अपराध और दंड (रूसी उपन्यास) : फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की - अनुवाद : नरेश नदीम

Crime and Punishment (Russian Novel in Hindi) : Fyodor Dostoevsky

अपराध और दंड : (अध्याय 5-भाग 1)

प्योत्र पेत्रोविच का दिमाग दुनेच्का और उसकी माँ के साथ उस निर्णायक भेंट के बाद अगले दिन सुबह कुछ ठिकाने आया। उसके लिए यह चीज नागवार तो बहुत थी, लेकिन धीरे-धीरे वह उसी बात को अटल सत्य के रूप में स्वीकार करने पर मजबूर हो गया जो अभी कल तक कल्पनातीत और अनहोनी मालूम होती थी। जख्मी अहंकार का नाग उसके हृदय को सारी रात डसता रहा था। प्योत्र पेत्रोविच ने बिस्तर से उठते ही आईने में अपनी सूरत देखी। उसे डर था कि रात को उसे कहीं उलटी न हो गई हो। लेकिन उसकी तंदुरुस्ती पर कोई आँच आई हो, अभी तक तो ऐसा नहीं लगता था और आईने में अपने गौरवमय गोरे चेहरे को देख कर, जो इधर कुछ दिनों में भर आया था, प्योत्र पेत्रोविच को एक पल के लिए इस पक्के विश्वास से तसल्ली मिली कि उसे दूसरी दुल्हन मिल जाएगी, जो शायद और भी अच्छी हो। लेकिन उसने फौरन अपने को सँभाला और जोर से खखार कर थूका। उसकी इस हरकत को देख कर उसके नौजवान मित्र आंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव के चेहरे पर, जिसके साथ वह ठहरा हुआ था, व्यंग्य भरी मुस्कराहट दौड़ गई। प्योत्र पेत्रोविच का ध्यान उस मुस्कराहट की ओर गया, और उसने जेहन में फौरन उसे अपने नौजवान मित्र का नाम चढ़ा लिया कि एक दिन इसका भी हिसाब चुकाना होगा। इधर पिछले कुछ दिनों में उसने उसके नाम बहुत-सी चीजें चढ़ाई थीं। यह सोच कर उसका गुस्सा दोगुना हो गया कि उसे आंद्रेई सेम्योनोविच को कल की मुलाकात और उसके नतीजे के बारे में नहीं बताना चाहिए था। यह दूसरी गलती थी, जो कल उसने जल्दबाजी और चिड़चिड़ाहट की वजह से की थी। इसके अलावा, उस दिन सुबह एक के बाद एक कई नागवार घटनाएँ होती रहीं। उसका जो मामला सेनेट में पेश था उसमें भी कुछ बाधा आने का खतरा नजर आने लगा था। उस फ्लैट के मालिक पर वह खास तौर पर झुँझला रहा था जो उसने अपनी होनेवाली शादी को ध्यान में रख कर किराए पर लिया था और जिसे उसने अपने खर्च से नए सिरे से सजाया-सँवारा था। फ्लैट का मालिक एक अमीर जर्मन व्यापारी था। वह उसको रद्द करने को तैयार नहीं था और बयाने की पूरी रकम जब्त कर लेने पर अड़ा हुआ था, हालाँकि प्योत्र पेत्रोविच उसे वह फ्लैट नए सिरे से ठीक करा कर, सजा-सँवार कर वापस कर रहा था। इसी तरह फर्नीचरवाला भी उस फर्नीचर के लिए दी गई किस्त वापस करने को तैयार नहीं था जो खरीद तो लिया गया था लेकिन अभी उसकी दुकान से उठाया नहीं गया था। 'मुझे क्या सिर्फ इस फर्नीचर की खातिर शादी करनी पड़ेगी...,' प्योत्र पेत्रोविच दाँत पीस कर रह गया। पर इसी के साथ उसके हृदय में आशा की अंतिम किरण जगमगाई : 'सब कुछ सचमुच और हमेशा के लिए खत्म तो नहीं हो चुका। एक और कोशिश कर देखने से कोई फायदा नहीं क्या?' दूनिया का ध्यान आते ही उसके हृदय में एक बार फिर लालचभरी टीस उठी। उसके लिए वह गहरे दर्द का लम्हा था, लेकिन अगर केवल इच्छा से रस्कोलनिकोव को कत्ल कर सकना संभव होता तो प्योत्र पेत्रोविच यह इच्छा फौरन कर बैठता।

'इसके अलावा उन्हें कुछ पैसा न देना भी गलती ही थी,' घोर निराशा में डूब कर लेबेजियातनिकोव के कमरे की ओर लौटते समय उसने सोचा। 'मैं भला ऐसा मक्खीचूस बन कैसे गया। यह भी तो किफायत की एक झूठी कोशिश थी! मैं उन्हें कौड़ी-कौड़ी को मोहताज रखना चाहता था ताकि वे मुझे अपना दाता समझ लें, अब देखो उन्हें! छिः! अगर मैंने उन्हें पंद्रह सौ रूबल भी दे दिए होते कि नॉप के यहाँ से और उस विलायती दूकान से दुल्हन के लिए साज-सामान खरीद लें, कुछ तोहफे, छोटी-मोटी चीजें, कपड़े, गहने, और इसी तरह की दूसरी खुराफात चीजें खरीद लें तो आज मेरी स्थिति कहीं बेहतर होती... कहीं ज्यादा मजबूत! वे मुझे इतनी आसानी से ठुकरा नहीं पातीं! वे उस किस्म के लोग हैं कि रिश्ता तोड़ते तो अपने को पैसा और तोहफे भी वापस करने पर मजबूर समझते; और यही उनके लिए मुश्किल होता! उनका जमीर भी अंदर-ही-अंदर उन्हें कचोटता रहता : हम ऐसे आदमी को कैसे ठुकरा सकते हैं जो अब तक हमारे साथ उदारता और नर्मी का बर्ताव करता रहा है ...हुँ! मैंने बहुत बड़ी गलती की!' एक बार फिर दाँत पीस कर प्योत्र पेत्रोविच ने अपने आपको बेवकूफ कहा - लेकिन, जाहिर है, मन-ही-मन में।

इस सोच के साथ जब वह घर लौटा तो पहले से दोगुना चिढ़ा हुआ और नाराज। कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ जनाजे के भोज की जो तैयारी हो रही थी, उसे देख कर उसके मन में उत्सुकता जागी। उसने कल उसके बारे में कुछ सुना था, कुछ-कुछ यह भी याद था कि उसे भी बुलाया गया है, लेकिन वह अपनी चिंताओं में ही इतना डूबा हुआ था कि इस ओर उसने ध्यान ही नहीं दिया था। कतेरीना इवानोव्ना कब्रिस्तान गई हुई थी। उसके पीछे मादाम लिप्पेवेख्सेल मुस्तैदी से मेज पर खाना लगवा रही थी; उससे पूछने पर मालूम हुआ कि भोज काफी बड़ा होगा, कि उस मकान में रहनेवाले सभी लोगों को बुलाया गया था और उनमें कुछ तो ऐसे भी थे जो मरनेवाले को जानते तक नहीं थे, कि कतेरीना इवानोव्ना से पहले झगड़ा हो चुकने के बावजूद आंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव को भी बुलाया गया था, कि खुद उसे (प्योत्र पेत्रोविच को) न केवल बुलाया गया था बल्कि उसके आने की उम्मीद भी की जा रही थी क्योंकि वह उस घर में रहनेवालों में सबसे महत्वपूर्ण आदमी था। तमाम पिछले झगड़ों के बावजूद अमालिया इवानोव्ना को भी खास तौर पर बुलाया गया था, इसलिए वह तैयारियों में लगन से जुटी हुई थी और उसे इस काम में मजा आ रहा था। इसके अलावा वह काले रंग के नई रेशमी लिबास में अपनी सजधज पर इतरा भी रही थी। इन सब बातों को देख कर प्योत्र पेत्रोविच के मन में एक विचार उठा और वह विचारों में डूबा हुआ अपने, बल्कि सच पूछिए तो लेबेजियातनिकोव के कमरे में गया। उसने सुन रखा था कि मेहमानों में रस्कोलनिकोव भी शामिल था।

आंद्रेई सेम्योनोविच किसी वजह से पूरी सुबह घर पर ही रहा। इस भले आदमी के सिलसिले में प्योत्र पेत्रोविच का रवैया कुछ अजीब-सा था, हालाँकि शायद वह स्वाभाविक ही था। प्योत्र पेत्रोविच जिस दिन उसके साथ रहने आया उसी दिन से उससे नफरत करता आ रहा था, लेकिन साथ ही लगता था कि वह उससे कुछ डरता भी था। पीतर्सबर्ग पहुँचने पर उसके साथ ठहरने का मकसद सिर्फ पैसे बचाना नहीं था, हालाँकि उसका खास मकसद यही था। इसकी एक वजह और भी थी। वह आंद्रेई सेम्योनोविच का किसी जमाने में संरक्षक रह चुका था, और उसने सुन रखा था कि वह शहर का एक प्रमुख प्रगतिशील नौजवान था और कुछ ऐसी दिलचस्प मंडलियों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा था, जिनके कारनामों की दूर-दूर तक चर्चा थी। प्योत्र पेत्रोविच पर इस बात का रोब पड़ा था। हर आदमी से नफरत करनेवाली, सबका कच्चा चिट्ठा खोलनेवाली और हर बात पर नजर रखनेवाली इन ताकतवर मंडलियों का एक अजीब अस्पष्ट-सा डर उसके दिल में बहुत अरसे से बैठा हुआ था। जाहिर है, वह अपने मन में इस किस्म की किसी भी चीज के बारे में कोई छोटी-मोटी धारणा भी नहीं बना सकता था, खास तौर पर शहरों से दूर रह कर। सभी लोगों की तरह उसने भी सुन रखा था कि खास तौर पर पीतर्सबर्ग में खुदा जाने किस-किस तरह के प्रगतिशील विनाशवादी वगैरह होते हैं, और बहुतों की तरह उसने भी इन शब्दों के अर्थ को बढ़ा-चढ़ा कर, तोड़-मरोड़ कर बेतुकेपन की हद तक पहुँचा दिया था। पिछले कई साल से वह सबसे ज्यादा इसी बात से डरता आ रहा था कि कहीं उसका चिट्ठा न खोल दिया जाए और यही उसके लगातार परेशान रहने की वजह थी, खास तौर पर अपना कारोबार हटा कर पीतर्सबर्ग ले आने के सिलसिले में। वह इस बात से उसी तरह डरा हुआ था जैसे कभी-कभी किसी चीज से छोटे बच्चे डर जाते हैं। कुछ साल पहले, जब वह जिंदगी में आगे बढ़ना अभी शुरू ही कर रहा था, उसने दो किस्से ऐसे सुने थे जिनमें देहात के दो काफी नामवर लोगों की, जो उसके सरपरस्त भी थे, बेरहमी से धज्जियाँ उड़ाई गई थीं। एक मामले में तो जिस पर हमला हुआ था जिसकी काफी छीछालेदर हुई थी और दूसरे में भी भारी मुसीबत पैदा होते-होते रह गई थी। इसीलिए प्योत्र पेत्रोविच ने फैसला किया था कि पीतर्सबर्ग पहुँच कर वह इस समस्या की जड़ तक जाने की कोशिश करेगा और जरूरी हुआ तो 'हमारी नौजवान पीढ़ी' की खुशामद करके कोई मुसीबत खड़ी होने से पहले ही उसकी काट कर लेगा। उसे भरोसा था कि इस काम में आंद्रेई सेम्योनोविच से उसे मदद मिलेगी और दूसरे लोगों से, मसलन रस्कोलनिकोव से संपर्क होने से पहले ही उसने भी प्रचलन में मौजूद कुछ शब्दों और मुहावरों का प्रयोग करने की कला सीख ली थी...

स्वाभाविक था कि उसे जल्द ही पता चल गया कि आंद्रेई सेम्योनोविच बहुत ही घटिया और एक ही बेवकूफ किस्म का आदमी था, लेकिन यह जान कर प्योत्र पेत्रोविच को न कोई तसल्ली हुई, न कोई खास खुशी। अगर उसे यकीन भी तो जाता कि सभी प्रगतिशील उसके ही जैसे बेवकूफ होते हैं, तब भी उसकी बेचैनी दूर न होती। आंद्रेई सेम्योनोविच उस पर जिन सिद्धांतों, विचारों और प्रणालियों की बौछार करता रहता था, उनमें उसे कोई खास दिलचस्पी भी नहीं थी। उसका एक अपना ही उद्देश्य था। वह तो बस जल्द-से-जल्द यह मालूम करना चाहता था कि यहाँ हो क्या रहा है। इन लोगों की कोई ताकत है भी या नहीं, उसके लिए निजी तौर पर उनसे डरने की कोई वजह है कि नहीं, अगर उसने कोई काम शुरू किया तो क्या वे लोग उसकी भी कलई खोल देंगे और वे लोग अगर उसकी कलई खोलने पर तुल ही जाएँ तो उस वक्त उनके हमलों का असली निशाना क्या होगा और क्यों इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि क्या वह उनसे मेल-जोल पैदा कर सकता था और अगर वह सचमुच ताकतवर हों तो क्या उनको किसी तरह चकमा दे सकता था। उसे ऐसा करना भी चाहिए या नहीं उनकी मदद से क्या वह कुछ हासिल नहीं कर सकता... संक्षेप में सैकड़ों सवाल उसके सामने आ रहे थे।

आंद्रेई सेम्योनोविच किसी सरकारी दफ्तर में क्लर्क था। छोटे कद का दुबला-पतला, मरियल-सा आदमी। उसे अपने अजीब से सफेद बालों और मटन-चॉप किस्स के गलमुच्छों पर बेहद नाज था। उसकी आँखों में हमेशा कोई न कोई खराबी रहती थी। दिल का बहुत नर्म आदमी था, लेकिन उसमें आत्मविश्वास भरपूर था। कभी-कभी वह रोब के साथ बोलता था, जो लगभग हमेशा ही - उसके छोटे-से कद को देखते हुए - बहुत ही बेमेल और बेतुका लगता था। लेकिन वह उन किराएदारों में से था जिनकी अमालिया इवानोव्ना सबसे ज्यादा इज्जत करती थी। सबब यह कि वह कभी नशे में चूर नहीं होता था और किराया वक्त पर अदा करता था। इन सारे गुणों के बावजूद लेबेजियातनिकोव सचमुच काफी बेवकूफ था। वह सिर्फ जोश में आ कर प्रगति के ध्येय और 'हमारी नौजवान पीढ़ी' के साथ लग गया था। वह उन तरह-तरह के और अनगिनत मूढ़ लोगों में से, उन भोंडे किस्म के घमंडी, जाहिल और छिछोरे लोगों में एक था, जो किसी प्रचलित विचार के साथ हो जाते हैं, इस तरह उसकी मिट्टी पलीद करते हैं और जिस ध्येय की भी सेवा करते हैं, और कितने तो सच्चे मन से करते हैं, पर उसे भी एक मजाक बना कर रख देते हैं।

अपने नर्म स्वभाव के बावजूद लेबेजियातनिकोव भी अपने भूतपूर्व संरक्षक को नापसंद करने लगा था, जो इस वक्त उसके साथ एक ही कमरे में रह रहा था। यह रवैया दोनों तरफ अनजाने ही पैदा हो गया था। आंद्रेई सेम्योनोविच कितना ही भोला भंडारी क्यों न हो, यह बात उसकी भी समझ में आने लगी थी कि प्योत्र पेत्रोविच उसे बेवकूफ बना रहा था, अंदर-ही-अंदर उससे नफरत करता था, और यह कि 'वह जैसा लगता था वैसा बिलकुल नहीं था।' उसने उसे फूरिए की प्रणाली और डार्विन का सिद्धांत भी समझाने की कोशिश की, लेकिन कुछ समय से प्योत्र पेत्रोविच उसकी बातें व्यंग्य के साथ सुनने लगा था और उसके साथ कभी-कभी बदतमीजी से पेश आने लगा था। वास्तव में उसने सहज ही अनुमान लगा लिया था कि लेबेजियातनिकोव न सिर्फ मूढ़ और क्षुद्र व्यक्ति था बल्कि झूठा भी था, यह कि खुद अपने क्षेत्र में उसकी कोई पहुँच नहीं थी, उसने बस कुछ सुनी-सुनाई बातें रट ली थीं; और बहुत मुमकिन था कि अपने प्रचार के काम की भी उसे कोई खास जानकारी न रही हो, क्योंकि उसका दिमाग गड्डमड्ड विचारों से भरा हुआ था। यह किसी का कच्चा चिट्ठा भला क्या खोलेगा! लगे हाथ, यह बात भी ध्यान देने की है कि इन दस दिनों के दौरान खास कर शुरू में प्योत्र पेत्रोविच ने उत्सुकता से आंद्रेई सेम्योनोविच के मुँह से अपनी प्रशंसा में अजीब-अजीब बातें भी स्वीकार कर ली थीं। मिसाल के लिए, आंद्रेई सेम्योनोविच ने उसे सराहा था कि मेश्चान्स्काया सड़क पर किसी जगह वह एक नए 'कम्यून' की स्थापना में योगदान देने को तैयार था, कि वह अपने बच्चों का गिरजाघर में विधिवत नामकरण नहीं कराएगा, या यह कि अगर शादी के महीने-भर बाद ही दूनिया ने कोई दूसरा प्रेमी बना लिया तब भी वह चुपचाप सह लेगा, वगैरह-वगैरह। उसने इन सब बातों के खिलाफ तब कोई आवाज नहीं उठाई था। प्योत्र पेत्रोविच को अपनी तारीफ सुनने का इतना शौक था कि इस तरह की खूबियाँ भी उसके मत्थे मढ़ी जाती थीं तो वह बुरा नहीं मानता था।

प्योत्र पेत्रोविच ने उसी दिन सवेरे अपने किसी निजी काम के लिए पाँच फीसदी सूदवाले कुछ सरकारी बांड भुनाए थे और मेज पर बैठा गड्डियाँ गिन रहा था। आंद्रेई सेम्योनोविच, जिसके पास शायद ही कभी अपना पैसा रहता हो, कमरे में टहल कर मन को बहला रहा था कि उसे उन नोटों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि वह उन्हें तुच्छ समझता था। प्योत्र पेत्रोविच, मिसाल के लिए, कभी यह बात मान ही नहीं सकता था कि इतना पैसा देख कर आंद्रेई सेम्योनोविच पर कोई असर नहीं होगा और दूसरी तरफ आंद्रेई सेम्योनोबिच यह सोच कर कुढ़ रहा था कि प्योत्र पेत्रोविच के मन में ऐसी कोई बात थी और वह नोटों की गड्डियाँ सजा कर, अपने नौजवान दोस्त को उसकी हीनता का एहसास करा कर, यह जता कर कि उन दोनों के बीच कितना अंतर है, और उसे छेड़ने का मौका पा कर खुश था।

इस समय आंद्रेई सेम्योनोविच अपने प्रिय विषय के एक नए और विशेष 'कम्यून' की स्थापना के बारे में लूजिन को अपने विचार विस्तार से बता रहा था। लेकिन उसने देखा कि प्योत्र पेत्रोविच उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा था और चिड़चिड़ा हो रहा था। हिसाब जोड़ने के चौखटे पर गोलियाँ खटाखट इधर-से-उधर सटकाते हुए प्योत्र पेत्रोविच बीच-बीच में थोड़े में शब्द बोल देता था जिनसे खुले अशिष्ट व्यंग्य की झलक मिलती थी। लेकिन 'मानवता प्रेमी' आंद्रेई सेम्योनोविच ने इसे यह सोच कर अनदेखा कर दिया कि प्योत्र पेत्रोविच अभी कल रात दूनिया से अनबन होने की वजह से चिड़चिड़ा हो रहा होगा। वह इस विषय पर बातें करने को सचमुच बेचैन था : उसे इसके बारे में कुछ प्रगतिशील बातें कहनी थीं, कुछ ऐसी बातें जो प्रचार के लिए सचमुच महत्वपूर्ण थीं, जिनसे उसके योग्य मित्र को तसल्ली होती और जिनसे उसके विकास को 'निश्चित रूप से' गति मिलती।

'यह किस भोज की तैयारी हो रही है उधर... उस विधवा के यहाँ?' प्योत्र पेत्रोविच ने अचानक सवाल करके आंद्रेई सेम्योनोविच की बात सबसे दिलचस्प जगह पर काट दी।

'जैसे कि तुम्हें मालूम ही नहीं था! अरे, कल रात ही तो मैं तुम्हें बता रहा था कि इस तरह की रस्मों के बारे में मैं क्या सोचता हूँ... और मैंने तो सुना है कि उसने तुम्हें भी बुलाया है। कल तुम उससे बातें भी तो कर रहे थे...'

'मैंने सोचा भी नहीं था कि इस मूर्ख कँगली को उस दूसरे बेवकूफ रस्कोलनिकोव से जितना पैसा मिला, वह सारे का सारा इस दावत पर खर्च कर देगी। अभी मैं उधर से आ रहा था तो तैयारियाँ देख कर ही दंग रह गया... इतनी शराब! ...बहुतों को न्योता दिया गया है। मेरी तो समझ में ही नहीं आता!' प्योत्र पेत्रोविच कहता रहा और लग रहा था कि यह बातचीत शुरू करने के पीछे उसका कोई उद्देश्य था। 'क्या कहा तुमने कि मुझे भी बुलाया गया है?' उसने सर उठा कर अचानक कहा। 'कब बुलाया गया मुझे तो याद नहीं। लेकिन मैं जाऊँगा नहीं। क्यों जाऊँ... मैंने तो कल यूँ ही उससे कह दिया था कि एक सरकारी नौकर की कंगाल विधवा होने के नाते उसे राहत के तौर पर सालभर की तनख्वाह मिल सकती है। मैं समझता हूँ, उसने मुझे इसी वजह से न्योता दिया होगा, है न यही बात खी-खी-खी!'

'जाने का इरादा तो मेरा भी नहीं है,' लेबेजियातनिकोव ने कहा।

'मैं भी नहीं समझता कि तुम्हें जाना चाहिए। उसकी ऐसी पिटाई करने के बाद तुम्हें संकोच भी हो रहा होगा। खी-खी-खी!'

'किसने पिटाई की... किसकी?' लेबेजियातनिकोव ने चीख कर पूछा। सिटपिटा कर उसका चेहरा लाल हो रहा था।

'तुमने पीटा। अभी महीना-भर हुआ, तुम्हीं ने तो कतेरीना इवानोव्ना को पीटा था। मैंने कल ही किसी से सुना... तो ये हैं तुम्हारे सिद्धांत! नारी-समस्या के बारे में भी अपने सारे विचारों को भुला ही दिया है, खी-खी-खी!'

इसके बाद प्योत्र पेत्रोविच चौखटे पर गोलियाँ गटकने लगा, गोया यह बात कह कर उसके कलेजे को ठंडक मिली हो।

'सब झूठ और बकवास है!' लेबेजियातनिकोव जोर से चीखा। वह इस बात की चर्चा चलने से हमेशा डरता था। 'ऐसा सब कुछ भी नहीं हुआ था! बात दूसरी ही थी... तुमने गलत सुना है; ये सब मुझे बदनाम करने की बातें हैं! मैं सिर्फ अपना बचाव कर रहा था। पहले वह मेरे ऊपर झपटी, अपने नाखूनों से खरोंचा, मेरे सारे गलमुच्छे नोच डाले। ...मैं समझता हूँ सबको इस बात की इजाजत होनी चाहिए कि वह अपना बचाव कर सकें। मेरा सिद्धांत यह है कि मैं किसी को अपने खिलाफ कोई हिंसा नहीं करने देता; यह निरंकुशता है। तो मैं करता ही क्या... बस उसे पीछे धकेल दिया।'

'खी-खी-खी।' लूजिन द्वेष की हँसी हँसता रहा।

'तुम इसलिए चिढ़ा रहे हो मुझे कि खुद चिढ़े हुए हो... लेकिन यह सरासर बकवास है। फिर नारी-समस्या से इसका कोई संबंध भी नहीं है, कोई भी नहीं! समझते नहीं तुम; मैं भी यही सोचा करता था कि औरतें अगर हर मुआमलों में मर्दों के बराबर हैं, ताकत के मामले में भी (जैसा कि अब कहा जा रहा है), तो फिर तो वैसे मुआमलों में भी बराबरी होनी चाहिए। लेकिन मैंने बाद में सोचा कि इस तरह का सवाल उठाना ही नहीं चाहिए, क्योंकि लड़ाई-झगड़ा भी नहीं होना चाहिए, और आगे चल कर जो समाज बनेगा उसमें लड़ाई की बात सोची नहीं जा सकती... यह भी कि लड़ाई के सिलसिले में बराबरी कायम करने की कोशिश करना तो अजीब बात होगी। ऐसा नासमझ मैं नहीं... जाहिर है, लड़ाई होती है... यानी बाद में चल कर तो नहीं होगी लेकिन अभी तो होती ही है...लानत है! तुम्हारे साथ बातें करो तो दिमाग कितना उलझता है! वहाँ मेरे न जाने की वजह यह है ही नहीं। मैं सिद्धांत की वजह से नहीं जा रहा। असली वजह यही है, मरनेवाले की याद में दावत की इस घृणित परंपरा में हिस्सा न लेने का सिद्धांत। यूँ वहाँ इस रिवाज का मजाक उड़ाने के लिए भी जाया जा सकता है। ...मुझे अफसोस इस बात का है कि वहाँ कोई पादरी नहीं होगा। होता तो मैं जरूर जाता।'

'तब तुम किसी दूसरे की मेज पर बैठ कर खाने का और मेजबान का अपमान करते। क्यों?'

'कोई अपमान नहीं करता, सिर्फ उसके खिलाफ अपनी आवाज उठाता। और यह मैं एक अच्छे उद्देश्य से करता। इस तरह मैं जागरूकता और प्रचार के कामों में एक तरह से मदद ही करता। हरेक का कर्तव्य है कि वह जागरूकता और प्रचार के लिए काम करे, और यह काम जितने ही जोरों से किया जाए, उतना ही अच्छा। मैं एक बीज डाल सकता हूँ, एक विचार का बीज! ...और वह बीज उग कर एक तथ्य का रूप भी धारण कर सकता है। इसमें उनका क्या अपमान हो सकता है वे शुरू में बुरा मानें लेकिन बाद में उनकी समझ में जरूर आएगा कि मैंने उनकी सेवा की है। जानते हो, तेरेब्येवा को (जो अब कम्यून में है) बहुत बुरा-भला कहा गया था... जब उसने अपना परिवार छोड़ा और... अपनी पसंद के आदमी के साथ रहने लगी तो उसने अपने माँ-बाप को चिट्ठी लिखी कि परंपराओं में जकड़ी जिंदगी बिताने के लिए वह तैयार नहीं और इसलिए शादी किए बिना ही अपनी पसंद के आदमी के साथ रहने जा रही है। तब कहा गया था कि उसने बहुत सख्त बात लिखी थी, कि उसे अपने माँ-बाप को इतनी तकलीफ नहीं पहुँचानी चाहिए थी और कुछ ज्यादा खत लिखना चाहिए था। मैं समझता हूँ यह सब बकवास है। नर्मी की कोई जरूरत है नहीं, बल्कि जरूरत तो इस बात की है कि ऐसी बातों के खिलाफ आवाज उठाई जाए। वारेंत्स को लो, उसकी शादी को सात साल हो चुके थे जब उसने अपने दो बच्चों को छोड़ा और अपने पति को एक खत में साफ-साफ लिखा था : 'मैंने यह बात समझ ली है कि मैं तुम्हारे साथ खुश नहीं रह सकती। मैं तुम्हें इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूँगी कि तुमने मुझे धोखा दिया और यह बात छिपाई कि समाज का एक और संगठन है, जिसकी बुनियाद कम्यून पर होगी। इसका पता मुझे हाल ही में बहुत ऊँचे विचारोंवाले एक आदमी से चला, जिसे मैं अपना सब कुछ अर्पित कर चुकी और जिसके साथ मैं एक कम्यून स्थापित करने जा रही हूँ। मैं यह बात इसलिए साफ-साफ बता रही हूँ कि तुम्हें धोखा देने को मैं बेईमानी समझती हूँ। तुम जैसा ठीक समझना, वैसा ही करना। मुझे वापस पाने की उम्मीद मत रखना; उसके लिए बहुत देर हो चुकी है। उम्मीद है कि तुम सुखी रहोगे।' ऐसे विषयों पर खत इसी तरह ही लिखे जाने चाहिए!'

'वही तेरेब्येना जिसके बारे में तुम बता रहे थे कि वह तीसरी बार बिना शादी किए किसी के साथ रह रही है?'

'नहीं, यह दरअसल दूसरी बार हैं! लेकिन अगर चौथी बार होता या पंद्रहवीं बार भी होता, तो क्या! ऐसी बातें बकवास हैं। मुझे अपने माँ-बाप की मौत का अगर कभी अफसोस हुआ है तो अब। मेरे मन में कई बार यह विचार उठा कि वे जिंदा नहीं हैं, यह कितने अफसोस की बात है... वे अगर जिंदा होते तो मुझे उनके खिलाफ आवाज उठा कर उन्हें चौंकाने का कितना अच्छा मौका मिलता! मैं जान-बूझ कर भी कुछ-न-कुछ कर बैठता। बच्चे के घर छोड़ जाने और आजाद होने के बारे में कितनी सारी बेवकूफी की बातें होतीं! मैं उन्हें बताता तो वे सचमुच दंग रह जाते। मैं बता नहीं सकता कि किसी के न होने का मुझे कितना अफसोस है।'

'उन्हें हैरत में डालने के लिए! खी-खी-खी! खैर, वह तो जैसा जी चाहे, करो,' प्योत्र पेत्रोविच बात काट कर बोला, 'लेकिन मुझे तो यह बताओ कि क्या तुम मरनेवाले की बेटी को जानते हो? वही जो एक छोटी-सी नाजुक-सी लड़की है उसके बारे में जो कुछ कहा जा रहा है वह तो सच है?'

'तो क्या? मैं समझता हूँ, मेरा मतलब यह मेरी निजी राय है कि यही औरतों के लिए सबसे स्वाभाविक स्थिति है। और क्यों न हो मेरा मतलब है, हमें अंतर करना चाहिए। हमारे आज के समाज में इसे इसलिए पूरी तरह स्वाभाविक नहीं समझा जाता कि वे मजबूरन ऐसा करती हैं। लेकिन आनेवाले समाज में इसे एकदम स्वाभाविक समझा जाएगा क्योंकि वे अपनी मर्जी से ऐसा करेंगी। लेकिन मौजूदा हालत में भी उसे ऐसा करने का पूरा-पूरा अधिकार था। मुसीबतें झेल रही थी बेचारी और उसके पास यही एक सहारा था। यही एक तरह से उसकी दौलत थी, जिसे अपनी मर्जी से इस्तेमाल करने का उसे पूरा-पूरा अधिकार था। जाहिर है, आनेवाले समाज में इस तरह की दौलत की कतई जरूरत नहीं होगी, लेकिन उसकी भूमिका एकदम दूसरे ही ढंग से निश्चित होगी... उसका फैसला पूरी तरह बुद्धिसंगत और सामंजस्य के साथ किया जाएगा। रहा सोफ्या सेम्योनोव्ना का सवाल, निजी तौर पर, तो मैं समझता हूँ उसने ऐसा करके समाज के संगठन के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई है। इसके लिए मैं इज्जत करता हूँ उसकी और जब उसे देखता हूँ तो सचमुच मुझे खुशी होती है!'

'मुझे तो बताया गया कि यहाँ से तुम्हीं ने उसे निकलवाया था!'

लेबेजियातनिकोव गुस्से में आ गया।

'मेरे खिलाफ यह एक और इल्जाम है,' उसने चीख कर कहा। 'ऐसा तो एकदम नहीं हुआ था! कतई नहीं! यह सब कतेरीना इवानोव्ना की मनगढ़ंत बात है, क्योंकि मुझे वह ठीक से समझ ही नहीं सकी। रही सोफ्या सेम्योनोव्ना, तो उसके साथ कभी मुझे मुहब्बत नहीं रही! मैं तो निःस्वार्थ भाव से उसके विचारों को विकसित कर रहा था, उसे विरोध की प्रेरणा देने की कोशिश कर रहा था... मैं तो कुल इतना चाहता था कि वह इन बातों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए। वैसे सोफ्या सेम्योनोव्ना यहाँ तो किसी हाल में नहीं रह सकती थी।'

'तुमने उसे भी अपने कम्यून में शामिल होने को कहा कि नहीं?'

'तुम तो हर बात का मजाक उड़ा रहे हो पर एकदम बेकार उड़ा रहे हो, इतना मैं तुम्हें बताए देता हूँ। तुम बातों को समझते भी नहीं! कम्यून में इस तरह की कोई भूमिका नहीं होती क्योंकि कम्यून बनाया ही इसलिए जाता है कि इस तरह की भूमिकाएँ खत्म हों। कम्यून में इस तरह की भूमिका का रूप बुनियादी तौर पर भिन्न होगा और जिसे यहाँ मूर्खता समझा जाता है वह वहाँ समझदारी की बात बन जाएगी, मौजूदा हालत में जिसे अस्वाभाविक समझा जाता है, वह कम्यून में एकदम स्वाभाविक होगा। सब कुछ माहौल पर निर्भर है। माहौल ही सब कुछ होता है; मनुष्य कुछ नहीं होता। और हाँ, सोफ्या सेम्योनोव्ना के साथ मेरे संबंध आज तक बहुत अच्छे हैं, जो इस बात का सबूत है कि उसने कभी यह नहीं समझा कि मैंने उसके साथ कुछ बुरा किया। जी हाँ, अब मैं उसे कम्यून की ओर लाने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन दूसरी ही बुनियाद पर! तुम हँस किस बात पर रहे हो? हम अपना एक अलग ही कम्यून बनाने की कोशिश कर रहे हैं, एक खास तरह का कम्यून, जिसकी बुनियाद ज्यादा व्यापक हो। अपने विश्वासों को ले कर हम और आगे बढ़े हैं, और भी बातों को नकारने लगे हैं! तो अगर दोब्रोल्यूबोव अपनी कब्र से निकल आते तो उनसे मेरी खूब बहस होती। रहा बेलीस्की का सवाल तो उनकी तो मैं धज्जियाँ उड़ाता। इस बीच मैं आज भी सोफ्या सेम्योनोव्ना के विचारों को विकसित कर रहा हूँ। बहुत सुंदर है उसका चरित्र, बहुत ही सुंदर!'

'और तुम उसके बहुत ही सुंदर चरित्र का फायदा उठाते हो... क्यों? खी-खी-खी!'

'नहीं, बिलकुल नहीं! बात इसकी उलटी है!'

'अच्छा, तो बात उलटी है! खी-खी-खी! कैसी उलटी बात है!'

'मेरी मानो! मैं तुमसे क्यों छिपाऊँगा, बताओ सच में मुझे तो खुद ताज्जुब होता है कि वह मेरे साथ कैसे दब कर पवित्र भाव से और शील-संकोच से पेश आती है!'

'और तुम तो जाहिर है कि उसके विचारों को विकसित कर रहे हो... खी-खी-खी उसके सामने यह साबित करना चाहते हो कि उसका सारा शील-संकोच बकवास है?'

'कतई नहीं! बिल्कुल नहीं! माफ करना, तुम भी विकास शब्द का कितने भोंडे तरीके से और कितनी नासमझी से गलत मतलब निकाल रहे हो! तुम्हारी समझ में तो कुछ भी नहीं आता। कुछ भी नहीं। लानत है... तुम... अभी तक तुम्हारे विचार बहुत अधकचरे हैं। हम तो औरतों की आजादी के लिए काम कर रहे हैं और तुम्हारी खोपड़ी में बस एक बात है... मैं स्त्रियों की सच्चरित्रता, उनके शील-संकोच के आम सवाल को बेकार की बातें या पूर्वाग्रह मान कर उन पर कोई ध्यान नहीं देता। लेकिन वह जो सच्चरित्रता मेरे साथ बरत रही है उसे मैं स्वीकार करता हूँ, क्योंकि यह उसकी अपनी इच्छा की बात है और इसका उसे पूरा-पूरा अधिकार है। जाहिर है, वह अगर अपने मुँह से कहे कि वह मुझे चाहती है तो मैं अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली समझूँ, क्योंकि वह लड़की मुझे अच्छी लगती है। लेकिन आज की बात करें तो मैं तो यह जानता हूँ कि किसी ने उसके साथ मुझसे ज्यादा शराफत का बर्ताव नहीं किया है, किसी ने उसके स्वाभिमान के कारण उसे उतनी इज्जत की नजर से नहीं देखा, जितना मैं देखता हूँ... मैं तो उम्मीद लगाए राह देख रहा हूँ, बस!'

