बहादुर राजकुमारी : कश्मीरी लोक-कथा

Bahadur Rajkumari : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक जगह दो राजा राज्य करते थे। उनमें से एक राजा के बहुत सुन्दर बेटा था और दूसरे राजा के बहुत सुन्दर बेटी थी। दोनों राजाओं के बच्चे शादी के लायक थे इसलिये दोनों राजा अपने अपने बच्चों के लिये जीवन साथी ढूँढने के लिये लोगों को भेज रहे थे।

किस्मत की बात कि दोनों राजाओं के दूत आपस में मिले और बातचीत के बीच उन्होंने एक दूसरे को अपने अपने उद्देश्य बताये। उन दोनों को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ जब उनको यह पता चला कि दोनों के बाहर निकलने का उद्देश्य एक ही था और दोनों राजा भी आपस में एक दूसरे की टक्कर के थे। इस तरह राजकुमार और राजकुमारी का जोड़ा बहुत अच्छा बनता था।

जब राजाओं ने अपने अपने दूतों से उनकी बात सुनी तो उन्होंने आपस में बात की और उन दोनों की शादी तय हो गयी। एक दिन तय किया गया और दुलहा दुलहिन के घर पहुँच गया। शादी की रस्में सब बहुत शानदार तरीके से पूरी की गयीं।

लेकिन उनकी खुशियों पर एक बादल छा गया। उनकी खुशी कितने कम समय के लिये थी। जब दुलहा अपनी दुलहिन को ले कर घर लौट रहा था तो रात को वह एक बागीचे में रुका। इत्तफाक से वह बागीचा परियों का था।

ये परियाँ रात को वहाँ आती थीं। उस रात जब वे वहाँ आयीं तो वहाँ राजकुमार को देख कर वे उससे प्रेम कर बैठीं। उन्होंने उसको अपना बनाने का सोच लिया। उन्होंने उस पर ऐसा जादू डाला कि वह मौत जैसी गहरी नींद सो गया।

अगली सुबह राजकुमारी और दूसरे लोगों ने उसको उठाने की बहुत कोशिश की पर सब बेकार। उन सबको लगा कि वह मर गया था सो उन्होंने उसका दुख मनाया और उसके लिये रोये जैसे कि लोग किसी मरे आदमी के लिये रोते हैं जिससे वे अब कभी बात नहीं कर पायेंगे। यह उनके लिये बड़ी मुश्किल की घड़ी थी। तभी वहाँ पर सूडाब्रोर और बूडाब्रोर दो चिड़ियें आयीं और जहाँ लोग राजकुमार के लिये रो रहे थे उस जगह के पास ही एक पेड़ की शाख पर आ कर बैठ गयीं और आपस में बातें करने लगीं।

सूडाब्रोर बोला — “इन लोगों को इस राजकुमार को दफन नहीं करना चाहिये।”

बूडाब्रोर बोला — “क्यों?”

सूडाब्रोर बोला — “क्योंकि यह अभी मरा नहीं है। शायद कुछ दिन में ही यह ज़िन्दा हो जायेगा।”

उनके ये शब्द राजकुमारी के कानों में अमॄत की तरह से पड़े। उसने तुरन्त ही यह हुकुम दिया कि राजकुमार के शरीर को वहीं पड़ा रहने दिया जाये जहाँ वह था। उसने उन सबसे यह वायदा किया कि वह इस हुकुम की वजह उनको बाद में बतायेगी।

इस हुकुम के अनुसार राजकुमार के शरीर को उसी बागीचे में छोड़ दिया गया और बाकी सब लोग अपने अपने घरों को चले गये। दुखी दुलहिन और उसकी तरफ के लोग एक तरफ चले गये दुलहे की तरफ के लोग दूसरी तरफ चले गये।

राजकुमारी के माता पिता को अपनी बदनसीब बेटी की बदकिस्मती की बात सुन कर बहुत दुख हुआ। राजकुमारी भी दिन रात रोती रहती। कोई चीज़ उसको कोई आराम नहीं दे पाती। हर पल वह राजकुमार के लौटने की बाट तकती रहती पर वह तो आया नहीं।

