बहादुर और चतुर दरजी : परी कहानी

Bahadur Aur Chatur Darji : Fairy Tale

एक छोटे से गाँव में एक दरजी रहता था। उसने अपने बेटे को भी दरजी का काम सिखा दिया, ताकि वह गाँव में रहकर अपनी रोजी-रोटी कमा सके। एक दिन सुबह-सुबह दरजी का लड़का अपनी दुकान में काम कर रहा था। तभी वहाँ एक मुरब्बा बेचनेवाली आई और सड़क पर जोर-जोर से आवाज लगाने लगी, 'मुरब्बा ले लो, बढ़िया ताजा मुरब्बा ले लो।'

दरजी के लड़के ने जब वह आवाज सुनी, तो याद आया कि उसने तो अभी तक सुबह का नाश्ता ही नहीं किया। जरूरी काम खत्म करने की वजह से उसे सुबह-सुबह दुकान पर आना पड़ा था। उसे अपने थैले में रखी डबल रोटी की याद आई, जो वह घर से चलते समय साथ लेकर आया था। उसने सोचा कि अब वह अपना नाश्ता ताजा और बढ़िया आँवले के मुरब्बे के साथ ही करेगा। मुरब्बा खाकर उसमें ताकत भी आएगी। इतना सोचकर उसने मुरब्बा बेचनेवाली औरत को बुलाया। मुरब्बा बेचनेवाली ने सोचा कि दरजी का लड़का सुबह खूब सारा मुरब्बा खरीद लेगा, पर लड़के ने जब केवल ढाई सौ ग्राम मुरब्बा तौलने के लिए कहा तो उसे बहुत गुस्सा आया। मुरब्बा देकर और पैसे लेकर वह बड़बड़ाती हुई वहाँ से चल दी। दरजी के लड़के ने मुरब्बा का एक आँवला निकालकर खा लिया और उसकी चासनी डबल रोटी में लगा दी। खाने का सामान एक प्लेट में रखकर वह अपने काम में जुट गया। जब उसे अपने खाने का ध्यान आया तो उसने देखा कि उसकी सारी प्लेट पर ढेर सारी मक्खियाँ बैठी हैं। उसने मक्ख्यों को हाथ से उड़ाया, पर मक्खियाँ जरा सा उड़ी और फिर प्लेट पर धावा बोल देतीं। यह सब देखकर लड़के को बहुत गुस्सा आया। उसने अपने हाथ में लिये हुए सिलाई करनेवाले कपड़े को अपनी प्लेट पर दे मारा। कुछ मक्खियाँ उड़ गई और कुछ उसके कपड़े की चोट से मर भी गई। दरजी के लड़के ने जब मरी मक्खियों को गिना तो वे पूरी सात मक्खियाँ थीं। वह अपनी बहादुरी पर बहुत खुश हुआ। उसने सोचा कि वह कितना बहादुर है; उसने एक ही बार में सात को मार डाला। उसे अपनी बहादुरी का काम अपने गाँववालों को ही नहीं, बल्कि पूरे संसार को बताना चाहिए-ऐसा सोचकर उसने झट से कपड़े की दो पट्टियाँ बनाई और उनपर लिखा, 'एक ही वार में सात।' एक पट्टी उसने अपने गले में डाल ली और दूसरी को अपने पेट पर बाँध लिया तथा सिलाई का अपना काम छोड़कर अपनी दुकान में रखा पनीर का टुकड़ा लिया और छोटी चिड़िया, जो पिंजरे में थी, अपने हाथ में उठाई और दुकान बंद करके वह अपनी बहादुरी दिखाने के लिए अपने गाँव से निकल पड़ा। वह अपनी बहादुरी पर इतना खुश था कि बहुत दूर तक पैदल चलने पर भी बिलकुल नहीं थका। जंगल और खेत पार करने के बाद वह एक पहाड़ी से गुजर रहा था। वहीं पर उसे एक बहुत बड़े शरीर वाला आदमी बैठा हुआ दिखाई दिया। वह दरजी तेजी से चलकर उस आदमी के पास पहुंचा और उसे अपनी कमर में बँधी तथा गले में लटकी पट्टी दिखाकर बोला, 'तू यह पट्टी पढ़ सकता है, तो तुझे पता लग जाएगा कि मैं कौन हूँ।'