'बेहतर होगा कि तुम उसे तोहफे में कोई चीज दे दो। मेरा दावा है कि यह बात तुम्हें नहीं सूझी होगी।'

'मैं तुमसे कह चुका कि तुम कई बातें नहीं समझते! यह सच है कि उसकी ऐसी हालत है, लेकिन वह अलग सवाल है! बिलकुल दूसरा सवाल! तुम उससे सिर्फ नफरत करते हो। तुमने ऐसी बात देखी जिसके बारे में तुम्हारी यह गलत राय है कि उसका तिरस्कार ही किया जा सकता है। इस तरह तुम अपने ही जैसे एक इनसान को इनसानियत की नजरों से देखने से इनकार कर रहे हो। तुम्हें मालूम नहीं कि उसका कैसा चरित्र है! मुझे तो इस बात का अफसोस है कि इधर कुछ दिनों से उसने किताबें पढ़ना और किताबें माँग कर ले जाना बंद कर दिया है। पहले मैं उसे पढ़ने को किताबें दिया करता था। मुझे इस बात का भी अफसोस है कि हालात के खिलाफ आवाज उठाने का जोश और पक्का इरादा होते हुए भी - जिसका सबूत एक बार वह दे भी चुकी है - उसे अपने आप पर बहुत कम भरोसा है। उसमें यूँ कहो कि आजादी बहुत कम है, इतनी कम कि वह कुछ पूर्वाग्रहों से और... बेवकूफी के कुछ विचारों से छुटकारा नहीं पा सकती। फिर भी वह कुछ सवालों को बहुत अच्छी तरह समझती है। मिसाल के लिए हाथ चूमने के सवाल को... मतलब यह कि एक आदमी एक औरत का हाथ चूमे तो इसे वह औरत का अपमान समझती है क्योंकि यह औरत को अपने बराबर न समझने की निशानी है। इसके बारे में हमारी बहस हुई थी और मैंने यह बात उसे अच्छी तरह समझाई थी। उसने फ्रांस के मजदूर संगठनों की तफसील भी बड़े ध्यान से सुनी थी। अब मैं उसे आनेवाले समाज में किसी के कमरे में किसी के बेरोकटोक घुसने का सवाल समझा रहा हूँ।'

'यह कौन-सी बला है?'

'अभी कुछ दिन पहले हम लोगों में इस सवाल पर बहस हुई थी कि कम्यून के एक सदस्य को दूसरे सदस्य के कमरे में, वह मर्द हो या औरत, किसी भी समय घुसने का अधिकार है या नहीं... और हम इस नतीजे पर पहुँचे कि यह अधिकार उसे है!'

'लेकिन उस वक्त वे कोई बहुत ही वैसा काम कर रहे हों तो... खी-खी-खी!'

इस पर लेबेजियातनिकोव को सचमुच गुस्सा आ गया।

'हमेशा तुम कोई-न-कोई बेहूदा बात सोचते हो,' वह नफरत से भरे लहजे में जोर से बोला। 'हमेशा वही बात। जब देखो तब वही कमबख्त 'कोई वैसा काम छिः! यह सोच कर भी मुझे कितनी झुँझलाहट होती है कि तुम्हें अपनी व्यवस्था के बारे में समझाते हुए मैंने कमबख्त निजी किस्म की समस्याओं का सवाल वक्त से पहले ही क्यों उठाया! तुम्हारे जैसे लोग हमेशा यहीं पर आ कर अटकते हैं, बात को समझने से पहले ही उसका मजाक उड़ाने लगते हैं, और इसी पर मुझे झुँझलाहट होती है। वे सचमुच यह समझते हैं कि वे जानते हैं, वे क्या कह रहे हैं और इस पर गर्व भी करते हैं! छि! मैं बार-बार कह चुका कि यह सवाल किसी अनाड़ी को तब तक नहीं समझाया जाना चाहिए, जब तक उसे इस व्यवस्था के सही होने का पक्का विश्वास न हो जाए, जब तक उसके विचार विकसित न हों और जब तक वह सही दिशा में आगे न बढ़े। अब मेहरबानी करके यह बताइए जनाब, कि आपको, मिसाल के तौर पर, नाबदानों में भी क्या वैसी बात दिखाई देती है। मैं तो जो नाबदान भी आप कहें, उसे साफ करने को तैयार हूँ... सबसे पहले यह आत्म-बलिदान का सवाल नहीं है, यह तो बस एक काम है... इज्जतदार, उपयोगी काम जो उतना ही अच्छा है जितना कोई दूसरा काम है। अरे, यह काम तो किसी रफाएल या पुश्किन के काम से भी अच्छा है, क्योंकि यह कहीं ज्यादा उपयोगी काम है!'

'और ज्यादा इज्जतदार भी, ज्यादा इज्जतदार भी... खी-खी-खी!'

'इस 'ज्यादा इज्जतदार' से क्या मतलब है तुम्हारा आदमी के किसी भी काम के बयान के लिए इस तरह के जुमले मेरी तो समझ में नहीं आते। 'ज्यादा इज्जतदार', 'अधिक उच्च' - ये सब हैं पुराने ढंग के पूर्वाग्रह, जिन्हें मैं नहीं मानता। मानव-जाति के लिए जो चीज भी उपयोगी हो, वही इज्जतदार है! मैं बस एक शब्द समझता हूँ : उपयोगी! तुम चाहे जितना हँसो, लेकिन सच बात यही है!'

प्योत्र पेत्रोविच दिल खोल कर हँसा। वह पैसे गिन चुका और सँभाल कर रख चुका था। लेकिन कुछ नोट उसने मेज पर क्यों छोड़े थे, इसे वही जानता था। इस नाबदान वाले सवाल पर प्योत्र पेत्रोविच और उसके नौजवान दोस्त के बीच कई बार झगड़ा हो चुका था। इसमें बेवकूफी की बात यह थी कि लेबेजियातनिकोव को इस पर सचमुच गुस्सा आता था जबकि लूजिन को इसमें मजा आता था। इस वक्त तो वह खास तौर पर अपने नौजवान दोस्त का पारा चढ़ाना चाहता था।

'कल तुम्हारे साथ जो गलत बात हुई, तुम उसी की वजह से इतने बदमिजाज और चिड़चिड़े हो रहे हो,' लेबेजियातनिकोव आखिर फट पड़ा। अपनी 'आजादी' और अपने 'विरोधों' के बावजूद वह प्योत्र पेत्रोविच से टक्कर लेने की हिम्मत नहीं रखता था और अभी भी वह उसके साथ एक हद तक उसी इज्जत के साथ पेश आता था जिसका कि वह पहले कभी बरसों तक आदी रह चुका था।

'अच्छा तो यह बताओ,' प्योत्र पेत्रोविच ने चिढ़ कर रोब से उसकी बात काटी, 'क्या तुम... या यूँ समझ लो, तुम क्या सचमुच उस जवान लड़की को इतनी अच्छी तरह जानते हो कि उसे एक मिनट के लिए यहाँ ले आओ... मैं समझता हूँ वे सब लोग कब्रिस्तान से लौट आए हैं... मैंने कदमों की आहट सुनी है... मैं उससे मिलना चाहता हूँ, उस जवान लड़की से।'

'किसलिए भला?' लेबेजियातनिकोव ने ताज्जुब से पूछा।

'बस यूँ ही। कल या परसों मैं यहाँ से चला जाऊँगा, इसलिए उससे बात करना चाहता था कि... हाँ, उससे जब मैं बात करूँ, तब तुम भी मौजूद रह सकते हो। दरअसल, बेहतर तो यही होगा कि तुम मौजूद रहो क्योंकि कौन जाने तुम क्या-क्या सोच बैठो।'

'मैं जरा भी नहीं सोचूँगा... मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया... और अगर उससे तुम्हें कुछ कहना है तो उसे यहाँ बुला लाना कोई मुश्किल काम नहीं। मैं अभी जाता हूँ और तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मैं बीच में नहीं आऊँगा।'

पाँच मिनट बाद लेबेजियातनिकोव सचमुच सोन्या को साथ लिए हुए अंदर आया। वहाँ आ कर सोन्या को ताज्जुब हो रहा था और वह हमेशा की तरह शरमाए जा रही थी। ऐसी परिस्थितियों में वह हमेशा शरमाती थी और नए लोगों से उसे हमेशा डर लगता था। यूँ वह बचपन से ही डरपोक थी, लेकिन अब तो और भी हो गई थी। ...प्योत्र पेत्रोविच उससे बड़ी 'शिष्टता और नर्मी' के साथ मिला, लेकिन उसमें कुछ दिल्लगी और बे-तकल्लुफी का भी मेल था, क्योंकि उसकी राय में सोन्या जैसी नौजवान और एक विशेष अर्थ में दिलचस्प हस्ती के साथ इसी तरह पेश आना उसके जैसे इज्जतदार और हैसियतवाले आदमी के लिए मुनासिब था। उसने जल्दी से उसको 'आश्वस्त कर दिया' और उसे मेज के दूसरी ओर अपने सामने बिठाया। सोन्या बैठी और उसने अपने चारों ओर एक नजर डाली - लेबेजियातनिकोव पर, मेज पर पड़े नोटों पर और एक बार फिर प्योत्र पेत्रोविच पर फिर उसकी नजरें उसी पर जमी रह गईं। लेबेजियातनिकोव दरवाजे की ओर जा रहा था। प्योत्र पेत्रोविच ने सोन्या को बैठे रहने का इशारा करके जा कर लेबेजियातनिकोव को रोका।

'रस्कोलनिकोव वहाँ है? आया है क्या?' उसने उससे चुपके से पूछा।

'रस्कोलनिकोव? हाँ। क्यों? हाँ, वहीं है... मैंने अभी उसे अंदर आते देखा... क्यों?'

'खैर, मैं तुमसे खास तौर पर अर्ज करना चाहता हूँ कि यहाँ हम लोगों के साथ रहो और मुझे अकेला छोड़ कर न जाओ, इस... इस लड़की के साथ। मुझे इससे बस कुछ बातें ही करनी हैं, पर भगवान जाने, लोग उसका क्या-क्या मतलब लगा बैठे। मैं नहीं चाहता कि रस्कोलनिकोव लोगों से वहाँ यह कहे... मेरा मतलब समझ रहे हो न?'

'हाँ, समझ रहा हूँ! समझ रहा हूँ!' लेबेजियातनिकोव ने कहा। मतलब उसकी समझ में एकाएक आ गया था। 'हाँ, तुम्हें इसका अधिकार है... लेकिन, मेरा अपना खयाल यह है कि तुम्हें इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन... फिर भी, तुम्हें इसका अधिकार है। मैं यहीं रुकता हूँ। मैं यहाँ खिड़की के पास खड़ा हूँ और तुम्हारी बातों में कोई बाधा नहीं आएगी... मैं समझता हूँ, तुम्हें इसका अधिकार है...'

प्योत्र पेत्रोविच वापस जा कर सोन्या के सामने सोफे पर बैठ गया और उसे गौर से देखने लगा। उसने रोबदार, बल्कि कुछ हद तक कठोर, मुद्रा धारण कर ली, गोया कह रहा हो कि 'किसी तरह की गलतफहमी में मत रहियेगा, मोहतरमा।' सोन्या बुरी तरह सिटपिटा गई।

'पहली बात यह है, सोफ्या सेम्योनोव्ना, कि तुम मेरी तरफ से अपनी माँ से माफी माँग लेना... ठीक है न कतेरीना इवानोव्ना तो तुम्हारी माँ जैसी ही हुई, कि नहीं?' प्योत्र पेत्रोविच ने रोब से, लेकिन काफी खुशदिली के साथ कहना शुरू किया। साफ तौर पर उसके इरादे दोस्ताना ही थे।

'जी हाँ; माँ जैसी ही हैं,' सोन्या ने डरते-डरते, जल्दी से जवाब दिया।

'तो तुम उनसे मेरी तरफ से माफी माँगोगी न मैं कुछ मजबूरियों की वजह से वहाँ नहीं आ सकूँगा। हालाँकि तुम्हारी माँ ने काफी आग्रह करके मुझे बुलाया है।'

'जी... मैं कह दूँगी... अभी।' यह कह कर सोन्या अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ी हो गई।

'ठहरो, बात अभी पूरी नहीं हुई,' प्योत्र पेत्रोविच ने उसकी सादगी पर और उसके शिष्टाचार के अज्ञान पर मुस्कराते हुए उसे रोका। 'सोफ्या सेम्योनोव्ना, अगर तुम यह समझती हो कि मैंने इतनी छोटी-सी बात के लिए, जिसका संबंध सिर्फ मुझसे है, तुम्हारे जैसे शख्स को तकलीफ देने की हिम्मत की है, मतलब यह हुआ कि मुझे तुम ठीक से जानती भी नहीं। मुझे एक काम और भी था।'

सोन्या जल्दी से बैठ गई। उसकी आँखें एक बार फिर मेज पर रखे स्लेटी और इन्द्रधनुषी रंगोंवाले नोटों पर जा कर पलभर के लिए टिकीं लेकिन उसने जल्दी से नजरें वहाँ से हटा कर प्योत्र पेत्रोविच पर जमा दीं। उसने अचानक महसूस किया कि किसी दूसरे के पैसे को घूरना बहुत ही बेहूदा बात थी, खास तौर पर उसके लिए। वह प्योत्र पेत्रोविच के हाथ में मौजूद सुनहरे फ्रेमवाले चश्मे को और उसकी बीच की उँगली में बड़ा-सा पीला पत्थर लगी बेहद खूबसूरत, बड़ी-सी अँगूठी को घूरने लगी। लेकिन अचानक उसने वहाँ से भी अपनी नजरें हटा लीं और जब उसकी समझ में यह न आया कि किस चीज पर नजरें जमाए तो सीधे प्योत्र पेत्रोविच के चेहरे पर नजरें जमा कर घूरने लगी। थोड़ी देर ठहर कर वह और भी रोब के साथ बोला :

'कल यूँ ही लगे हाथों मुझे बेचारी कतेरीना इवानोव्ना से दो-एक बातें करने का मौका मिला था। बस उतना ही मेरे लिए यह अंदाजा लगा लेने के वास्ते काफी था कि उसकी हालत यूँ कहें कि कुछ अस्वाभाविक-सी थी...'

'जी हाँ...' सोन्या ने जल्दी से हामी भरी।

'या अगर और भी सीधे-सादे और भी आसानी से समझ में आनेवाली भाषा में कहा जाए तो वे बीमार हैं।'

'जी, और भी सीधे-सादे और भी आम... जी हाँ, बीमार।'

'यही बात है। इसलिए उनकी इस हालत को देखते हुए इनसानियत के नाते या यूँ कहें कि दया के भाव से मुझे बहुत खुशी होगी अगर मैं उनकी कुछ खिदमत कर सकूँ। मुझे पता चला है कि अब इस बदहाल परिवार का बोझ पूरी तरह तुम्हारे कंधों पर है।'

'मैं एक बात पूछना चाहती हूँ,' सोन्या ने उठ कर खड़े होते हुए कहा, 'आपने कल उनसे पेन्शन मिल सकने के बारे में क्या कहा था इसलिए कि कल वे मुझसे कह रही थीं कि आपने वादा किया है आप उन्हें पेन्शन दिला देंगे। क्या वह बात सच थी?'

'कतई नहीं। दरअसल, यह तो पूरी तरह बेसर-पैर की बात है। मैंने तो सिर्फ इतना कहा था कि नौकरी के दौरान मरनेवाले अफसर की विधवा होने के नाते उन्हें थोड़ी-बहुत सरकारी मदद मिल सकती है - वह भी अगर उनकी पहुँच ऊपर किसी तक हो तो... लेकिन मुझे तो पता चला है कि तुम्हारे बाप ने पूरी मुद्दत तक नौकरी नहीं की थी और इधर काफी दिनों से तो वे नौकरी में भी नहीं थे। सच बात तो यह है कि अगर कोई उम्मीद हो भी तो बहुत थोड़ी ही होगी, क्योंकि तुम तो देख रही हो न, ऐसी हालत में उनकी मदद पाने का कोई हक दूर-दूर तक नहीं बनता। बल्कि तो बात इसकी उलटी ही है। तो वे अभी से पेन्शन के सपने देखते लगी हैं, क्यों? खी-खी-खी! बहुत तेज औरत हैं!'

'जी हाँ, वे पेन्शन की उम्मीद लगाए बैठी हैं क्योंकि वे आसानी से सबकी बात पर विश्वास कर लेती हैं। वे दिल की बहुत अच्छी हैं और इसीलिए हर बात पर भरोसा कर लेती हैं और... और... वे हैं ही ऐसी। ...जी ...आप उनकी बात का बुरा मत मानिएगा,' यह कह कर सोन्या एक बार फिर चल देने के लिए उठी।

'लेकिन तुमने वह बात तो सुनी ही नहीं, जो मुझे कहनी थी।'

'जी नहीं... नहीं सुनी,' सोन्या ने बुदबुदा कर कहा।

'तो बैठो फिर।'

सोन्या सिटपिटाई हुई थी और तीसरी बार भी बैठ गई।

'छोटे-छोटे अभागे बच्चों के साथ उनकी दुर्दशा को देखते हुए, जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ, जहाँ तक मेरे बस में है, अगर मैं उनकी कोई खिदमत कर सकूँ तो मुझे खुशी होगी... मतलब कि जहाँ तक मेरे बस में है, उससे ज्यादा नहीं। मिसाल के लिए, उनके लिए चंदा जमा किया जा सकता है, कोई लॉटरी निकाली जा सकती है, या इसी तरह का कोई और काम किया जा सकता है, जैसा कि ऐसी हालत में रिश्तेदार या बाहर के लोग भी जो मदद करना चाहते हैं, अकसर इतना कर देते हैं। तुमसे मैं इसी बारे में बातें करना चाहता था। इतना तो किया ही जा सकता है।'

'जी, जी हाँ... भगवान आपको बहुत कुछ देगा,' सोन्या ने प्योत्र पेत्रोविच को ध्यान से देखते हुए, लड़खड़ाती जबान से कहा।

'इतना तो हो ही सकता है, लेकिन उसके बारे में बातें हम बाद में करेंगे... यानी कि हम यह काम आज भी शुरू कर सकते हैं। हम आज शाम को मिलेंगे और इस बारे में बातें करेंगे और जैसा कि लोग कहते हैं इसकी नींव डालेंगे। सात बजे मेरे पास आना। मुझे उम्मीद है कि आंद्रेई सेमेनोविच भी इस काम में हमारी मदद करेंगे। लेकिन... एक बात के बारे में मैं पहले से तुम्हें सावधान कर दूँ और सोफ्या सेम्योनोव्ना, मैंने उसी के लिए तुम्हें यहाँ आने की तकलीफ दी है। सच कहूँ तो मेरी राय में कतेरीना इवानोव्ना के हाथों में पैसे देना खतरे से खाली नहीं होगा। आज की दावत इसी बात का सबूत है। कल के लिए तो यूँ कह लो कि खाने को रोटी का टुकड़ा भी नहीं और... खैर, न किसी के पाँव में जूते हैं, न कोई और चीज है लेकिन आज के लिए जमैका की रम खरीदी गई है, मैं समझता हूँ 'मदीरा' भी है और... और कॉफी भी। उधर से गुजरते वक्त मैंने यह सब देखा है। कल तुम्हें पूरे परिवार के लिए नए सिर से बंदोबस्त करना पड़ेगा, जो कि मेरे कहे का बुरा मत मानना, बकवास-सी बात है। इसलिए मैं समझता हूँ कि चंदा इस तरह जमा होना चाहिए कि उस अभागिनी बेवा को पता न चले... सिर्फ मिसाल के लिए तुम्हें इसका पता रहे। ठीक है न?'

'मालूम नहीं... यह बस आज की बात है, जिंदगी में एक बार... उनकी बड़ी इच्छा थी कि मरनेवाले का सम्मान किया जाए, उसकी याद मनाई जाए... वैसे वे बहुत समझदार हैं... लेकिन आप जैसा ठीक समझें, मैं तो बहुत-बहुत... उन सबको... भगवान आपको बहुत कुछ देगा... और वे अनाथ बच्चे...'

सोन्या अपनी बात आगे न कह सकी और फूट-फूट कर रोने लगी।

'तो अच्छी बात है, इसका ध्यान रखना। इस वक्त तो मैं निजी तौर पर जो थोड़ा-बहुत दे सकता हूँ, तुम्हारे परिवार के लिए दे रहा हूँ... इसे ले लो। मैं तो यह भी नहीं चाहता था कि इस सिलसिले में कहीं मेरा नाम लिया जाए। यह लो... एक तरह से मेरी अपनी भी परीशानियाँ हैं, सो मैं तो कुछ ज्यादा नहीं कर सकता...'

यह कह कर प्योत्र पेत्रोविच ने दस रूबल का एक नोट सावधानी से सीधा करके सोन्या को दे दिया। सोन्या ने नोट लिया और उसका चेहरा लाल हो गया। वह उछल कर उठ खड़ी हुई और मुँह-ही-मुँह में कुछ बुदबुदा कर चलने को तैयार हो गई। प्योत्र पेत्रोविच शालीनता के साथ उसे दरवाजे तक छोड़ने आया। आखिरकार वह परेशान और बौखलाई हुई कमरे से बाहर निकल गई और जब कतेरीना इवानोव्ना के पास पहुँची तो बुरी तरह घबराई हुई थी।

इस पूरी बातचीत के दौरान लेबेजियातनिकोव या तो खिड़की के पास खड़ा रहा या कमरे में टहलता रहा क्योंकि वह बातचीत में बाधा नहीं डालना चाहता था। सोनिया के जाने के बाद वह प्योत्र पेत्रोविच के पास पहुँचा और गंभीरता से उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया।

'मैंने सब कुछ सुना और देखा भी,' उसने आखिरी शब्दों पर जोर देते हुए कहा। 'यह होती है शराफत, मतलब कि इसे कहते हैं इनसानियत! तुम तो उस पर एहसान का बोझ भी नहीं डालना चाहते थे! मैं मानता हूँ कि सिद्धांत के सर पर मैं व्यक्तिगत खैरात की हिमायत नहीं कर सकता। इससे न सिर्फ यह कि बुराई दूर नहीं होती बल्कि उलटे उसे बढ़ावा मिलता है। फिर भी जो कुछ तुमने किया, वह सब मैंने देखा और देख कर मुझे खुशी हुई - हाँ-हाँ, मुझे यह बात अच्छी लगी।'

'उफ, यह सब बेकार की बात है,' प्योत्र पेत्रोविच ने एक अजीब चेहरा बना कर लेबेजियातनिकोव की ओर देखते हुए, जरा उत्तेजित हो कर कहा।

'नहीं, बेकार की बात नहीं है! जिस आदमी को खुद मुसीबत और परीशानी का सामना करना पड़ा हो, जैसा कि कल तुमने किया, दूसरों की मुसीबत देख कर उनके साथ हमदर्दी करे तो ऐसा आदमी, वह भले ही सामाजिक स्तर पर गलती कर रहा हो, इज्जत के काबिल होता है! मुझे तुमसे वाकई इसकी उम्मीद नहीं थी, प्योत्र पेत्रोविच, खास तौर पर इसलिए कि तुम्हारे विचार में... आह! तुम्हारे विचार भी तुम्हारे लिए कैसी मुसीबत हैं! मिसाल के लिए, कल लगे धक्के के सबब तुम कितने दुखी हो,' लेबेजियातनिकोव ने भोलेपन से हमदर्दी दिखाते हुए कहा; उसके दिल में प्योत्र पेत्रोविच के लिए फिर से प्यार उमड़ आया था। 'पर मेरे नेक दोस्त ...प्योत्र पेत्रोविच ...तुम्हें इस शादी से, इस कानूनी शादी से, क्या मिल जाएगा तुम शादी की इस कानूनियत में भला क्यों उलझे रहना चाहते हो? खैर, तुम चाहो तो पीट लो मुझे लेकिन मुझे खुशी है, सचमुच बहुत खुशी है, कि यह शादी नहीं हो पाई और तुम आजाद हो, कि अभी तक मानवजाति के लिए तुम बचे हुए हो। ...देखा तुमसे, मैंने दिल की बात साफ-साफ कही है!'

'इसलिए कि मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी 'बिन शादी की शादी' के चक्कर में पड़ कर मैं गले में पट्टा डाले रहूँ। दूसरों के बच्चे पालता रहूँ। मैं कानूनी शादी इसीलिए करना चाहता हूँ,' लूजिन को कुछ जवाब देना था, सो उसने यही जवाब दिया। लग रहा था कि वह विचारमग्न और किसी उलझन में है।

'बच्चे तुम बच्चों की बात कर रहे थे,' लेबेजियातनिकोव ऐसे चौंका जैसे बिगुल की आवाज पर लड़ाई का घोड़ा चौंकता है। 'बच्चे एक सामाजिक समस्या हैं और सबसे महत्वपूर्ण समस्या हैं, सो मैं मानता हूँ। लेकिन बच्चों की समस्या का एक दूसरा हल भी है। कुछ लोग तो बच्चों की जरूरत को मानते तक नहीं, न किसी ऐसी चीज को जिसका परिवार से कोई संबंध हो। बच्चों की बात हम बाद में करेंगे। रहा गले में पट्टे का सवाल तो मैं मानता हूँ कि वह मेरी कमजोरी है। यह बेहूदा, हुस्सारोंवाला पुश्किनवादी शब्द भविष्य के किसी शब्दकोश में मिलेगा भी नहीं। और यह तो बताइए श्रीमान कि ये पट्टे क्या होते हैं? इस शब्द का कैसा गलत प्रयोग किया है। क्या बकवास है! अपनी पसंद की शादी में पट्टे का कोई सवाल नहीं होगा! पट्टे तो कानूनी शादी के स्वाभाविक परिणाम होते हैं, एक तरह से गलती को ठीक करने का जरिया होते हैं, एक तरह से विरोध होते हैं। इसलिए इसमें अपमान की ऐसी कोई बात है भी नहीं... और अगर... थोड़ी देर के लिए दलील की सुविधा के लिए हम यह बेतुकी बात मान भी लें, तो अगर मैं कभी कानूनी शादी करूँगा तो तुम्हारे वे कमबख्त पट्टे डाल कर मुझे बहुत खुशी होगी! तब मैं अपनी बीवी से कह तो सकूँगा कि जानेमन, अभी तक मैं तुम्हें सिर्फ प्यार करता था, लेकिन अब तुम्हारी इज्जत करता हूँ क्योंकि तुममें विरोध करने की हिम्मत तो है! तो तुम हँस रहे हो... हँसो, क्योंकि तुम पूर्वाग्रहों से छुटकारा नहीं पा सकते! लानत है इन बातों पर! मेरी समझ में आ चुका कि कानूनी शादी में धोखा खाना आदमी को बुरा क्यों लगता है। लेकिन यह तो एक शर्मनाक नतीजा है ऐसी शर्मनाक स्थिति का, जिसमें दोनों का अपमान होता ही रहता है। जब खुल्लमखुल्ला पट्टे डाल लिए जाते हैं, जैसे कि मुक्त विवाह में तो वे बाकी भी नहीं रहते। उनका विचार मन में नहीं आता और वे पट्टे ही नहीं रहते। आपकी बीवी जब यह समझेगी कि आप उसकी खुशी का विरोध नहीं कर सकते कि आप उसके नए शौहर की वजह से उससे बदला लेने की बात सोच तक नहीं सकते, तभी वह यह साबित कर सकेगी कि वह आपकी कितनी इज्जत करती है। लानत है! कभी-कभी मैं भी सपना देखने लगता हूँ कि मजबूरन किसी आदमी से अगर मेरी शादी हो जाए... छिः! मतलब किसी औरत से हो जाए तो वह शादी कानूनी हो या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता... तो मेरी बीवी अपने लिए अगर खुद कोई प्रेमी न ढूँढ़े तो मैं उसके लिए ढूँढ़ दूँगा। कहूँगा : 'मेरी जान, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, लेकिन उससे भी बढ़ कर यह चाहता हूँ कि तुम मेरी इज्जत करो, इसलिए यह लो!' जो मैं कह रहा हूँ वह ठीक तो है न?'

प्योत्र पेत्रोविच उसकी बातें सुन कर धीरे-धीरे हँसता रहा, लेकिन इनमें उसे कोई खास मजा नहीं आ रहा था। वह तो शायद कुछ सुन भी नहीं रहा था। वह कुछ और ही सोच रहा था और आखिरकार लेबेजियातनिकोव का ध्यान भी इस तरफ गया। प्योत्र पेत्रोविच बेचैन-सा लग रहा था, हाथ मल रहा था और विचारों में डूबा हुआ था। लेबेजियातनिकोव को जब ये बातें बाद में याद आईं, तब उसकी समझ में आया कि वजह क्या थी...

अपराध और दंड : (अध्याय 5-भाग 2)

इसके कारण सही-सही बताना कठिन होगा कि कतेरीना इवानोव्ना के उलझे हुए दिमाग में जनाजे की उस बेतुकी दावत का विचार कैसे पैदा हुआ। रस्कोलनिकोव ने मार्मेलादोव के जनाजे के लिए जो कोई बीस रूबल दिए थे, उनमें से लगभग दस तो इस दावत पर बर्बाद कर दिए गए। शायद कतेरीना इवानोव्ना मरनेवाले की यादों के 'उचित' सम्मान को इसलिए जरूरी समझती थी कि वहाँ रहनेवाले सभी लोगों को और सबसे बढ़ कर अमालिया इवानोव्ना को यह एहसास हो जाए कि 'वह उनसे किसी भी तरह कमतर नहीं था, बल्कि उनसे शायद ऊँचा ही था' और किसी को भी 'उस पर नाक चढ़ाने' का अधिकार नहीं था। शायद इसकी सबसे बड़ी वजह थी अजीब-सी वह गरीबोंवाली आन, जो बहुत से गरीबों को मजबूर करती है कि वे अपनी बचत की आखिरी कौड़ी भी समाज की किसी रस्म को निभाने पर सिर्फ खर्च कर दें। इसलिए कि वे भी वैसा ही कर सकें 'जैसा दूसरे लोग करते हैं' और इस तरह ये दूसरे लोग उन्हें 'तुच्छ' न समझें। यह भी मुमकिन है कि ठीक उस वक्त जब यह लगता था कि दुनिया में हर आदमी ने उसे बेसहारा छोड़ दिया है, वह उन 'टुच्चे और कमबख्त किराएदारों' को यह दिखा देना चाहती थी कि उसे भी 'धूमधाम से काम करना, शानदार दावतें करना' आता है कि उसका पालन-पोषण 'एक बेहद शरीफ, बल्कि यूँ कहो कि पुश्तैनी रईस, कर्नल के घर में' हुआ था और वह झाड़ू देने और रातभर बच्चों के फटे-पुराने कपड़े धोने के लिए पैदा नहीं हुई थी। कभी-कभी गरीब से गरीब और एकदम टूटे हुए लोगों पर भी इस तरह के घमंड और गुरूर का दौरा पड़ता है, जो बढ़ते-बढ़ते एक अनियंत्रित और सालनेवाली इच्छा का रूप ले लेता है। लेकिन कतेरीना इवानोव्ना का हौसला अभी तक टूटा नहीं था। परिस्थितियों ने भले ही उसे तोड़ दिया हो, लेकिन कोई उसका हौसला नहीं तोड़ सकता था, उसे धौंस दे कर नहीं दबा सकता था, उसकी इच्छा-शक्ति को नहीं कुचल सकता था। इसके अलावा, सोन्या ने यह बात भी अकारण नहीं कही थी कि उसका दिमाग ठिकाने नहीं था। माना कि उसे यकीन के साथ पागल नहीं कहा जा सकता था, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं था कि इधर हाल में बल्कि पिछले एक साल से उस पर इतनी मुसीबतें टूटी थीं कि अगर उसका दिमाग थोड़ा-बहुत खराब न हो जाता, तो ताज्जुब की बात वह होती। डॉक्टरों का कहना है कि तपेदिक की आखिरी मंजिलों में दिमाग पर भी असर पड़ता है।

