किया ! समाज के जिस कड़वे सच को रेणु ने अपने कथा संसार में अंकित किया, समाज ने उस सच को अपने खिलाफ रेणु की 'कलम का षड्यंत्र' तक कह दिया ! खैर, रेणु सच लिखने का परिणाम जानते थे ; ज्ञानपीठ और अकादमी पुरस्कार की उम्मीद उन्होंने कभी नहीं की थी !

अकादमी अवार्ड देने वालों को क्या कभी इस बात का अफसोस होगा कि फणीश्वरनाथ रेणु को सम्मानित नहीं करके उन्होंने हिंदी कथा साहित्य के साथ घिनौना मजाक किया है । वामपंथी, दक्षिणपंथी और मध्यममार्गी ; तीनों तरह के बुद्धिजीवी रेणु से खफा दिखते हैं, क्यों? रेणु के साहित्य का नंगा सच किसी के खांचे में फिट नहीं बैठता है ! तो फिर रेणु की खातिर किसी राष्ट्रीय अवार्ड की मांग करना मूर्खतापूर्ण ही है ।

फिर भी, सन् 2021 ई. में रेणु जी की पुण्यतिथि तिथि के अवसर पर 'अखिल भारतीय धानुक एकता महासंघ' के राष्ट्रीय महासचिव श्री उदय मंडल जी ने फणीश्वरनाथ रेणु को 'भारत रत्न' देने की मांग की !

रूप - पचास

फिर भी समाजवादी विचारधारा के लोग स्वयं को रेणु जी के निकट पाते हैं । रेणु के साहित्य को पसंद करने वाले लोग सभी पार्टियों में हैं, लेकिन रेणु की राजनीति पर केवल समाजवादियों का कॉपीराइट है !

हर साल रेणु जी की जयंती और पुण्यतिथि के मौके पर उत्सवों का आयोजन होता है ! बड़े-बड़े धुरंधर नेता और साहित्यकार औराही हिंगना पहुँचकर रेणुधाम की ड्योढ़ी पर मत्था टेकते हैं । राज्य के मुख्यमंत्री रेणु के तीनों पुत्रों को सभा मंच पर बुलाकर घोषणा करते हैं, " रेणु जी का चौथा बेटा मैं हूँ ! फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र से हमारे गठबंधन की सहयोगी पार्टी ने रेणु जी के ज्येष्ठ पुत्र पद्म पराग राय वेणु जी को उम्मीदवार घोषित किया है...! "

दक्षिणवादी पार्टी के टिकट पर रेणु जी के पुत्र वेणुजी सन् 2010 ई. का विधानसभा चुनाव लड़े । गठबंधन के समाजवादियों ने खुलकर वेणुजी की मदद की ।

फारबिसगंज की जनता ने पद्म पराग जी को भारी बहुमत से जिता कर विधानसभा भेज दिया ! अपने पिता फणीश्वरनाथ रेणु के विधायक बनने के अधूरे सपने को पद्म पराग जी सच कर दिखलाते हैं ; ऐसा लगता है जैसे राजनीति ने साहित्य के विरासत को सम्मानित किया हो ! पद्म पराग जी ने विधायक बनकर फारबिसगंज की जनता का पूरा ध्यान रखा ; जनता के हर सुख-दुख में उसका साथ दिया ।

खुद भारत के प्रधानमंत्री ने सीमांचल की एक चुनावी सभा की शुरुआत 'मैला आँचल' की पंक्तियों से की ! परंतु, रेणु की राजनीतिक विरासत को उनकी दक्षिणपंथी पार्टी संभाल नहीं पाई । दक्षिणपंथियों की अनेक नीतियाँ वेणुजी को पसंद नहीं थी ; इसलिए वैचारिक मतभेद बढते चले गए ! अगले चुनाव में दक्षिणवादी पार्टी ने वेणुजी को टिकट नहीं दिया ; वेणुजी भी दक्षिणपंथियों साथ छोड़कर समाजवादियों के साथ आ मिले !

रेणु जी की मृत्यु के पश्चात् उनके वंशजों के सम्मुख एक बड़ी समस्या उत्पन्न हुई ; रेणु जी के साहित्यिक और राजनीतिक विरासत को संभालने-सहेजने की समस्या ! रेणु के पुत्रों ने इस विरासत को सहेजने की भरपूर कोशिश है । रेणु जी के पुत्र शिकायत करते हैं, " मेरे पिता फणीश्वरनाथ रेणु की साहित्यिक विरासत की खूब चर्चा होती है, लेकिन उनके राजनीतिक विरासत को भुलाया जा रहा है !"