वह आदमी उस नगर का पहलवान था। जब उसने पढ़ा कि एक ही वार में सात, तो उसने सोचा कि उसने जरूर एक ही बार में सात आदमी मार दिए होंगे, पर उसके शरीर को देखकर पहलवान को लड़के की बात पर विश्वास नहीं हुआ। पहलवान ने एक पत्थर उठाया और उसके दो टुकड़े कर दिए; फिर उस लड़के के हाथ में एक पत्थर देकर उसके दो टुकड़े करने के लिए कहा। लड़के ने बड़ी चतुराई से वह पत्थर अपनी जेब में रख लिया और चुपके से पनीर निकालकर उसके दो टुकड़े कर दिए। अपने पत्थर का रंग बदला हुआ देखकर और उसके दो टुकड़े देखकर पहलवान के दिल में उस लड़के के लिए थोड़ी इज्जत पैदा हो गई, पर अब वह एक बार फिर उस लड़के की बहादुरी को परखना चाहता था। उसने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और बोला, 'देखना, मैं इस पत्थर को कितना ऊँचा फेंकता हूँ। फिर मेरे बाद तुम भी एक पत्थर ऊपर की ओर फेंकना। फिर देखते हैं कि किसका पत्थर ज्यादा ऊपर जाता है। जिसका पत्थर ज्यादा ऊँचा जाएगा, वही बहादुर माना जाएगा।' इतना कहकर उस पहलवान ने एक बड़ा सा पत्थर ऊपर की ओर फेंका। पत्थर काफी ऊँचा गया, पर फिर जमीन पर आ गिरा। दरजी बोला, 'तुम देखना, मेरा पत्थर कभी वापस नीचे नहीं आएगा।' और इतना कहकर उसने अपनी जेब से वह चिड़िया निकाली, जो वह अपनी दुकान से लाया था और ऊपर हवा में उड़ा दी। चिड़िया फुर्र से हवा में उड़कर गायब हो गई। पहलवान ने देखा कि उसका पत्थर तो सचमुच गायब हो गया। जरूर इस दरजी के हाथ में जादू है। यह सच ही कह रहा है कि इसने एक बार में सात को मार दिया। इससे लड़कर वह क्यों अपनी हड्डी-पसली तुड़वाए। पहलवान ने उस लड़के को बहादुर मान लिया और बिना लड़े वहाँ से उठकर चला गया। अब तो दरजी को और भी अभिमान हो गया कि वह बहादुर ही नहीं, बल्कि चतुर भी है। उसने अपनी चतुराई से इतने बड़े पहलवान को भगा दिया।

अब वह अपना भाग्य आजमाने के लिए आगे चल पड़ा और चलते-चलते एक राजा के महल के सामने पहुँच गया। उस महल के आगे एक बहुत सुंदर बाग था। उसकी हरी-हरी घास पर वह लेट गया। थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद आ गई। जब राजा के सेवक वहाँ से गुजरे तो एक अजनबी को सोता देखकर उसके पास पहुंचे और उसके गले तथा पेट पर बँधी हुई पट्टी पढ़कर बहुत हैरान हुए। सोचने लगे, 'इतने बहादुर आदमी को तो राजा को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए रख लेना चाहिए। ऐसा आदमी आसानी से कहाँ मिलता है। कुछ सेवक दौड़कर राजा के दरबार में पहुंचे और उस लड़के के बारे में बताया। राजा ने अपने सिपाहियों को भेजकर उसे अपने दरबार में बुलवाया। राजा ने जब उस लड़के के गले में बँधी पट्टी को पढ़ा तो बहुत खुश हुआ। राजा ने उसे अपनी सेना में सेनापति बना दिया। राजा के सैनिकों को यह बात ठीक नहीं लगी। उन्होंने सोचा कि एक दुबला-पतला नौजवान एक ही वार में सात को कैसे मार सकता है। यह सब झूठ है। सेना का पहलेवाला सेनापति इस निर्णय से बहुत ही नाराज था, पर उस नए सेनापति से झगड़ा मोल लेने के लिए वह तैयार नहीं था कि अकेला ही सात को मार सकता है, तो वह अकेले आदमी को यों ही मसलकर रख देगा।