वहाँ न तो तरह-तरह की शराबें थीं, और न कहीं मदीरा था। यह सब तो अतिशयोक्तियाँ थीं, लेकिन पीने-पिलाने का इंतजाम जरूर था। वोदका, रम पुर्तगाली सब थीं, सभी घटियाँ किस्म की थीं पर थीं काफी मात्रा में। परंपरा निभाने के लिए चावल और किशमिश का हलवा भी था पर तीन-चार चीजें और भी थीं, जिनमें मालपुवे भी थे, और ये सब चीजें अमालिया इवानोव्ना की रसोई में तैयार की गई थीं। खाने के बाद चाय और पंच पिलाने के लिए दो समोवारों में पानी उबल रहा था। मादाम लिप्पेवेख्सेल के यहाँ न जाने कहाँ-कहाँ भटक कर मुसीबत का मारा, छोटे से कद का एक पोल किराएदार आ गया था; कतेरीना इवानोव्ना ने उसी की मदद से खुद अपनी निगरानी में खाने-पीने का सारा सामान तैयार कराया था। वह मुस्तैदी से कतेरीना इवानोव्ना की खिदमत में जुट गया था और उस दिन सबेरे से और पूरे पिछले दिन भी अपनी सकत भर इधर से उधर भागता रहा था; यहाँ तक कि उसकी जबान बाहर लटक आई थी। उसे इस बात की फिक्र भी थी कि उसकी इस हालत को सभी जरूर देख लें। वह छोटी से छोटी बात के लिए भाग कर कतेरीना इवानोव्ना के पास जाता था, यहाँ तक कि बाजार में भी उसे खोज निकालता था, और हर बार 'मादाम' कह कर पुकारता था। सारा क्रिया-कर्म संपन्न होने से पहले ही वह उससे बुरी तरह तंग आ गई हालाँकि शुरू में उसने कहा था कि अगर यह 'बेहद सेवा करनेवाला और ऊँचे विचारोंवाला आदमी' न होता तो फिर उसके तो हाथ-पाँव फूल जाते। कतेरीना इवानोव्ना की एक खास बात यह थी कि जिससे भी मिलती थी, शुरू में उसकी तारीफ के पुल बाँध देती थी। कभी-कभी तो वह उसे आसमान पर इस तरह चढ़ा देती कि जिसकी तारीफ वह करती, वह खुद शर्मिंदा हो जाता था। उसकी तारीफ में वह तरह-तरह की बातें गढ़ लेती थी और उन पर यकीन भी करने लगती थी। लेकिन फिर अचानक वह उससे निराश भी हो जाती थी और कुछ ही घंटे पहले तक जिस आदमी की पूजा करती थी, उसी के मुँह पर उसके बारे में बुरी बात कहने में भी कोई संकोच नहीं करती थी। वह उसे एक तरह से ठोकर मार कर निकाल बाहर करती थी। स्वभाव से वह खुशमिजाज, जिंदादिल और शांतिप्रेमी थी, लेकिन लगातार मुसीबतें और असफलताएँ झेलते-झेलते बड़ी गहराई से उसका जी चाहने लगा था कि सभी लोग शांति और संतोष से रहें और कोई भी व्यक्ति शांति भंग करने की जुरअत न करे। जरा-सी टेढ़ी बात से, छोटी-से-छोटी असफलता से भी वह बेचैन हो उठती थी और सुखद आशाओं और कल्पनाओं की दुनिया से निकल कर एक पल में निराशा के अथाह सागर में डूब जाती थी, उलटी-सीधी बोलने लगती थी, अपने भाग्य को कोसने लगती थी, और दीवार से सर टकराने लगती थी। कतेरीना इवानोव्ना की नजरों में अचानक अमालिया इवानोव्ना का महत्व भी असाधारण हो गया था और वह उसकी बेहद इज्जत करने लगी थी। शायद इसलिए कि जैसे ही जनाजे की दावत का फैसला हुआ, अमालिया इवानोव्ना तन-मन से उसकी तैयारियों में जुट गई। उसने मेज पर खाने-पीने की चीजें सजाने, मेजपोश और बर्तन वगैरह देने और सारा खाना अपनी रसोई में पकवाने का जिम्मा ले लिया था और कतेरीना इवानोव्ना ये सारे काम उसके हवाले छोड़ कर खुद कब्रिस्तान चली गई थी। सारा बंदोबस्त सचमुच बहुत अच्छा हुआ था : मेज काफी साफ-सुथरी लग रही थी। प्लेटें, छुरी-काँटे और गिलास जाहिर है कि अलग-अलग शक्लों और नमूनों के थे क्योंकि वे अलग-अलग किराएदारों के यहाँ से लाए गए थे, लेकिन मेज सही वक्त पर सजा दी गई थी, और यह इतमीनान करके कि उसने अपना काम काफी अच्छे ढंग से पूरा कर दिया था, अमालिया इवानोव्ना ने एक काली पोशाक पहन ली थी और अपनी टोपी पर नए मातमी फीते लगा कर गर्व के साथ कब्रिस्तान से लौटनेवालों का स्वागत करने के लिए खड़ी हो गई थी। उसका यह गर्व उचित भी था, लेकिन न जाने क्यों कतेरीना इवानोव्ना को यह बात नागवार गुजरी : 'गोया अमालिया इवानोव्ना के अलावा मेज कोई और सजा ही नहीं सकता था!' कतेरीना इवानोव्ना को उसकी नए फीतोंवाली टोपी भी अच्छी नहीं लगी। 'यह बेवकूफ जर्मन औरत क्या इस बात पर इतरा रही है कि वह मकान-मालकिन है और अपने गरीब किराएदारों की मदद करके उन पर उसने एहसान किया है... एहसान! जरा देखो तो सही! कतेरीना इवानोव्ना के बाप तो कर्नल रह चुके थे, उनके गवर्नर बनने में बस थोड़ी-सी कसर रह गई थी, कभी-कभी वे एक साथ चालीस-चालीस आदमियों की दावत करते थे और उस मौके पर अमालिया इवानोव्ना जैसे बल्कि लूदविगोव्ना जैसे भी किसी शख्स को भी रसोई में घुसने की इजाजत नहीं होती थी...' लेकिन कतेरीना इवानोव्ना ने उस वक्त अपनी भावनाओं को जाहिर करने का विचार टाल दिया और उसकी तरफ बेरुखी का रवैया अपना कर संतोष कर लिया, हालाँकि उसने मन-ही-मन ठान लिया था कि उसने अमालिया इवानोव्ना का गुरूर आज ही चूर करना होगा और उसे उसकी असली हैसियत बता देनी होगी, वरना भगवान जाने वह अपने आपको कितना महत्वपूर्ण समझने लगे। कतेरीना इवानोव्ना को इस बात की भी चिढ़ थी कि उस घर में रहनेवाले जिन लोगों को निमंत्रण दिया गया था, उनमें शायद ही कोई जनाजे में शरीक हुआ था, उस नाटे पोल को छोड़ कर जो किसी तरह वहाँ पहुँच गया था। जनाजे की दावत में भी सबसे गरीब और सबसे महत्वहीन लोग ही आए और उनमें से कई तो पूरी तरह होश में भी नहीं थे। यानी कि कुल मिला कर फटीचर लोग। जो ज्यादा उम्र के और ज्यादा इज्जतदार लोग थे, वे सभी, गोया आपस में तय करके, दावत में नहीं आए थे। मिसाल के लिए, प्योत्र पेत्रोविच लूजिन, जिसे उस मकान के निवासियों में सबसे इज्जतदार कहा जा सकता था, नहीं आया था। कतेरीना इवानोव्ना ने तो अभी कल शाम को ही सारी दुनिया के सामने, यानी अमालिया इवानोव्ना, पोलेंका सोन्या और उस नाटे पोल के सामने, कहा था कि वह बेहद उदार और बेहद नेकदिल आदमी है, बहुत बड़ी जायदाद का मालिक है और दूर-दूर तक पहुँच रखता है, उसके पहले पति का दोस्त रह चुका है, उसके बाप के घर में मेहमान की हैसियत से भी आ चुका था, और यह कि उसने वादा किया है कि अपने रसूख का इस्तेमाल करके उसे पेन्शन दिलवा देगा। वैसे कतेरीना इवानोव्ना जब किसी की पहुँच या दौलत का बखान करती थी तो उसके पीछे कोई छिपा हुआ उद्देश्य नहीं होता था; वह निःस्वार्थ भाव से केवल प्रशंसित व्यक्ति का महत्व जता कर खुद की खुशी पाने के लिए ही ऐसा करती थी। शायद लूजिन की देखादेखी ही वह 'कमबख्त कमीना' लेबेजियातनिकोव भी नहीं आया था। 'आखिर अपने आपको समझता क्या है? उसे तो बस रहम खा कर बुलाया गया था। चूँकि वह प्योत्र पेत्रोविच के साथ ही रहता था और उसका दोस्त था, इसलिए उसे न बुलाना कुछ बेतुका लगता।' न आनेवालों में एक बेहद तमीजदार वृद्धा और उनकी 'काफी बड़ी उम्र की बिनब्याही' बेटी भी थीं, जिन्हें उस घर में रहते कुछ एक पखवाड़ा गुजरा था लेकिन वे कई बार शिकायत कर चुकी थीं कि कतेरीना इवानोव्ना के कमरे में बहुत ही शोर और हंगामा होता था, खास कर जिस दिन मार्मेलादोव शराब के नशे में धुत हो कर घर लौटता था। कतेरीना इवानोव्ना को इसका पता अमालिया इवानोव्ना से चला था, जो कतेरीना इवानोव्ना से बहुत लड़ी थी और धमकी दी थी कि वह पूरे परिवार को घर से निकाल देगी। वह उसके ऊपर चिल्लाई भी थी कि वे लोग जिन किराएदारों की शांति में विघ्न डालते थे, उनके 'पाँव की धोवन के बराबर भी' नहीं थे। कतेरीना इवानोव्ना ने उस वृद्धा को और उनकी बेटी को, 'जिनके पाँव की धोवन के बराबर भी' वह नहीं थी और जो राह चलते अचानक सामने पड़ जाने पर अकड़ के साथ मुँह फेर लेती थीं, इस मौके पर बुलाने का फैसला किया था। इसलिए कि उन्हें पता हो कि वह 'अपने विचारों और भावनाओं में उनसे कहीं बढ़ कर थी और अपने मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं रखती थी। वह तो यह भी चाहती थी कि वे आ कर देखें तो सही कि वह जिस तरह रहती थी, उसकी वह आदी नहीं थी। उसका इरादा था कि खाने के वक्त अपने स्वर्गीय बाप की गवर्नरी की चर्चा करके वह उन्हें यह बात अच्छी तरह समझाएगी, और साथ ही इस ओर भी इशारा करेगी कि उससे मिलने पर उनका मुँह फेर लेना सरासर बेवकूफी का काम था। इस मौके पर एक मोटा लेफ्टिनेंट कर्नल भी गैर-हाजिर था (असल में वह महज एक पेन्शनयाफ्ता फर्स्ट लेफ्टिनेंट था), लेकिन सुना गया था कि पिछले दो दिन से वह 'अपने होश में नहीं था।' जो लोग दावत में आए उनमें एक तो वह नाटा पोल था और फिर चीकटदार कोट पहने हुए और दागदार चेहरेवाला एक मनहूस-सूरत क्लर्क था, जो एक शब्द भी नहीं बोलता था और जिसके बदन से बेहद बदबू आ रही थी। इनके अलावा बहरा और लगभग अंधा एक बूढ़ा आदमी भी आया था जो पहले डाकखाने में क्लर्क था और न जाने क्यों एक जमाने से कोई गुमनाम परोपकारी उसके खाने और रहने का खर्च देता आया था। फौज की कमिसारियत का एक पेन्शनयाफ्ता सेकेंड लेफ्टिनेंट भी आया था। वह पिए हुए था, जोर से ठहाका मार कर बेहूदा तरीके से हँसता था, और आप क्या कल्पना भी कर सकते हैं वास्कट तक नहीं पहने हुए था! एक मेहमान तो कतेरीना इवानोव्ना से दुआ-सलाम किए बिना सीधा मेज पर जा बैठा था। आखिर में एक शख्स आया, जिसके पास कपड़े भी नहीं थे। वह अपना ड्रेसिंग गाऊन पहने हुए ही आ गया। इस तरह उसने तो हद ही कर दी थी और बड़ी मुश्किल से अमालिया इवानोव्ना और उस नाटे पोल ने उसे वहाँ से किसी तरह निकाला था। लेकिन वह पोल अपने साथ दो और पोलों को ले कर आया था, जो अमालिया इवानोव्ना के घर में भी नहीं रहते थे और जिन्हें किसी ने पहले वहाँ देखा तक नहीं था। इन सब बातों से कतेरीना इवानोव्ना बेहद चिड़चिड़ी हो रही थी। 'आखिर ये सब तैयारियाँ किसके लिए की गई थीं?' मेहमानों के लिए जगह बनाने के खयाल से खाने की मेज से बच्चों को दूर ही रखने का इंतजाम किया गया था और दोनों छोटे बच्चे सबसे दूरवाले कोने में अपना खाना एक संदूक पर रखे बैठे थे। बड़ी बहन होने के नाते पोलेंका को उनका ध्यान रखना पड़ रहा था, उन्हें खिलाना पड़ रहा था और उन्हें शरीफ बच्चों की तरह पेश करने के लिए उनकी नाक भी पोछनी पड़ रही थी। इसलिए कतेरीना इवानोव्ना को मजबूरन अपना रवैया बदलना पड़ा और वह मेहमानों का स्वागत करते समय उनसे पहले से भी ज्यादा रोब-दाब के साथ, बल्कि कुछ अकड़ के साथ मिली। उनमें से कुछ को उसने खास तौर पर सख्ती से सर से पाँव तक घूरा और उनसे अपनी-अपनी जगह बैठने के लिए ऐसे लहजे में कहा, मानो वे बहुत ही तुच्छ हों। वह फौरन इस नतीजे पर पहुँच गई कि इतने सारे लोगों के न आने के लिए अमालिया इवानोव्ना ही जिम्मेदार होगी। वह उसके साथ बेहद बेरुखी का बर्ताव करने लगी। इस रवैए को अमालिया ने भी फौरन देख लिया और यह बात उसे बुरी लगी। इस तरह की शुरुआत के बाद अन्जाम के बहुत अच्छा होने की उम्मीद तो नहीं ही की जा सकती थी। आखिरकार सब लोग बैठ गए।

रस्कोलनिकोव लगभग उसी वक्त आया, जब वे सब लोग कब्रिस्तान से लौटे थे। उसे देख कर कतेरीना इवानोव्ना बहुत खुश हुईं, सबसे बढ़ कर तो इसलिए कि वह अकेला 'पढ़ा-लिखा मेहमान था।' और, 'जैसा कि सभी जानते थे, दो साल में वह यहाँ की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बननेवाला था।' दूसरे उसने फौरन अदब के साथ जनाजे में शरीक न हो सकने की माफी माँगी थी। वह एकदम उस पर झपटी और उसे अपने बाईं ओर बिठा लिया। (उसके दाहिनी ओर अमालिया इवानोव्ना बैठी थी।) यूँ उसे बराबर इस बात की चिंता लगी हुई थी कि खाने की तश्तरियाँ बारी-बारी से सबके सामने ठीक तरीके से पेश की जाएँ और हर आदमी हर चीज का स्वाद ले। इसके बावजूद, और अपनी जानलेवा खाँसी के बावजूद, जो हर मिनट उसके बात करने में बाधा डाल रही थी और जो पिछले दो दिनों में पहले से भी ज्यादा बिगड़ गई थी, वह रस्कोलनिकोव से लगातार बातें करती रही। कानाफूसी के स्वर में कि जिसे दूसरे लोग सुन भी सकते थे, वह जल्दी-जल्दी अपनी सारी दबी भावनाएँ, जनाजे की दावत की असफलता पर अपनी उचित नाराजगी उसके कानों में उँड़ेलती रही। बीच-बीच में वह अपने मेहमानों पर और खास कर अपनी मकान-मालकिन पर बेमतलब भी खिल-खिला कर हँस देती थी।

'यह सब उसी कलमुँही का किया धरा है! आप समझे न कि मेरा मतलब किससे है उसका, वह उसका!' कतेरीना इवानोव्ना ने सर के झटके के साथ मकान-मालकिन की तरफ इशारा किया। 'देखो तो सही कैसी गोल-गोल आँखें करके देख रही है। जानती है कि हम लोग उसी की बातें कर रहे हैं लेकिन कुछ समझ नहीं पा रही है। बेवकूफ कहीं की! हा-हा!' फिर इसके बाद, वह देर तक खाँसती रही। 'और वह टोपी उसने किसलिए पहनी हुई है,' उसने पूछा। खाँसी ने अभी तक उसका पीछा नहीं छोड़ा था। 'आपने देखा कि नहीं, वह चाहती है कि हर आदमी यही समझे कि वह मेरे ऊपर एहसान कर रही है और यहाँ आ कर मेरी इज्जत बढ़ा रही है। मैंने शराफत के नाते उससे कह दिया था कि कुछ इज्जतदार लोगों को न्योता दे दे, खास कर उन लोगों को जो मेरे शौहर को जानते थे, पर देखिए तो सही उसने कैसे-कैसे लोग बुला कर बिठा दिए हैं : गंदे-संदे मसखरों की भीड़ लगा दी है! उस गंदे चेहरेवाले का देखिए। दो टाँगों का बंदर! और वे कमबख्त पोल, हा-हा-हा!' उसे फिर खाँसी का दौरा पड़ा। पहले इनमें से कोई भी यहाँ कभी झाँकने तक नहीं आया, और मैंने इनमें से किसी को पहले कभी देखा भी नहीं। ये लोग यहाँ किसलिए आए हैं मैं आपसे पूछती हूँ : देखिए तो सही, कैसे कतार बाँधे बैठे हैं। ऐ, भले आदमी, सुनते हो,' उसने अचानक उनमें से एक को पुकारा, 'मीठी टिकियाँ खाईं कि नहीं लो, थोड़ी बियर लो! या वोदका पियोगे? देखिए तो सही, कैसा उछला और झुक कर सलाम भी कर रहा है। देखिए, देखिए! पक्के मरभुक्खे होंगे, बेचारे! कोई बात नहीं, जी भर कर खाने दो! कम से कम शोर तो नहीं करते, लेकिन... लेकिन मुझे मकान-मालकिन के चाँदी के चम्मचों का डर है... अमालिया इवानोव्ना!' उसने अचानक ऊँचे स्वर में उसे संबोधित करके कहा, 'अगर तुम्हारे चम्मच चोरी हुए तो मैं जिम्मेदार नहीं, अभी से बताए देती हूँ! हा-हा-हा!' वह रस्कोलनिकोव की ओर मुड़ कर हँसी, और एक बार फिर अपनी इस चुटकी पर खुश हो कर सर के झटके से मकान-मालकिन की ओर इशारा किया। 'उसकी समझ में कुछ नहीं आया, इस बार भी उसकी समझ में कुछ नहीं आया! देखिए, कैसी मुँह बाए बैठी है! बेवकूफ, पक्की बेवकूफ! नए फीतों में सजी हुई बेवकूफ! हा-हा-हा!'

उसकी हँसी एक बार फिर खाँसी के एक भयानक दौरे में बदल गई और पाँच मिनट तक चलती रही। माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं और रूमाल पर खून के धब्बे नजर आए। उसने रस्कोलनिकोव को खून के धब्बे चुपचाप दिखाए, और जैसे ही उसकी साँस सम पर आई, वह एक बार फिर जोश के साथ उसके कान में कुछ कहने लगी। उसके गाल तमतमा उठे थे।

'आपको मालूम है, मैंने इसे यूँ समझिए कि बहुत ही नाजुक काम सौंपा था - उन महिला को और उनकी बेटी को बुलाने का। आप समझे न, मैं किसकी बात कर रही हूँ इसके लिए बेहद समझ-बूझ से, सलीके से काम करने की जरूरत थी, लेकिन इसने ऐसी गड़बड़ की कि उस बेवकूफ देहाती औरत ने... वह शेखीखोर, दो कौड़ी की औरत जो महज एक फौजी मेजर की विधवा है और यहाँ पेन्शन हासिल करने के वास्ते सरकारी दफ्तरों में जूतियाँ चटखाने आई है, क्योंकि पचपन साल की हो कर भी वह अपने मुँह पर गाजा-सुर्खी पोतने से बाज नहीं आती (हर आदमी इस बात को जानता है)... तो ऐसी औरत तक ने यहाँ आना मुनासिब नहीं समझा... और तो और न्योते तक का जवाब नहीं दिया, जैसा कि मामूली से मामूली तमीजदार शख्स को भी करना चाहिए। मेरी समझ में यह नहीं आता कि प्योत्र पेत्रोविच लूजिन भला क्यों नहीं आए। लेकिन सोन्या कहाँ है कहाँ चली गई ...चलो, आखिरकार आ तो गई! यह क्या है सोन्या, कहाँ थीं तुम अजीब बात है, अपने बाप के कफन-दफन के दिन भी इतनी देर से आई हो। रोदिओन रोमानोविच, अपने पास इसके लिए थोड़ी-सी जगह बना दीजिए। वह तुम्हारी जगह है, सोन्या... जो जी चाहे ले लो। वह ठंडा गोश्त लो, जेली के साथ... सबसे अच्छा है। मीठी टिकियाँ अभी आईं... बच्चों को दिया कुछ पोलेंका, तुम्हें सब चीजें मिल गईं?' वह फिर खाँसने लगी। 'सब ठीक है लीदा, अच्छी बच्ची की तरह खाओ... और कोल्या, पाँव मत रगड़ो, भलेमानस की तरह सीधे बैठो। तो तुम कह क्या रही थीं, सोन्या?'

सोन्या ने उसे जल्दी से प्योत्र पेत्रोविच की क्षमा-याचनावाली बातें सुनाईं। वह जोर से बोलने की कोशिश कर रही थी ताकि सब लोग सुन लें और अपनी ओर से गढ़ कर इस तरह के अत्यंत सम्मानपूर्ण शब्दों का इस्तेमाल कर रही थी, गोया वे शब्द खुद लूजिन ने कहे हों। उसने कतेरीना इवानोव्ना को यह भी बताया : खुद प्योत्र पेत्रोविच ने उससे खास तौर पर यह कहने को कहा है कि जितनी जल्द भी मुमकिन हुआ, वह अकेले उसके साथ काम की बातें करने आएँगे, और इस बारे में भी सोचेंगे कि उनके लिए क्या किया जा सकता है, वगैरह-वगैरह।

सोन्या को एहसास था कि इससे कतेरीना इवानोव्ना को तसल्ली होगी, वह और अधिक गौरव का अनुभव करेगी और उसकी स्वाभिमानी वृत्ति को संतोष मिलेगा। वह रस्कोलनिकोव के पास बैठ गई; जल्दी से झुक कर उसका अभिवादन किया और जिज्ञासा से एक नजर उसकी ओर देखा। लेकिन बाकी वक्त ऐसा लगता रहा कि वह उसकी ओर देखने या उससे बात करने से भी कतरा रही है। लग रहा था, उसका दिमाग कहीं और था, हालाँकि कतेरीना इवानोव्ना को खुश करने के लिए वह बार-बार रस्कोलनिकोव की ओर ही देख रही थी। उसे मातमी लिबास नहीं मिला था, न कतेरीना इवानोव्ना को मिला था। सोन्या गहरे कत्थई रंग की एक पोशाक पहने थी और कतेरीना इवानोव्ना के पास तो कुल एक पोशाक ही थी, सूती और गहरे रंग की धारियोंवाली। प्योत्र पेत्रोविच का संदेश बहुत कारगर रहा। शालीनता के साथ सोन्या की बात सुनने के बाद कतेरीना इवानोव्ना ने उतनी ही शालीनता के साथ प्योत्र पेत्रोविच का हालचाल पूछा, और फिर ऊँचे स्वर से रस्कोलनिकोव के कान में फुसफुसाई कि मेरे परिवार से गहरे लगाव और मेरे बाप के साथ पुरानी दोस्ती के बावजूद प्योत्र पेत्रोविच जैसी हैसियतवाले आदमी के लिए खुद को ऐसी 'बेजोड़ संगत में' पाना बहुत अजीब बात होती।

'इसीलिए रोदिओन रोमानोविच, मैं आपका काफी एहसान मानती हूँ कि आपने ऐसे माहौल में भी मेरी दावत को नहीं ठुकराया,' उसने काफी जोर से कहा। 'लेकिन इस बात का मुझे पूरा यकीन है कि बेचारे मेरे शौहर के साथ आपका जो खास लगाव था, उसी की वजह से आपने यहाँ आने का वादा पूरा किया।'

इसके बाद उसने रोब से एक बार फिर अपने मेहमानों पर नजर डाली, और अचानक मेज की दूसरी तरफ पार बैठे एक बहरे बूढ़े आदमी से पूछा : 'और गोश्त तो नहीं चाहिए बाबा... किसी ने शराब भी दी कि नहीं?' बूढ़े ने कोई जवाब नहीं दिया। बहुत देर तक तो उसकी समझ में ही नहीं आया कि उससे पूछा क्या गया था, हालाँकि उसके पास बैठे लोग उसे कोंच कर और झिंझोड़ कर मजे लेते रहे। वह बस मुँह फाड़े फटी-फटी आँखों से अपने चारों ओर देखता रहा, जिस पर सभी लोगों को और भी लुत्फ आया।

'कैसा घामड़ है! देखो तो सही इसे यहाँ लाया क्यों गया? जहाँ तक प्योत्र पेत्रोविच का सवाल है, मुझे उन पर हमेशा ही भरोसा रहा,' कतेरीना इवानोव्ना अपनी बात कहती रही, 'जाहिर है, वे वैसे नहीं हैं...' उसने कठोर मुद्रा बना कर अमालिया इवानोव्ना को ऐसी सख्ती से और ऐसी ऊँची आवाज में संबोधित किया कि वह एकदम सकपका गई, '...तुम्हारी उन जरूरत से ज्यादा कपड़ों से लदी गूदड़ की गुड़ियों जैसे, जिनको मेरे पिताजी अपने बावर्चीखाने में खाना पकाने के लिए भी न घुसने देते... मेरे शौहर भी अपनी नेकदिली की वजह से उन्हें अगर बुला भी लेते तो उनकी इज्जत ही बढ़ाते।'

'हाँ, उसे वोदका की चुस्की लगाने का बहुत शौक था, पीता बहुत जम कर था!' फौज की कमिसारियट के पेन्शनयाफ्ता अफसर ने वोदका का बारहवाँ गिलास चढ़ाते हुए कहा।

'जी हाँ, मेरे शौहर में यह कमजोरी तो थी, और हर आदमी इस बात को जानता है,' कतेरीना इवानोव्ना ने फौरन उस पर जवाबी हमला किया, 'लेकिन वे एक नेकदिल और इज्जतदार आदमी थे, उन्हें अपने बाल-बच्चों से प्यार था और वे अपने परिवार की इज्जत करते थे। उनकी सबसे बुरी बात यह थी कि अच्छे स्वभाव की वजह से वह तरह-तरह के घटिया, बदनाम लोगों का भी भरोसा कर लेते थे, और ऐसे लोगों के साथ भी बैठ कर पी लेते थे, जो उनकी जूती की तली के बराबर भी नहीं थे। आप क्या यकीन करेंगे, रोदिओन रोमानोविच कि उनकी जेब से मुर्गे की शक्ल का एक बिस्कुट निकला था। वे नशे में चूर जरूर थे लेकिन अपने बच्चों को नहीं भूले थे!'

'मुर्गे की शक्ल का आपने कहा, मुर्गे की शक्ल का?' कमिसारियटवाले सज्जन ऊँची आवाज में पूछ बैठे।

कतेरीना इवानोव्ना ने जवाब देना जरूरी नहीं समझा और आह भर कर विचारों में खो गई।

'बेशक, और सब लोगों की तरह आप भी यही सोचते होंगे कि मैं उनके साथ जरूरत से ज्यादा सख्ती करती थी,' रस्कोलनिकोव को संबोधित करके उसने अपनी बात जारी रखी। 'लेकिन ऐसी बात है नहीं! वे मेरी इज्जत करते थे। वे मेरी बहुत इज्जत करते थे। बहुत नेकदिल आदमी थे! कभी-कभी तो मुझे उन पर ऐसा तरस आता था कि... कोने में बैठे मेरी ओर देखते रहते थे... बड़ा तरस आता था उन पर। मैं उनके साथ नर्मी का सुलूक करना चाहती थी, लेकिन फिर अपने मन में सोचती थी कि अगर मैंने नर्मी बरती तो फिर जा कर पिएँगे। उनको तो सख्ती करके ही अपनी हद में रखा जा सकता था।'

'जी हाँ, वे अपने बाल तो अकसर खिंचवाते थे,' कमिसारियटवाले सज्जन हलक में वोदका का एक और गिलास उँडेल कर फिर चीखे।

'यह कोई बात नहीं हुई। कुछ बेवकूफों के लिए यही बेहतर होता है कि उनको झाड़ू से अच्छी तरह पीटा जाए। मैं इस वक्त अपने शौहर की बात नहीं कर रही!' कतेरीना इवानोव्ना ने उसे झिड़क दिया।

कतेरीना इवानोव्ना के गालों की लाली और गहरी हो गई, सीना धौंकनी की तरह चलने लगा। यानी कि अब थोड़ी ही देर में वह हंगामा खड़ा करने को खड़ी हो सकती थी। कई मेहमान होठ दबा कर हँस रहे थे; कुछ और लोगों को जाहिर है कि बहुत मजा आ रहा था। वे कमिसारियटवाले सज्जन को कोंच कर उससे कुछ कहने लगे। साफ पता चल रहा था कि वे उन्हें उकसाने की कोशिश कर रहे हैं।

'मैं पूछना चाहूँगा कि आपका इशारा भला किसकी तरफ है,' कमिसारियटवाले सज्जन ने कहना शुरू किया, 'मेरा मतलब किसकी... किसके बारे में... आप अभी कुछ चर्चा कर... लेकिन कोई परवाह नहीं मुझे! सब बकवास है! विधवा है बेचारी! जा, तुझे माफ किया... जा!' यह कह कर उसने वोदका का एक गिलास और चढ़ाया।

रस्कोलनिकोव चुपचाप बैठा अरुचि से सारी बातें सुन रहा था। वह केवल शिष्टाचार के नाते मुँह चला रहा था। कतेरीना इवानोव्ना उसकी प्लेट में खाने की जो भी चीज रख देती, उसे वह चख लेता था ताकि उसे बुरा न लगे। वह सोन्या को गौर से देखे जा रहा था और सोन्या की आशंका और चिंता हर पल बढ़ती जा रही थी। उसकी समझ में भी आने लगा था कि दावत शांति के साथ संपन्न नहीं होगी। कतेरीना इवानोव्ना की बढ़ती हुई चिड़चिड़ाहट देख कर उसका दिल दहशत में डूबा जा रहा था। सोन्या जानती थी कि उन दो महिलाओं ने जो अभी हाल ही में आई थीं, सबसे बढ़ कर उसी की वजह से तिरस्कार से कतेरीना इवानोव्ना का निमंत्रण ठुकरा दिया था। उसने अमालिया इवानोव्ना से सुना था कि माँ तो इस न्योते पर आपे से बाहर ही हो गई थी और सवाल किया था कि वह अपनी बेटी को उस लड़की के पास भला बैठने कैसे दे सोन्या को लग रहा था कि यह बात कतेरीना इवानोव्ना के कानों तक भी पहुँच चुकी थी, जो सोन्या के अपमान को स्वयं अपने, अपने बच्चों के या अपने बाप के अपमान से सौ गुना बदतर समझती थी। सोन्या जानती थी कि कतेरीना इवानोव्ना को अब उस वक्त तक चैन नहीं आएगा 'जब तक वह उन दो गूदड़ की गुड़ियों को यह न बता दे कि वे...' वगैरह-वगैरह। गोया कि जले पर नमक छिड़कने के लिए मेज के दूसरे सिरे से किसी ने एक प्लेट में काली डबल रोटी के दो टुकड़े दिल की शक्ल में काट कर, उनमें तीर लगा कर सोन्या की ओर बढ़ा दिए। कतेरीना इवानोव्ना का चेहरा तमतमा उठा। फौरन मेज के उस पारवालों की ओर देख कर वह चीखी कि जिस आदमी ने भी यह हरकत की है वह 'शराबी गधा' है। अमालिया इवानोव्ना का दिल धड़क रहा था कि कोई गड़बड़ होनेवाली है, साथ ही कतेरीना इवानोव्ना की अहंकार भरी बातों से उसके दिल को गहरी चोट भी लगी थी। इसलिए वहाँ जमा लोगों में एक बार फिर हँसी-खुशी का माहौल बनाने के लिए, और अपने आपको उनकी नजरों में चढ़ाने के लिए भी वह बिना किसी प्रसंग के अपने जान-पहचान के 'दवा की दुकान में काम करनेवाले कार्ल' नाम के एक शख्स का किस्सा सुनाने लगी कि एक रात वह किराए की गाड़ी में जा रहा था, और 'गाड़ीवान उसे मार डालने को माँगेला होता और कार्ल उसे बहुत गिड़गिड़ाने को होता कि मार नईं डालने को, और रोने को होएला और हाथ जोड़ने को होएला, और डर गएला था, डरके-डरके अपना दिल का छलनी कर लिएला था।' कतेरीना इवानोव्ना मुस्करा तो पड़ी लेकिन फौरन ही यह राय भी जाहिर कर दी कि मालिया इवानोव्ना को रूसी में किस्से नहीं सुनाने चाहिए। यह बात अमालिया इवानोव्ना को और भी बुरी लगी और उसने पलट कर जवाब दिया कि बर्लिन में उसका बाप 'बहुत बड़ा आदमी होएला था और हमेशा अपना दोनों हाथ जेबों में डाले होएला था।' कतेरीना इवानोव्ना अपने आपको न रोक सकी और इतना हँसी कि अमालिया इवानोव्ना भी धीरज खो बैठी। बड़ी मुश्किल से वह अपने आपको काबू में रख सकी।'

'इस बेवकूफ की बातें सुनो!' कतेरीना इवानोव्ना चुपके से रस्कोलनिकोव से बोली। उसकी चिड़चिड़ाहट अब दूर हो गई थी। '...कहना तो यह चाहती थी कि वे अपने हाथ अपनी जेबों में डाल कर चलते थे लेकिन जो कुछ उसने कहा उसका मतलब यह निकला कि वे अपने हाथ लोगों की जेबों में डाल देते थे। आपने भला एक बात पर ध्यान दिया, रोदिओन रोमानोविच,' उसने खाँसी के एक और दौरे से छुटकारा पा कर कहा, 'कि पीतर्सबर्ग के ये सारे विदेशी, खास कर ये जर्मन, जो पता नहीं कहाँ से हमारे यहाँ चले आते हैं, हमसे कहीं बहुत ज्यादा बेवकूफ होते हैं आप कभी सोच भी सकते थे कि हममें से कोई यह किस्सा बयान करेगा कि 'दवा की दुकान में काम करनेवाले कार्ल' ने किस तरह 'डरके-डरके अपने दिल को छलनी बना लिया' और यह कि बेवकूफ गाड़ीवान की खबर लेने के बजाय वह 'हाथ जोड़ने रोने और बहुत गिड़गिड़ाने लगा' बेवकूफ कहीं की! और आप जानते हैं, वह समझती है कि यह किस्सा बहुत दर्दनाक है... उसे यह शक तक नहीं कि वह कैसी बेवकूफी की बातें कर रही है! मैं तो समझती हूँ कि वह कमिसारियटवाला आदमी इससे कहीं ज्यादा होशियार है। कम-से-कम यह तो दिखाई देता है कि वह पियक्कड़ है और पीते-पीते उसमें अब कहने को भी अकल नाम की चीज नहीं रह गई है, लेकिन ये सारे ही जर्मन हमेशा कितने शरीफ और संजीदा बने रहते हैं... देखिए तो उसे, बैठी किस तरह घूर रही है मुझे! नाराज है! नाराज है मुझसे! हा-हा-हा!' और वह फिर खाँसने लगी।

गुस्सा ठंडा होने के बाद कतेरीना इवानोव्ना ने फौरन रस्कोलनिकोव को बताना शुरू किया कि उसका इरादा पेन्शन के पैसे से वह अपने कस्बे त. में जा कर भले घरों की लड़कियों के लिए एक स्कूल खोलने का है। रस्कोलनिकोव ने कतेरीना इवानोव्ना से इस योजना की चर्चा इससे पहले कभी नहीं सुनी थी। वह बड़े ही आकर्षक ढंग से उस योजना का पूरा ब्यौरा बयान करने लगी। कतेरीना इवानोव्ना ने (न जाने कहाँ से) 'अच्छे आचरण और प्रगति' का वही प्रशंसापत्र निकाला, जिसका जिक्र मार्मेलादोव ने शराबखाने में रस्कोलनिकोव से किया था, जब उसने अपनी बीवी कतेरीना इवानोव्ना के बारे में बताया था कि वह स्कूल के पुरस्कार-वितरण समारोह के अवसर पर 'गवर्नर और दूसरी बड़ी-बड़ी हस्तियों के सामने' शाल ले कर नाची थी। इस वक्त तो लगता था कि उस प्रशंसापत्र का मकसद यह साबित करना था कि कतेरीना इवानोव्ना को बोर्डिंग स्कूल खोलने का पूरा-पूरा अधिकार है। लेकिन वह वास्तव में उस प्रशंसापत्र से लैस हो कर खास तौर पर इसलिए आई थी कि अगर 'वे दोनों गूदड़ की गुड़ियाँ' दावत में आएँ तो वह उन पर रोब डाल सके और इस बात का पक्का सबूत दे सके कि कतेरीना इवानोव्ना बेहद शरीफ, 'बल्कि कहना चाहिए कि पुश्तैनी रईसों के खानदान से थी, एक कर्नल की बेटी थी, और इधर कुछ अरसे से तरक्की करके आगे बढ़ आई कुछ छिछोरी औरतों से बहुत बढ़-बढ़ कर थी।' स्कूल का वह प्रशंसापत्र एक हाथ से दूसरे हाथ में होता हुआ शराबी मेहमानों के बीच पहुँच गया और सबने उसे बड़े ही ध्यान से देखा। कतेरीना इवानोव्ना ने उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोई कोशिश भी नहीं की, क्योंकि उसमें साफ शब्दों में यह बयान मौजूद था कि उसका बाप मध्यम श्रेणी का एक सरकारी अफसर था, जिसे खिताब भी मिल चुका था और इस तरह वह दरअसल एक कर्नल जैसे शख्स की ही बेटी थी। जोश में आ कर कतेरीना इवानोव्ना ने विस्तार से बताना शुरू किया कि त. में उसका जीवन कितना शांतिमय और सुखी होगा। उसने कॉलेज की उन अध्यापिकाओं के बारे में भी बताया, जिन्हें वह अपने बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाने के लिए नौकर रखेगी और मागों नामक एक बहुत सम्मानित बूढ़े फ्रांसीसी के बारे में बताया, जिसने किसी जमाने में खुद कतेरीना इवानोव्ना को पढ़ाया था, जो अभी तक त. में रहता था, और बहुत कम तनख्वाह ले कर भी उसके स्कूल में पढ़ाने से इनकार नहीं करेगा। इसके बाद उसने सोन्या के बारे में बताना शुरू किया कि 'वह उसके साथ त. जाएगी और उसकी सारी योजनाओं में उसका हाथ बँटाएगी।' यह सुन कर मेज के दूसरी छोर पर बैठा कोई आदमी खी-खी करके हँसा। कतेरीना इवानोव्ना ने यूँ तो तिरस्कार से उस हँसी से अनजान बने रहने की कोशिश की, लेकिन साथ ही जान-बूझ कर आवाज ऊँची करके उसने उत्साह के साथ सोन्या में उसकी मदद करने की पक्की योग्यता का, 'उसकी शराफत, धैर्य, लगन, उदारता और अच्छी शिक्षा' का बखान करना शुरू किया। यह कहते हुए उसने सोन्या का गाल थपथपाया और उसकी ओर झुक कर दो बार उसे प्यार भी किया सोन्या का चेहरा लाल हो गया। अचानक कतेरीना इवानोव्ना के आँसू निकल पड़े, और उसने फौरन ही अपने बारे में यह राय जाहिर की कि वह 'बेवकूफी की बातें कर रही थी,' और यह भी कि वह बेहद परेशान है, कि अब यह सिलसिला खत्म करने का वक्त आ गया है, और चूँकि खाना खत्म हो चुका है इसलिए सबको चाय परोसी जानी चाहिए। अमालिया इवानोव्ना को इस बात को ले कर बेहद कुढ़न हो रही थी कि बातचीत के दौरान उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया और लगता था कोई उसकी बात सुन भी नहीं रहा है। इसलिए फौरन उसने एक आखिरी कोशिश की। मन-ही-मन अपनी ढिठाई पर कुढ़ते हुए उसने कतेरीना इवानोव्ना का ध्यान इस बात की ओर आकर्षित करने की हिम्मत की कि जो बोर्डिंग स्कूल खोला जानेवाला था उसमें लड़कियों के कपड़े साफ रहें और एक ऐसी 'अच्छी औरत' रखी जाए जो 'कपड़ों का बढ़िया माफिक देखभाल' कर सके, और यह भी कि 'वहाँ लड़कियों को रातन मा उपनियास पढ़ने देना को नईं माँगता।' कतेरीना इवानोव्ना ने, जो सचमुच परेशान और बहुत थकी हुई थी और इस दावत से पूरी तरह तंग आई हुई थी, फौरन अमालिया इवानोव्ना की बात काटी कि 'उसे इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम और वह बकवास कर रही है,' क्योंकि उच्च कोटि के बोर्डिंग स्कूल में धुलाई का खयाल रखना प्रधानाध्यापिका का नहीं बल्कि कपड़ा-दाई का काम होता है; और जहाँ तक उपन्यास पढ़ने का सवाल है, तो यह विषय ही इतना बेहूदा है कि उस पर चर्चा न करना ही बेहतर है। इसलिए उसने उससे चुप रहने की प्रार्थना की। अमालिया इवानोव्ना को जोश आ गया और उसने सचमुच गुस्सा हो कर कहा कि वह तो बस 'उसका भलाई करने को माँगेला है,' यह कि वह हमेशा से उसके साथ 'भलाई' ही करती आई है और यह कि कतेरीना इवानोव्ना पर घर के किराए की मद में बहुत-सा (सोना) बतौर गेल्ड कर्ज चढ़ चुका है। कतेरीना इवानोव्ना ने फौरन यह कह कर उसे 'उसकी हैसियत बताई' कि यह कहना एकदम झूठ है कि वह उसकी 'भलाई करने को माँगेला है' क्योंकि कल ही, जब उसके शौहर की लाश अभी मेज पर पड़ी थी कि उसने उसे घर खाली करने के बारे में परेशान करना शुरू कर दिया था। इसके जवाब में अमालिया इवानोव्ना ने दलीलें दे कर उसे समझाया कि 'उसने उन महिलाओं को न्योता दिया था, लेकिन वे इसलिए नहीं आई थीं कि वे सचमुच इज्जतवाली हैं और किसी ऐसी के यहाँ नहीं आ सकतीं जो इज्जतवाली नहीं है।' कतेरीना इवानोव्ना ने फौरन यह बात 'साफ कर दी' कि वह चूँकि खुद एक छिनाल है, इसलिए यह नहीं जान सकती कि शराफत क्या चीज होती है। अमालिया इवानोव्ना यह बात बरर्दाश्त नहीं कर सकी और उसने फौरन ऐलान किया कि 'बर्लिन में उसका बाप बहुत-बहुत बड़ा आदमी होएला था और अपना दोनों हाथ जेब में डाल कर चलता और हमेशा पूफ-पूफ करता होएला था।' फिर वह सबके सामने अपने बाप की सच्ची तस्वीर रखने के लिए कुर्सी से उछल कर खड़ी हो गई और दोनों हाथ जेबों में डाल कर गाल फुला कर पूफ-पूफ जैसी कोई अस्पष्ट आवाज निकालने लगी। इस पर उस घर के सभी किराएदार कहकहा लगा कर हँसे और जान-बूझ कर अपनी मकान-मालकिन की तारीफें करके उसे बढ़ावा देने लगे ताकि दोनों में झड़प हो जाए। लेकिन यह बात कतेरीना इवानोव्ना की बर्दाश्त के बाहर थी। उसने फौरन सबको सुना कर 'अपने मन की बात कही' : वह यह मानने को तैयार नहीं है कि अमालिया इवानोव्ना को कोई बाप था भी, बल्कि अमालिया इवानोव्ना तो महज पीतर्सबर्ग में रहनेवाली, फिनलैंड की एक शराबी औरत है, और उसे यकीन है कि वह किसी जमाने में कहीं खाना पकाने का या उससे भी बदतर कोई काम करती रही होगी। अमालिया इवानोव्ना का रंग टमाटर की तरह लाल हो गया। वह भी चिंचिया कर बोली कि कतेरीना इवानोव्ना का शायद कभी कोई बाप था ही नहीं, 'लेकिन उसका अपुन का तो बर्लिन में बाप होएला था और वह लंबा-लंबा कोट पहनता होएला था और हमेशा पूफ-पूफ-पूफ करता होएला था!' कतेरीना इवानोव्ना ने तिरस्कार से कहा कि उसका अपना परिवार कैसा है, यह बात सभी लोग जानते हैं और यह कि उस प्रशंसापत्र में यह बात तक छपी हुई थी कि उसका बाप कर्नल था, जबकि उसकी मकान-मालकिन अमालिया इवानोव्ना का बाप (अगर सचमुच उसका कोई बाप था), शायद पीतर्सबर्ग में रहनेवाला कोई फिन था जो सड़कों पर घूम-घूम कर दूध बेचता रहा होगा, लेकिन बहुत मुमकिन तो यही है कि उसका कोई बाप रहा ही न हो, क्योंकि अभी तक इसका भी पक्का पता नहीं चल सका है कि उसका नाम अमालिया इवानोव्ना था या अमालिया लूदविगोव्ना। अब तो अमालिया इवानोव्ना का गुस्सा ज्वालामुखी की तरह फूटा और वह मेज पर जोर से घूँसा मार कर चीखी कि वह लूद-विगोव्ना नहीं, अमालिया इवानोव्ना थी, कि 'उसका बाप का नाम योहान्न होएला था और वह शहर का मेयर होएला था,' जबकि उसने बहुत कठोर लेकिन बजाहिर शांत स्वर में (हालाँकि उसका चेहरा पीला पड़ रहा था और दम बुरी तरह फूल रहा था) कहा कि 'अगर उसने फिर कभी अपने उस कमबख्त दो कौड़ी के बाप को उसके पापा की बराबरी पर लाने की कोशिश की तो वह, यानी कतेरीना इवानोव्ना, उसकी टोपी नोच कर अपने पाँवों तले रौंद डालेगी।' यह सुन कर अमालिया इवानोव्ना कमरे में इधर से उधर भाग-भाग कर जोरों से चिल्लाने लगी कि वह इस मकान का मालकिन है और कतेरीना इवानोव्ना को 'उसी टैम घर खाली करने का माँगता।' फिर वह न जाने क्यों झपट कर मेज पर से अपने चाँदी के चम्मच जमा करने लगी। बहुत शोर-गुल होने लगा, हंगामा मच गया; बच्चे रोने लगे। सोन्या जल्दी से कतेरीना इवानोव्ना को रोकने के लिए भागी, लेकिन जब अमालिया इवानोव्ना ने चीख कर पीले टिकट के बारे में कुछ कहा तो कतेरीना इवानोव्ना ने सोन्या को धकेल कर अलग कर दिया और अपनी धमकी पूरा करने के लिए मकान-मालकिन की ओर झपटी। उसी वक्त दरवाजा खुला और चौखट पर प्योत्र पेत्रोविच लूजिन की सूरत नजर आई। वह बहुत कठोर और बारीक नजर से दावत का मुआइना कर रहा था। कतेरीना इवानोव्ना लपक कर उसके पास पहुँचा।