वर्तमान राजनीति से रेणु जी के पुत्र संतुष्ट नहीं हैं ! राजनीति के गिरते आदर्शों और साहित्य के ऊंचे मूल्यों को वे एक ही वाक्य में व्यक्त कर देते हैं, "वर्तमान राजनीति में रेणु जी के पात्र खप-सा गए हैं ! "

रेणु के पुत्रों की दिली इच्छा थी कि रेणु जी के संपूर्ण कृतित्व एवं व्यक्तित्व को एक ही छत के नीचे प्रदर्शित किया जाए ! सरकार जब इसके लिए वित्तीय सहायता देने को सहमत हो गई, तब रेणु जी के पुत्रों ने भी दरियादिली दिखाते हुए अपने गाँव की रोड साइड वाली कीमती जमीन बिहार सरकार के राज्यपाल के नाम रजिस्ट्री कर दी, बिलकुल मुफ्त में ! इस जमीन में एक आलीशान भवन बनाया गया है, जिसे रेणु स्मृति भवन के नाम से जाना जाएगा । यदि भविष्य में इस भवन को रेणु म्यूजियम के रूप में विकसित किया जाए, तो हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए यह स्थान किसी पर्यटन स्थल या तीर्थ से कम नहीं होगा !

रेणु जी के पुत्रों के लिए रेणु की साहित्यिक विरासत को सहेजकर रखना सिर्फ एक चुनौती ही नहीं बल्कि प्रतिष्ठा की बात बन गई है । वे इस अमूल्य धरोहर को सहेजने की खातिर अपना सबकुछ दाव पर लगाने के लिए तैयार हैं ! उनका कहना है, " पिताजी के साहित्यिक विरासत को बचाकर रखने में जमीन बिक जाए या बांस ; हम इसकी चिंता नहीं करते !" फिर भी, रेणु की विरासत को सहेजना सिर्फ रेणु के वंशजों का कार्य नहीं है ! सरकार, साहित्यिक संस्थाएँ और साहित्य प्रेमी ; सब मिलकर इस महती कार्य की जिम्मेदारी उठाएं, तो रेणु के वंशजों को बड़ी प्रसन्नता होगी !

रेणु का साहित्य कभी भी राजनीति का पिछलग्गू बनकर नहीं रह सकता ! रेणु ने ऐसे साहित्य की रचना की है, जो हमेशा अंधकार में भटकती हुई राजनीति का पथप्रदर्शक मशाल बनकर सामने आया है ! रेणु जी ने 'सरहद के उस पार' रिपोर्ताज लिखकर छपवाया और उसके दो दिन बाद ही नेपाल में राजनैतिक भूचाल आ गया ! नेपाली क्रांति की चिंगारी को सुलगाने में रेणु के रिपोर्ताज ने केंद्रीय भूमिका निभाई !

रूप - इक्यावन

रेणु जी के साहित्य की असली ताकत है उसकी लोकधर्मिता ! रेणु साहित्य की जड़ें लोकसंस्कृति और लोकाचरण में फैली हुई है । ग्रामीण लोकजीवन का सही मिजाज़ रेणु की कहानियों में ही व्यक्त होता है ! किसान, खेत-खलिहान, हलवाहा, गाड़ीवान, नाच, मेला, लोकगीत... सैकड़ों चीजें रेणु साहित्य को कृषि संस्कृति के लौकिक पक्ष से जोड़ती है ! रेणु की कहानियों के पात्र संकट के क्षण में विचित्र व्यवहार दिखलाते हैं ; एकदम विशिष्ट और मनुष्योचित !

'ठेस' कहानी का सिरचन मानू को स्टेशन पर चिक, शीतलपाटी और एक जोड़ा कुश की आसनी दे आता है, घर पर नहीं ! संवदिया कहानी का हरगोबिन अपने गाँव की इज्जत बचाने के लिए बड़ी बहुरिया का संवाद उसके नैहर वालों से नहीं कह पाता है ! लालपान की बेगम अर्थात बिरजू की माँ दिन में जिस जंगी की पतोहू से लड़ती-झगड़ती दिखाई पड़ती है, रात में उसी को 'अपनी' बैलगाड़ी में बैठाकर नाच दिखाने ले जाती है ! सबका व्यवहार विचित्र और मानवोचित !

रेणु जी अपनी कहानियों में परिवेश या वातावरण को प्रभावशाली तरीके से स्थापित करते हैं ! कहानी का परिवेश पाठकों को इस प्रकार आवृत्त कर लेता है कि पाठक कहानी की दुनिया में ही विचरण करता रह जाता है ! सोते-जागते उसकी आँखों में पात्र और ओठों पर संवाद स्फुरित होते रहते हैं, स्वत: ही !