उस सेनापति ने अपने सभी विश्वसनीय साथियों को बुलाया और उन सबसे सलाह की कि नए सेनापति से कैसे छुटकारा पाया जाए। राजा की सेना के कुछ प्रमुख लोग राजा के पास पहुंचे और उन्हें अपनी नाराजगी बताई। राजा को यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि उसके पुराने विश्वसनीय सैनिक उस नए सेनापति के अधीन काम करना नहीं चाहते। इससे तो अच्छा है कि उस नए सेनापति को ही इस पद से हटा दे, पर उस दरजी की बहादुरी के कारण राजा भी उससे दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था। अपने दरबार के अन्य लोगों से सलाह ली और फिर अंत में उससे छुटकारा पाने की तरकीब निकाली। उसने नए सेनापति के पास संदेश भेजा कि वह सेनापति बनना चाहता है तो उसे अपनी बहादुरी की परीक्षा देनी होगी। इस समय उसके राज्य में दो भयंकर राक्षस चारों ओर उत्पात मचा रहे हैं। आम जनता का जीवन दूभर हो गया है। अगर वह उन दोनों राक्षसों को मार दे तो उसका विवाह वह अपनी बेटी से कर देगा और साथ में उसे आधा राज्य भी मिलेगा। इन दोनों राक्षसों को मारने के लिए वह कुछ सिपाही भी अपने साथ ले जा सकता है।

लड़का राजा की शर्त मान गया और बोला, 'मुझे सिपाहियों की कोई जरूरत नहीं है। मैं एक ही वार में सात को खत्म कर सकता हूँ। वे तो केवल दो ही हैं। इन दो से मुझे कोई डर नहीं है।' इतना कहकर वह तलवार लेकर राक्षसों को मारने के लिए निकल पड़ा। राजा ने कुछ सिपाही उसके पीछे भेज दिए, पर जब वह जंगल के पास पहुँचा तो उसने उन सिपाहियों को जंगल के बाहर रुकने का आदेश दिया और स्वयं जंगल में घुस गया। वहाँ उसने चारों तरफ देखा, तो उसे एक विशाल पेड़ के नीचे दो राक्षस सोते हुए दिखाई दिए। उन दोनों के खर्राटे इतने भयंकर थे कि आस-पास के जानवर भी डर के मारे इधर-उधर भाग रहे थे। दरजी को एक तरकीब सूझी। उसने कुछ मोटे-मोटे पत्थर उठाकर अपनी जेबों में भर लिये और फिर उसी पेड़ पर चढ़ गया, जिसके नीचे वे दोनों राक्षस सोए हुए थे।

पेड़ पर चढ़ने के बाद इसने पहले एक राक्षस की छाती पर, फिर दूसरे राक्षस की छाती पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। पत्थर की चोट से दोनों राक्षसों की नींद खुल गई। एक राक्षस ने सोचा कि उसका साथी उसे पत्थर मार रहा है, तो दूसरे ने भी यही सोचा। पहलेवाले को दूसरे पर गुस्सा आया, तो उसने दूसरे साथी की नाक पर एक चूसा जमा दिया। इसपर दूसरे साथी को भी गुस्सा आ गया और उसने उठकर अपने साथी की नाक पर एक चूंसा जमा दिया। इधर जब दोनों ने आपस में लड़ना शुरू किया तो दरजी ने चुपके से कभी एक के सिर पर, तो कभी दूसरे के सिर पर पत्थर गिराने शुरू कर दिए। पत्थर खाकर दोनों ही राक्षस एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए और आपस में पूरी ताकत से लड़ने लगे। दरजी ने एक बार भारी पत्थर दोनों के सिरों पर गिराए, तो उन दोनों ने आस-पास के पेड़ उखाड़कर आपस में मार-पीट शुरू कर दी। वह दोनों तब तक लड़ते रहे जब तक दोनों मरणासन्न नहीं हो गए। जब दोनों राक्षस धरती पर गिर गए और उनमें से कोई नहीं उठा तो दरजी पेड़ से उतरा और अपनी तलवार निकालकर उन दोनों की छाती में घोंप दी। खून से लथपथ तलवार को लेकर वह राजा के सिपाहियों के पास जा पहुँचा और बोला, 'मैंने उन दोनों राक्षसों का काम तमाम कर दिया। उन दोनों ने पेड़ उखाड़कर मुझपर हमले किए, पर उनकी मेरे आगे एक न चली, क्योंकि मैं तो एक साथ सात का सफाया कर सकता हूँ।'