अपराध और दंड : (अध्याय 5-भाग 3)

'प्योत्र पेत्रोविच,' वह चिल्लाई, 'मुझे उम्मीद है कि कम-से-कम आप मेरी रक्षा जरूर करेंगे! आप ही इस बेवकूफ औरत को समझाइए कि एक मुसीबत की मारी शरीफ औरत के साथ वह ऐसा बर्ताव नहीं कर सकती, इस तरह की बातों के बारे में कानून भी है... मैं गवर्नर-जनरल साहब के पास खुद जाऊँगी... इसको अपनी इस हरकत का हिसाब देना होगा... आप मेरे पापा के मेहमान रह चुके हैं, उसी को याद करके इन अनाथ बच्चों की रक्षा कीजिए।'

'रास्ता दीजिए मादाम... पहले मुझे अंदर तो आने दीजिए,' प्योत्र पेत्रोविच ने हाथ के इशारे से उसे दूर हटने को कहा। 'आपके पापा को, जैसा कि आपको अच्छी तरह पता है, जानने का सौभाग्य मुझे कभी नहीं मिला' (इस पर कोई जोर से हँसा) 'और अमालिया इवानोव्ना के साथ आपके आए दिन के झगड़ों में पड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं... मैं तो यहाँ अपने ही मुआमलों के बारे में कुछ करने आया हूँ... और मैं कुछ बातें आपकी सौतेली बेटी सोफ्या... इवानोव्ना... से करना चाहता हूँ... यही नाम है न उसका? मुझे आने का रास्ता तो दीजिए...'

प्योत्र पेत्रोविच उससे कतराता हुआ कमरे के सामनेवाले कोने की ओर बढ़ गया जहाँ सोन्या थी।

कतेरीना इवानोव्ना वहीं की वहीं गड़ी रह गई, जैसे उस पर बिजली गिरी हो। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि प्योत्र पेत्रोविच ने इस बात से कैसे इनकार किया कि वह उसके बाप का मेहमान रह चुका था। इसलिए एक बार यह बात गढ़ लेने के बाद वह खुद इस पर पक्का विश्वास करने लगी थी। इसके अलावा प्योत्र पेत्रोविच का बातें करने का एकदम कारोबारी, रूखा ढंग देख कर, जिसमें तिरस्कार से भरी धमकी का पुट भी था, वह हैरत में पड़ गई। लूजिन के आते ही धीरे-धीरे हर आदमी चुप हो गया था। बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी कि 'इस संजीदा कारोबारी आदमी' का दावत में आए हुए लोगों से कोई मेल नहीं था। यह भी साफ था कि वह किसी बेहद जरूरी काम से आया है, कि कोई ऐसी ही असाधारण बात होगी जिसकी वजह से उसे वहाँ आना पड़ा है और इसलिए अब जरूर कुछ न कुछ होनेवाला है। रस्कोलनिकोव सोन्या के पास खड़ा था। वह प्योत्र पेत्रोविच को रास्ता देने के लिए एक तरफ को हटा लेकिन लग रहा था कि प्योत्र पेत्रोविच ने उसे देखा तक नहीं। एक मिनट बाद लेबेजियातनिकोव भी दरवाजे में आ कर खड़ा हो गया; वह अंदर नहीं आया बल्कि चुपचाप वहीं खड़ा दिलचस्पी के साथ और लगभग हैरत के साथ, सब कुछ सुनता रहा। देर तक ऐसा ही मालूम होता रहा कि उसकी समझ में कोई बात नहीं आ रही थी।

'मुझे अफसोस है कि मैं आप लोगों की बातों में शायद कोई रुकावट डाल रहा हूँ,' किसी खास आदमी को संबोधित न करके प्योत्र पेत्रोविच ने वहाँ सभी लोगों से कहा, 'लेकिन काम कुछ ऐसा ही जरूरी है। सच पूछिए तो मुझे इस बात की खुशी भी है कि यहाँ इतने सारे लोग मौजूद हैं। अमालिया इवानोव्ना, आप यहाँ की मकान-मालकिन हैं, सो मैं आपसे खास तौर पर यह कहना चाहूँगा कि सोफ्या इवानोव्ना से मुझे जो कुछ कहना है उस पर आप अच्छी तरह ध्यान दें। सोफ्या इवानोव्ना,' वह सीधे सोन्या को संबोधित करके कहने लगा, जो बहुत आश्चर्यचकित और अभी से कुछ डरी हुई दिखाई पड़ रही थी, 'मेरा एक नोट, सौ रूबल का तुम मेरे दोस्त लेबेजियातनिकोव के कमरे में आईं तो उसके फौरन बाद मेरी मेज पर से गायब हो गया। अगर तुम्हें उसके बारे में कुछ भी मालूम हो और तुम उसके बारे में बता दो कि वह कहाँ है तो मैं अपनी इज्जत की कसम खा कर कहता हूँ - और मैं चाहता हूँ कि इस कमरे में मौजूद हर आदमी इस बात का गवाह रहे - कि सारा मामला यहीं पर खत्म हो जाएगा; वरना मुझे मजबूर हो कर बहुत सख्त कार्रवाई करनी पड़ेगी और... उसका सारा दोष खुद तुम पर होगा!'

कमरे में सन्नाटा छा गया। बच्चों ने भी रोना बंद कर दिया। सोन्या का चेहरा मुर्दों की तरह पीला पड़ गया और वह लूजिन को एकटक देखती रह गई। उससे कुछ कहते नहीं बना। लग रहा था कि उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया था कि लूजिन किस चीज के बारे में बातें कर रहा था। इसी तरह कुछ पल बीत गए।

'तो मेम साहिबा, आपको क्या कहना है?' लूजिन ने उसे गौर से देख कर पूछा।

'मैं... मैं नहीं जानती... मुझे कुछ मालूम नहीं...' आखिर सोन्या ने बहुत धीमी आवाज में कहा।

'नहीं मालूम? पक्की बात है कि कुछ नहीं मालूम?' लूजिन ने पूछा और एक बार फिर कुछ पलों के लिए रुका। 'सोच लो मेम साहिबा,' उसने कठोर स्वर में कहना शुरू किया लेकिन अब भी कुछ इस ढंग से जैसे उसे चेतावनी दे रहा हो। 'अच्छी तरह सोच लो! मैं तुम्हें सोचने के लिए और वक्त भी देने को तैयार हूँ, क्योंकि यह समझ लो कि दुनिया का भारी तजुर्बा होने से मुझे पक्का यकीन न होता तो मैं तुम्हारे ऊपर इस तरह खुला इल्जाम लगाने का जोखिम न उठाता। इसलिए अगर यह बात झूठ निकली या सिर्फ मेरी गलतफहमी ही हो, तो मुझे भी सरेआम इस तरह का खुला इल्जाम लगाने का कुछ जवाब तो देना ही होगा। इतना तो मैं भी जानता हूँ। आज सबेरे मैंने अपनी जरूरत के लिए पाँच फीसदी सूदवाले कई बांड भुनाए थे, जो कुल तीन हजार रूबल के थे। इसका सारा हिसाब मेरी डायरी में लिखा है। घर लौट कर मैंने यह रकम गिनी, जिसकी गवाही मिस्टर लेबेजियातनिकोव दे सकते हैं, और दो हजार तीन सौ रूबल के नोट गिन कर मैंने अपने पर्स में रखे, जिसे मैंने अपने कोट की अंदरवाली जेब में वापस रख दिया। मेज पर लगभग पाँच सौ रूबल बचे रहे जो सारे के सारे नोटों की शक्ल में थे, और उनमें सौ-सौ रूबल के तीन नोट थे। उसी वक्त (मेरे बुलाने पर) तुम वहाँ आईं। तो जितनी देर भी तुम मेरे कमरे में रहीं तुम बेहद घबराई हुई लग रही थीं, यहाँ तक कि हमारी बातचीत के दौरान तीन बार तुम उठ खड़ी हुईं। किसी वजह से तुम्हें उस कमरे से जाने की जल्दी थी, हालाँकि हमारी बातचीत खत्म भी नहीं हुई थी। मिस्टर लेबेजियातनिकोव इसके गवाह हैं। तो मैं समझता हूँ कि, मेम साहिबा, इस बात से आप भी इनकार नहीं करेंगी कि मिस्टर लेबेजियातनिकोव के जरिए मैंने आपको सिर्फ इसलिए बुलवाया था कि आपकी रिश्तेदार कतेरीना इवानोव्ना की बदहाली और कंगाली के बारे में कुछ बातें कर सकूँ (उनकी दावत में न आ सकने का मुझे अफसोस है) और लॉटरी या इसी तरह की किसी और चीज की शक्ल में उनके लिए कुछ पैसा जुटाने की तदबीरों के बारे में कुछ बातचीत हो जाए। तब तुमने मेरा शुक्रिया अदा किया और आँसू तक बहाए। (जो कुछ तब हुआ उसे मैं ज्यों का त्यों इसलिए बयान कर रहा हूँ कि एक तो मैं तुम्हें इन सब बातों की याद दिलाना चाहता हूँ और दूसरे इसलिए कि मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि कोई छोटी-से-छोटी बात भी ऐसी नहीं जो मुझे याद न हो।) फिर मैंने मेज पर से दस रूबल का एक नोट उठाया और तुम्हारी रिश्तेदार की मदद के लिए जो रकम जुटाई जानेवाली थी, उसकी पहली किस्त के तौर पर, अपनी तरफ से वह नोट तुम्हें दिया। मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने यह सब कुछ देखा। उसके बाद मैं तुम्हें दरवाजे तक पहुँचाने आया, तुम उस वक्त भी सिटपिटाई-सी लग रही थीं; इसके बाद मैं मिस्टर लेबेजियातनिकोव के साथ अकेला रह गया और कोई दस मिनट तक उनसे बातें करता रहा। फिर मिस्टर लेबेजियातनिकोव बाहर गए, और मैंने एक बार फिर मेज पर पड़ी रकम की ओर ध्यान दिया क्योंकि मैं उसे गिन कर अलग रख देना चाहता था, जैसा कि मेरा शुरू में ही इरादा था। तब मुझे वह देख कर ताज्जुब हुआ कि मेज पर जो रकम रखी थी उसमें से सौ रूबल का एक नोट गायब था। अब तुम ही सोचो : मिस्टर लेबेजियातनिकोव को तो मैं कोई इल्जाम दे नहीं सकता और इस तरह की बात की तरफ इशारा करते भी मुझे शर्म आती है। यह भी नहीं हो सकता कि मैंने नोट गिनने में गलती की हो क्योंकि तुम्हारे आने से फौरन पहले मैंने हिसाब लगा कर देखा था और जोड़ सही निकला था। तुम्हें मानना पड़ेगा कि तुम्हारी घबराहट को, तुम्हारी कमरे से जाने की बेचैनी को देखते हुए, इस बात को भी देखते हुए कि तुम कई मिनट तक अपने हाथ मेज पर रखे हुए थीं, और आखिर में तुम्हारी समाजी हालत और उन आदतों को ध्यान में रखते हुए जो उस हालत का एक लाजिमी हिस्सा होती हैं, मुझे एक तरह से मजबूर हो कर, जिससे मुझे बहुत धक्का भी पहुँचा और ताज्जुब भी हुआ, अपनी मर्जी के एकदम खिलाफ अपने दिल में एक शक लाना पड़ा - जो बेशक बहुत ही तकलीफदेह शक है, लेकिन एकदम सही शक है! और मैं यह भी बता दूँ, बल्कि मैं इस बात पर जोर देना चाहूँगा, कि इस बात के बावजूद कि मुझे अपने शक के सही होने का पूरा यकीन है, मैं इस बात को भी अच्छी तरह जानता हूँ कि इस वक्त तुम्हारे ऊपर यह इल्जाम लगा कर मैं कुछ जोखिम भी मोल ले रहा हूँ। लेकिन इतना तो तुम भी समझती होगी कि मैं इस बात को अनदेखा भी नहीं कर सकता था। मैं यह जोखिम मोल लेने को तैयार हूँ और मैं बताता हूँ क्यों; मेम साहिबा, सिर्फ आपकी सरासर एहसानफरामोशी की वजह से। जरा सोचिए, मैंने आपको आपकी कंगाल, रिश्तेदार की भलाई के खयाल से मिलने के लिए बुलाया और आपको अपनी तरफ से दस रूबल दिए जो मेरे लिए बहुत आसान बात नहीं थी। लेकिन मैंने आपके लिए जो कुछ किया, उसका बदला आपने इस हरकत से चुकाया! यह तो कोई अच्छी बात नहीं! आपको सबक सिखाना जरूरी है, मेम साहिबा! अच्छी तरह सोच लो। अलावा इसके एक सच्चे दोस्त की तरह। (क्योंकि इस वक्त मुझसे बेहतर तुम्हारा कोई दोस्त हो भी नहीं सकता) मैं तुमसे फिर कहता हूँ कि अच्छी तरह सोच-समझ लो। फिर मुझसे किसी मुरव्वत की उम्मीद मत रखना। हाँ, तो क्या कहती हो'

'मैंने आपकी कोई चीज नहीं ली है,' सोन्या ने सहम कर धीमे स्वर में कहा। 'आपने मुझे दस रूबल दिए थे। सो ये रहे। ये लीजिए।' सोन्या ने अपना रूमाल निकाल कर उसमें लगी हुई गाँठ खोली और दस रूबल का नोट निकाल कर लूजिन को दे दिया।

'तो तुम इससे इनकार करती हो कि तुमने सौ रूबल उठाए हैं?' उसने दस रूबल का नोट वापस लिए बिना घुड़क कर कहा।

सोन्या ने कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई। सभी उसे नफरत भरी नजरों से देख रहे थे - डरावनी, कठोर, उपहास भरी नजरों से। उसने रस्कोलनिकोव की ओर देखा। वह दोनों हाथ सीने पर बाँधे, दीवार का सहारा लिए खड़ा था और अंगारों की तरह दहकती आँखों से उसे देख रहा था।

'हे भगवान!' वह कँपकँपाते हुए बोली।

'मादाम,' लूजिन ने अमालिया इवानोव्ना से शांत स्वर में और नर्मी से कहा, 'माफ कीजिएगा, मुझे पुलिस को बुलवाना पड़ेगा। इसलिए क्या पहले दरबान को आप बुलवाएँगी?'

'भगवान बचाए!' अमालिया इवानोव्ना ने आहत हो कर जर्मन में कहा। 'अपुन तो पहले ही जानता होता कि वह चोर होएला है।'

'आप जानती थीं' लूजिन ने उसकी बात दोहराई, 'तो मैं समझता हूँ आप किसी ठोस बुनियाद पर ही ऐसा सोचती होंगी। मैं आपसे कहना चाहूँगा, मादाम लिप्पेवेख्सेल, कि आप अपनी इस बात को याद रखिएगा, जो आपने गवाहों के सामने कही है।'

कमरे के हर कोने से जोरों से बातें करने का शोर बुलंद हुआ। हलचल मच गई।

'क्या...या?' कतेरीना इवानोव्ना ने अचानक अपने आपको सँभालते हुए चीख कर कहा और लूजिन पर इस तरह झपटी जैसे उसे किसी मजबूत स्प्रिंग की तरह दबा कर छोड़ दिया गया हो। 'क्या इस पर चोरी का इल्जाम लगा रहे हो सोन्या पर कमीनों! नासपीटों!' फिर तेजी से सोन्या की ओर जा कर उसने उसे अपनी सूखी हुई बाँहों में शिकंजे की तरह जकड़ लिया।

'सोन्या! तूने इनसे दस रूबल लेने की हिम्मत कैसे की नादान लड़की! ला, मुझे दे! वह दस रूबल फौरन मुझे दे... ला इधर!'

दस रूबल का वह नोट सोन्या से छीन कर उसे अपने हाथ से भींचते हुए कतेरीना इवानोव्ना ने उसे जोर से लूजिन के मुँह पर फेंक कर मारा। मुड़े हुए कागज का गोला जा कर लूजिन की आँख में लगा और वहाँ से टकरा कर जमीन पर आ गिरा। अमालिया इवानोव्ना उसे उठाने के लिए लपकी। प्योत्र पेत्रोविच आगबबूला हो उठा।

'रोको इस पागल को!' वह चीखा।

उसी वक्त कुछ और लोग दरवाजे में, लेबेजियातनिकोव के पास आ कर खड़े हो गए। उनमें वे दोनों महिलाएँ भी थीं जो हाल ही में वहाँ आई थीं।

'क्या कहा पागल? मैं पागल हूँ बेवकूफ कहीं के!' कतेरीना इवानोव्ना चीखने लगी। 'तुम खुद बेवकूफ हो, बेईमान, नीच, कमीना! सोन्या, मेरी सोन्या इसका पैसा लेगी और कोई नहीं, सोन्या इसका पैसा चोरी करेगी! बेवकूफ, उलटे वह तुझे पैसा दे सकती है!' यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना दीवानों की तरह हँसी। 'कभी ऐसा भी बेवकूफ देखा है आप लोगों ने?' वह कमरे में घूम-घूम कर एक-एक आदमी को उँगली से लूजिन की तरफ इशारा करके दिखाने लगी। 'क्या तू भी?' अचानक उसकी नजर मकान-मालकिन पर पड़ी। 'तू जर्मन छिनाल, तू भी कहती है कि वह चोर है! सूरत तो देख अपनी, पर-नुची मुर्गी को लगता है कलफदार लहँगा पहना दिया गया हो। बेवकूफ! अबे, तेरे यहाँ से आने के बाद तो वह इस कमरे से बाहर भी नहीं गई! सीधे आ कर रोदिओन रोमानिविच के पास बैठ गई! ...तलाशी ले ले! चूँकि वह कमरे से बाहर नहीं गई है, इसलिए पैसा अब भी उसके पास ही होगा! मैं कहती हूँ, ले ले तलाशी! ले लेकिन जनाबेआला इतना मैं बताए देती हूँ कि अगर पैसा न निकला तो आपको इसका जवाब देना पड़ेगा! मैं जार के पास खुद जाऊँगी, अपने जार के पास जो बड़े ही दयावान हैं! जा कर उसके पाँवों पर गिर पड़ूँगी, आज ही! इसी दम! मैं एक लाचार विधवा हूँ, मुझे कोई नहीं रोकेगा! आप समझते हैं कि वहाँ मुझे अंदर नहीं जाने देंगे? आप गलत सोचते हैं! मैं वहाँ तक जाऊँगी! पहुँच जाऊँगी, मैं आपको बताए देती हूँ! आपने समझा था, यह एकदम भीगी बिल्ली है आप इसी की उम्मीद लगाए बैठे थे न तो सुन लीजिए, जनाबेआला, मुझे आप इतनी आसानी से नहीं दबा सकते! आपको लेने के देने पड़ जाएँगे! आइए, लीजिए तलाशी! तलाशी लीजिए, मैं कहती हूँ! लीजिए न!'

यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना ने लूजिन को पकड़ लिया और उसे खींच कर सोन्या की ओर चली।

'मैं पूरी तरह तैयार हूँ मादाम, और... मैं पूरी जिम्मेदारी लेने को तैयार हूँ... लेकिन बराय मेहरबानी पहले आप शांत हो जाएँ! मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि आपको आसानी से दबाया नहीं जा सकता! लेकिन... वह... मेरा मतलब है कि यह काम तो पुलिस के सामने ही किया जाएगा,' लूजिन बुदबुदा कर बोला। 'वैसे यहाँ काफी गवाह मौजूद हैं और... मैं तैयार हूँ... लेकिन यह जरा... मुश्किल काम है किसी मर्द के लिए, कि नहीं मेरा मतलब है, किसी मर्द के लिए औरत की तलाशी लेना। अगर अमालिया इवानोव्ना मदद करने को तैयार हो और... लेकिन यह भी ठीक तरीका नहीं है यह काम करने का... नहीं, बिलकुल नहीं!'

'जैसे आप चाहें!' कतेरीना इवानोव्ना ने चीख कर कहा। 'आप जिसे चाहें, तलाशी लेने को कह दें! सोन्या, अपनी जेबें उलट कर दिखा दो! हाँ, यही ठीक है! ले चंडाल, देख लिया यह जेब खाली है! इसमें उसका रूमाल था, और अब इसमें कुछ भी नहीं है! और यह लो दूसरी जेब! देखी कि नहीं?'

यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना ने दोनों जेबों को एक के बाद एक उलटने की बजाय झटके के साथ खींच कर दिखाया। लेकिन दूसरी, दाहिनी तरफवाली, जेब से अचानक कागज का एक टुकड़ा निकला और हवा में कमान जैसी शक्ल बनाता हुआ लूजिन के पाँव के पास जा कर गिरा। सभी ने उसे देखा और कई के मुँह से हैरतभरी चीख निकल गई। प्योत्र पेत्रोविच ने झुक कर चुटकी से कागज का वह टुकड़ा फर्श पर से उठाया, उसे ऊँचा करके सबको दिखाया, और उसकी तहों को खोला। यह सौ रूबल का आठ तहों में मुड़ा हुआ नोट था। प्योत्र पेत्रोविच सबको नोट दिखाने के लिए उसे अपने हाथ में उठाए हुए, धीरे-धीरे एक सिरे से दूसरे सिरे तक चलता चला गया।

'चोट्टी कहीं की! निकल जाने का माँगता हमारा घर से! पोलीस! पोलीस!' अमालिया इवानोव्ना चीखी। 'साइबेरिया भिजवा देना को माँगता इसको! निकल जाने का माँगता यहाँ से!'

कमरे में हर तरफ एक शोर उठा। रस्कोलनिकोव चुप था और बीच-बीच में लूजिन पर एक उड़ती नजर डालने के अलावा उसने सोन्या पर से अपनी नजर नहीं हटाई थी, जो उसी जगह मानो मूरत बनी जमी रह गई थी। लग रहा था कि उसे तो कोई आश्चर्य भी नहीं था। अचानक उसके गालों पर लाली दौड़ी और उसने चीख कर दोनों हाथों में मुँह छिपा लिया।

'नहीं, मैंने कुछ नहीं किया! मैंने नहीं लिया था! इसका तो मुझे कुछ भी नहीं पता!' वह दिल हिला देनेवाली आवाज में चीखी और भाग कर कतेरीना इवानोव्ना के पास चली गई, जिसने उसे कलेजे से भींच कर चिपटा लिया, गोया सारी दुनिया से उसे बचाना चाहती हो।

'सोन्या! सोन्या! मैं इस पर विश्वास नहीं करती! देखें तो सही, कतई मैं विश्वास नहीं करती!' (उस हकीकत के बावजूद जो सबकी आँखों के सामने थी) कतेरीना इवानोव्ना रो-रो कर बोली। वह उसे अपनी बाँहों में बच्चे की तरह झुलाने और उसे बार-बार चूमने लगी। इसके बाद उसने सोन्या के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर उन्हें जोर से चूमा। 'तू इसका पैसा भला क्यों लेने लगी! कैसे मूरख हैं ये लोग भी! हे भगवान, तुम लोग भी कैसे मूरख हो, कितने मूरख!' कमरे में मौजूद सभी लोगों को संबोधित करके वह रो कर कहने लगी, 'तुम्हें नहीं मालूम कि दिल कैसा पाया है इसने। कैसी लड़की है यह, तुम लोग जरा भी नहीं जानते। यह भला पैसे चुराएगी यह अरे, यह तो अपने बदन का आखिरी चीथड़ा तक बेच देगी, नंगे पाँव घूमेगी, और तुम्हें जरूरत हुई तो तुम्हें अपनी हर चीज दे देगी। ऐसी लड़की है ये! यह सड़क पर भी इसलिए निकली कि मेरे बच्चे भूखों मर रहे थे! इसीलिए उसे पीला टिकट मिला। इसने हमारी खातिर अपने आप तक को बेच दिया! ...अरे, कहाँ चले गए तुम... देख रहे हो? यह सब देख रहे हो? यह सब कि नहीं कैसी दावत हो रही है तुम्हारी जनाजे की! मेरे भगवान! रोदिओन रोमानोविच, आप इसकी तरफ से कुछ बोलते क्यों नहीं? आप वहाँ इस तरह क्यों खड़े हैं? आप तो इस बात पर विश्वास नहीं करते तुम सब... सब, सारे के सारे, इसकी छोटीवाली उँगली के बराबर भी नहीं! हे भगवान, तुम ही अब इसकी रक्षा करो!'

लग रहा था कि देखनेवालों पर तपेदिक की मारी उस लाचार विधवा के आँसुओं का गहरा असर पड़ा। उस मुरझाए हुए तपेदिक के मारे चेहरे पर जो पीड़ा से विकृत हो गया था, उन खून के सूखे धब्बों वाले होठों पर, उस भर्राई और रोती हुई आवाज में, रोते हुए बच्चे जैसी उन जोरदार सिसकियों में, रक्षा की उस विश्वास भरी, बच्चों जैसी, और साथ ही घोर निराशा में डूबी हुई फरियाद में ऐसा दर्द था, चुभनेवाला दर्द था कि लगा अब हर आदमी को उस अभागी औरत पर तरस आने लगा था। बहरहाल प्योत्र पेत्रोविच को तो फौरन ही तरस आ गया।

'मादाम! मादाम!' वह ऊँची रोबदार आवाज में कहता रहा। 'आपका इस वाकिए में कोई भी हाथ नहीं है। आप पर इल्जाम रखने की बात कोई सपने में भी नहीं सोच सकता, कि इसमें आपकी मिलीभगत होगी या इसकी आपने मंजूरी दी होगी, खास कर इसलिए कि आपने खुद जेबें उलट कर इस अपराध को सबके सामने ला दिया, जो इस बात का पकका सबूत है कि आपको इसका कुछ भी पता नहीं था। मुझे अफसोस है, बहुत ही अफसोस है कि यूँ कह लीजिए कि गरीबी की वजह से मजबूर हो कर सोफ्या सेम्योनोव्ना ने ऐसा काम किया। लेकिन, मेम साहिबा, आपने अपना अपराध स्वीकार भला क्यों नहीं किया? क्या आप बदनामी से डरती थीं या यह आपका इस तरह का पहला अपराध था या शायद एकदम दिमाग ठिकाने नहीं था? खैर, सारी बात अब साफ है, एकदम साफ। लेकिन आखिर आपने ऐसा किया क्यों सज्जनो और देवियो!' उसने वहाँ मौजूद सभी लोगों को संबोधित करके कहा, 'जो कुछ हुआ उस पर मुझे बेहद अफसोस है और एक तरह से बहुत गहरी हमदर्दी भी है, लेकिन मैं अब भी हर बात को भूल जाने और माफ कर देने को तैयार हूँ, बावजूद इसके कि जाती तौर पर मेरी बेइज्जती की गई। और मेम साहिबा, अपनी इस आज की बदनामी से,' उसने सोन्या को संबोधित करके कहा, 'आइंदा के लिए आपको मुनासिब सबक लेना चाहिए। अपनी तरफ से, मैं आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने जा रहा, और इस पूरे सिलसिले को यहीं खत्म करके संतुष्ट हूँ। इतना काफी है!'

प्योत्र पेत्रोविच ने कनखियों से रस्कोलनिकोव की तरफ देखा। उनकी आँखें मिलीं तो रस्कोलनिकोव की दहकती हुई नजरें उसे भस्म कर देने को तैयार थीं। इस बीच लग रहा था कि कतेरीना इवानोव्ना ने कुछ सुना ही नहीं था। सोन्या को वह अपने सीने से चिपकाए रही, पागलों की तरह उसे चूमती रही। बच्चे भी चारों ओर से सोन्या से चिपके हुए थे। नहीं, पोलेंका को तो ठीक से पता तक नहीं था कि हो क्या रहा है। वह अपना सुंदर, छोटा-सा चेहरा सोन्या के कंधे पर रखे आँसू बहाए जा रही थी और इस तरह सिसकियाँ ले कर रो रही थी जैसे उसे दौरा पड़ गया हो। उसका चेहरा रोते-रोते सूज गया था।

'कितने कमीनेपन की हरकत है!' दरवाजे के पास से किसी की ऊँची आवाज आई।

प्योत्र पेत्रोविच ने फौरन मुड़ कर देखा।

'कितने कमीनेपन की हरकत है!' उसकी आँखों में आँखें डाल कर लेबेजियातनिकोव ने दोहराया।

प्योत्र पेत्रोविच चौंका और यह बात सभी ने देखा। (बाद में सभी को इसकी याद आई।) लेबेजियातनिकोव कमरे के अंदर आ गया।

'और ऊपर से तुम्हारी यह मजाल की तुमने मुझे गवाह बनाने की कोशिश की?' उसने लूजिन के पास जा कर कहा।

'मतलब क्या है आपका?, आंद्रेई सेमेनोविच आप किस बारे में बात कर रहे हैं?' लूजिन बुदबुदाया।

'मेरा मतलब यह है कि तुम... दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे हो! जो कुछ मैं कह रहा हूँ उसका मतलब यही है,' लेबेजियातनिकोव ने अपनी कमजोर आँखों से उसे कठोरता से देखते हुए कहा। उसे बेपनाह गुस्सा आ रहा था। रस्कोलनिकोव उसे गौर से देख रहा था, मानो उसके हर एक शब्द को अच्छी तरह समझने और तोलने की कोशिश कर रहा हो। एक बार फिर कमरे में सन्नाटा छा गया। प्योत्र पेत्रोविच बौखला उठा। कम-से-कम शुरू में तो ऐसा ही लगा।

'आप अगर मुझसे बातें कर रहे हैं...' उसने हकला कर कहना शुरू किया। 'लेकिन, हे भगवान... तुम्हें हो क्या गया है? दिमाग तो ठिकाने है तुम्हारा?'

'मेरा दिमाग ठिकाने है, असल में आप हैं छँटे हुए बदमाश! कितने कमीनेपन की हरकत तुमने की है! मैं वहाँ खड़ा पूरे वक्त तुम्हारी बातें सुनता रहा और जान-बूझ कर कुछ कहा नहीं, क्योंकि मैं समझना चाहता था कि आखिर यह सारा मामला है क्या। यह तो मैं मानता हूँ कि अब भी मुझे इस पूरे मामले में कोई तुक दिखाई नहीं देता... बात यह है... मेरी समझ में नहीं आता कि तुमने ऐसा किया क्यों?'

'पर मैंने किया ही क्या है? तुम अपनी पहेलियाँ बुझाना बंद भी करोगे कि नहीं? तुम कहीं नशे में तो नहीं हो?'

'नशे में तुम होगे कमीने, मैं नहीं हूँ! मैं कभी वोदका को हाथ तक नहीं लगाता क्योंकि यह मेरे उसूल के खिलाफ है! आप सभी लोग यह जान लें कि इसने, खुद इसने, अपने हाथों वह नोट सोफ्या सेम्योनोव्ना को दिया था... मैंने देखा था! मैं गवाह हूँ और कसम खा कर यह बात कहने को तैयार हूँ! यह हरकत इसकी है, इसी की!' लेबेजियातनिकोव कमरे में सभी को संबोधित करके बार-बार कहता रहा।

'पागल तो नहीं हो गया है तू, बेवकूफ कहीं का?' लूजिन चीखा। 'वह खुद तो सामने खड़ी है और उसने खुद अभी तेरे सामने माना है कि उसे मैंने सिर्फ दस रूबल का नोट दिया था। उसके बाद में उसे सौ रूबल का नोट कैसे दे सकता था?'