आखिर जब उससे अपना दुख और नहीं सहा जा सका तो उसने अपने पिता से महल छोड़ कर इधर उधर घूमने की इजाज़त माँगी जहाँ भी उसकी इच्छा होती। हालाँकि राजा उसको इस तरीके से कहीं जाने देना नहीं चाहता था पर अपने मन्त्रियों की सलाह पर उसने उसको जाने की इजाज़त दे दी।

मन्त्रियों का विचार था कि अगर राजकुमारी इसी तरह से यहाँ कुछ दिन और रही तो कहीं वह पागल न हो जाये। सो उनकी सलाह पा कर राजकुमारी बाहर घूमने चल दी। वह दुखी सी चारों तरफ घूमने लगी। हर आने जाने वाले वह पूछती रहती “क्या तुमने राजकुमार को कहीं देखा है?” “क्या तुमने राजकुमार को कहीं देखा है?”

इस तरह घूमते घूमते और राजकुमार के बारे में पूछते पूछते उसको कई दिन बीत गये पर कोई भी उसको राजकुमार के बारे में कुछ न बता सका।

आखिर उसको एक बूढ़ा मिला। उसने उससे भी यही पूछा “क्या तुमने राजकुमार को कहीं देखा है?”

बूढ़ा बोला — “मैं एक बागीचे के पास से गुजर रहा था कि मैंने वहाँ जमीन पर एक बहुत सुन्दर लड़के को सोते हुए देखा। मुझे यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस नौजवान ने आराम करने के लिये ऐसी जगह क्यों चुनी सो मैं वहाँ रुक गया।

लो कुछ पल बाद ही मैंने कुछ परियाँ वहाँ आती देखीं। उन्होंने उसके सिर के नीचे एक जादू की छड़ी रखी तो वह तो उठ कर बैठा हो गया और उनसे बातें करने लगा। कुछ देर बाद उन परियों ने वह जादू की छड़ी उसके पैरों के नीचे रखी तो वह फिर से लेट गया और सो गया।

मैंने बस यही देखा। मेरी तो समझ में आया नहीं कि इस सबका मतलब क्या था।”

राजकुमारी बोली — “आश्चर्य। क्या तुम मुझे उस बागीचे तक ले जा सकते हो जहाँ वह नौजवान सोया हुआ था।”

बूढ़ा बोला — “हाँ हाँ क्यों नहीं।” कह कर वह उसको उस बागीचे की तरफ ले गया जहाँ वह राजकुमार सोया हुआ था। जब वे वहाँ पहुँचे तो राजकुमार का शरीर वहाँ दिखने में बेजान जैसा पड़ा हुआ था।

राजकुमारी ने देखा कि जादू की छड़ी अभी भी राजकुमार के पैरों के नीचे रखी हुई थी। उसने तुरन्त ही वह छड़ी उसके पैरों के नीचे से निकाल ली और उसके सिर के नीचे रख दी। जैसा कि उस बूढ़े ने उसे बताया था वह राजकुमार उठ कर बैठा हो गया। उठते ही उसने राजकुमारी से पूछा — “तुम कौन हो?”

राजकुमारी बोली — “मैं तुम्हारी पत्नी हूँ। क्या तुम मुझे नहीं जानते?”

राजकुमार ने पूछा — “तुम यहाँ आयीं कैसे?”

राजकुमारी बोली — “इन बूढ़े बाबा की सहायता से।” कह कर उसने उस बूढ़े की तरफ इशारा कर दिया जो डर के मारे कुछ दूरी पर खड़ा था। वह फिर बोली — “आओ उठो और जल्दी से इस भयानक जगह से कहीं दूर चलो।”

राजकुमार बोला — “अफसोस। मैं नहीं जा सकता। परियों को मेरे यहाँ न होने का बहुत जल्दी ही पता चल जायेगा। वे मेरे पीछे पीछे आ कर मुझे ढूँढ लेंगी और मुझे मार देंगीं। अगर तुम मुझे प्यार करती हो तो यह छड़ी तुम मेरे पैरों के नीचे रख दो और यहाँ से चली जाओ।”

“नहीं कभी नहीं। ऐसा नहीं हो सकता।”

राजकुमार बोला — “तो फिर ऐसा करो कि तुम इस पेड़ के खोखले तने में छिप जाओ क्योंकि तुम यहाँ सुरक्षित नहीं हो। परियाँ यहाँ कभी भी आ सकती हैं।”