शो मैन राज कपूर की पत्नी कृष्णा कपूर ने एक बार रेणु जी को बताया था कि 'तीसरी कसम' फिल्म की शूटिंग समाप्त होने के बहुत दिनों बाद तक राज कपूर 'लाट फारम', 'फेनूगिलासी' और 'इस्स... ' जैसे शब्द बरबराते रहते थे ! रेणु के इस प्रभाव से जब राज कपूर जैसे दिग्गज अभिनेता नहीं बच पाए तो साधारण पाठकों की बिसात ही क्या है !

सच कहा जाए तो रेणु की कहानियों का परिवेश ही आंचलिक होता है ; पात्र और परिवेश के बीच की विभाजन रेखा धूमिल हो जाती है तथा परिवेश ही नायक पात्र की भूमिका धारण कर लेता है ।

रूप - बावन

बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में रेणु की लोकप्रियता बढ़ती चली गई । अन्य कहानीकारों की अपेक्षा रेणु की कहानियाँ गंभीर पाठकों को ज्यादा रास आने लगी ! बड़े पर्दे पर एक बार फिर निर्देशक प्रेम प्रकाश मोदी ने रेणु की कहानी 'पंचलैट' पर आधारित बड़ी बजट की फिल्म बनाई गई ! साठ-सत्तर साल पहले लिखी गई कहानी पर बनी फिल्म 'पंचलैट' को युवाओं ने खूब पसंद किया ! सन् 2018 के जागरण फिल्म फिल्म फेस्टीवल में बेस्ट फीचर फिल्म अवार्ड के लिए 'पंचलैट' को नामित किया गया ।

नए जमाने के कई लेखकों ने कहानी लिखने की 'रेणु शैली' की नकल करने का प्रयास किया ; पर रेणु जैसी सफलता किसी को नहीं मिली ! इन असफल लेखकों को रेणु से बहुत ईर्ष्या होती है । 'रेणु' नाम सुनते ही इनके तन-बदन में आग जैसी जलन पैदा हो जाती है ! रेणु से बदला लेने का उपाय इन ईर्ष्यालुओं ने सोच लिया है !

पटना के कदमकुआँ के राजेन्द्र नगर में रेणु जी का जो मकान है, वहीं रेणु जी की अधिकांश अप्रकाशित रचनाएँ और पांडुलिपियाँ रखी हैं ! इन किताबों को यदि गायब करवा दिया जाए, तो जलते हुए दिल में ठंडक पड़ेगी...!

नकलची ईर्ष्यालुओं ने एक दिन मौका देखकर रेणु जी के घर में साहित्यिक डाका डाल दिया ! रेणु की कई रचनाओं की पांडुलिपियों के साथ चोरों को 'कागज की नाव' उपन्यास की हस्तलिखित प्रति भी हाथ लग गई । 'कागज की नाव' उपन्यास में रेणु जी ने फारबिसगंज से चुनाव लड़ने और हारने के अपने अनुभव का वर्णन किया था, विस्तार से ! अधूरा रह जाने के कारण रेणु इस उपन्यास को प्रकाशित नहीं करवा पाए थे । रेणु जी की अनेक दुर्लभ चिट्ठियां भी ये ईर्ष्यालु चोर अपने साथ उठा ले गए !

रेणु जी के परिजनों ने पुलिस थाने इस चोरी की रिपोर्ट लिखवाई । जांच करने आई पुलिस को भी अचरज हुआ ; घर में रखे सोना, जेवर, नकदी रुपया, फ्रीज, टी.वी. आदि को चोरों ने हाथ भी नहीं लगाया और रेणु जी की सभी पाडुलिपियां गायब, अजगैबी बात !

इस चोरी की घटना पर अफ़सोस करते हुए रेणु के उत्तराधिकारियों ने कहा," यह चोरी किसी किताब की नहीं बल्कि रेणु जी की आत्मा की चोरी हुई है ! "

औराही हिंगना में सरकार ने पौने दो करोड़ रुपये की लागत से रेणु स्मृति भवन बनवाया है । रेणु की विरासत को यहाँ संभालकर रखने की योजना बनाई गई है । इस भवन के ताले तोड़कर भी चोरों ने नौ लाख रुपये का सामान चुरा लिया !

रेणु की विरासत की चोरी पर उनके उनके पुत्र मर्माहत हैं । वे दुखी मन से कहते हैं, "यह चोरी नहीं बल्कि रेणु जी की दूसरी मौत के समान है !"

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