राजा के सिपाहियों ने सोचा कि यह कैसी लड़ाई थी, जिसमें इस लड़के को कहीं भी चोट नहीं लगी। उन सिपाहियों को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ, तो उन्होंने उन दोनों राक्षसों को देखने की अनुमति माँगी, ताकि वे राजा को सच्ची बात बता सकें। जब सिपाही जंगल में उस स्थान पर पहुंचे, जहाँ पर दोनों राक्षस मरे पड़े थे और आस-पास के पेड़ भी उखड़े पड़े थे, तब उन्हें उस लड़के की बात पर विश्वास करना ही पड़ा।

दरजी ने खून से सनी तलवार राजा के पास रख दी और राजकुमारी से अपना विवाह करने और आधा राज्य देने की माँग की, पर राजा इसके लिए तैयार नहीं था। वह बोला, 'अगर तुम मेरी बेटी से विवाह करना चाहते हो तो तुम्हें अपनी बहादुरी के कुछ और कारनामे दिखाने पड़ेंगे।'

दरजी ने राजा की यह बात भी मान ली और राजा से दूसरा काम पूछा। राजा बोला, 'इस राज्य के पूरब के जंगल में एक जंगली भैंसा कहीं से घुस गया है, जिसने कई आदमियों को अपने सींगों से घायल कर दिया और सब खेती नष्ट कर दी। अगर तुम उसको मार डालो तो मैं अपनी बेटी से तुम्हारा विवाह करने की सोचूंगा।'

दरजी इस काम के लिए भी झट से तैयार हो गया, क्योंकि उसे अपनी चतुराई पर पूरा भरोसा था। एक बहुत मोटी रस्सी और एक कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल में उसे दूर से एक भयंकर भैंसा अपनी ओर आता हुआ दिखाई दिया। वह वहीं एक बड़े से पेड़ के सामने खड़ा हो गया। जैसे ही भैंसा उसकी ओर बढ़ा, वह तेजी से छलाँग मारकर उस पेड़ के पीछे छुप गया और भैंसे के दोनों सींग पेड़ के तने में घुस गए। चूँकि भैंसा पूरे जोर से उस दरजी पर झपटा था, अत: बहुत कोशिश करने पर भी वह अपने दोनों सींग पेड़ के तने से नहीं निकाल सका। दरजी ने झट से उस जंगली भैंसे के गले में मोटा रस्सा डाल दिया और कुल्हाड़ी से पेड़ के तने को छीलकर उसके सींग निकाल दिए। फिर भैंसे के पैरों को बाँध दिया और उसे घसीटकर राजा के पास ले आया। राजा उस लड़के को भयंकर भैंसे के साथ देखकर हैरान रह गया। उसे महसूस हुआ कि इस लड़के से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है।

इस बार लड़के ने फिर राजकुमारी से अपना विवाह करने की माँग की और आधा राज्य भी माँगा। राजा ने उससे छुटकारा पाने के लिए फिर बहाना ढूँढ़ना शुरू कर दिया। वह बोला, 'ठीक है, अभी एक काम और बाकी है। अगर तुम इसे पूरा कर दोगे तो मैं तुम्हारा विवाह अपनी बेटी से जरूर कर दूंगा और तुम्हें आधा राज्य भी दे दूँगा।'

लड़के ने उस राजा से काम पूछा, तो राजा बोला, 'मेरे राज्य के पश्चिमी भाग में एक भयंकर जंगली सूअर रहता है। अगर तुम उस सूअर को मार डालोगे तो मैं तुम्हारा विवाह अपनी बेटी से अवश्य कर दूंगा। तुम इस काम के लिए कुछ शिकारी भी ले जा सकते हो।'