राजकुमारी ने वैसा ही किया। जैसे ही वह पेड़ के खोखले तने में जा कर छिपी परियाँ वहाँ आयीं।

उनमें से एक बोली — “उँह यहाँ किसी आदमी की खुशबू आ रही है।”

दूसरी बोली — “लगता है यहाँ कोई आदमी आया है।”

कह कर दो तीन परियाँ उस आदमी की खोज में इधर उधर गयीं जो उनकी जगह देख गया था पर उनको कोई मिला नहीं। उसके बाद उन्होंने राजकुमार को जगाया और उससे पूछा कि क्या वह किसी आदमी को जानता था जो उसके आस पास घूम रहा हो। राजकुमार ने साफ मना कर दिया कि उसने किसी आदमी को वहाँ आस पास घूमते नहीं देखा।

वे बोलीं — “पर हमारा पक्का विश्वास है कि यहाँ कोई आदमी आया था क्योंकि आदमी की खुशबू हवा में फैली हुई है। कोई बात नहीं हम लोग कल यह जगह छोड़ कर किसी दूसरी जगह चले जायेंगे।”

सो अगली सुबह परियों ने सारा बागीचा देखा क्योंकि वह बागीचा बहुत बड़ा था और अपने लिये कोई दूसरी जगह ढूँढ ली जहाँ उनको लगा कि वहाँ कोई आदमी नहीं आ पायेगा।

जब वे वहाँ नहीं थीं तो राजकुमार ने राजकुमारी से कहा — “प्रिये अब तुम क्या करोगी। वे मुझे किसी दूसरी जगह ले जायेंगी और मैं फिर तुम्हें कभी भी नहीं देख पाऊँगा।”

बहादुर राजकुमारी बोली — “नहीं ऐसा कभी नहीं होगा। तुम देखना मैं कुछ फूल इकट्ठा करूँगी। तुम जब यहाँ से जाओ तो इन फूलों को अपने पीछे पीछे बिखेरते जाना जिससे मुझे पता चल जायेगा कि तुम कहाँ गये हो।”

कह कर राजकुमारी ने राजकुमार को एक खास किस्म के फूलों का एक गुलदस्ता ला कर दिया। राजकुमार ने उन फूलों को अपने कपड़ों में छिपा लिया और राजकुमारी फिर से अपने उसी पेड़ के खोखले तने में जा कर छिप गयी।

कुछ देर बाद परियाँ फिर वहाँ आयीं और राजकुमार को उन्होंने अपने पीछे पीछे आने के लिये कहा। जब राजकुमार उनके पीछे जा रहा था तो वह फूल अपने पीछे फेंकता जा रहा था।

अगले दिन राजकुमारी उन फूलों के सहारे चलती गयी जब तक कि वह एक बहुत बड़ी और शानदार बिल्डिंग के पास नहीं आ गयी जो एक महल की तरह लग रही थी। यह एक देव का घर था जिसने परियों को भी बहुत तरह के जादू सिखा रखे थे।

राजकुमारी बिना किसी डर के उस महल में अन्दर चली गयी। उसने देखा कि वहाँ अन्दर तो कोई भी नहीं था तो वह सुस्ताने के लिये एक नीचे से स्टूल पर बैठ गयी।

करीब एक घंटे के बाद देव आया। राजकुमारी को देख कर उसने सोचा कि शायद वह उसकी बेटी है जिसको एक दूसरा देव जबरदस्ती उठा कर ले गया था।

वह उसकी तरफ दौड़ता हुआ बोला — ओह मेरी प्यारी बेटी। तुम वापस कैसे आयीं। उस नीच से तुम कैसे बच पायीं।”

राजकुमारी ने तुरन्त ही हालात का अन्दाजा लगा लिया वह बोली — “जब वह सो रहा था पिता जी तब मैं वहाँ से भाग निकली।”

कुछ समय तक राजकुमारी देव के पास रही। वहाँ उसको देव और परियाँ देव की बेटी ही समझते रहे। वह वहाँ जो चाहती वह करती थी और जहाँ चाहती वहाँ जाती थी। उसकी प्रार्थना पर देव ने उसको कई जादू भी सिखा दिये थे जैसे किसी आदमी को मरा हुआ कैसे दिखाना फिर कैसे उसे ज़िन्दा करना छिपी हुई चीज़ों का पता लगाना आदि आदि।