'मैंने देखा था... मैंने!' लेबेजियातनिकोव जोर से चीखा। 'यह बात हालाँकि मेरे उसूलों के खिलाफ है, लेकिन मैं इसी वक्त अदालत के सामने हलफ लेने को तैयार हूँ क्योंकि मैंने खुद देखा था कि किस तरह तुमने सौ रूबल का नोट उससे छिपा कर उसकी जेब में सरकाया था। अपनी बेवकूफी के मारे मैंने तो तब यह समझ लिया था कि तुम उदारता की वजह से, परोपकार की भावना से ऐसा कर रहे हो। दरवाजे पर उसे विदा करते समय, जैसे ही वह बाहर जाने के लिए मुड़ी और जिस वक्त तुम उससे हाथ मिला रहे थे, तुमने बाएँ हाथ से यह नोट उसकी जेब में सरका दिया था... जेब में... उसके जाने बिना ही। मैंने देखा था... मैंने!'

लूजिन पूरा का पूरा पीला पड़ गया।

'तुम भी इस वक्त क्या झूठ बोल रहे हो!' उसने अड़ियल की तरह से चिल्ला कर कहा। 'खिड़की के पास खड़े-खड़े तुमने नोट भला देख कैसे लिया तुम्हारी आँखों को धोखा हुआ, या तुमने इसकी कल्पना कर ली होगी! तुम पागलपन की बातें कर रहे हो!'

'नहीं, मैंने कल्पना नहीं की है! यह सच है कि मैं वहाँ से कुछ दूर खड़ा था, लेकिन मैंने देखा था... सब कुछ देखा था। तुम्हारा यह कहना ठीक है कि खिड़की के पास खड़े हो कर वहाँ से नोट पहचानना मुश्किल है, लेकिन मैं पक्के तौर पर कह सकता हूँ कि वह सौ का ही नोट था, क्योंकि जब तुमने सोफ्या सेम्योनोव्ना को दस का नोट दिया था तभी मैंने देखा था कि तुमने मेज पर से सौ का एक नोट भी उठाया था। (यह मैंने एकदम साफ देखा था क्योंकि उस वक्त मैं पास ही खड़ा था। चूँकि उसी वक्त मेरे दिमाग में एक खयाल भी आ गया था, इसलिए मैं इस बात को नहीं भूला कि तुम्हारे हाथ में सौ का नोट था।) तुमने उसे तह किया था और सारे वक्त उसे हाथ में दबाए रखा फिर मैं उसके बारे में लगभग भूल ही गया, लेकिन जब तुम उठे, तो वह नोट अपने दाहिने हाथ से बाएँ हाथ में ले लिया। वह तो तुम्हारे हाथ से गिरते-गिरते भी बचा था, और उसी वक्त मुझे फिर उसकी याद आई क्योंकि उस वक्त फिर वही खयाल मेरे दिमाग में आया था... यह कि तुम उसके साथ इस तरह उपकार करना चाहते हो कि मुझे भी पता न चले। तुम सोच ही सकते हो कि तब मैंने तुम्हें कितने गौर से देखना शुरू किया था और जाहिर है, मैंने यह भी देखा कि तुमने किस कामयाबी से वह नोट उसकी जेब में सरका दिया। मैंने देखा, मैं बताता हूँ कि मैंने देखा, और मैं यह बात हलफ ले कर कहने को तैयार हूँ।'

लेबेजियातनिकोव हाँफ रहा था। कमरे के हर कोने में तरह-तरह के भाव व्यक्त होने लगे थे। ज्यादातर भाव घोर आश्चर्य का था लेकिन कुछ लोगों का लहजा धमकी भरा भी था। सब लोग प्योत्र पेत्रोविच को घेर कर खड़े हो गए। कतेरीना इवानोव्ना लपक कर लेबेजियातनिकोव के पास पहुँची।

'मुझे माफ कीजिएगा,' वह रो कर बोली, 'मैंने आपके बारे में गलत सोचा था! उसे बचाइए! यहाँ तो अकेले आप ही इसका साथ दे रहे हैं! वह अनाथ है, भगवान ने आपको उसकी रक्षा के लिए ही भेजा है! भगवान आपको इसका अच्छा ही फल देगा मेहरबान।'

कतेरीना इवानोव्ना उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गई। यह जाने बिना ही कि वह क्या कर रही है।

'बकवास!' लूजिन गुस्से से आगबगूला हो उठा। 'आप सरासर बकवास कर रहे हैं, जनाब! मैं भूल गया, मुझे याद आया, याद आया, भूल गया... आप आखिर कहना क्या चाहते हैं? आप क्या यह कहना चाहते हैं कि मैंने जान-बूझ कर यह नोट उसकी जेब में रखा था? किसलिए? मेरे ऐसा करने की क्या वजह हो सकती थी इससे मुझे क्या लेना-देना है, इस...'

'किसलिए यही बात मेरी भी समझ में नहीं आती। लेकिन इसमें तो जरा भी शक नहीं कि मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वह पूरी तरह सच है। कमीने, दुष्ट! मैं जानता हूँ कि मेरी बात गलत नहीं है क्योंकि मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा कर रहा था और तुम्हारा हाथ दबा रहा था तभी इस सिलसिले में एक सवाल मेरे दिमाग में उठा था। मैंने वह सवाल अपने आपसे पूछा कि आखिर तुमने नोट उसकी जेब में क्यों सरकाया... मेरा मतलब है, चुपके से क्यों... क्या इसकी वजह सिर्फ यह थी कि तुम यह बात मुझसे छिपाना चाहते थे इसलिए कि पता है कि मेरे उसूल इस तरह की हरकत के खिलाफ हैं, कि मैं निजी खैरात को गलत समझता हूँ क्योंकि उससे बुनियादी तौर पर कोई भी बुराई दूर नहीं होती। खैर, तो मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि दरअसल, तुम इतनी बड़ी रकम मेरे सामने देते हुए शरमा रहे होगे। अलावा इसके, मैंने यह भी सोचा कि कौन जाने तुम यह चाहते होगे कि जब उसे अपनी जेब में सौ का नोट मिले तो वह चौंक पड़े और अचानक खुश हो जाए। (मैं जानता हूँ कि कुछ परोपकारी ऐसे होते हैं, जिन्हें अपने उपकार का असर ज्यादा देर तक कायम रखने में खास लुत्फ मिलता है।) अलावा इसके मेरे मन में यह बात भी आई कि शायद तुम उसको परख कर देखना चाहते होगे कि नोट मिलने पर वह तुम्हारा शुक्रिया अदा करने आती है या नहीं। फिर मैंने यह भी सोचा कि बात शायद इतनी ही हो कि तुम नहीं चाहते होगे कि इसके बदले तुम्हारा एहसान मान कर कुछ कहा जाए... जैसी कि मसल मशहूर है, तुम्हारे दाहिने हाथ को भी पता न चले कि... मतलब यह कि इसी तरह की कोई बात बहरहाल, उस वक्त इतने बहुत से विचार मेरे मन में उठे कि मैंने इस बारे में सोचने का काम बाद के लिए टाल दिया। लेकिन मैंने तब इतना जरूर सोचा कि मैं तुम्हारा भेद जानता हूँ, तुम्हारे सामने इस बात को जाहिर करना मुनासिब नहीं होगा। लेकिन फौरन ही मेरे दिल में एक दूसरा सवाल भी उठा। मैंने सोचा, अगर वह नोट सोफ्या सेम्योनोव्ना को पता चलने से पहले ही कहीं खो गया तो क्या होगा? इसीलिए मैंने यहाँ आने का फैसला किया। मैं उसे कमरे से बाहर बुला कर बता देना चाहता था कि उसकी जेब में तुमने सौ रूबल का नोट रखा है। लेकिन रास्ते में मैं कोबिल्यातनिकोव के यहाँ चला गया। उन्हें प्रत्यक्षवादी प्रणाली का सामान्य निष्कर्ष नाम की किताब देने और उनका ध्यान उसमें डॉ. पिदरित के निबंध, 'मन और आत्मा' की ओर खास तौर पर खींचने के लिए (और लगे हाथ, वैगनर के निबंध की ओर भी)। उसके बाद मैं यहाँ पहुँचा और तब देखा कि यहाँ तो यह हंगामा मचा हुआ है! तो अब ही मुझे बताओ कि अगर मैंने तुम्हें उसकी जेब में सौ रूबल का नोट रखते न देखा तो क्या मेरे दिमाग में ये सारे विचार उठ सकते थे... क्या मैं इतने सारे नतीजे निकाल सकता था?'

लेबेजियातनिकोव ने जब अपना यह लंबा-चौड़ा, इतने चक्करदार भाषण एक तर्कसंगत निष्कर्ष के साथ खत्म किया, तो बहुत थक चुका था और उसका चेहरा पसीने में तर था। बेचारा! वह रूसी में अपनी बात भी ठीक से नहीं कह सकता था (हालाँकि वह कोई और भाषा भी नहीं जानता था), इसलिए तफतीश में उसकी इस शानदार कामयाबी के बाद अचानक ऐसा लगा कि वह थक कर चूर हो चुका है, यहाँ तक कि कुछ पतला भी हो गया है। फिर भी उसके भाषण का गहरा असर पड़ा। इतने जोश और इतने गहरे विश्वास के साथ उसने अपनी बात सामने रखी थी कि सब लोगों को बजाहिर उस पर विश्वास आ गया। प्योत्र पेत्रोविच ने महसूस किया कि सारे हालात उसके लिए बिगड़ते जा रहे हैं।

'इससे मुझे क्या कि तुम्हारे दिमाग में बेवकूफी के ऐसे-ऐसे सवाल उठते हैं?' उसने चिल्ला कर कहा। 'इससे कुछ भी साबित नहीं होता। मैं तो यही समझता हूँ कि तुम सपना देख रहे होगे। और मैं यह भी बता दूँ कि तुम झूठ बोल रहे हो। इसलिए झूठ बोल रहे हो और मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हो कि मुझसे तुम्हें कुछ शिकायत है। मुझसे इसलिए नाराज हो कि मैंने तम्हारे उच्छृंखल विचारों को और समाज के बारे में नास्तिकता के सुझावों को मानने से इनकार कर दिया है। असल बात यह है!'

लेकिन संकट से बच निकलने की इस चाल से प्योत्र पेत्रोविच को कोई फायदा नहीं हुआ। असर बल्कि उल्टा ही हुआ और कमरे के हर कोने से उसके खिलाफ आवाजें उठने लगीं।

'तो तुमने अब यह ढर्रा पकड़ा है, क्यों?' लेबेजियातनिकोव जोर से बोला। 'जी नहीं, इससे आपको कोई मदद नहीं मिलेगी। पुलिस को बुलवाइए, मैं हलफ लूँगा। वैसे एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि इस तरह की घिनौनी हरकत का जोखिम इसने उठाया क्यों कमबख्त... कमीना!'

'मैं बताता हूँ इस तरह की हरकत का जोखिम इसने क्यों उठाया,' रस्कोलनिकोव आखिरकार आगे बढ़ कर दृढ़ स्वर में बोला। 'और अगर जरूरत हो तो मैं भी हलफ लेने को तैयार हूँ।'

देखने में वह पूरी तरह शांत और दृढ़ लग रहा था। उसे एक नजर देख कर ही न जाने क्यों सबको यही लग रहा था कि उसे सचमुच रहस्य मालूम था, और यह कि अभी फौरन ही सारी बात सामने आ जाएगी।

'अब मुझे सारी बात साफ समझ में आ रही है,' रस्कोलनिकोव सीधे लेबेजियातनिकोव को संबोधित करके कहता रहा। 'इस पूरे मामले की शुरुआत से ही इसके पीछे मुझे किसी चाल के - किसी गंदी चाल के - होने का शक था। यह शक मुझे कुछ ऐसी बातों की वजह से था जिन्हें सिर्फ मैं जानता हूँ, और जो मैं अभी आपको बताऊँगा। इस सारे किस्से की जड़ में वही बातें हैं। लेकिन, जनाब लेबेजियातनिकोव, आपने अपनी अनमोल गवाही से आखिरकार में सारी बातें मेरे दिमाग में साफ कर दीं। मैं आप सबसे कहता हूँ कि मेरी बात ध्यान से सुनिए। ये जो सज्जन हैं न,' उसने लूजिन की तरफ इशारा किया, 'उनकी हाल ही में एक लड़की से, दरअसल मेरी बहन से, मँगनी हुई थी। लेकिन यहाँ पीतर्सबर्ग आने पर, अभी दो दिन हुए, मुझसे पहली मुलाकात में ही ये मुझसे लड़ बैठे और तब इन्हें मैंने अपने कमरे से बाहर निकाल दिया। इस बात को साबित करने के लिए मेरे पास दो गवाह हैं। यह आदमी खुंदक से भरा हुआ है... जनाब लेबेजियातनिकोव साहब, दो दिन पहले तक मुझे नहीं मालूम था कि यह आपके साथ ठहरे हुए हैं। तो उसी दिन जिस दिन हम लोगों का झगड़ा हुआ था, यानी परसों, इन्होंने स्वर्गीय मार्मेलादोव साहब के एक दोस्त की हैसियत से मुझे कतेरीना इवानोव्ना को उनके जनाजे के लिए कुछ पैसे देते देखा। इन्होंने फौरन मेरी माँ को एक खत लिख कर उन्हें खबर कर दी कि मैंने अपना सारा पैसा कतेरीना इवानोव्ना को नहीं बल्कि सोफ्या सेम्योनोव्ना को दिया है। साथ ही इन्होंने सोफ्या सेम्योनोव्ना का... चाल चलन बयान करते हुए कुछ बहुत ही घिनावनी बातें लिखीं, और उसके साथ मेरे ताल्लुकात के बारे में कुछ इशारा किया। ध्यान रहे कि यह सब इन्होंने मेरे और मेरे माँ-बहन के बीच झगड़ा डालने के लिए किया, उनके मन में यह बात बिठा कर कि जो पैसा उन्होंने बड़ी मुश्किल से जोड़-जोड़ कर मुझे भेजा था, उसे मैं वाही-तबाही लुटा रहा था। मैंने अपनी माँ और बहन से कल रात इनके सामने ही कहा - इनकी तोहमत सरासर झूठ है, यह भी कि मैंने पैसा सोफ्या सेम्योनोव्ना को नहीं बल्कि कतेरीना इवानोव्ना को कफन-दफन के लिए दिया था, और यह भी कि परसों तक मैं सोफ्या सेम्योनोव्ना को जानता तक नहीं था क्योंकि मैं उससे कभी मिला तक नहीं था। इसके अलावा मैंने यह भी कहा कि ये साहब, ये प्योत्र पेत्रोविच लूजिन, अपनी तमाम खूबियों के बावजूद सोफ्या सेम्योनोव्ना की छोटी उँगली के बराबर भी नहीं हैं, यह उसके बारे में काफी बुरी राय रखते हैं। इन्होंने जब मुझसे यह पूछा कि मैं क्या सोफ्या सेम्योनोव्ना को अपनी बहन के साथ बैठने दूँगा, तो मैंने जवाब दिया कि मैं उसी दिन ऐसा कर भी चुका हूँ। ये तो इसी बात पर भड़क उठे कि मेरी माँ और बहन ने इनकी ओछी तोहमतों की बुनियाद पर मुझसे झगड़ा नहीं किया। सो ये ढिठाई पर उतर आए और उनसे ऐसी बातें कहने लगे जिन्हें कोई भी माफ नहीं कर सकता। इनसे आखिर में सारा नाता खत्म कर लिया गया और इन्हें घर से निकाल दिया गया। यह सब कुछ कल शाम को हुआ। और अब मैं चाहूँगा कि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूँ उसकी ओर आप सब खास तौर पर ध्यान दें। एक मिनट के लिए मान लीजिए कि यह इस बात को साबित करने में कामयाब हो जाते कि सोफ्या सेम्योनोव्ना चोर हैं। फिर तो सबसे पहले मेरी माँ और बहन की नजरों में यह साबित कर चुके होते कि इनका हर शुबहा ठीक था, और इसलिए इनका एक बात पर नाराज होना भी ठीक था कि मैंने अपनी बहन को सोफ्या सेम्योनोव्ना के साथ बराबरी का दर्जा दिया और यह कि मुझ पर हमला करके ये दरअसल मेरी बहन और अपनी मँगेतर की इज्जत की रक्षा कर रहे थे। सच बात तो यह है कि इन बातों के जरिए ये मेरे और मेरे परिवार के बीच फूट डालने में कामयाब हो जाते, और जाहिर है, इनको यही उम्मीद थी कि इससे इन्हें उन लोगों की नजरों में चढ़ने में मदद मिलेगी। मेरे लिए तो यह बताने की भी कोई खास जरूरत नहीं कि इसके अलावा ये निजी तौर पर मुझसे बदला लेने की कोशिश भी कर रहे थे क्योंकि ये अच्छी तरह जानते थे कि मुझे सोफ्या सेम्योनोव्ना की इज्जत और खुशी की काफी परवाह है। तो यह थी इनकी सारी चाल! मुझे तो सारा किस्सा यही समझ में आता है! इनके पास बस यही एक वजह हो सकती है, कोई दूसरी वजह नहीं हो सकती!'

रस्कोलनिकोव ने इसी तरह, या लगभग इसी तरह, अपनी बात पूरी की। वहाँ पर मौजूद सभी लोगों ने उसे ध्यान से सुना, हालाँकि बीच-बीच में लोग अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए कुछेक बातें कह भी देते थे। लेकिन बीच-बीच में लोगों के बोलने के बावजूद वह तीखे ढंग से, शांत भाव से, नपे-तुले शब्दों में, साफ-साफ और दृढ़ता के साथ अपनी बात कहता रहा। उसकी बेधती हुई आवाज, दृढ़ विश्वास के शब्दों और कठोर मुद्रा का सब पर काफी गहरा असर पड़ा।

'हाँ, तुमने एकदम मर्ज को पकड़ लिया है!' लेबेजियातनिकोव ने जोश के साथ उसका समर्थन किया। 'जरूर ऐसी ही बात होगी... क्योंकि कमरे में सोफ्या सेम्योनोव्ना के आते ही इन्होंने मुझसे पूछा था कि तुम यहाँ हो कि नहीं, और यह कि कतेरीना इवानोव्ना के मेहमानों में मैंने तुम्हें देखा था कि नहीं। इन्होंने मुझे खिड़की के पास ले जा कर यह बात चुपके से पूछी थी। जाहिर है, इसका सिर्फ एक मतलब हो सकता है और ये जनाब जरूर यही चाहते होंगे कि तुम यहाँ पर नजर आओ! बिलकुल यही बात है! यही है!'

लूजिन चुप रहा और तिरस्कार भाव से मुस्कराता रहा। अलबत्ता उसका चेहरा पीला पड़ गया था। लग रहा था, वह अपनी मौजूदा स्थिति से बाहर निकलने की कोई तरकीब सोचने में व्यस्त था। मुमकिन है कि उसे स्थिति के और ज्यादा बिगड़ने से पहले ही यहाँ से निकल जाने में खुशी होती, लेकिन उस वक्त ऐसा कर सकना लगभग असंभव था। ऐसा करने का मतलब यह बात मान लेने के बराबर होता कि उसके खिलाफ जो इल्जाम लगाए गए थे वे सच थे और यह कि उसने सचमुच सोफ्या सेम्योनोव्ना को बिला वजह बदनाम करने की कोशिश की थी। इसके अलावा कमरे में जो लोग मौजूद थे, वे पिए हुए भी थे और उनके तेवर टेढ़े हो रहे थे। कमिसारियट का पेन्शनयाफ्ता अफसर सबसे ज्यादा जोर से चिल्ला रहा था, हालाँकि वह पूरी तरह समझ भी नहीं सका था कि मामला आखिर क्या है। वह कुछ ऐसे इशारे भी कर रहा था, जो लूजिन को अच्छे नहीं लग रहे थे। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जो पिए हुए नहीं थे। सभी कमरों के लोग भी वहाँ आ कर जमा हो गए थे। वे तीनों पोल बेहद उत्तेजित थे, पोल भाषा में लूजिन को बुरा-भला कह रहे थे और उसे अपनी भाषा में दबी जबान से शायद धमकियाँ भी दे रहे थे। सोन्या रस्कोलनिकोव के कथन के प्रवाह को समझने की भरपूर कोशिश कर रही थी, लेकिन ऐसा लग रहा था कि उसकी समझ में भी कुछ आ नहीं रहा है। उसे देखने से बल्कि ऐसा लग रहा था, गोया उस पर अभी-अभी बेहोशी का दौरा पड़ चुका हो। उसने रस्कोलनिकोव पर से अपनी नजरें नहीं हटाईं, क्योंकि वह यही महसूस कर रही थी कि उसे बचानेवाला सिर्फ वही है। कतेरीना इवानोव्ना खर-खर की आवाज के साथ कठिनाई से साँस ले रही थी और थक कर बिलकुल निढाल हो चुकी लग रही थी। अमालिया इवानोव्ना सबसे ज्यादा बेवकूफ लग रही थी। मुँह बाए खड़ी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है। उसकी समझ में कुल इतना आया कि प्योत्र पेत्रोविच किसी तरह एक बड़ी मुसीबत में फँस गया है। रस्कोलनिकोव ने उन लोगों से कुछ और बोलने का मौका देने को कहा, लेकिन उन लोगों ने उसे अपनी बात पूरी नहीं करने दी। वे सब शोर मचा रहे थे और लूजिन को घेर कर उसे गालियाँ और धमकियाँ दे रहे थे। लेकिन लूजिन चिकने घड़े की तरह वहीं जमा रहा। जब उसने देखा कि सोन्या पर चोरी का इल्जाम लगाने की चाल नाकाम रही है, तो उसने धौंस से काम लेने की कोशिश की।

'देवियो और सज्जनो, बराय मेहरबानी, मेरे चारों ओर भीड़ न लगाइए और मुझे निकलने का रास्ता दीजिए,' वह भीड़ के बीच से अपने लिए रास्ता बनाते हुए कहता रहा। 'और मेहरबानी करके मुझे धमकाइए भी नहीं। मैं सच कहता हूँ, इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा। आप मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकेंगे। मैं आप लोगों से नहीं डरता। उलटे, अगर आपने उस आदमी पर हाथ उठाया जिसने एक जुर्म का पर्दाफाश किया है तो आपको भी उस जुर्म में शामिल होने के लिए जवाबदेही करनी होगी। चोर की असलियत पूरी तरह खुल चुकी है, और उस पर मैं मुकद्दमा चलाऊँगा। अदालत में लोग न तो अंधे होते हैं और... न ही नशे में होते हैं कि वे दो बदनाम नास्तिकों, उत्पातियों और उच्छृंखल विचारवालों की गवाही को मान लें। जो मुझसे निजी बदला लेने के लिए मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं, वह इतने बेवकूफ हैं कि इस बात को खुद मान भी रहे हैं... जी हाँ, अच्छा तो अब बराय मेहरबानी मेरा रास्ता छोड़ दीजिए।'

'मेरे कमरे से फौरन अपना बोरिया-बिस्तर ले कर फूटो! अब हमारा और तुम्हारा कोई वास्ता नहीं रहा! आप जरा सोचिए तो सही, पूरे पखवाड़े मैं इस आदमी को अपने सिद्धांत समझाने में दिमाग खपाता रहा!'

'जनाब आंद्रेई सेमेनोविच अभी कुछ ही मिनट पहले जब आप मुझे कुछ ठहर जाने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे, मैंने खुद कहा था कि मैं आज ही जा रहा हूँ। और अब जनाब, मैं इतना और कहना चाहूँगा कि आप सरासर बेवकूफ हैं। मुझे उम्मीद है कि आप जल्दी ही अपने कमजोर दिमाग और अपनी कमजोर आँखों का इलाज करवा लेंगे। आप लोग मेहरबानी करके मुझे जाने दीजिए, रास्ता छोड़िए!'

भीड़ के बीच घुस कर आखिर उसने अपने लिए रास्ता बना ही लिया। लेकिन कमिसारियट का वह पेन्शनयाफ्ता अफसर उसे कुछ गालियाँ दे कर ही छोड़नेवाला नहीं था। उसने मेज पर से एक गिलास उठा कर जोर से प्योत्र पेत्रोविच की तरफ फेंका, लेकिन निशाना चूक गया। गिलास जा कर अमालिया इवानोव्ना को लगा और उसके मुँह से चीख निकल गई। कमिसारियट का अफसर भी लड़खड़ा कर मेज के नीचे धड़ाम से गिर पड़ा। प्योत्र पेत्रोविच सीधे अपने कमरे में चला गया और आधे घंटे बाद वह उस घर में नहीं था। सोन्या स्वभाव से ही दब्बू थी। वह हमेशा से जानती थी कि उसे बहुत ही आसानी से तबाह किया जा सकता था और कोई भी आदमी दंड पाने के डर के बिना उसका अपमान कर सकता था, उसे नीचा दिखा सकता था। लेकिन उस समय भी उसे यह उम्मीद थी कि किसी तरह वह मुसीबत में फँसने से बची रहेगी - बेहद सावधानी बरत कर, एकदम भीगी बिल्ली बन कर, सबकी बात मान कर। इसलिए उसे बहुत गहरा सदमा पहुँचा। इसमें शक नहीं कि वह सब्र के साथ उफ किए बिना कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी। सो वह यह बात भी बर्दाश्त कर गई। लेकिन पहले एक मिनट तक उसे यह सब बहुत बुरा लगा। बावजूद इसके कि उसकी विजय हुई थी और वह निर्दोष ठहराई गई थी, आतंक और भौंचक्केपन का पहला पल जब गुजर गया और जब हर चीज उसके दिमाग में पूरी तरह साफ हो गई, तो मुकम्मल लाचारी का एहसास और जो सदमा उसे पहुँचा था उसका एहसास हृदय तक को बेध गया। उस पर जुनून-सा छा गया। आखिर जब उससे और अधिक सहन न हो सका तो वह जल्दी से कमरे के बाहर निकल कर सीधे अपने घर भाग गई। यह बात लूजिन के जाने के लगभग फौरन बाद हुई। जब कमरे में मौजूद सभी लोगों के कहकहों के बीच अमालिया इवानोव्ना को गिलास से चोट लगी तो वह इस बात को बर्दाश्त न कर सकी कि उसका कोई दोष न होने पर भी उसका हर तरह से अपमान किया जाए। हर बात के लिए कतेरीना इवानोव्ना को जिम्मेदार ठहराती हुई वह चीख कर तूफान की तरह उस पर झपटी :

'निकल जाने का हमारा घर से! फौरन निकलने का! बाहर फूटो!' यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना की जो भी चीज उसके हाथ लगी, उसे वह फर्श पर फेंकने लगी। कतेरीना इवानोव्ना पहले ही पस्त हो चुकी थी, उसका रंग पीला पड़ चुका था, वह लगभग बेहोश हुई जा रही थी और बुरी तरह हाँफ रही थी। पलँग पर से उछल कर वह खड़ी हो गई (जिस पर वह निढाल हो कर गिर पड़ी थी) और अमालिया इवानोव्ना पर टूट पड़ी। लेकिन मुकाबला बराबर का नहीं था। मकान-मालकिन ने जरा भी जोर लगाए बिना उसे पीछे ढकेल दिया।

'इसकी हिम्मत तो देखो! मुझ पर ऐसा बेहयाई से कीचड़ उछाल कर भी इसका कलेजा ठंडा नहीं हुआ। अब यह छिनाल मुझ पर भी हमला कर रही है। मेरे शौहर के जनाजे के दिन छोटे-छोटे, अनाथ बच्चों के साथ मुझे सड़क पर निकाल रही है, और वह भी मेरी मेज पर खाना खाने के बाद! मैं अब कहाँ जाऊँ?' वह बेचारी सिसक कर रो रही थी और हाँफते हुए चिल्ला रही थी। 'हे प्रभु!' अचानक उसकी आँखों में बिजली जैसी चमक पैदा हुई और वह चीखी, 'क्या न्याय इस दुनिया से उठ ही गया है? अगर तुम हम अनाथों की रक्षा नहीं करोगे तो फिर किसकी रक्षा करोगे? अच्छी बात है, हम भी देखेंगे! अभी इस धरती पर न्याय और सच्चाई बाकी हैं। बाकी हैं, बाकी हैं! उन्हें खोज निकालूँगी! तू देखती जा, अधर्मी कमीनी कहीं की! बेटी पोलेंका, तू मेरे वापस आने तक इन बच्चों को देखती रहना। मेरा इंतजार करना, चाहे सड़क पर ही इंतजार करना पड़े! देखते हैं, इस धरती पर न्याय कहीं है कि नहीं?'

फिर अपने सर पर वही शाल डाल कर, जिसकी चर्चा मार्मेलादोव ने रस्कोलनिकोव के साथ अपनी बातचीत के दौरान की थी, शराब के नशे में चूर और शोर मचाते अभी तक कमरे में भरे हुए किराएदारों की भीड़ को चीरती हुई, कतेरीना इवानोव्ना रोती-सिसकती, मन में फौरन और हर कीमत पर न्याय पाने की धुँधली-सी उम्मीद लिए भाग कर सड़क पर निकल गई। दोनों छोटे बच्चों के साथ पोलेंका कमरे के कोने में संदूक पर सहमी हुई, दबी-सिकुड़ी बैठी रही, और दोनों के गलें में बाँहें डाल कर, सर से पाँव तक काँपती हुई अपनी माँ के वापस आने का इंतजार करने लगी। अमालिया इवानोव्ना ने कमरे में पूरा एक तूफान मचा रखा था। वह चीख रही थी, रो रही थी, और जो भी चीज हाथ लग रही थी उसे ही गुस्से में फर्श पर फेंक रही थी। किराएदार तरह-तरह की आवाजों में यूँ चीख रहे थे कि कुछ भी समझ में नहीं आता था। कुछ तो जो कुछ हुआ था उस पर अपने-अपने ढंग से टीका-टिप्पणी कर रहे थे, कुछ और थे कि आपस में ही झगड़ा कर रहे थे और एक-दूसरे को गालियाँ दे रहे थे, और कुछ ने एक गाने की धुन छेड़ दी थी...

'अब मुझे भी चलना चाहिए,' रस्कोलनिकोव ने सोचा। 'तो सोफ्या सेम्योनोव्ना, देखता हूँ कि तुम अब क्या कहती हो!'

फिर वह सोन्या के घर की तरफ चल पड़ा।

अपराध और दंड : (अध्याय 5-भाग 4)

रस्कोलनिकोव के दिल पर खुद अपनी मुसीबतों और दहशत का बोझ कुछ कम नहीं था फिर भी लूजिन के खिलाफ सोन्या की ओर से उसने बहुत डट कर और सक्रिय रूप से पैरवी की थी। लेकिन सबेरे से उस पर इतनी बहुत कुछ बीत चुकी थी कि वह सोन्या का पक्ष लेने की अदम्य इच्छा से तो ग्रस्त था ही, लग रहा था कि वह इस बात से भी खुश था कि उसे अपनी ही भावनाओं से दूर भागने का अवसर मिला था जो उसके लिए नाकाबिले बर्दाश्त होती जा रही थीं। अलावा इसके वह एक पल के लिए भी उस मुलाकात को नहीं भुला सका जो उसने उस शाम के लिए सोन्या के साथ तय की थी। इसके बारे में सोच कर ही वह रह-रह कर चिंतित हो उठता था : उसे उसको बताना ही पड़ेगा कि लिजावेता की हत्या किसने की थी। यह जानते हुए कि इसमें उसे कितनी तकलीफ होगी, उसने इस विचार को ही दिमाग से निकाल देने की कोशिश की। इसलिए कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ से चलते वक्त जब उसने ऊँचे स्वर में कहा कि 'तो सोफ्या सेम्योनोव्ना, देखता हूँ कि तुम अब क्या कहती हो?' तो उस वक्त भी वह लूजिन के खिलाफ अपनी थोड़ी ही देर पहले की जीत के फलस्वरूप बेहद जोश और जुनून से भरा हुआ, किसी से भी टक्कर लेने को तैयार रहा होगा। लेकिन उसके साथ एक अजीब-सी बात हुई। वह जब कापरनाउमोव के फ्लैट पर पहुँचा तो उसे अचानक लगा कि उसकी सारी शक्ति निचुड़ रही है। उस पर खौफ छा गया। वह झिझक कर दरवाजे पर रुका और अपने आपसे यह अजीब सवाल पूछा : 'क्या उसे यह बताना जरूरी है कि लिजावेता को किसने मारा है?' यह सवाल अजीब इसलिए था कि अचानक लगभग उसी पल उसने यह भी महसूस किया कि वह उसे बताए बिना रह नहीं सकता था, बल्कि अपने अपराध को स्वीकार करना जरा देर के लिए भी टाल नहीं सकता था। अभी तक उसे यह नहीं पता था कि यह काम असंभव क्यों था। वह इसे सिर्फ महसूस करता था, और होनी के सामने अपनी बेबसी के इस दुख देनेवाले एहसास ने उसे लगभग पूरी तरह कुचल कर रख दिया था। और अधिक विचारों तथा यातनाओं से छुटकारा पाने के लिए जल्दी से दरवाजा खोला और चौखट के पार सोन्या को देखने लगा। वह छोटी मेज पर कुहनियाँ टिकाए, दोनों हाथों में चेहरा छिपाए बैठी थी, लेकिन रस्कोलनिकोव को देखते ही जल्दी से उठ खड़ी हुई और उसके स्वागत के लिए आगे बढ़ी, गोया वह उसके आने की राह ही देखती रही हो।

'आप न होते तो न जाने मेरा क्या हाल होता!' कमरे के बीच में ही दोनों के आमने-सामने होने पर उसने जल्दी से कहा। साफ पता चल रहा था कि उससे यह बात कहने के लिए वह बेहद बेचैन थी। इसी के लिए तो वह उसकी प्रतीक्षा कर रही थी।

रस्कोलनिकोव मेज के पास जा कर उसकी कुर्सी पर बैठा, जिस पर से सोन्या उठी थी। वह उससे दो कदम पर आ कर खड़ी हो गई, ठीक उसी तरह जैसे उसने कल शाम को किया था।

'तो सोन्या' उसने कहा। अचानक उसे एहसास हुआ कि उसकी आवाज काँप रही है। 'तुम्हारे खिलाफ सारे मामले की बुनियाद, 'तुम्हारी समाजी हालत और उससे जुड़ी आदतों' पर थी। बात समझ में आई?'

वह दुखी हो गई।

'मेहरबानी करके आप मुझसे उस तरह बातें न करें, जैसे कल कर रहे थे!' सोन्या बीच में बोली। 'वही सिलसिला फिर से शुरू मत कीजिए। वैसे भी मुझ पर बहुत कुछ बीत चुकी है...'

उसकी यह शिकायत रस्कोलनिकोव को अच्छी न लगे, यह सोच कर वह जल्दी से मुस्कराई।

'मैं समझती हूँ, वहाँ से चली आ कर मैंने गलती की है। वहाँ इस वक्त न जाने क्या-क्या हो रहा होगा मैं तो वापस जानेवाली थी, लेकिन मुझे आपका खयाल आया... कि यहाँ आप शायद आएँ।'

उसने सोन्या को बताया कि अमालिया इवानोव्ना उन्हें घर से जबरन निकाल रही थी और कतेरीना इवानोव्ना 'न्याय की खोज में' भाग कर न जाने कहाँ चली गई थीं।

'हे भगवान!' सोन्या चीख उठी। 'चलिए, फौरन चलें!' यह कह कर उसने अपना कोट उठा लिया।

'हमेशा वही बात!' रस्कोलनिकोव चिढ़ कर जोर से चीखा। 'तुम बस उन्हीं के बारे में सोचती रहती हो! थोड़ी देर तो मेरे पास बैठो।'

'लेकिन... कतेरीना इवानोव्ना?'

'कतेरीना इवानोव्ना की फिक्र मत करो। वे घर से बाहर निकल गई हैं, इसलिए वे अब खुद तुम्हारे पास आएँगी,' उसने चिड़चिड़ेपन से कहा। 'अगर तुम यहाँ न मिली, तो कुसूर तुम्हारा अपना ही होगा...'

सोन्या तकलीफदेह उलझन में पड़ कर कुर्सी के किनारे बैठ गई। फर्श पर नजरें गड़ाए रस्कोलनिकोव चुपचाप बैठा था और किसी चीज के बारे में सोच रहा था।

'मान लो कि अब लूजिन कोई मुसीबत खड़ी करना नहीं चाहता,' उसने सोन्या की ओर देखे बिना कहना शुरू किया, 'लेकिन अगर वह करना चाहता और अगर इससे उसका फायदा होता तो वह तुम्हें जेल भी भिजवा सकता था, अगर लेबेजियातनिकोव और मैं वहाँ इत्तफाक से न होते। भिजवाता कि नहीं?'

'हाँ,' उसने कमजोर आवाज में कहा। 'जी हाँ,' उसने दुखी और बेचैन लहजे में एक बार फिर दोहराया।

'लेकिन सोचो तो सही, यह भी तो मुमकिन था कि मैं वहाँ न होता... और यह भी इत्तफाक की ही बात थी कि लेबेजियातनिकोव भी उसी वक्त वहाँ आन पहुँचा।'

सोन्या चुप रही।

'पर अगर उसने तुम्हें जेल भिजवा दिया होता तो क्या होता? याद है, कल मैंने तुमसे क्या कहा था?'