दरजी ने कुछ शिकारी अपने साथ लिये और खुद एक तलवार लेकर जंगली सूअर को पकड़ने चल पड़ा। जंगल में घुसने से पहले उसने उन शिकारियों को जंगल के बाहर उसकी प्रतीक्षा करने के लिए कहा और खुद अपनी तलवार लेकर जंगल के अंदर चला गया। वह धीरे-धीरे सावधानी के साथ जंगल की ओर बढ़ने लगा, पर एक छोटे से चर्च के पास आकर रुक गया, क्योंकि कहीं से उसे जंगली सूअर की भयंकर आवाजें सुनाई दे रही थीं। अगले ही पल सूअर तेजी से उसी चर्च की ओर आता हुआ दिखाई पड़ा। उसे देखकर वह जोर से चीखा और फिर चीं-चीं करता हुआ उसकी ओर लपका। वह झट से पासवाले चर्च में घुस गया और वहाँ से फिर चर्च की ऊँची खिड़की से बाहर कूद गया। उसका पीछा करते-करते जंगली सूअर भी चर्च में घुस गया, पर वहाँ उसे दरजी नहीं मिला। दरजी ने फौरन दौड़कर चर्च का फाटक बंद कर दिया। इधर चर्च की खिड़की काफी ऊँचाई पर थी। जंगली सूअर उस खिड़की तक नहीं पहुँच सका और चर्च के अंदर ही भाग-दौड़ करता रहा। दरजी ने जंगल के बाहर खड़े हुए शिकारियों को जोरों से आवाज देकर अपने पास बुलाया, ताकि वे सब भी उसकी बुद्धिमानी देख लें।

राजा के पास जाकर उन सब शिकारियों ने भी दरजी की बहादुरी और बुद्धिमानी की खूब प्रशंसा की। अब तो राजा को हारकर उस लड़के से अपनी बेटी की शादी करनी पड़ी और साथ में उसे आधा राज्य भी देना पड़ा। राजा और उसकी बेटी-दोनों ही इस विवाह से खुश नहीं थे, पर क्या करते।

शादी के कुछ दिनों बाद राजकुमारी अपने पति के बराबर में सो रही थी, तभी उसने अपने पति को सपने में बड़बड़ाते हुए सुना, 'लड़के, जल्दी-जल्दी कपड़े तैयार कर। अगर ठीक समय पर काम खत्म नहीं किया तो तुझे थप्पड़ दूंगा।' राजकुमारी ने अपने पति के स्वप्न में बड़बड़ाने की बात अपने पिता को बताई, तो राजा को यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि उसका दामाद एक दरजी है। वह तो उस लड़के से हर कीमत पर छुटकारा पाना चाहता था। उसने अपनी बेटी को सांत्वना दी और कहा, 'कल रात को तुम अपने सोने का कमरा खुला रखना। आधी रात में मेरे सिपाही उस दरजी को उठाकर ले जाएंगे और उसके हाथ-पैर बंधवाकर हम उसे एक नाव में डालकर छोड़ देंगे। वह खुद ही मर-खप जाएगा।' पर दरजी के विश्वसनीय सेवक ने पिता-पुत्री की बातें सुन लीं और जाकर अपने मालिक को बता दीं। दरजी ने उसे धन्यवाद दिया और दोनों बाप-बेटी को सबक सिखाने की सोची।

अगली रात को वह सोने का बहाना बनाकर चादर ओढ़कर सो गया और फिर जानबूझकर पहली रात की बातें दोहरानी शुरू कर दी, 'ओ लड़के, जल्दी-जल्दी हाथ चला। आज यह सारा सिलाई का काम खत्म कर, नहीं तो तुझे दो झापड़ दूंगा। मैंने सात-सात को एक ही बार में खत्म कर दिया। दो राक्षसों को सदा के लिए सुला दिया। जंगली भैंसा और जंगली सूअर को जिंदा पकड़ लिया। मुझसे वे सारे सिपाही भी डरते हैं, जो मेरे कमरे के बाहर खड़े हैं।'

जब राजा के सिपाहियों ने दरजी की बातें सुनी तो वे भी डर गए कि यह तो सोते-सोते ही सब बातें जान लेता है। वे सब डर के मारे वहाँ से भाग खड़े हुए, जैसे कोई जंगली सूअर उनके पीछे भाग रहा हो।

दरजी से छुटकारा पाने में राजा को कोई सफलता नहीं मिली और वह अपनी बुद्धिमानी से राजा बनकर सुख की जिंदगी बिताता रहा।

(ग्रिम्स फेयरी टेल्स में से)