एक दिन उसने अपनी ताकत से यह पता लगा लिया कि राजकुमार एक परी के कान के बुन्दे में छिपा हुआ है। उसने यह बहाना बनाया कि वह बुन्दा उसको बहुत पसन्द था इसलिये वह उसको पहनने के लिये दे दिया जाये। पहले तो परी ने कुछ ना नुकुर की पर फिर उसको देव की बेटी होने के नाते उस बुन्दे को दे देना पड़ा लेकिन इस शर्त पर कि वह बुन्दा वह उसको अगले दिन दे देगी।

राजकुमारी इस बात पर राजी हो गयी। जैसे ही परी ने उसको अपना बुन्दा दिया और वह वहाँ से चली गयी राजकुमारी ने अपने जादू से राजकुमार को उसमें से बाहर निकाल लिया।

राजकुमार ने बाहर आते ही इधर उधर देखा तो राजकुमारी ने उससे पूछा — “क्या तुम मुझे पहचानते हो? या तुम मुझे नहीं जानते? मैं तुम्हारी पत्नी हूँ। तुम्हारे लिये मैंने अपने पिता का घर छोड़ा। तुम्हारे लिये मैंने उस बागीचे में जाने की हिम्मत की जिसमें तुम लेटे हुए थे। तुम्हारे लिये मैंने देव के मकान में घुसने की जुरत की। क्या तुम मुझे नहीं पहचानते?”

राजकुमारी बोली — “आओ चलें। मैं तुम्हें अब बताऊँगी कि तुम्हें क्या करना है। देव और उसके सब आदमी यह समझते हैं कि मैं उसकी बेटी हूँ जिसे कोई दूसरा देव उससे जबरदस्ती छीन कर ले गया था।

अब मैं तुम्हें अपने पिता देव के पास ले जाऊँगी और उससे कहूँगी कि जब मैं उस भगाने वाले देव से बचने की कोशिश में भाग रही थी तो तुम मुझे मिल गये। तुम्हारी सुन्दरता देख कर मैं तुम्हारे ऊपर रीझ गयी और मैंने तुमसे शादी कर ली।

मैं उसको यह भी बताऊँगी कि तुम एक शाही खानदान के हो इसलिये वह हमारी शादी को मान लें। जब वह यह सुनेगा तो वह बहुत खुश होगा। तुम डरना नहीं। आओ और देखो कि क्या क्या होता है।”

राजकुमारी की बात ठीक निकली। पिता देव अपनी बेटी की शादी की बात सुन कर बहुत खुश हुआ। उसने अपनी बेटी की शादी की खुशी में एक बहुत बड़ी दावत दी जिसमें उसने सारी परियों को बुलाया।

राजकुमार और राजकुमारी देव के पास कुछ हफ्तों तक आनन्द से रहे। फिर राजकुमार ने देव से अपने माता पिता से मिलने की और राजकुमारी को भी उनसे मिलवाने की इच्छा प्रगट की। हालाँकि देव उन दोनों को अपने पास ही रखना चाहता था पर फिर उसको राजकुमार को घर जाने की इजाज़त देनी ही पड़ी। उसने उनके लिये बहुत सारी भेंटें इकट्ठी करके उनके साथ रख दीं और उनसे जल्दी वापस आने के लिये कहा।

और बहुत सारी चीज़ों के अलावा उसने उनको एक पीठ भी दिया जिस पर जो कोई बैठ जाता था वह उसको उसकी मनचाही जगह पहुँचा देता था। यह राजकुमार और राजकुमारी के लिये तो बहुत ही काम की चीज़ थी।

उन्होंने उस पीठ में अपना खजाना भरा और उसके ऊपर बैठ कर देव और सारी परियों को विदा कह कर राजकुमारी के पिता के राज्य चले गये। वे जल्दी ही वहाँ पहुँच गये।

क्योंकि राजा की बेटी घर वापस लौट आयी थी और उसका पति भी मरा नहीं था ज़िन्दा था और ठीक था और उसके साथ था सो उस दिन महल में ही नहीं बल्कि सारे शहर में बहुत खुशियाँ मनायी गयीं।

(सुषमा गुप्ता)

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