वह इस बार भी कुछ नहीं बोली। वह कुछ देर इंतजार करता रहा।

'मैंने तो सोचा था कि तुम फिर चीखोगी : बस, अब रहने दीजिए! ऐसी बातें मत कीजिए!' रस्कोलनिकोव हँसा, हालाँकि यह जबरदस्ती की हँसी थी। 'तुम फिर चुप हो?' उसने एक पल बाद पूछा। 'लेकिन हम लोगों को तो किसी चीज के बारे में बातें करनी हैं कि नहीं देखा, मेरी दिलचस्पी यह जानने में है कि तुम एक 'समस्या' को कैसे हल करती, जैसे कि लेबेजियातनिकोव कहता है।' (लग रहा था कि वह कुछ उलझता जा रहा है।) 'नहीं, मैं संजीदगी से बात कर रहा हूँ। मैं सचमुच संजीदा हूँ। एक पल के लिए सोचो, सोन्या कि तुम्हें लूजिन के तमाम इरादे पहले से पता होते (मेरा मतलब है, पक्के तौर पर पता होते), और उनकी वजह से कतेरीना इवानोव्ना और उसके छोटे-छोटे बच्चे तबाह हो जाते... और तुम भी (तुम तो यह समझती हो कि तुम्हारी वजह से जरा भी फर्क नहीं पड़ता, इसलिए मैंने यह 'भी' का टुकड़ा जोड़ दिया) ...और नन्ही पोलेंका भी... क्योंकि वह भी किसी दिन तुम्हारे ही रास्ते लग जाएगी। तो मुझे तुम यह बताओ : मान लो इन तमाम बातों का फैसला अचानक तुम्हारे ऊपर छोड़ दिया जाता - मेरा मतलब यह है कि वह या वे लोग जिंदा रहें या न रहें, लूजिन जिंदा रहे और अपनी बेहूदगियाँ करता रहे या नहीं, या कतेरीना इवानोव्ना को मर जाने दिया जाए या नहीं। तुम इस समस्या का फैसला किस तरह करोगी कि दोनों में से किसको मरना चाहिए मैं यह सवाल तुमसे पूछ रहा हूँ।'

सोन्या ने बेचैन हो कर उसे देखा। उसे शक था कि रस्कोलनिकोव ने जिस तरह उससे यह सवाल घुमा-फिरा कर पूछा था, उसमें कोई छिपा हुआ मतलब भी हो सकता था।

'मैं जानती थी आप मुझसे इसी तरह की कोई बात पूछेंगे,' सोन्या ने कुछ तलाश भरी दृष्टि से उसकी ओर देखा।

'अच्छा, तो तुम जानती थीं! लेकिन मैं तो अब भी जानना चाहूँगा कि तब तुम्हारा फैसला क्या होता।'

'मुझसे आप ऐसी बात क्यों पूछ रहे हैं, जो कभी नहीं हो सकती थी?' सोन्या ने झिझकते हुए जवाब दिया।

'तो तुम्हारी राय में यही बेहतर है कि लूजिन को जिंदा रहने और बेहूदगियाँ करते रहने दिया जाए! तुममें इस मामले का फैसला करने की भी हिम्मत नहीं है?'

'लेकिन मुझे कैसे मालूम हो कि भगवान की इच्छा क्या है और आप मुझसे ऐसी बात पूछ ही क्यों रहे हैं, जो किसी को कभी पूछनी नहीं चाहिए? इस तरह के बेसर-पैर के सवाल क्यों कर रहे हैं इस बात का दारोमदार मेरे फैसले पर भला कैसे है मैं इस बात का फैसला करनेवाली कौन होती हूँ कि कौन जिंदा रहे और कौन न रहे?'

'आह, तो अगर तुम बीच में भगवान की इच्छा को घसीट कर ला ही रही हो तो फिर तो इसके बारे में कुछ और कहा भी नहीं जा सकता,' रस्कोलनिकोव चिढ़ कर बुदबुदाया।

'आप मुझे साफ-साफ बताइए कि आप क्या चाहते हैं,' सोन्या ने बेबसी से चिल्ला कर कहा। 'आप फिर इस सिलसिले को किसी दूसरी ओर ले जाना चाहते हैं... आप क्या मुझे तकलीफें ही देने के लिए आए हैं?'

वह अपने आप पर काबू न रख सकी और अचानक फूट-फूट कर रोने लगी। रस्कोलनिकोव उसे उदास और निराश मुद्रा में देखता रहा। इस तरह कोई पाँच मिनट बीत गए।

'तुम ठीक कहती हो सोन्या,' आखिरकार वह धीमे से बोला। अचानक उसमें एक परिवर्तन आ गया और उसने जान-बूझ कर रुखाई और बेबस चुनौती का जो रवैया अपना रखा था, वह गायब हो गया। आवाज भी अचानक कमजोर पड़ गई। 'कल मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हारे पास किसी बात की क्षमा माँगने नहीं आऊँगा, पर अभी मैं क्षमा ही तो माँग रहा था। देखो, जब मैं लूजिन की बातें या भगवान की इच्छा की बातें कर रहा था तो दरअसल अपनी ही बात कर रहा था... मैं तुमसे क्षमा ही माँग रहा था, सोन्या...'

रस्कोलनिकोव ने मुस्कराने की कोशिश की लेकिन उस मुरझाई हुई मुस्कराहट में एक तरह की कमजोरी थी, एक अधूरापन था। उसने सर झुका कर हाथों में चेहरा छिपा लिया।

लेकिन अचानक उसे सोन्या से गहरी नफरत की एक विचित्र और आश्चर्यजनक भावना ने आन दबोचा। उसने जल्दी से सर उठा कर सोन्या को गौर से देखा, मानो इस भावना से वह आश्चर्यचकित रह गया हो और डर गया हो। लेकिन उसे बस सोन्या की परीशानी और कष्टदायी चिंता से भरी आँखें ही दिखाई दीं। उसकी उस दृष्टि से प्यार था और रस्कोलनिकोव की सारी नफरत देखते-देखते गायब हो गई। वह नफरत थी ही नहीं; उसने एक भावना को कोई दूसरी भावना समझ लिया था। इसका मतलब सिर्फ यही था कि वह पल आ चुका था।

उसने एक बार फिर हाथों में अपना मुँह छिपा कर सर झुका लिया। अचानक उसका रंग पीला पड़ गया। वह कुर्सी से उठा और सोन्या को देखने लगा, पर एक शब्द कहे बिना ही उसके पलँग पर धम से बैठ गया।

उसके दिमाग में वह पल किसी रहस्यमय ढंग से ऐन उसी पल की तरह था, जब वह उस बुढ़िया के पीछे खड़ा था और कुल्हाड़ी को फंदे में से छुड़ाते हुए उसने महसूस किया था कि 'उसके पास खोने के लिए अब एक पल का समय भी नहीं है।'

'बात क्या है?' सोन्या ने सहम कर पूछा।

रस्कोलनिकोव से कुछ भी कहते न बना। उसने जिस ढंग से उसे बताने की योजना बनाई थी, वह ढंग यह नहीं था। उसे तो खुद भी नहीं मालूम था कि इस समय उसे हो क्या रहा था। सोन्या धीरे-धीरे उसके पास गई, पलँग पर उसकी बगल में बैठ गई और उस पर नजरें जमाए निहोरा करती रही। उसका दिल धड़क रहा और डूबा जा रहा था। स्थिति बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थी। उसने अपना चेहरा, जिस पर मौत का पीलापन छाया हुआ था, सोन्या की ओर घुमाया और कुछ कहने की कोशिश की लेकिन कोई आवाज नहीं निकली, बस उसके होठ हिलते रहे। सोन्या बुरी तरह डर गई।

'बात क्या है?' सोन्या ने सिमट कर कुछ दूर हटते हुए दोहराया।

'कुछ भी नहीं, सोन्या। डरो नहीं... यह सब बकवास है! अगर सोचो तो यह सभी कुछ बकवास है,' वह इस तरह बुदबुदाया जैसे उसे पूरी तरह होश न हो। 'मैं तुम्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए यहाँ आया ही क्यों?' उसने अचानक सोन्या की ओर देख कर कहा। 'मैं क्यों आया? क्यों? अपने आपसे मैं यही सवाल करता रहता हूँ, सोन्या...'

वह अपने आपसे शायद यही सवाल पंद्रह मिनट पहले भी पूछ रहा था। लेकिन इस वक्त उसने यही बात बेबसी की हालत में कही। उसे तो ठीक से यह भी नहीं मालूम था कि वह कह क्या रहा है। उसे बस यह महसूस हो रहा था कि उसका सारा बदन काँप रहा था।

'आह, आप खुद को कितनी तकलीफ दे रहे हैं!' सोन्या ने उसे गौर से देखते हुए बेहद आहत हो कर कहा।

'यह तो कुछ भी नहीं है! ...इधर देखो, सोन्या,' वह अचानक कुछ उदासी और कमजोरी से एक-दो सेकेंड तक मुस्कराता रहा, 'याद है, कल तुम्हें मैं क्या बताना चाहता था?'

सोन्या बेचैनी से इंतजार करती रही।

'यहाँ से जब मैं जा रहा था तो कहा था कि शायद मैं तुमसे हमेशा के लिए विदा हो रहा हूँ, लेकिन आज अगर मैं यहाँ आया तो मैं तुम्हें बता दूँगा कि... लिजावेता को किसने मारा।'

सोन्या एकाएक सर से पाँव तक दहल उठी।

'तो मैं तुम्हें वही बात बताने आया हूँ।'

'तो कल आपका सचमुच यही मतलब था...' उसने बड़ी कठिनाई से, धीमे स्वर में कहा।

'लेकिन आपको कैसे पता?' सोन्या ने गोया अचानक अपने आपको सँभालते हुए, जल्दी से कहा।

वह बुरी तरह हाँफ रही थी। रंग लगातार पीला पड़ता जा रहा था।

'मुझे पता है।'

सोन्या एक मिनट चुप रही।

'क्यों? क्या उस आदमी का पता चल गया है?' उसने दबी जबान से पूछा।

'नहीं, उन लोगों को नहीं चला है।'

'तो आपको वह कैसे पता हो सकता है?' उसने एक बार फिर कोई एक मिनट रुक कर और एक बार फिर इतनी धीमी आवाज में पूछा कि सुनना भी मुश्किल था।

रस्कोलनिकोव ने उसकी और घूम कर उसे भेदती हुई नजरों से देखा।

'अंदाजा लगाओ,' उसने उसी विकृत और कमजोर मुस्कराहट के साथ कहा।

सोन्या थरथर काँपने लगी।

'लेकिन आप... आप मुझे... इस तरह क्यों डरा रहे हैं?' सोन्या ने बच्चों की तरह मुस्कराते हुए कहा।

'तुम्हारी समझ में अभी भी नहीं आ रहा? मैं उसका बहुत अच्छा दोस्त रहा हूँगा अगर... अगर मुझे मालूम है तो,' रस्कोलनिकोव उसकी तरफ से एक पल को भी नजरें हटाए बिना कहता रहा। लग रहा था वह नजरें हटा भी नहीं सकता था। 'उसका इरादा लिजावेता को मारने का था भी नहीं। उसने... उसने उसे तो बस इत्तफाक से मार डाला था। वह तो... उस बुढ़िया को मारना चाहता था... तब जबकि वह... अकेली हो और... वह वहाँ गया... कि इतने में लिजावेता आ गई सो... सो उसे भी उसने मार डाला।'

एक और भयानक मिनट बीता। दोनों अभी तक एक-दूसरे को देखे जा रहे थे।

'तुम अब भी अंदाजा नहीं लगा सकतीं?' उसने अचानक पूछा। उसे लगा, उसकी हालत उस आदमी जैसी है जो गिरजाघर के ऊँचे मीनार से नीचे कूदनेवाला हो।

'न...हीं,' सोनिया ने इतने धीरे से कहा कि मुश्किल से ही सुनाई पड़ा।

'देखो अच्छी तरह।'

यह बात कहते समय एक और पुरानी जानी-पहचानी भावना ने उसके हृदय को बर्फ की तरह जमा दिया : उसने सोनिया की ओर देखा और उसके चेहरे में अचानक लिजावेता का चेहरा झाँकता महसूस हुआ। उसे उस दिन शाम को लिजावेता के चेहरे का उस वक्त का भाव अच्छी तरह याद था जब वह कुल्हाड़ी ले कर उसकी ओर बढ़ रहा था और वह धीरे-धीरे दूर खिसकती हुई दीवार की ओर सरकती जा रही थी। उसने अपना हाथ सामने की ओर तान रखा था, चेहरे पर बच्चों जैसा भय था, और वह उन बच्चों जैसी लग रही थी जो अचानक किसी चीज से सहम जाते हैं, बेहरकत हो कर हैरानी से उसी चीज को देखते रहते हैं जिससे उन्हें डर लगता है, सिमट कर पीछे हट जाते हैं, अपने छोटे-छोटे हाथ आगे की ओर तान लेते हैं, और उनकी आँखों में आँसू छलक आते हैं। सोन्या के साथ भी इस समय लगभग ऐसा ही हो रहा था : कुछ देर तक वह रस्कोलनिकोव को बेबसी से देखती रही, उसके चेहरे पर भय का वही भाव था। अचानक उसने अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ा कर उँगलियों से उसका सीना हलके से छू लिया और धीरे-धीरे पलँग पर से उठने लगी। वह उससे दूर हटती रही और उसे लगातार नजरें और भी गड़ा कर घूरती रही। सोन्या के आतंकित होने का यह भाव अचानक रस्कोलनिकोव में दाखिल हो गया और उसके चेहरे पर भी आतंक का वही भाव पैदा हो गया। वह भी उसे उसी तरह और बच्चों जैसी मुस्कराहट के साथ घूरने लगा।

'कुछ अंदाजा लगा?' उसने आखिरकार फुसफुसा कर पूछा।

'हे भगवान!' उसके मुँह से एक भयानक चीख निकली। वह बेबस पलँग पर गिरी और तकियों में अपना मुँह छिपा लिया। लेकिन एक ही पल बाद वह जल्दी से उठ बैठी, झपट कर उसकी ओर बढ़ी, और उसके दोनों हाथ अपनी पतली-पतली उँगलियों में कस कर भींच लिए, गोया एक शिकंजे में जकड़ लिए हों। वह उसे एकटक घूरती रही, मानो उसकी नजरें रस्कोलनिकोव के चेहरे पर चिपक कर रह गई हों। घोर निराशा की दृष्टि से उस पर एक आखिरी नजर डाल कर सोन्या ने कम-से-कम अपने लिए आशा की कोई किरण खोजने और उसे पकड़े रहने की कोशिश की। लेकिन अब कहीं कोई उम्मीद बाकी नहीं थी, कोई संदेह नहीं रह गया था... वह बात सच थी! वास्तव में, काफी अरसा बाद उसने उस पल को जब याद किया तो उसे इस बात पर आश्चर्य हुए बिना नहीं रहा कि उसने फौरन यह कैसे मान लिया था कि उसके बारे में कोई भी संदेह नहीं हो सकता था मिसाल के लिए, वह यह नहीं कह सकती थी कि उसे किसी तरह का पूर्वाभास था। फिर भी जिस पल रस्कोलनिकोव ने वह बात कही थी, उस पल सोन्या को बरबस ऐसा लगा था कि सचमुच उसे इस बात का पूर्वाभास हुआ था।

'रहने दो, सोन्या, बस बहुत हुआ! मुझे सताओ मत,' उसने दुखी हो कर उससे प्रार्थना की।

उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह बात उसे इस तरह बताएगा, लेकिन सब कुछ इसी तरह बस हो गया।

सोन्या उछल कर खड़ी हो गई, गोया उसे यह भी न मालूम हो कि वह क्या कर रही है। अपने हाथ मलते हुए वह कमरे के बीच तक गई; लेकिन फिर फौरन ही जल्दी से वापस आ कर उसकी बगल में उसके कंधे से अपना कंधा लगभग सटा कर बैठ गई। अचानक वह इस तरह चौंकी जैसे उसे किसी ने छूरा भोंक दिया हो, और जोर से चीख कर यह जाने बिना कि वह ऐसा क्यों कर रही है, उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गई।

'आपने अपनी क्या हालत बना ली है?' वह घोर निराशा में डूबे स्वर में चीखी। उछल कर खड़े होते हुए झपट कर वह उसकी गर्दन से चिपट गई और उसे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया।

रस्कोलनिकोव ने अपने आपको उसकी बाँहों से छुड़ाया और उदासी भरी मुस्कराहट से उसकी ओर देखता रहा।

'तुम भी अजीब हो, सोन्या, मेरे वह बात बता देने के बाद भी मुझे गले लगा रही हो और प्यार कर रही हो। तुम जानती भी नहीं कि तुम कर क्या रही हो।'

'मैं नहीं समझती कि कोई तुमसे ज्यादा दुखी इस दुनिया में होगा!' वह जुनून भरे लहजे में चिल्लाई, सुना भी नहीं कि उसने क्या कहा था, और अचानक फूट-फूट कर रोने लगी।

रस्कोलनिकोव के दिल में एक ऐसी भावना उमड़ी, जिसे वह बहुत समय पहले से भुला चुका था और उसका दिल एकाएक मोम की तरह पिघल उठा। उसने इस भावना का विरोध करने की कोई कोशिश नहीं की। आँखों में आँसू छलक आए और पलकों पर आ कर टिक गए।

'मुझे छोड़ तो नहीं जाओगी, सोन्या?' उसने लगभग आशा के लहजे में उसकी ओर देखते हुए कहा।

'नहीं-नहीं, कभी नहीं, और कहीं भी नहीं!' सोन्या ने जज्बाती हो कर कहा। 'तुम जहाँ भी जाओगे, मैं साथ जाऊँगी! हे भगवान! ...कैसी अभागी हूँ मैं भी! ...तुमसे पहले मैं क्यों नहीं मिली? तुम पहले क्यों नहीं मेरे पास आए? हे भगवान!'

'अब तो आ गया!'

'अब अब हम क्या कर सकते हैं ...हम दोनों को एक-दूसरे के साथ रहना है, एक-दूसरे के साथ,' वह बार-बार दोहराती रही, गोया उसे इस बात का एहसास भी न हो कि वह कह क्या रही है। उसने एक बार फिर उसे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया। 'मैं तुम्हारे पीछे-पीछे साइबेरिया भी जाऊँगी।'

सोन्या के अंतिम शब्द रस्कोलनिकोव के दिल में तीर की तरह लगे। उसके होठों पर वही पुरानी, तिरस्कार भरी मुस्कान लौट आई।

'मैं तो शायद साइबेरिया जाने की सोच भी नहीं रहा सोन्या!' उसने कहा।

सोन्या ने जल्दी से उसे एक नजर देखा।

उस दुखी प्राणी पर तरस के उस शुरुआती जज्बात भरे और दुखदायी पल के बाद, मन में हत्या का भयानक विचार उठते ही सोन्या एक बार फिर गूँगी हो गई। उसकी आवाज के बदले हुए लहजे से उसे इस बात का एक बार फिर एहसास हुआ कि वह हत्यारा है। वह हैरान हो कर उसे देखती रही। अभी तक उसे कुछ भी नहीं मालूम था, यह भी नहीं कि जो कुछ हुआ था, वह क्यों हुआ था, किसलिए हुआ था या कैसे हुआ था। अब ये सारे सवाल उसके मन में एक साथ एक जोरदार लहर की तरह उठे और एक बार फिर वह विश्वास न कर सकी कि, 'वह हत्यारा है! क्या ऐसा हो सकता है?'

'यह सब आखिर है क्या? मैं कहाँ हूँ?' सोन्या ने बौखला कर कहा गोया उसके हवास अभी तक ठिकाने न आए हों। 'लेकिन तुम कैसे... तुम्हारे जैसा प्राणी ऐसा काम कर कैसे सका! आखिर यह सब क्या है?'

'देखो, बात यह है... मैं सिर्फ डाका डालना चाहता था। मेरे हाल पर रहम खा कर इन बातों को जाने ही दो, सोन्या,' वह थके हुए लहजे में झुँझला कर बोला।

सोन्या स्तब्ध खड़ी थी, लेकिन अचानक ऊँचे स्वर में बोली :

'तुम भूख थे, थे न? तुमने... तुमने यह सब अपनी माँ की मदद करने के लिए किया था, है न?'

'नहीं सोन्या, नहीं,' उसने बुदबुदा कर कहा और मुँह फेर कर सर झुका लिया। 'मैं इतना भूखा भी नहीं था और... मैं अपनी माँ की मदद जरूर करना चाहता था, लेकिन... लेकिन वह भी वजह नहीं थी। ...मेरे जख्म को मत कुरेदो, सोन्या!'

'लेकिन यह बात सचमुच सच है?' सोन्या आश्चर्य से चिल्लाई। 'हे भगवान, यह बात कैसे सच हो सकती है तुम्हारी बात पर विश्वास कौन करेगा यह कैसे मुमकिन है कि तुम अपनी आखिरी पाई तक दूसरों को दे दो और साथ ही हत्या और डाके के अपराधी भी बनो मैं समझी!' उसने अचानक चौंक कर कहा। 'वह पैसा जो तुमने कतेरीना इवानोव्ना को दिया था... वह पैसा... हे भगवान! क्या वह पैसा भी...'

'नहीं, सोन्या,' उसने जल्दी से उसकी बात काट कर कहा, 'वह पैसा वहाँ से नहीं आया था। तुम उसकी वजह से परेशान न हो। पैसे मेरी माँ ने यहाँ के एक व्यापारी के हाथ भिजवाए थे, और वह रकम मुझे तब मिली थी, जब मैं बीमार था और मैंने वह उसी दिन दे भी दी थी... रजुमीखिन ने देखा था... मेरी तरफ से उसी ने पैसे लिए थे... मेरा पैसा था वह... मेरा अपना।'

सोन्या विस्मय से आँखें फाड़े उसकी बात सुनती रही और समझने की कोशिश करती रही।

'जहाँ तक उस पैसे का सवाल है,' उसने बहुत धीमे स्वर में, मानो कुछ सोचते हुए कहा, 'मुझे... दरअसल, मुझे यह भी नहीं मालूम कि उसमें कोई पैसा था भी कि नहीं। मैंने उसकी गर्दन से मखमली चमड़े का बना हुआ एक बटुआ लिया था... उसमें कोई चीज इस तरह ठूँस कर भरी हुई थी कि वह फटा जा रहा था... काफी भारी था। ...लेकिन मैंने उसे खोल कर देखा भी नहीं; शायद इसका वक्त मिला ही नहीं... और जो चीजें मैंने ली थीं वे जंजीरें और दूसरी छोटी-मोटी चीजें थीं... उन्हें मैंने अगले ही दिन सबेरे वोज्नेसेंस्की प्रॉस्पेक्ट पर एक अहाते में उस बटुए के साथ ही पत्थर के नीचे गाड़ दिया था। वे अब भी वहीं हैं...'

सोन्या उत्सुकता से सुनती रही।

'लेकिन तुमने, जैसा कि तुमने अभी कहा था, अगर यह काम सिर्फ... डाका डालने के लिए किया था, तो तुमने कोई चीज ली क्यों नहीं?' उसने डूबते की तरह तिनके का सहारा लेते हुए जल्दी से पूछा।

'पता नहीं... अभी तक मैं अपना मन पक्का नहीं कर सका हूँ कि वह पैसा लूँ या न लूँ,' उसने एक बार फिर गोया सारी बातों के बारे में सोचते हुए कहा, और अपने आपको सँभाल कर अचानक मुस्कराया। 'मैं बहुत बकवास कर रहा हूँ, है न?'

सोन्या के दिमाग में यह विचार अचानक बिजली की तरह कौंधा : 'क्या यह पागल है' लेकिन उसने फौरन ही इसे अपने दिमाग से निकाल दिया : नहीं, बात कुछ और है। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।

'जानती हो, सोन्या,' उसने कहा, गोया उसके मन में अचानक कोई प्रेरणा जागी हो, 'क्या तुम्हें पता है कि अगर मैंने उसकी हत्या सिर्फ भूखे होने के सबब की होती,' वह एक-एक शब्द पर जोर दे कर, रहस्यमय ढंग से उसे देखते हुए लेकिन सच्चाई से कहता रहा, 'तो मैं इस वक्त... खुश हो रहा होता! मैं चाहता हूँ कि यह बात तुम समझो!'

'और,' एक पल बाद वह कुछ हताश हो कर बोला, 'तुम्हें इससे क्या कि मैं इस बात को मानूँ या न मानूँ कि मैंने गलती की है? मुझ पर इस तरह की खोखली विजय पा कर तुम्हें क्या मिलेगा? आह, सोन्या, क्या मैं इसीलिए यहाँ आया था?'

सोन्या फिर कुछ कहना चाहती थी, लेकिन उसने अपने आपको रोक लिया।

'मैंने कल तुमसे साथ चलने को कहा था... इसीलिए कि मेरे पास अब तुम्हारा ही सहारा बचा है।'

'कहाँ चलने को?' सोन्या ने दबी जबान से पूछा।

'डाके डालने और कत्ल करने नहीं, चिंता मत करो,' वह तल्खी से मुस्कराया। 'हम एक-दूसरे से अलग हैं... कितने अलग। और सोन्या, तुम्हें पता है, मैंने अभी इसी पल, महसूस किया कि मैं तुमसे कहाँ साथ चलने को कह रहा था। मैंने कल जब पूछा था, तब मुझे खुद नहीं मालूम था। मैं तुम्हारे पास बस एक चीज के लिए आया था : मैं चाहता था कि तुम मुझे छोड़ न जाना। तुम मुझे छोड़ तो नहीं जाओगी सोन्या?'

सोन्या ने उसका हाथ धीरे-से दबाया।

'आखिर क्यों, मैंने उसे बताया क्यों? मैंने उसके सामने हर बात मान क्यों ली?' एक ही मिनट बाद वह घोर निराशा से बेचैन हो कर चिल्लाया और सोन्या की ओर बेहद दर्द के साथ देखता रहा। 'सोन्या, तुम मुझसे जरूर कुछ बातों की वजह जानना चाहती होगी। तुम बैठी इसी का इंतजार तो कर रही हो। यह बात तो मुझे दिखाई दे रही है, लेकिन मैं तुम्हें भला क्या बता सकता हूँ तुम्हारी समझ में कुछ भी नहीं आएगा। बेकार अपना दिल दुखाओगी... मेरी खातिर! फिर वही बात! रोने लगीं और मुझे गले लगाने लगीं! किसलिए गले लगा रही हो मुझे? इसीलिए न कि वह बोझ मैं अकेले बर्दाश्त न कर सका और उसे किसी दूसरे के कंधों पर डाल देने के लिए यहाँ चला आया? क्यों न तुम भी तकलीफ उठाओ? इसी से मुझे कुछ राहत मिलेगी! ऐसे कमीने आदमी को तुम प्यार कैसे कर सकती हो?'

'लेकिन क्या तुम तकलीफ नहीं उठा रहे हो?' सोन्या ने रुँधी हुई आवाज में पूछा।

रस्कोलनिकोव पर वही भावना एक बार फिर छा गई। एक पल के लिए उसका दिल पसीज उठा।

'सोन्या, मेरा दिल बहुत मैला है! यह बात याद रखना : शायद इससे बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ में आ जाएँ। मैं यहाँ इसलिए आया कि मैं दुष्ट हूँ। ऐसे भी लोग हैं जो न आते। लेकिन मैं कायर हूँ और... और कमीना भी हूँ! लेकिन... तुम चिंता न करो! असल बात यह नहीं है... मैं सब कुछ कह देना चाहता हूँ, लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि शुरू किस तरह करूँ...'

कुछ देर ठहर कर वह सोचता रहा।

'आह, हम दोनों एक-दूसरे से कितने अलग हैं,' वह फिर दुखी हो कर बोला। 'बिलकुल एक जैसे नहीं हैं। आखिर क्यों, मैं यहाँ क्यों आया... इसके लिए अपने आपको मैं कभी माफ नहीं करूँगा!'

'नहीं, नहीं, मुझे खुशी है कि तुम आए!' सोन्या ने जज्बाती हो कर कहा। 'अच्छा यही है कि मुझे मालूम हो जाए! कहीं बहुत अच्छा!'

रस्कोलनिकोव ने आहत दृष्टि से उसे देखा।

'और अगर वैसा था भी तो क्या हुआ,' वह बोला, जैसे किसी फैसले पर पहुँच चुका हो। 'हाँ, यकीनन यही बात थी! सुनो : मैं नेपोलियन बनना चाहता था और इसलिए मैंने उस बुढ़िया का खून कर दिया... अब तुम्हारी समझ में आया?'

'न...हीं,' सोन्या ने भोलेपन से और दब्बूपन के साथ धीमे स्वर में कहा, 'लेकिन... तुम कहते रहो! मैं समझ जाऊँगी, अपने दिल की गहराई से मैं समझ जाऊँगी!' वह उससे प्रार्थना करती रही।

'समझ जाओगी खूब, तो देखते हैं!'

वह देर तक चुप रहा और कुछ सोचता रहा।

'देखो, हुआ यह कि एक दिन मैंने अपने आपसे सवाल पूछा : अगर मेरी जगह, मिसाल के लिए, नेपोलियन होता और अपना जीवन आरंभ करने के लिए उसके पास न तूलों होता न मिस्र होता, और न ही पार करने को कोई ब्लांक पहाड़ होता, बल्कि इन तमाम शानदार और भारी-भरकम चीजों की बजाय कोई खूसट बुढ़िया होती, किसी छोटे-मोटे सरकारी नौकर की विधवा, जिसके संदूक से पैसा निकालने के लिए (समझीं न, अपना जीवन आरंभ करने के लिए) उसका खून करना जरूरी होता। तो अगर उसके सामने कोई दूसरा रास्ता न होता तो क्या वह यह काम करने का फैसला करता? क्या यह काम करने से उसे भी इसलिए नफरत होती कि यह काम किसी भी तरह शानदार नहीं था और... और फिर पाप का भी काम था! आज मैं तुम्हें यह बता दूँ कि इस 'सवाल' में मैंने काफी लंबे वक्त तक सर खपाया यहाँ तक कि आखिर में जब मेरे दिमाग में यह बात आई (न जाने कैसे एकदम अचानक) कि उसे बिलकुल नफरत न होती, बल्कि यह बात उसके मन में उठती भी नहीं कि यह काम कोई शानदार काम नहीं था, तो मुझे बेहद शर्म आई। सच तो यह है कि उसकी समझ में भी नहीं आता कि आखिर इसमें इतना आगा-पीछा सोचने की बात क्या है। और अगर उसके सामने कोई दूसरा रास्ता न होता तो जरा भी संकोच किए बिना वह उसका गला घोंट देता और इस काम में किसी तरह की कोई कसर न छोड़ता... खैर, आखिरकार ऐसा वक्त आया कि मुझे भी कोई संकोच नहीं रहा और... और मैंने उसका खून कर दिया... उसी आदमी के कदमों पर चलते हुए जिसे मैं अपना आदर्श मानता था... वह सारी घटना ठीक इसी तरह हुई! तुम्हें यह बात अजीब लगती है क्या हाँ, सोन्या, अजीब बात तो यह है कि ठीक यही हुआ था...'

सोन्या को यह बात हरगिज अजीब नहीं लग रही थी।

'मुझे साफ-साफ बताओ... कोई मिसाल दिए बिना,' उसने और भी दब्बूपन से और इतने धीमे लहजे में कहा कि ठीक से सुनाई भी नहीं देता था।

रस्कोलनिकोव उसकी ओर घूमा उदास भाव से उसे देखा, और उसके हाथ थाम लिए।

'तुम भी ठीक ही कहती हो, सोन्या। यह सब कुछ बकवास है... कोरी बातें। देखो, तुम जानती हो कि मेरी माँ के पास कुछ भी नहीं है, लगभग कुछ भी नहीं। मेरी बहन ने काफी अच्छी शिक्षा पाई, लेकिन वह तो बस किस्मत की बात थी, और इसके बाद भी उसे बच्चों की देखभाल करने की ही नौकरी मिली। उन लोगों ने सारी उम्मीदें मुझसे लगा रखी थीं... सिर्फ मुझसे। मैं पढ़ रहा था। लेकिन मैं यूनिवर्सिटी का खर्च नहीं जुटा सकता था, और इसलिए मजबूरन मुझे कुछ अरसे के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी। अगर वह सिलसिला चलता रहता तो शायद (अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहता तो।) दस-बाहर साल में मुझे हजार रूबल सालाना पर कहीं पढ़ाने की या किसी सरकारी दफ्तर की नौकरी मिल जाती,' वह यूँ बोलता रहा जैसे सब कुछ रटा-रटाया बोल रहा हो। उस वक्त तक मेरी माँ चिंता करते-करते और दुख झेलते-झेलते पूरी तरह टूट चुकी होती और मैं उन्हें भी सुख न पहुँचा पाता, जहाँ तक मेरी बहन का सवाल है... उसकी हालत इससे भी बदतर हो सकती थी और इससे बहरहाल क्या फायदा कि जिंदगी में हर चीज अपने पास से कतरा कर निकल जाए और हम देखते रह जाएँ, या हर चीज की ओर से मुँह फेर लें मैं अपनी माँ को भूल जाऊँ या मिसाल के लिए, मेरी बहन पर अपमानों की जो बौछार की गई है, उन्हें चुपचाप सर झुका कर पी जाऊँ मैं ऐसा क्यों करूँ... इसलिए कि मैं उन्हें दफन कर दूँ और अपने कंधों पर नई जिम्मेदारियाँ सँभाल लूँ... बीवी और बच्चे... और फिर उन्हें भी कंगाल छोड़ जाऊँ तो इसलिए... इसलिए मैंने फैसला किया कि उस बुढ़िया का पैसा हथिया लूँ ताकि अपनी माँ को परेशान किए बिना यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी कर सकूँ, यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद कुछ बरस तक अपनी जिंदगी सँवारने के लिए उस पैसे की मदद लूँ, और यह सब कुछ अच्छी तरह करूँ, बड़े पैमाने पर करूँ, ताकि अपनी जिंदगी के लिए जो काम भी चुनूँ, उसमें कामयाबी का पूरा भरोसा रहे और मैं किसी के सहारे का मुहताज न रहूँ। ...तो ...तो, यही है सारा किस्सा। ...बेशक मैंने ...मैंने उस बुढ़िया का खून करके बुरा किया ...और ...और यह ...बस इतना ही काफी है!'

उसने बड़ी मुश्किल से अपना किस्सा खत्म किया। उसे लगा, वह थक कर चूर हो चुका है और उसने अपना सर झुका लिया।

'ऐसा नहीं है! नहीं, ऐसा नहीं है!' सोन्या ने निराशा में डूबे स्वर में चिल्ला कर कहा। 'तुम भला... नहीं, ऐसा नहीं, बिलकुल नहीं है!'

'तो तुम खुद भी यही समझती हो कि ऐसा नहीं है! ...फिर भी मैंने अपने दिल की बात कही है! जो सच्चाई थी, मैंने तुम्हें वही बताई है।'

'आह, यह कैसी सच्चाई है, भगवान?'

'मैंने सिर्फ एक जूँ को मारा है, सोन्या। एक बेकार, गंदी, नुकसान पहुँचानेवाली जूँ को।'

'इनसान... जूँ है क्या'

'मैं बिलकुल जानता हूँ कि वह जूँ नहीं थी,' उसने सोन्या की ओर अजीब निगाहों से देखते हुए जवाब दिया। 'लेकिन सोन्या, मैं समझता हूँ कि मैं सरासर बकवास कर रहा हूँ,' उसने कहा। 'मैं एक अरसे से बकवास करता आ रहा हूँ। बात वह नहीं है ...तुम ठीक कहती हो। इस सिलसिले में कुछ एकदम दूसरे कारण भी काम कर रहे थे। एक जमाने से मैंने किसी से बात तक नहीं की है, सोन्या। ...इस वक्त मेरा सर दर्द के मारे फटा जा रहा है।'

उसकी आँखों में बुखारवाली चमक थी। वह लगभग सरसाम जैसी हालत में बकबका रहा था। होठों पर एक बेचैन मुस्कराहट नाच रही थी। इस उत्तेजना की दशा से बस इसी बात की झलक मिलती थी कि वह थक कर किस कदर चूर हो चुका है। सोन्या ने महसूस किया कि वह किस कदर तकलीफ झेल रहा है। उसका सर भी चकराने लगा था। वह बातें भी कितने अजीब ढंग से कर रहा था : उसकी बातों का कुछ-कुछ मतलब तो समझ में आता था, लेकिन... 'हे भगवान! यह कैसे... यह कैसे हो सकता है?' घोर निराशा से चूर, वह अपने हाथ मलने लगी।

'नहीं, सोन्या, यह बात नहीं है!' उसके अचानक अपना सर उठा कर फिर कहना शुरू किया, गोया उसके विचारों में कोई नया मोड़ आ गया हो जिससे वह नए सिरे से आश्चर्यचकित और उत्तेजित हो गया हो। 'यह बात नहीं है सोन्या... बेहतर होगा कि तुम यूँ समझ लो (हाँ, यकीनन, यही बेहतर होगा), यही समझ लो कि मैं घमंडी हूँ, दूसरों से जलता हूँ, उनसे ईर्ष्या करता हूँ, कमीना हूँ, दूसरों को नीचा दिखाना चाहता हूँ और... और शायद मुझमें पागलपन की कुछ निशानी भी मौजूद है। (क्यों न सारी बातें एक ही साथ साफ कर दी जाएँ! मुझे पता है कि मेरे पागलपन की चर्चा पहले भी की जा चुकी है!) अभी कुछ ही देर पहले मैंने तुमसे कहा था कि मैं यूनिवर्सिटी का खर्च नहीं उठा सकता था। लेकिन जानती हो, शायद मैं उठा भी लेता! माँ मुझे फीस देने भर को काफी पैसे भेज देतीं और अपने कपड़ों, जूतों और खाने भर का मैं खुद कमा सकता था। मुझे यकीन है कि मैं इतना तो कमा ही सकता था। आधे रूबल फी घंटे पर पढ़ाने का काम भी मिल सकता था। रजुमीखिन को ही देख लो। कहीं न कहीं से उसे काम मिल ही जाता है। लेकिन मेरा मन खट्टा हो गया था और काम करने को जी नहीं चाहता था। हाँ, मेरा मन खट्टा हो चुका था। (यही कहना ठीक है!) मैं काम से जी चुराए अपने कमरे में मकड़ी की तरह बैठा रहता था। तुमने मेरी वह कोठरी तो देखी है... सोन्या, क्या तुम यह बात महसूस करती हो कि ये नीची छतें, ये छोटी-छोटी अँधेरी कोठरियाँ मन और आत्मा दोनों को विकृत कर देती हैं कितनी नफरत थी मुझे अपने उस दड़बे से! फिर भी मैं उसे नहीं छोड़ता था। जान-बूझ कर नहीं छोड़ता था! कई-कई दिन बाहर नहीं जाता था। कोई काम करना नहीं चाहता था। खाने को भी मन नहीं करता था। बस मैं यूँ ही पड़ा रहता था। नस्तास्या कुछ लाती थी तो खा लेता था, वरना दिनभर मुँह में दाना भी नहीं जाता था। अपनी तरफ से मैं कुछ भी नहीं माँगता था... सिर्फ कुढ़न के मारे! रात को जलाने के लिए बत्ती नहीं थी, इसलिए अँधेरे में पड़ा रहता था। इतना पैसा भी कमाने की कोशिश मैं नहीं करता था कि एक शमा खरीद लूँ। मुझे आगे पढ़ना चाहिए था लेकिन मैंने अपनी किताबें तक बेच दीं। मेरी मेज पर रखी कापियों पर अभी तक एक-एक इंच मोटी गर्द जमी है। लेटे-लेटे सोचते रहना मुझे अच्छा लगता था और मैं सिर्फ सोचता रहता था... ऐसे-ऐसे अजीब सपने मुझे दिखाई देते थे... भयानक तरह-तरह के - मैं तुम्हें यह बताने की जरूरत नहीं समझता कि मेरे सपने कैसे होते थे। पर फिर मुझे यह महसूस होने लगा, कि... नहीं! ऐसी बात नहीं है। नहीं, अभी भी मैं तुम्हें ठीक से नहीं बता पा रहा हूँ! देखो, बात यह है... मैं लगातार अपने आप से यही सवाल करता था कि मैं इतना बेवकूफ क्यों हूँ। अगर दूसरे लोग बेवकूफ हैं, और मुझे पक्का मालूम है कि वे बेवकूफ हैं, तो मैं समझदार बनने की कोशिश क्यों नहीं करता तब जा कर मेरी समझ में आया, सोन्या, कि अगर मैंने सभी के समझदार बनने का इंतजार किया, तो मुझे बहुत लंबा इंतजार करना पड़ेगा... फिर उसके बाद मेरी समझ में यह आया कि ऐसा कभी नहीं हो सकेगा, लोग कभी नहीं बदलेंगे, कोई उन्हें कभी भी बदल नहीं सकेगा, और यह कि इसकी कोशिश करना भी बेकार है! हाँ, यही बात है! यही उनके अस्तित्व का आधार है... एक नियम है, सोन्या! तो यही बात है! ...और अब मैं जानता हूँ, सोन्या कि मजबूत मन और मस्तिष्कवाला ही उन पर राज करेगा! जो बहुत हिम्मत करे, वही सही होगा। जिस चीज को लोग पवित्र मानते हैं; उसे तिरस्कार से ठुकरानेवाले को ही विधाता समझते हैं। जो सबसे आगे बढ़ कर जुरअत से काम लेता है, उसी को सबसे सही मानते हैं! अभी तक ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होता भी रहेगा! जो अंधे हैं सिर्फ यही इस हकीकत को नहीं देख पाते!'

ये बातें कहते समय रस्कोलनिकोव देख तो सोन्या की ओर रहा था, लेकिन उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी कि वह उसकी बात समझ भी रही है या नहीं। बुखार उसे पूरी तरह दबोच चुका था। वह आशा और निराशा की एक अजीब-सी घालमेलवाली हालत में था। (सचमुच उसने बहुत दिनों से किसी से बात तक नहीं की थी!) सोन्या ने महसूस किया कि यह निराशा भरी स्वीकारोक्ति ही रस्कोलनिकोव की आस्था, उसका कायदा बन चुकी है।

'तब जा कर मैंने महसूस किया, सोन्या,' वह जुनून के आलम में कहता रहा, 'कि ताकत उसी को मिलती है, जो उसे ले लेने का हौसला दिखाता है। यहाँ बस एक चीज का महत्व है : आदमी में जुरअतमंदी होनी चाहिए! उस वक्त जिंदगी में पहली बार मेरे दिमाग में वह विचार आया जिसके बारे में इससे पहले किसी ने सोचा भी नहीं था! किसी ने भी नहीं! मेरे सामने अचानक यह बात दिन की रोशनी की तरह साफ हो गई कि न तो कभी पहले और न उस वक्त किसी ने इन बेतुकी बातों के बीच से गुजरते वक्त यह हौसला किया था कि इन सारी बातों को दुम से पकड़ कर उन्हें जहन्नुम में झोंक दे! मैं... मैं यही हौसला करना चाहता था और एक खून कर आया... मैं सिर्फ हौसला करना चाहता था, सोन्या! मेरे सामने बस यही एक मकसद था!'

'चुप रहो, बस चुप हो जाओ!' सोन्या ने दुख से भरे स्वर में कहा। उसे बहुत गहरी चोट पहुँची थी। 'तुम ईश्वर से दूर हो गए हो और भगवान ने तुम पर वार करके तुम्हें शैतान के हवाले कर दिया है...'

'अरे हाँ सोन्या, जानती हो, जब मैं अँधेरे में लेटा रहता था और मेरी आँखों के सामने तस्वीरें घूमती रहती थीं, तब शैतान ही मुझे लालच देता नजर आता था। सुना?'

'चुप रहो! हँसो मत, भगवान की निंदा मत करो! कुछ नहीं समझते तुम, कुछ भी नहीं! भगवान, इनकी समझ में क्या कुछ भी नहीं आएगा?'

'बेवकूफी की बातें मत करो, सोन्या, मैं हँस नहीं रहा हूँ। मुझे अच्छी तरह पता है कि शैतान मुझे अपने इशारे पर चला रहा था। चुप रहो, सोन्या, चुप रहो!' उसने निराशा के साथ इसरार किया। 'सब जानता हूँ मैं। अँधेरे में लेटे-लेटे मैं इन सारी बातों के बारे में ही सोचता रहता था और चुपके-चुपके अपने आपसे यही सब बातें कहता रहता था... इन सारी बातें के बारे में मैं खुद से पूरी-पूरी बहस कर चुका हूँ, और मैं सब कुछ जानता हूँ, सभी कुछ! बेवकूफी की इस सारी बकवास से मैं किस कदर तंग आ चुका था! मैं हर बात को भूल जाना, सब कुछ नए सिरे से शुरू करना चाहता था सोन्या, मैं बकबक करना बंद कर देना चाहता था! क्या तुम सचमुच यह समझती हो कि कुछ भी सोचे बिना मैंने अचानक नादानी में यह काम कर डाला नहीं, मैंने चालाकी से यह सारा सिलसिला शुरू किया, और मेरी तबाही की वजह यही थी! क्या सचमुच तुम्हारी समझ में मिसाल के लिए, मैं यह नहीं जानता था कि अगर मैं खुद से यह पूछता रहा कि मुझे ताकत पाने का अधिकार है कि नहीं, तो इसका मतलब सिर्फ यह होगा कि मुझे ताकत पाने का कोई अधिकार नहीं है। या यह कि अगर मैंने खुद से यह पूछा कि आदमी जूँ है या नहीं है, तो इसका मतलब बस यह होगा कि मेरी नजर में आदमी जूँ नहीं है, हालाँकि वह उस आदमी की नजर में जूँ हो सकता है, जिसने कभी इस बारे में सोचा नहीं और जो अपने आपसे कोई सवाल किए बिना, आगे ही बढ़ता गया। ...इसलिए अगर मैं इतने दिनों तक यही फैसला करने की कोशिश में परेशान रहा कि नेपोलियन ऐसा करता या नहीं, तो इसकी वजह यही थी कि मुझे बखूबी पता था कि मैं नेपोलियन नहीं था। ...मैं उस बेवकूफी की सारी तकलीफ झेलता रहा सोन्या, और मैं उससे छुटकारा पाने के लिए तड़पता रहा। मैं खून करना चाहता था सोन्या, भला-बुरा कुछ भी सोचे बिना खून करना चाहता था... अपने संतोष के लिए खून करना चाहता था, सिर्फ अपनी खातिर! मैं इस बारे में खुद से भी कोई झूठ नहीं बोलना चाहता था। यह खून मैंने इसलिए नहीं किया कि अपनी माँ की मदद करूँ... यह बकवास है! इसलिए यह खून नहीं किया कि दौलत और ताकत हासिल करके मैं मानवजाति का उपकार करना चाहता था... यह भी बकवास है! मैंने यह काम बस यूँ ही कर डाला, सिर्फ अपनी खातिर यह काम किया। उस वक्त मुझे इसकी भी परवाह नहीं थी कि मैं किसी का उपकारी बनूँगा या नहीं, या अपनी बाकी जिंदगी उन सबको एक मकड़ी की तरह अपने जाल में फँसा कर और उनका जीवन-रस चूस कर बिता दूँगा। जिस वक्त मैंने यह काम किया सोन्या, उस वक्त मुझे पैसे का भी लोभ नहीं था। नहीं, उस वक्त मुझे पैसे की उतनी जरूरत नहीं थी, जितनी किसी और चीज की थी... अब मुझे सब कुछ मालूम है... सोन्या, मुझे समझने की कोशिश करो : अगर मैं उसी रास्ते पर चलता रहता तो शायद फिर कभी कोई खून न करता। मैं कोई दूसरी ही बात पता करना चाहता था, कोई दूसरी ही चीज मुझे आगे धकेल रही थी। उस वक्त मुझे यह पता करना था, जल्दी से जल्दी पता करना था, कि क्या मैं भी दूसरे लोगों की तरह जूँ हूँ या एक इनसान हूँ क्या मैं हदों को पार कर सकता हूँ या नहीं क्या मुझमें आगे बढ़ कर ताकत हासिल करने का हौसला है या नहीं मैं कोई रेंगनेवाला कीड़ा हूँ या मुझे इसका अधिकार है कि...'

'खून करने का? तुम्हें खून करने का अधिकार है या नहीं?' सोन्या डर कर चीख पड़ी।

'आह सोन्या, भगवान के लिए,' वह चिढ़ कर ऊँची आवाज में बोला। वह जवाब में कुछ कहना चाहता था, लेकिन इसकी बजाय वह बड़े तिरस्कार के भाव से चुप हो गया। 'बीच में मत बोलो, सोन्या! मैं तुम्हें सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रहा था कि शैतान मुझे खींच कर वहाँ ले गया था, और बाद में उसने मुझे यह समझाया कि मुझे वहाँ जाने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि मैं भी बाकी लोगों की तरह ही एक जूँ हूँ! उसने मेरी हँसी उड़ाई और मैं अब इसीलिए तुम्हारे पास आया हूँ। अपने मेहमान का स्वागत करो! अगर मैं एक जूँ न होता तो क्या तुम्हारे पास आता सुनो : उस दिन शाम को जब मैं उस बुढ़िया के यहाँ गया था तो मैं सिर्फ यह आजमाने गया था... मैं चाहता हूँ तुम यह बात जान लो!'

'और फिर भी तुमने खून किया! तुमने खून कर डाला!'

'तो क्या? हुआ क्या? इसी तरह लोग खून करते हैं... लोग क्या खून करने उसी तरह जाते हैं जैसे उस दिन मैं वहाँ गया था? मैं फिर कभी तुम्हें बताऊँगा कि मैं वहाँ किस तरह गया था... क्या मैंने उस खूसट बुढ़िया की हत्या की नहीं, मैंने तो खुद अपनी हत्या की, एक खूसट बुढ़िया की नहीं! एक ही वार में हमेशा के लिए मैंने खुद अपना सफाया कर दिया! उस खूसट की हत्या तो शैतान ने की, मैंने नहीं। ...लेकिन, बहुत हुआ! बहुत हो चुका, सोन्या! अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!' वह घोर निराशा में डूब कर अचानक चीखा। 'मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!'

घुटनों पर दोनों कुहनियाँ टिका कर उसने अपना सर दोनों हाथों में पकड़ लिया।

'तुम कितना दुख झेल रहे हो!' सोन्या दर्द से बेचैन हो कर एकाएक कराह उठी।

'खूब, तो अब मैं क्या करूँ तुम्हीं बताओ!' उसने अचानक अपना सर उठा कर और घोर निराशा के कारण भयानक सीमा तक विकृत मुद्रा से सोन्या की ओर देखते हुए कहा।

'क्या करो?' वह अचानक उछल कर खड़े होते हुए चीखी। आँखों से, जिनमें अभी तक आँसू भरे थे, आग बरसने लगी। 'उठो!' (सोन्या ने उसका कंधा पकड़ कर कहा और वह हैरत के साथ उसकी ओर देखते हुए उठ खड़ा हुआ।) 'फौरन, इसी पल जाओ और चौराहे पर झुक कर पहले उस धरती को चूमो जिसे तुमने अपवित्र किया है। फिर चारों दिशाओं में झुको और सभी लोगों से चिल्ला-चिल्ला कर कहो : मैं हत्यारा हूँ! भगवान तब तुम्हें फिर से एक नया जीवन भेजेगा। जाओगे जा सकोगे तुम?' सोन्या ने सर से पाँव तक काँपते हुए, उसके दोनों हाथ कस कर अपने हाथों में थामे हुए और दहकती हुई आँखों से उसे देखते हुए पूछा।

रस्कोलनिकोव उस लड़की में अचानक यह जोश देख कर हैरान रह गया।

'तुम साइबेरिया की बात सोच रही हो, सोन्या यह चाहती हो कि मैं आत्मसमर्पण कर दूँ?' उसने निराश भाव से पूछा।

'कष्ट को स्वीकार करो और इस तरह अपना प्रायश्चित करो - तुम्हें यही करना होगा।'

'नहीं, मैं उनके पास नहीं जाऊँगा, सोन्या।'

'फिर तुम किस तरह जिंदगी बसर करना चाहते हो, सोचो तो सही, तुम्हें क्या-क्या झेलना होगा,' सोन्या ने चिल्ला कर कहा। 'क्या अब यह मुमकिन है तुम अब अपनी माँ से बात कैसे कर सकोगे? (सोचो तो उनका अब क्या होगा!) लेकिन मैं क्या बातें किए जा रही हूँ... तुम अपनी माँ और बहन को तो पहले ही छोड़ चुके हो, कि नहीं... हे भगवान!' उसने दुखी स्वर में कहा, 'इसे तो सब कुछ पहले से मालूम है। किसी इनसान के साथ के बिना तुम सारा जीवन कैसे काटोगे? तुम्हारा होगा क्या?'

'बच्चों जैसी बात मत करो, सोन्या,' उसने शांत भाव से कहा। 'उनकी नजरों में भला किस तरह मैं अपराधी हूँ? क्यों जाऊँ मैं? उनसे मैं क्या कहूँगा? यह सब एक छलावा है। ...वे खुद ही लाखों-करोड़ों को तबाह कर रहे हैं और इसे एक अच्छी बात समझते हैं। वे दगाबाज और बदमाश लोग हैं, सोन्या! ...मैं नहीं जाता। फिर मैं जा कर कहूँगा क्या कि मैंने एक बुढ़िया का खून किया और पैसा लेने की हिम्मत नहीं पड़ी उसे मैंने एक पत्थर के नीचे छिपा दिया...' उसने तल्खी से मुस्कराते हुए कहा। 'वे सब मुझ पर हँसेंगे और पैसा न लेने की बात पर मुझे बेवकूफ कहेंगे। कायर और मूर्ख! वे कुछ भी नहीं समझ सकेंगे सोन्या, कुछ भी नहीं। वैसे उन्हें कुछ समझने का हक भी नहीं है। तो मैं क्यों जाऊँ बच्चों जैसी बातें मत करो...'

'तुम यह बर्दाश्त नहीं कर सकोगे, नहीं कर सकोगे, नहीं कर सकोगे!' वह निराश हो कर उसकी ओर अपने दोनों हाथ बढ़ा कर बार-बार अपनी गुजारिश करती रही।

'मुझे लगता है, मैं पहले से ही अपनी निंदा करता रहा हूँ,' उसने गोया सारी बातों पर विचार करके उदास भाव से कहा। 'शायद मैं जूँ नहीं, इनसान ही हूँ। शायद मैंने अपनी निंदा में जल्दबाजी से काम लिया है... मैं उनसे अभी भी टक्कर ले सकता हूँ।'

उसके होठ तिरस्कार भरी मुस्कराहट के साथ खुल गए।

'अपने जमीर पर यह बोझ ले कर! और सो भी जीवन भर, जीवन भर!'

'आदत पड़ जाएगी,' उसने विचारों में डूब कर उदासी के साथ से कहा। 'सुनो,' उसने एक मिनट बाद कहा, 'रोना-धोना बंद करो। यह वक्त काम की बातों का है। मैं तुम्हें यह बताने आया हूँ कि वे लोग मेरे पीछे लग चुके हैं, मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं।'

'आह!' सोनिया डर के मारे चीख उठी।

'तुम इतना डर किस बात से रही हो? क्या तुम खुद ही यह नहीं चाहतीं कि मैं साइबेरिया चला जाऊँ तो फिर इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? पर वे लोग मुझे पकड़ नहीं सकेंगे। मैं उन्हें खूब दौड़ाऊँगा और मेरा दावा है कि वे लोग मेरा कुछ भी नहीं कर सकेंगे। उनके पास कोई पक्का सबूत नहीं है। कल मैं बहुत खतरे में था और यह समझ रहा था कि मेरा खेल खत्म हो चुका है, लेकिन आज परिस्थिति काफी बेहतर दिखाई देती है। उनके पास जो भी सबूत मेरे खिलाफ हैं, वे कच्चे हैं। उनकी काट दोनों तरफ हो सकती है। मेरा मतलब है, मैं उनके सारे इल्जाम अपने पक्ष में मोड़ सकता हूँ। समझ में आ रही है यह बात? और मैं ऐसा करूँगा भी क्योंकि मैं जरूरी सबक सीख चुका हूँ। ...लेकिन यह बात पक्की है कि वे मुझे जेल में डालेंगे। आज ऐसी ही एक बात हो गई, वरना तो वे लोग जेल में मुझे डाल भी चुके होते। शायद वैसे भी वे आज ही मुझे जेल भेज दें... लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, सोन्या। मैं एक-दो हफ्ते जेल में काटूँगा और उन्हें फिर मुझको छोड़ना पड़ेगा... क्योंकि उनके पास मेरे खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। पर उन्हें कोई सबूत मिलेगा भी नहीं, इसका मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ। उनके पास जो सबूत हैं, उनके बल पर वे किसी को भी सजा नहीं दिलवा सकते। खैर, छोड़ो भी इसे... मैं तुम्हें सिर्फ इसलिए बता रहा हूँ कि तुम्हें पता रहे... मैं अपनी तरफ से इस बात का बंदोबस्त करने की पूरी कोशिश करूँगा कि मेरी माँ और बहन को कुछ ज्यादा फिक्र न हो... मेरी बहन के लिए तो, मैं समझता हूँ, अब काफी बंदोबस्त मौजूद है... और जाहिर है इसका मतलब यह है कि माँ भी ठीक ही हैं... तो यह है सारी बात। फिर भी, सावधान रहना। अगर मैं जेल चला गया तो क्या मुझसे मिलने तुम आया करोगी?'

'हाँ, जरूर आऊँगी!'

दोनों एक-दूसरे की बगल में बैठे हुए बहुत उदास और निराश लग रहे थे, जैसे तूफान के बाद किसी डूबे हुए जहाज के दो यात्री सुनसान किनारे पर आ लगे हों। उसने सोन्या की ओर देखा और महसूस किया कि सोन्या को उससे कितना अधिक प्यार था। अजीब बात तो यह थी कि उसे यह महसूस करके बहुत दुख हुआ और उसका दिल तड़प उठा कि कोई उससे इतना अधिक प्यार करे। वह एक अजीब और भयानक एहसास था! जब वह सोन्या से मिलने आ रहा था तब उसे यही महसूस हो रहा था कि वही उसकी सारी आशाओं का केंद्र है और सब कुछ उसी पर निर्भर है। सोचा था कि वह अपनी तकलीफ इस तरह कुछ कम कर सकेगा, लेकिन जब सोन्या का दिल पूरी तरह उसकी ओर झुका हुआ था तो अचानक उसने महसूस किया, उसे मालूम हुआ कि वह पहले से भी बहुत अधिक दुखी हो गया है।

'सोन्या,' वह बोला, 'बेहतर शायद यही होगा कि जब मैं जेल चला जाऊँ तो मुझसे मिलने वहाँ मत आना।'

सोन्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वह रो रही थी। इसी तरह कई मिनट बीत गए।

'तुम सलीब पहनते हो?' सोन्या ने अप्रत्याशित प्रश्न किया, जैसे उसे अचानक इसका ध्यान आ गया हो।

उसका सवाल रस्कोलनिकोव कि समझ में फौरन नहीं आया।

'नहीं पहनते न? लो, यह लो। यह साइप्रेस की लकड़ी की है। मेरे पास एक और है, ताँबे की। लिजावेता की है। मैंने लिजावेता से सलीबों की अदला-बदली की थी। उसने मुझे अपना सलीब दिया था और उसे मैंने एक छोटी-सी मूर्ति दी थी। इसे ले लो। यह मेरी है... मेरी!' उसने अनुरोध से कहा। 'यह बात समझो कि यह मेरी अपनी है। हम लोग साथ दुख झेल रहे हैं, इसलिए बेहतर है कि हम अपनी सलीबें भी साथ मिल कर ढोएँ।'

'लाओ, दो,' रस्कोलनिकोव ने कहा। वह उसे निराश नहीं करना चाहता था। लेकिन सलीब लेने के लिए जो हाथ उसने बढ़ाया उसे उसने फौरन खींच भी लिया।

'अभी नहीं, सोन्या,' वह बोला। फिर सोन्या को तसल्ली देने के लिए उसने धीमे से कहा, 'अच्छा यही होगा कि बाद में लूँ।'

'हाँ, हाँ, वही ठीक रहेगा, बहुत बेहतर होगा,' उसने उत्साह से हामी भरी। 'जब अपनी तकलीफ को स्वीकार करने का मन बनाना तो इसे पहन लेना। मेरे पास आना, मैं पहना दूँगी। हम प्रार्थना करेंगे और साथ-साथ आगे बढ़ेंगे।'

तभी किसी ने तीन बार दरवाजा खटखटाया।

'सोफ्या सेम्योनोव्ना, मैं अंदर आ सकता हूँ क्या?' किसी ने जानी-पहचानी आवाज में विनम्रता से कहा।

सोन्या हैरान हो कर दरवाजे की ओर लपकी। दरवाजे से लेबेजियातनिकोव के सन जैसे बालोंवाले सर ने अंदर झाँका।

अपराध और दंड : (अध्याय 5-भाग 5)

लेबेजियातनिकोव बहुत फिक्रमंद दिखाई दे रहा था।

'मैं तुमसे बात करने आया हूँ, सोफ्या सेम्योनोव्ना,' उसने कहना शुरू किया। 'माफ कीजिए... मैं सोच ही रहा था कि शायद आप भी यहाँ हों,' उसने अचानक रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए कहा। 'मेरा मतलब... मैंने ऐसी... कोई बात नहीं सोची थी... बस सोच रहा था। ...कतेरीना इवानोव्ना पगला गई हैं!' उसने रस्कोलनिकोव की ओर से ध्यान हटा कर सोन्या की ओर मुड़ते हुए अचानक सूचना दी।

सोन्या के मुँह से चीख निकल गई।

'मेरा मतलब, लगता तो ऐसा ही है। लेकिन... बात यह है, हम लोगों की समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए... मुश्किल तो यही है। वे लौट कर आईं... शायद कहीं से निकाल दी गई थीं, शायद थोड़ी-बहुत पिटाई भी हुई थी... मेरा मतलब, लगता तो ऐसा ही था। ...वे भागी-भागी मार्मेलादोव साहब के एक पुराने अफसर से मिलने गई थीं, लेकिन वे घर पर थे नहीं। किसी दूसरे जनरल के यहाँ दावत खाने गए हुए थे। जानती हो उन्होंने क्या किया... सीधी चली गईं उस दूसरे जनरल के यहाँ और पता हैं.. इस बात पर अड़ गईं कि बिना मिले नहीं जाएँगी। लगता है, उन्हें खाने की मेज से जबरदस्ती खींच लाईं। तुम समझ सकती हो कि फिर क्या हुआ होगा। जाहिर है, उन्हें निकाल दिया गया। कहती हैं, उन्होंने उस जनरल को ढेरों गालियाँ दीं और कोई चीज फेंक कर मारा भी। बहुत मुमकिन है कि उन्होंने यह सब किया भी हो। उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया, यह मुझे नहीं पता। अब वे सबको इस बारे में बता रही हैं, अमालिया इवानोव्ना को भी, बस यह पता पाना मुश्किल है कि वे कह क्या रही हैं। बस चीखती रहती हैं, रो-रो कर बैन करती रहती हैं। और हाँ, चिल्ला-चिल्ला कर यह भी कहती रहती हैं कि हर आदमी उनसे दामन छुड़ा कर अलग हो गया है, सो वे बच्चों के साथ सड़क पर बाजा ले कर निकलेंगी; बच्चे सड़क पर नाचेंगे-गाएँगे, और वह खुद भी, और इस तरह वे पैसे जमा करेंगी; रोज उस जनरल की खिड़की के नीचे जाएँगी। कहती हैं, सब लोग देखें तो सही कि एक भले सरकारी अफसर के बच्चे सड़क पर भीख माँगते किस तरह फिर रहे हैं। वे बच्चों को पीटती, उन्हें रुलाती रहती हैं। वह लीदा को 'मेरा छप्पर' गाना सिखा रही हैं और लड़के को नाचना... और पोलेंका को भी। उनके सारे कपड़े फाड़ कर ऐसी छोटी-छोटी टोपियाँ बना रही हैं जैसी एक्टर लोग पहनते हैं, और संगीत की जगह तसल्ला बजाने का इरादा कर रही हैं। किसी की बात सुनने तक को तैयार नहीं हैं। समझ में नहीं आता कि हम लोग क्या करें। हम लोग उन्हें यह सब तो करने नहीं दे सकेंगे न!'

लेबेजियातनिकोव तो इसी तरह बोलता ही रहता लेकिन सोन्या ने, जो अब तक दम साधे उसकी बातें सुन रही थी, अचानक अपना कोट और हैट उठाया और तीर की तरह कमरे के बाहर निकल गई। भागते ही भागते उसने अपना कोट पहना और हैट भी। रस्कोलनिकोव भी उसके पीछे-पीछे चला और उसके पीछे लेबेजियातनिकोव चल पड़ा।

'इसमें कोई शक ही नहीं कि वे पागल हो गई हैं,' बाहर सड़क पर पहुँच कर वह रस्कोलनिकोव से कह रहा था। मैं सोफ्या सेम्योनोव्ना को डराना नहीं चाहता था इसीलिए मैंने कहा था कि लगता है, लेकिन इसमें किसी तरह का कोई शक है ही नहीं। सुना है कि जिन लोगों को तपेदिक होती है, उनके दिमाग में गिल्टियाँ बन जाती हैं। अफसोस कि मुझे डॉक्टरी के बारे में कुछ भी नहीं मालूम। समझाने-बुझाने की बहुत कोशिश मैंने की लेकिन वे तो कुछ सुनतीं ही नहीं।'

'आपने उन्हें गिल्टियों के बारे में क्या बताया?'

'सो तो नहीं बताया। यूँ भी यह बात उनकी समझ में नहीं आती। मतलब यह कि अगर आप किसी को यह समझाने में कामयाब हो जाएँ कि उसके रोने की कोई वजह नहीं है तो वह रोना बंद कर देगा, कि नहीं यह तो पक्की बात है। आप ऐसा नहीं समझते क्या?'

'ऐसा अगर होता तो जिंदगी कितनी आसान हो जाती,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया।

'मैं नहीं मानता। जाहिर है कतेरीना इवानोव्ना को यह बात समझाना मुश्किल है, लेकिन आप जानते हैं क्या कि पेरिस में इस तरह के प्रयोग गंभीरता से किए जा रहे हैं कि लोगों को दलील से समझा-बुझा कर उनके पागलपन का इलाज किया जाए। वहाँ के एक प्रोफेसर एक नामी वैज्ञानिक थे और अभी हाल ही में मरे हैं। उनकी राय यह थी कि इस तरह पागलपन का इलाज किया जा सकता है। कहते थे कि पागल आदमी के शरीर के अंगों में कोई खराबी नहीं होती, और पागलपन तो एक तरह की तर्क की गलती है, यह एक तरह से विवेक की भूल और चीजों के बारे में गलत रवैए के अलावा कुछ नहीं होता। वे धीरे-धीरे अपने मरीज की राय को गलत साबित करते रहते थे और जानते हैं आप, लोग कहते हैं कि उन्हें इसमें कामयाबी मिली। लेकिन चूँकि वे मरीज को एक खास तरीके से नहलाते भी थे, इसलिए इलाज के इस तरीके के बारे में कुछ शक भी है... मेरा मतलब, लगता तो ऐसी ही है...'

रस्कोलनिकोव बहुत देर से उसकी बातें सुनना बंद कर चुका था। अपने घर पहुँच कर उसने सर हिला कर लेबेजियातनिकोव से विदा ली और फाटक में घुस गया। लेबेजियातनिकोव अचानक चौंका। उसने चारों ओर नजरें दौड़ाईं और तेज कदम बढ़ाता हुआ आगे चल पड़ा।

रस्कोलनिकोव अपनी छोटी-सी कोठरी में घुसा और उसके बीच में रुक गया। 'मैं यहाँ वापस क्यों आया?' उसने दीवारों के फटे हुए और मटमैले पीले कागज पर, धूल पर, अपने सोफे पर नजर डाली। ...नीचे आँगन से लगातार खटखट की तेज आवाज आ रही थी; लग रहा था कोई आदमी कोई चीज ठोंक रहा था... शायद कोई कील। वह खिड़की के पास गया और पंजों के बल खड़े हो कर देर तक यह पता लगाने की कोशिश करता रहा कि आँगन से खटखट की वह आवाज क्यों आ रही थी। उसके चेहरे पर असाधारण एकाग्रता थी। लेकिन आँगन खाली पड़ा था और खटखट की आवाज कर रहे लोग दिखाई नहीं दे रहे थे। मकान के बाईं तरफवाली छोटी इमारत में उसे कुछ खुली हुई खिड़कियाँ दिखाई दे रही थीं। उन खिड़कियों की सिल पर जेरेनियम के थोड़े मुरझाए हुए पौधों के गमले रखे हुए थे। खिड़कियों के बाहर कपड़े सुखाने के लिए फैलाए हुए थे। यह सब कुछ उसे अच्छी तरह याद था। उधर से मुँह फेर कर वह सोफे पर आ कर बैठ गया।

उसने पहले कभी इतना अकेलापन महसूस नहीं किया था। कभी नहीं!

हाँ, एक बार फिर उसने महसूस किया कि वह शायद सोन्या से सचमुच नफरत करने लगेगा, खास तौर पर अब, जबकि उसने उसे इतना दुखी कर दिया था। 'वह उसके पास आँसुओं की भीख माँगने क्यों गया था? उसके लिए उसके जीवन में जहर घोलना इतना जरूरी क्यों था? कैसी नीचता थी!'

'मैं अकेला ही रहूँगा,' अचानक उसने इरादा किया, 'मैं उसे जेल भी नहीं आने दूँगा।'

पाँच मिनट बाद उसने अपना सर ऊपर उठाया और अजीब ढंग से मुस्कराया। उसके मन में एक अजीब विचार उठा। 'साइबेरिया भी शायद इससे बेहतर होगा,' उसने अचानक सोचा।

उसे कुछ भी पता नहीं चला कि इस तरह अपने दिमाग में धुँधले विचारों की भीड़ लिए वह अपने कमरे में कितनी देर टिका रहा। अचानक दरवाजा खुला और दूनिया अंदर आई। पहले तो उसने चौखट पर ही रुक कर रस्कोलनिकोव को देखा, ठीक उसी तरह जैसे कुछ ही देर पहले रस्कोलनिकोव ने सोन्या को देखा था। फिर वह अंदर आई और उसके सामने कुर्सी पर बैठ गई, उसी जगह जहाँ वह कल बैठी थी। रस्कोलनिकोव उसे चुपचाप देखता रहा, गोया उसका दिमाग बिलकुल खाली हो चुका हो।

'नाराज न होना, भाई,' दूनिया बोली, 'मैं बस एक मिनट के लिए आई हूँ।' दूनिया की मुद्रा विचारमग्न तो थी पर कठोर नहीं थी। आँखें चमक रही थीं और शांत थीं। रस्कोलनिकोव को साफ पता चल रहा था कि दूनिया भी उसके पास प्रेम का भाव ले कर आई थी।

'मुझे सब कुछ पता चल चुका है रोद्या, सब कुछ। रजुमीखिन ने मुझे सब कुछ बताया है और सब कुछ समझा दिया है। किसी अहमकाना और काबिले-नफरत शक की वजह से तुम्हें सताया जा रहा है, परेशान किया जा रहा है... रजुमीखिन ने बताया कि खतरेवाली कोई बात नहीं है, और इसलिए दिल पर इन सब बातों का बोझ लिए फिरना तुम्हारी नादानी है। मैं नहीं समझती कि तुम नादान हो। मैं यह बात पूरी तरह समझ सकती हूँ कि तुम इन बातों से तंग आ चुके होगे। मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम अपनी इस कड़वाहट की भावना का शिकार नहीं होगे और यह भावना तुम पर उम्र भर के लिए अपनी छाप नहीं डाल सकेगी। मुझे इसी बात का डर है। मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देती कि तुमने हम लोगों को छोड़ दिया। तुमको दोष देने का मुझे कोई अधिकार भी नहीं है, और मुझे अफसोस है कि मैंने पहले तुम्हें इसी बात के लिए बुरा-भला कहा। मैं यह महसूस किए बिना नहीं रह सकती कि अगर मैं भी इतनी ही मुसीबत में होती तो मैं भी सबसे दूर भाग जाती। मैं माँ को इसके बारे में कुछ भी नहीं बताऊँगी, लेकिन मैं उनसे तुम्हारे बारे में बराबर बातें करती रहूँगी और उनसे कहूँगी कि तुमने जल्द ही वापस आने का वादा किया है। तुम उनकी चिंता करना, मैं उन्हें शांत रखने की पूरी कोशिश करूँगी। लेकिन तुम भी उन्हें बहुत दुखी न करना : आ कर कम-से-कम एक बार जरूर मिल जाना। यह याद रखना कि वे माँ हैं! और अब मैं तुम्हें बस यह बताना चाहती हूँ,' दूनिया ने खड़े होते हुए अपनी बात खत्म की, 'कि अगर कभी तुम्हें मेरी मदद दरकार हो, अगर तुम्हें मेरी जान की या किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बुलवा भेजना, मैं आ जाऊँगी। तो अब मैं चलती हूँ!'

वह अचानक मुड़ कर दरवाजे की ओर चल पड़ी।

'दूनिया,' रस्कोलनिकोव ने उसके पास जा कर उसे रोका। बोला, 'द्मित्री प्रोखोविच रजुमीखिन बहुत अच्छा आदमी है।'

दूनिया के चेहरे पर जरा-सी लाली दौड़ गई।

'तो?' दूनिया ने एक पल रुक कर पूछा।

'बहुत कामकाजी, मेहनती और ईमानदार आदमी है : सच्चे दिल से प्यार करना जानता है। ...अच्छा, दूनिया, फिर मिलेंगे।'

दूनिया शरमा गई, फिर अचानक चिंतित दिखाई देने लगी : 'कैसी बातें करते हो, रोद्या, हम कोई हमेशा के लिए तो नहीं विदा हो रहे। तुम क्यों इस तरह बातें कर रहे हो जैसे... जैसे अपनी वसीयत पढ़ कर सुना रहे हो मुझे!'

'कोई बात नहीं... अलविदा!'

रस्कोलनिकोव बहन की ओर से मुँह मोड़ कर खिड़की की ओर बढ़ गया। दूनिया एक पल इंतजार करती रही, फिर चिंतित हो कर भाई की ओर देखा और परेशान-सी बाहर निकल गई।

नहीं, वह उसके साथ रुखाई से पेश नहीं आया। एक पल ऐसा जरूर आया था (बिलकुल अंतिम पल) जब उसका जी चाहा था कि अपनी बहन को गले लगा कर उससे विदा ले और उसे बता भी दे। लेकिन वह उसकी ओर अपना हाथ भी नहीं बढ़ा सका था।

'बाद में जब कभी वह इस बात को याद करती,' रस्कोलनिकोव ने सोचा, 'तो शायद यह सोच कर काँप उठती कि मैंने उसे गले लगाया था। शायद कहती कि मैंने चुपके से उसको प्यार भी किया था!'

'तो क्या वह यह परीक्षा झेल सकेगी?' कुछ मिनट बाद उसने फिर अपने मन में कहा। 'नहीं, वह नहीं कर पाएगी। उसकी जैसी औरतें कभी नहीं कर पातीं। कभी परीक्षा नहीं झेल सकतीं...'

फिर वह सोन्या के बारे में सोचने लगा।

खुली हुई खिड़की से ठंडी हवा का एक झोंका आया। बाहर अँधेरा हो चला था। अचानक उसने अपनी टोपी उठाई और बाहर निकल गया।

स्वाभाविक रूप से अभी वह अपनी तंदुरुस्ती की चिंता न कर सकता था, न करना चाहता था। लेकिन यह भी तो नहीं हो सकता था कि वह लगातार इस कदर मानसिक यातना और कष्ट झेलता रहे और उस पर कोई असर न हो। अभी तक तेज बुखार का शिकार हो कर भी अगर उसने चारपाई नहीं पकड़ी थी तो शायद इसी वजह से कि निरंतर मानसिक पीड़ा के मारे वह चलता-फिरता रहा और अपने होश में रहा। बनावटी तौर पर सही और कुछ समय के लिए ही सही।

वह सड़क पर बेमकसद घूमता रहा। सूरज डूब रहा था। इधर कुछ दिनों से उदास अकेलेपन की एक अजीब भावना ने उसे आ दबोचा था। उसमें कोई पैनापन या दर्द नहीं था, लेकिन उसकी वजह से उसे यूँ महसूस होने लगा था कि यह भावना अब हमेशा बनी रहेगी, और बरसों तक उसे यही उदास अकेलापन झेलना था - बेरहम दो गज जमीन पर एक शाश्वत दशा! शाम को यह भावना आम तौर पर अधिक प्रबल और कष्टदायी हो उठती थी।

'जब डूबते सूरज या ऐसी ही किसी और चीज की वजह से पैदा होनेवाली, इस तरह की बेवकूफी भरी, खालिस जिस्मानी बीमारी किसी को आ घेरती है, तो वह नादानी की कोई न कोई हरकत किए बिना तो नहीं रह सकता। सोन्या की बात तो दूर, वह दूनिया की तरफ भी भागेगा,' तल्खी से बुदबुदाया।

किसी ने उसे नाम ले कर पुकारा। उसने घूम कर देखा। लेबेजियातनिकोव उसकी ओर भागा आ रहा था।

'सोचिए तो सही, मैं अभी आपके कमरे से आ रहा हूँ। आप ही को ढूँढ़ रहा था। जरा सोचिए, जैसा कि उन्होंने अपने मन में ठानी थी, वे बच्चों को ले कर निकल गईं। हमने, मैंने और सोफ्या सेम्योनोव्ना ने, मुश्किल से उन्हें ढूँढ़ा। वे एक तसला बजा रही हैं और बच्चों को उसकी ताल पर गाने-नाचने पर मजबूर कर रही हैं। बच्चे रो रहे हैं। वे चौराहों पर और दूकानों के सामने खड़ी हो कर ये तमाशे कर रही हैं। बहुत से बेवकूफ लोग उनके पीछे भाग रहे हैं। आइए, चलिए!'

'और सोन्यों...' रस्कोलनिकोव ने जल्दी-जल्दी लेबेजियातनिकोव के पीछे कदम बढ़ाते हुए चिंतित स्वर में पूछा।

'उन पर तो जुनून सवार है। मेरा मतलब, सोफ्या सेम्योनोव्ना पर नहीं बल्कि कतेरीना इवानोव्ना पर... और सच पूछिए तो सोफ्या सेम्योनोव्ना पर भी जुनून ही सवार है। लेकिन कतेरीना इवानोव्ना तो सिड़ी हो चुकी हैं। मैं आपको बताता हूँ, वे बिलकुल पागल हो चुकी हैं। उन लोगों को पुलिस के हवाले कर दिया जाएगा। आप सोच सकते हैं न कि इसका क्या नतीजा होगा... इस वक्त वे लोग नहर के बाँध पर हैं, वोज्नेसेंस्की पुल के पास, सोफ्या सेम्योनोव्ना के घर से बहुत दूर नहीं। यहाँ से नजदीक है।'

बाँध पर, पुल के पास ही, जहाँ सोन्या रहती थी, वहाँ से लगभग दो मकानों की दूरी पर, एक छोटी-सी भीड़ जमा थी। उनमें एक बड़ी संख्या सड़क पर मारे-मारे फिरने वाले लड़कों और लड़कियों की थी। कतेरीना इवानोव्ना की भर्राई, फटी हुई आवाज सुनाई दे रही थी। सचमुच वह पूरा दृश्य एक अजब तमाशा था, जिसे देखने के लिए एक भीड़ का जमा हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। कतेरीना इवानोव्ना अपनी पुरानी मैली-कुचैली पोशाक पहने हुए थीं; उस पर हरे रंग की द्रा-द-देम्स की शाल ओढ़ रखी थीं; सर पर तिनकों की फटी हुई हैट थी जो एक तरफ पिचक कर बदसूरत और पोटली जैसी बन गई थी। उनके होश सचमुच ठिकाने नहीं थे। वे थक कर चूर हो गई थीं और हाँफ रही थीं। तपेदिक का मारा थका हुआ निढाल चेहरा हमेशा से ज्यादा पीड़ाग्रस्त लग रहा था (यूँ भी तपेदिक के मरीजों की हालत घर के बाहर धूप में और भी बदतर लगने लगती है); लेकिन उनकी उत्तेजना किसी तरह कम नहीं हो रही थी। हर पल उनकी झुँझलाहट बढ़ती जा रही थी। वे बार-बार भाग कर बच्चों के पास जातीं, उन्हें डाँटतीं-डपटतीं, बहलातीं-फुसलातीं, और सारी भीड़ के सामने उन्हें बतातीं कि वे कैसे नाचें और क्या गाएँ। वे उन्हें यह भी समझातीं कि उनके लिए यह सब करना क्यों जरूरी है। जब वे समझ न पाते तो वे गुस्से से पागल हो कर उन्हें पीटने लगतीं... फिर अपना यह काम अधूरा छोड़ कर भीड़ की ओर भाग कर जातीं और अगर उसमें कोई आदमी अच्छे कपड़े पहने हुए दिखाई देता, जो तमाशा देखने के लिए रुक गया हो, तो फौरन उसे बताने लगतीं कि 'एक शरीफ, बल्कि यूँ कहिए कि एक खानदानी रईस घर के' ये बच्चे कैसी दुर्दशा झेल रहे थे। अगर वे भीड़ में से किसी की हँसी या कोई गुस्सा दिलानेवाली बात सुनतीं तो फौरन ऐसा करनेवालों पर झपट पड़तीं और उनसे लड़ने लगतीं। कुछ लोग सचमुच हँस रहे थे, कुछ सर हिला रहे थे; लेकिन सहमे हुए बच्चों को साथ ले कर घूमनेवाली पागल औरत को देखने की बेकरारी सब में थी। लेबेजियातनिकोव ने जिस तसले की चर्चा की थी, वह कहाँ था... कम-से-कम रस्कोलनिकोव ने उसे नहीं देखा। कतेरीना इवानोव्ना जब भी पोलेंका को गाने और लीदा और कोल्या को नाचने के लिए मजबूर करतीं तो तसला पीटने की बजाय अपने सूखे हुए हाथों से ताली बजा कर ताल देती थीं। बीच-बीच में खुद भी गाने लगती थीं लेकिन दूसरे ही मिसरे पर उनको खाँसी का जबरदस्त दौरा पड़ता और उनका गाना बंद हो जाता, जिसकी वजह से वे बेहद निराश हो कर अपनी खाँसी को कोसने लगती थीं, रोने तक लगती थीं। उनको जिस बात पर सबसे ज्यादा गुस्सा आ रहा था, वह था कोल्या और लीदा का रोना और सहमे रहना। बच्चों को सचमुच सड़क पर घूम-घूम कर गानेवालों जैसी पोशाक पहनाने की कोशिश की गई थी। लड़के के सर पर लाल-सफेद रंग के किसी कपड़े की पगड़ी थी ताकि वह तुर्क लगे। लेकिन लीदा की पोशाक के लिए काफी कपड़ा नहीं मिल सका था। उसे सजाने के लिए बस एक ऊनी टोपी, बल्कि यूँ कहिए कि रात को पहनने की टोपी, पहना दी गई थी, जो पहले मार्मेलादोव की हुआ करती थी। उसमें शुतुरमुर्ग के सफेद पर का एक टुकड़ा भी लगा दिया गया था, जो किसी जमाने में कतेरीना इवानोव्ना की नानी का हुआ करता था और खानदान की एक निशानी के तौर पर संदूक में सुरक्षित रखा था। पोलेंका अपनी मामूली पोशाक में थी। वह सहमी और सिटपिटाई हुई अपनी माँ की ओर देख रही थी। वह माँ से सटी हुई खड़ी थी और अपने आँसू छिपाने की कोशिश कर रही थी। वह समझ चुकी थी कि उसकी माँ पागल हो गई है, और इसलिए वह बेचैन हो कर अपने चारों ओर देख रही थी। सड़क के वातावरण और भीड़ से उसे बहुत डर लग रहा था। सोन्या अपनी माँ के साथ परछाईं की तरह लगी थी और रो-रो कर हर पल उससे घर लौट चलने की विनती कर रही थी। लेकिन कतेरीना इवानोव्ना इसके लिए किसी भी तरह तैयार नहीं हो रही थीं।

'चुप रहो सोन्या, रहने दो,' वे हाँफते और खाँसते हुए, बड़ी तेजी से बोलते हुए चिल्लाईं। 'तुम नहीं जानती, तुम मुझसे क्या करने को कह रही हो। अभी तुम बच्ची हो। तुमसे मैं सौ बार कह चुकी कि मैं उस जर्मन छिनाल के यहाँ नहीं जानेवाली। सब लोग देखें, सारा पीतर्सबर्ग देखे तो सही कि एक भले आदमी ने लगन और वफादारी से अपने देश की सेवा की, उसके बारे में सचमुच ऐसा कहा जा सकता है कि वह अपना काम करते-करते मरा, और फिर भी उसके बच्चे किस तरह ऐसी दुर्दशा को पहुँच गए कि आज सड़क पर भीख माँग रहे हैं,' कतेरीना इवानोव्ना ने, जिन्होंने अब तक यह बेबुनियाद किस्सा गढ़ लिया था और उस पर विश्वास भी करने लगी थीं, उत्तेजित हो कर कहा। 'वह कमबख्त, दो कौड़ी का जनरल भी तो देखे। तुम बिलकुल बेवकूफ हो, सोन्या पक्की बेवकूफ! इसके अलावा तुम ही बताओ अब हम लोगों को कहाँ से खाना मिलेगा? हम लोग तुम्हें बहुत दुख दे चुके, मैं इस तरह अब नहीं चलने दूँगी! अरे, रोदिओन रोमानोविच, आप हैं' रस्कोलनिकोव को देख कर कतेरीना इवानोव्ना ने उत्सुकता से उसकी ओर लपकते हुए कहा। 'आप ही इस नादान लड़की को समझाइए कि अब हमारे पास इससे ज्यादा समझदारी का कोई धंधा नहीं रहा। रोजी तो हर गाने-बजानेवाला कमाता है लेकिन हरेक की समझ में फौरन यह बात आ जाएगी कि हम लोग उनसे अलग हैं, कि हम लोग गरीब सही पर भले लोग हैं, जो आज भीख माँगने पर मजबूर हैं। आप मेरी बात याद रखिएगा, वह कमबख्त दो कौड़ी का जनरल नौकरी से हाथ धोएगा। रोज हम लोग जा कर उसकी खिड़की के नीचे धरना देंगे, और जब बादशाह की सवारी उधर से गुजरेगी तो मैं बच्चों को उन्हें दिखाऊँगी और कहूँगी : 'माई बाप, आप ही इनकी रक्षा कीजिए! वे ही अनाथों के नाथ हैं, दयालु हैं और इनकी रक्षा करेंगे। आप देखिएगा, वे इनकी रक्षा करेंगे... और वह कमबख्त दो कौड़ी का जनरल - लीदा, कोल्या, तुम्हें अभी थोड़ी देर में फिर नाचना है! पिनपिना क्यों रहे हो देखा, फिर पिनपिनाने लगा! किस बात से डरता है बेवकूफ हे भगवान, मैं इन सबका क्या करूँ... आप नहीं जानते, ये कितने नासमझ हैं! ऐसे बच्चों का कोई करे क्यों...'

खुद लगभग रोते हुए, जिसकी वजह से उसकी बातों के प्रवाह में कोई रुकावट पैदा नहीं हुई, उसने बिसूर कर बच्चों की तरफ इशारा किया। रस्कोलनिकोव ने उसे समझा-बुझा कर घर वापस भेजने की बहुत कोशिश की, और उसके स्वाभिमान को छेड़ने की कोशिश भी यह कह कर की कि वह लड़कियों के बोर्डिंग स्कूल की हेडिमिस्ट्रेस बनने की सोच रही है और इसलिए गाने-बजानेवालियों की तरह सड़क पर मारे-मारे फिरना उसे शोभा नहीं देता।

'बोर्डिंग स्कूल, ही-ही-ही! दूर के ढोल सुहावने होते हैं!' कतेरीना इवानोव्ना ने व्यंग्य से कहा। उसे हँसते-हँसते खाँसी आ गई। 'नहीं रोदिओन रोमानोविच, वह सपना टूट चुका! हमें तो सभी छोड़ चुके! और वह नासमझ, दो कौड़ी का जनरल... आपको पता है मैंने उसे दवात फेंक कर मारी थी! उस वक्त इत्तफाक से हॉल की मेज पर एक दवात रखी थी, उसी कागज के पास जिस पर लोग आ कर अपने दस्तखत करते हैं। मैंने उस कागज पर अपना नाम लिखा और दवात उसके ऊपर चला कर भाग आई। बदमाश कहीं का! लेकिन अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है। अब बच्चों का पेट भरने का बंदोबस्त मैं ही करूँगी। अब किसी के आगे नाक मैं रगड़ने नहीं जाऊँगी! हमारी वजह से यह काफी मुसीबतें झेल चुकी,' कतेरीना इवानोव्ना ने सोन्या की तरफ इशारा करके कहा। 'पोलेंका, कितने पैसे जमा हुए दिखा तो सही। क्या बस दो कोपेक... कमीने कहीं के! कुछ भी नहीं देते, बस जबान लटकाए हमारे पीछे भागते रहते हैं। देखो तो उस बेवकूफ को! न जाने किस बात पर हँस रहा है,' उसने भीड़ में एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा। 'यह सब कुछ इसलिए कि कोल्या पक्का बुद्धू है! क्या बात है, पोलेंका मुझे फ्रांसीसी में बताओ - मैंने तुम्हें फ्रांसीसी सिखाई है न... कुछ जुमले बोलना तो आता है, कि नहीं... नहीं तो लोगों को कैसे मालूम होगा कि तुम भले घर की हो, तुम आम गाने-बजानेवाली नहीं हो बल्कि शरीफों के घर में पली-बढ़ी हो। हम लोग सड़क पर कोई बाजारू तमाशा दिखाने के लिए तो नहीं निकले! बिलकुल नहीं! हम लोग शरीफों की महफिल में गाया जानेवाला गाना गाएँगे। ...अच्छा, तो... अब कौन-सा गाना गाएँ... आप लोग, मेहरबानी करके बीच में न बोलें। हम लोग... रोदिओन रोमानोविच, हम लोग यह सोचने के लिए ठहर गए थे कि अब कौन-सा गाना गाएँ, जिसकी धुनपर कोल्या नाच सके। आपको तो पता ही होगा कि हमें ठीक से तैयारी करने का वक्त नहीं मिला। हमें सोचना होगा कि अब क्या करना है, उसकी ठीक से तैयारी करनी होगी, और तब हम लोग नेव्स्की एवेन्यू जाएँगे जहाँ सबसे बेहतर किस्म के बहुत से लोग होते हैं। उनका ध्यान फौरन हम लोगों की ओर जाएगा। लीदा को 'छप्पर मेरा' आता है। ...बस, 'छप्पर मेरा और कुछ नहीं ...हर आदमी आज वही गाना गाता है! हम लोगों को तो इससे कहीं ज्यादा शरीफाना चीज गानी होगी... पोलेंका, तुमने कोई गाना सोचा है बेटी, अपनी माँ का थोड़ा-सा तो हाथ बँटाया कर! मेरी याददाश्त पर तो पत्थर पड़ चुके हैं, नहीं तो मुझे ही कुछ याद आ जाता! हम लोग वह 'हुस्सार' वाला गाना तो नहीं गा सकते! खैर, हम लोग अब फ्रांसीसी गाना गाएँगे 'Cinq sous'!1 तुम्हें सिखाया था न असल बात तो यह है कि जब लोग तुम्हें फ्रांसीसी में गाते सुनेंगे तो फौरन समझ जाएँगे कि तुम लोग भले घर के बच्चे हो। इस बात से उन्हें और ज्यादा तरस आएगा... हम 'Malborough s'en va-t-en querre'2 भी गाने की कोशिश कर सकते हैं, और वह है भी एक लोरी... असली लोरी। सभी रईसों के घरों में वह लोरी की तरह ही गाया जाता है :

Malborough s'en va-t-en querre,

Ne sait quand reviendra... 3

उसने गाना शुरू किया। 'लेकिन नहीं, 'Cinq sous' ही ज्यादा बेहतर रहेगा! मेरा अच्छा बेटा कोल्या, कमर पर हाथ तो रख! जल्दी कर, बेटे! और लीदा, तुम दूसरी तरफ घूमती रहो, पोलेंका और मैं ताली बजा कर गाएँगे।'

Cinq sous, cinq sous...

Pour monter notre menage... 4

गाते-गाते उसे खाँसी का दौरा पड़ गया। 'पोलेंका बेटी, अपनी पोशाक ठीक करो; कंधे से नीचे सरक आई है,' दौरे के बाद वह साँस लेने की कोशिश करते हुए बोली। 'तो अब तुम लोग इस बात का खास ध्यान रखना कि तुम्हारी चाल-ढाल ठीक रहे ताकि हर आदमी देखे कि तुम किसी शरीफ के बच्चे हो। मैंने तुमसे कहा था कि कुर्ती लंबी काटना, और पूरे दो अरज की बनाना। यह सब तुम्हारी गलती है, सोन्या। तुम्हीं मुझसे बराबर कहे जा रही थी कि और छोटी रखो, और छोटी रखो। अब देखो बेचारी बच्ची का हाल! क्या हुलिया निकल कर आया है। तुम लोग अब क्यों रो रहे हो? क्या बात है, नासमझो चलो, कोल्या, शुरू करो! जल्दी! कैसा नटखट लड़का है!...

Cinq sous, cinq sous...

...लो, एक पुलिसवाला और आ धमका! अरे, तुझे भला क्या चाहिए?'


1. `पाँच पैसे'। (फ्रांसीसी)

2. कूच को माल्बरो तैयार हुए। (फ्रांसीसी)

3. कूच को माल्बरो तैयार हुए, जाने कब लौटे युद्धभूमि से... (फ्रांसीसी)

4. पाँच पैसे, पाँच पैसे, घर का तामझाम जमाने की खातिर... (फ्रांसीसी )


एक पुलिसवाला सचमुच भीड़ को चीरता हुआ चला आ रहा था। लेकिन उसी समय सरकारी अफसरों की पोशाक पहने हुए कोई 50 साल के एक सज्जन कतेरीना इवानोव्ना के पास आए और चुपचाप तीन रूबल का एक हरा नोट उसे थमा दिया। उनकी मुद्रा गंभीर थी और गर्दन में एक तमगा लटक रहा था। (इसे देख कर कतेरीना इवानोव्ना बहुत खुश हुई और पुलिसवाले पर भी काफी रोब पड़ा।) उन सज्जन के चेहरे पर दया का सच्चा भाव था। कतेरीना इवानोव्ना ने पैसे ले लिए और विनम्रता व शिष्टता से झुक कर उनका आभार प्रकट किया।

'आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब,' कतेरीना इवानोव्ना ने थोड़े अहंभाव से कहना शुरू किया, 'जिन वजहों से हम लोगों को... पोलेच्का, ये पैसे रख लो। देखा, ऐसे शरीफ और उदार लोग भी दुनिया में हैं जो मुसीबत की मारी एक बेचारी भली औरत की मदद करने की तैयार हैं। देखिए साहब, आपके सामने एक भले घर के अनाथ बच्चे हैं, जिनकी रिश्तेदारी समझ लीजिए कि बड़े-बड़े रईसों से है। ...और वह बेवकूफ, दो कौड़ी का जनरल बैठा बटेर खाता रहा... उसने मेरे विघ्न डालने पर बहुत पाँव पटके... 'महामहिम' उससे मैंने कहा, 'मेरे अनाथ बच्चों के लिए कुछ कीजिए। आप मेरे स्वर्गीय पति को जानते थे, और उनकी मौत के दिन ही एक बेहद कमीने बदमाश ने उनकी बेटी का बेरहमी से अपमान किया है...' लीजिए, एक और पुलिसवाला आ गया! बराय मेहरबानी,' उसने फरियाद करते हुए उस अफसर से ऊँची आवाज में कहा, 'कुछ कीजिए, यह पुलिसवाला चाहता क्या है! अभी हम लोग मेश्चांस्काया स्ट्रीट से एक पुलिसवाले से पीछा छुड़ा कर आए हैं। ...चाहिए क्या तुझे?'

'सड़क पर यह सब करने की इजाजत नहीं है औरत, यहाँ हुल्लड़ न मचा।'

'तू खुद हुल्लड़ न मचा! सड़क पर सभी लोग गाते-बजाते रहते हैं। तुम्हें इससे क्या लेना-देना?'

'सड़क पर गाने-बजाने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है, औरत, और तू यह सब अपनी मर्जी से कर रही है और भीड़ जमा कर रही हैं। घर कहाँ है तेरा?'

'लाइसेंस' कतेरीना इवानोव्ना गुस्से से चिल्लाईं। 'मैं अपने शौहर को आज ही दफन करके आई हूँ, और यह चला है लाइसेंस माँगने।'

'शांत हो जा,' सरकारी अफसर ने कहना शुरू किया। 'मेरे साथ आ, मैं तुझे घर पहुँचाए देता हूँ... तेरे लिए यहाँ भीड़ में खड़े रहना ठीक नहीं... तेरी तबीयत ठीक नहीं है...'

'साहब,' कतेरीना इवानोव्ना ने चीख कर कहा, 'आप कुछ नहीं जानते! हम लोग नेव्स्की एवेन्यू चले जाएँगे। सोन्या, सोन्या! कहाँ चली गई... यह भी रो ही है! तुम सबको हो क्या गया है कोल्या... लीदा... कहाँ चले तुम सब?' वह अचानक भयभीत हो कर चीखी। 'नादान बच्चो! अरे कोल्या... लीदा... कहाँ चले गए ये सबके सब...?'

बात यह हुई थी कि कोल्या और लीदा भीड़ से और अपनी पागल माँ की बहकी-बहकी हरकतों से डर कर, और यह देख कर भी कि पुलिसवाला उन्हें पकड़ कर कहीं ले जानेवाला है, एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर वहाँ से भाग गए थे, गोया शुरू से ही ऐसा करने का इरादा बाँध रखा हो। बेचारी कतेरीना इवानोव्ना रोती-सिसकती उनकी तलाश में भागी। उसे इस तरह भागते, रोते और हाँफते देख कर तरस आता था और तकलीफ होती थी। सोन्या और नन्ही पोलेच्का पीछे भागीं।

'उन्हें पकड़ो सोन्या, वापस लाओ उन्हें! नासमझ, नाशुक्रे बच्चे। पोलेच्का पकड़ना तो उन्हें... तुम्हीं लोगों की वजह से मुझे...'

भागते-भागते पोलेच्का का पाँव फिसला और वे धड़ाम से गिर पड़ीं।

'देखो तो सही, कितना खून बह रहा है! कहीं से कट गया है! हे भगवान!' सोन्या उनके ऊपर झुक कर रोते हुए बोली।

सब लोग उनके चारों ओर भीड़ बना कर खड़े हो गए। रस्कोलनिकोव और लेबेजियातनकोव वहाँ सबसे पहले पहुँचे। वह सरकारी अफसर भी लपक कर उनके पास पहुँचा और उसके पीछे-पीछे पुलिसवाला भी वहीं आ पहुँचा और बुदबुदाया, 'हाय रे नसीब!' उसने अपने कंधे यह सोच कर बिचकाए कि अब उसे मुसीबत का सामना करना पड़ेगा।

'चलो यहाँ से! आगे बढ़ो!' उसने चारों ओर जमा लोगों को तितर-बितर करने की कोशिश करते हुए कहा।

'मरनेवाली है!' कोई चिल्लाया।

'पागल हो चुकी है!' कोई और बोला।

'भगवान हमारी रक्षा करे!' एक औरत ने सीने पर सलीब का निशान बनाते हुए कहा। 'वह छोटा लड़का और लड़की मिले कि नहीं वो रहे, भगवान भला करे। बड़ीवाली पकड़ लाई उन्हें... नासमझ बच्चे!'

लोगों ने जब कतेरीना इवानोव्ना को अच्छी तरह देखा तो पता चला कि कहीं पत्थर से टकरा कर चोट नहीं आई थी, जैसा कि सोन्या ने समझा था, बल्कि सड़क पर जो खून फैला हुआ था वह उनके मुँह से निकला था।

'मैंने पहले भी ऐसा देखा है,' सरकारी अफसर ने बुदबुदा कर रस्कोलनिकोव और लेबेजियातनिकोव से कहा। 'तपेदिक है... ऐसे ही खून बहता है और बीमार का दम घुट जाता है। बहुत दिन नहीं हुए, मैंने रिश्ते की एक औरत के साथ ऐसा होते देखा था... लगभग आधे बोतल खून और वह भी अचानक। ...लेकिन किया क्या जाए अब मरनेवाली है।'

'इधर! इधर से! इन्हें मेरे कमरे पर ले चलिए,' सोन्या ने गिड़गिड़ा कर कहा। 'मैं यहीं रहती हूँ! ...वह रहा मेरा घर, यहाँ से दूसरा ...इन्हें मेरे कमरे पर ले चलिए। जल्दी! जल्दी! ...!' वह भाग-भाग कर हरेक से कहती रही। 'कोई तो डॉक्टर को बुलाए! ...हे भगवान!'

सरकारी अफसर की कोशिशों की बदौलत सब कुछ संतोषजनक ढंग से हो गया; पुलिसवाले ने भी कतेरीना इवानोव्ना को सोन्या के कमरे तक पहुँचाने में मदद की। कतेरीना इवानोव्ना को लगभग मुर्दा हालत में वहाँ ला कर पलँग पर लिटा दिया गया। खून अब भी बह रहा था लेकिन लगता था, उन्हें धीरे-धीरे होश आ रहा है। रस्कोलनिकोव, लेबेजियातनिकोव, सरकारी अफसर और वह पुलिसवाला सोन्या के पीछे-पीछे कमरे में आए। पुलिसवाले ने सबसे पहले तो भीड़ को तितर-बितर किया और जो थोड़े से लोग साथ में दरवाजे तक आ गए उन्हें वहाँ से भगा दिया। उनके बाद पोलेच्का कोल्या और लीदा का हाथ पकड़े अंदर आई। वे दोनों रो रहे थे और सर से पाँव तक काँप रहे थे। कापरनाउमोव परिवार के लोग भी अंदर आ गए। खुद लँगड़ा और काना कापरनाउमोव जो देखने में कुछ अजीब-सा आदमी लगता था और जिसके गलमुच्छों और सर के बाल हमेशा खड़े रहते थे। दूसरे उसकी बीवी जो हमेशा सहमी-सहमी दिखाई देती थी, और कुछ बच्चे जो हमेशा मुँह खोले रहते थे और जिनक चेहरे पर हमेशा हैरानी का भाव कायम रहता था। उन्हीं के बीच स्विद्रिगाइलोव भी अचानक वहाँ आ गया। रस्कोलनिकोव ने उसे आश्चर्य से देखा। उसे पता नहीं चला कि वह वहाँ कहाँ से आ गया था और उसे यह भी याद नहीं था कि उसको उसने भीड़ में देखा हो।

डॉक्टर और पादरी की भी चर्चा हो रही थी। उस सरकारी अफसर ने चुपके से रस्कोलनिकोव के कान में कहा कि उसकी समझ में अब डॉक्टर के आने से कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन उसने डॉक्टर को बुलवाने का पक्का प्रबंध कर दिया था। कापरनाउमोव खुद उसे बुलाने गया।

इस बीच कतेरीना इवानोव्ना की साँस एक बार फिर ठीक से चलने लगी; खून बहना भी कुछ देर के लिए बंद हो गया। उन्होंने कुछ देर सोन्या को बुखार की मारी आँखों से लेकिन पैनी और बेधती हुई नजरों से देखा। सोन्या का रंग पीला पड़ चुका था। वह काँप रही थी और रूमाल से उनके माथे का पसीना पोंछ रही थी। आखिरकार कतेरीना इवानोव्ना ने उठा कर तकिए के सहारे बिठाने को कहा। लोगों ने उनके दोनों ओर तकियों का सहारा दे कर बिस्तर पर बिठा दिया।

'बच्चे... बच्चे कहाँ हैं?' उन्होंने मरी हुई आवाज में पूछा। 'पोलेच्का, तू उन्हें ले आई नासमझ बच्चो, तुम भाग क्यों गए... आह!'

उनके सूखे होठों पर अभी तक खून जमा हुआ था। उन्होंने चारों ओर नजरें दौड़ा कर कमरे को देखा।

'तो तुम इस हालत में रहती हो, सोन्या! मैं पहले कभी तुम्हारी कमरे में नहीं आई... और अब आई भी तो इस हाल में!'

उसने सोन्या को दर्द भरी नजरों से देखा।

'सोन्या, हम लोगों ने तेरा सारा खून निचोड़ लिया। पोलेच्का... लीदा... कोल्या... इधर आओ। लो सोन्या... ये रहे सारे के सारे... इन्हें सँभालो। मैंने इनको तुम्हारे हवाले किया। मुझमें अब दम तो रहा नहीं। मैंने तो बहुत कुछ झेल लिया। आ-ह! मुझे लिटा दो। कम-से-कम चैन से मर तो सकूँ...'

उन्हें एक बार फिर तकिए के सहारे लिटा दिया गया।

'क्या पादरी... नहीं, मुझे पादरी नहीं चाहिए... पादरी को देने के लिए रूबल भला कहाँ से आएगा? मैंने कोई पाप नहीं किया है। भगवान इसके बिना ही मुझे बख्श देगा... वह जानता है कि मैंने कितना दुख झेला है! और अगर उसने मुझे माफ नहीं किया तो यही सही...'

उनके विचार भटकने लगे थे और वे बिस्तर पर पड़ी छटपटा रही थीं। वे रह-रह कर सिर उठाती थीं, चारों ओर देखती थीं, एक पल के लिए सबको पहचानती थीं लेकिन फिर लगभग फौरन ही बेहोश को जाती थीं या उनके विचार भटकने लगते थे। वे खर-खर की आवाज के साथ बड़ी मुश्किल से साँस ले रही थीं। लगता था कि गले में कहीं कोई चीज फँस रही थी।

'मैंने कहा, योर एक्सीलेंसी,' वे कह रही थीं, और बीच-बीच में हर शब्द के बाद साँस लेने के लिए रुकती थीं, 'कि अमालिया लूदविगोव्ना... आह! लीदा, कोल्या, अपनी कमर पर हाथ रखो, चलो, जल्दी... ग्लिस्से, ग्लिस्से...पा-द-बास्क! एड़ियों से ताल दो, चलो, अच्छे बच्चों की तरह :

Du hast Diamanten und Perlen... 1

इसके बाद क्या है... हमें यही गाना है :

Du hast die schonsten Augen,

Madchen, was willst du mehr? 2

खैर, उस बेवकूफ से और क्या उम्मीद की जा सकती है! was willst du mehr अब क्या चाहे ऐ गोरी... वह मूरख भी... कैसी-कैसी बातें भला सोचता रहता है! ...अरे हाँ, अच्छा याद आया :

भरी दोपहरी दागिस्तान की इक वादी में...


1. पास हैं तेरे हीरे-मोती... (जर्मन)

2. पास हैं तेरे सुंदर नैना, अब क्या चाहे ऐ गोरी (जर्मन)


मुझे यह गाना कितना अच्छा लगता था... मैं इसकी दिवानी थी! जानती है, जब हमारी मँगनी हुई थी तब तेरे पापा यही गाना गाया करते थे... कितने सुख के दिन थे! ...हम यही गाएँगे! लेकिन इसके बोल क्या हैं... मैं तो भूल ही गई... कोई बताओ न... क्या है यह गाना?' उनका जोश उमड़ आया, और उन्होंने उठ कर बैठने की कोशिश की। आखिरकार बेहद भर्राई, फटी हुई आवाज में वे चीख-चीख कर गाने भी लगीं। हर शब्द पर उनका गला रुँध जाता था; आँखों में भय समाया हुआ था :

भरी दोपहरी... दागिस्तान की... इक वादी में...

सीने में सीसा-सा ले कर...

योर एक्सीलेंसी!' अचानक वे दिल को चीर देनेवाली आवाज में चीखीं और उनकी आँखों से आँसू बह निकले, 'मेरे अनाथ बच्चों के लिए कुछ कीजिए! आप मेरे स्वर्गीय पति के यहाँ मेहमान रह चुके हैं! ...यूँ समझिए कि खानदानी रईस! ...आ...ह!' वे अचानक सिहर उठीं, फिर होश में आ कर कातर दृष्टि से सबको देखा, लेकिन बस सोन्या को पहचान सकीं। 'सोन्या! सोन्या!' वे नर्मी और बड़े प्यार से बोलीं, गोया सोन्या को अपने सामने पा कर बहुत आश्चर्य में पड़ गई हों। 'प्यारी बेटी सोन्या, यहाँ तू भी है?'

उन्हें फिर उठा कर बिठा दिया गया।

'बहुत हो चुका! ...वक्त अब आ गया ...तो मैं चली, मेरी बदनसीब बच्ची! ...उन्होंने घोड़ी को दौड़ा-दौड़ा कर उसकी जान ही ले ली! मैं तो मिट गई! तबाह हो गई!' वे घोर निराशा और घृणा में डूबे स्वर में चिल्लाईं और उनका सर तकिए पर लुढ़क गया।

वे एक बार फिर बेहोश हो गईं, लेकिन इस बार उनकी बेहोशी बहुत देर तक कायम नहीं रही। मुरझाया हुआ पीला बेजान चेहरा पीछे की ओर झुक गया, मुँह खुल गया और टाँगें झटके के साथ ऐंठ गईं। एक गहरी, बहुत गहरी आह भरीं और दम तोड़ दिया।

सोन्या लाश पर गिर पड़ी। उसने अपनी बाँहें लाश के चारों ओर डाल दीं और मृत शरीर के सूखे सीने पर सर रखे चुपचाप लेटी रही। नन्ही पोलेच्का ने माँ के पाँवों पर होठ रख कर उन्हें जोर से चूमा और फूट-फूट कर रोने लगी। कोल्या और लीदा की समझ में अभी तक नहीं आया था कि हो क्या गया है लेकिन यह महसूस करके कि कोई भयानक बात हुई है, वे एक-दूसरे के गले में बाँहें डाल कर एक-दूसरे को घूरने लगे। अचानक उनके मुँह एक साथ खुले और वे चीख पड़े। दोनों अभी तक अपना वही गाने-बजानेवाला लिबास पहने हुए थे। लड़के के सर पर पगड़ी थी और छोटी बच्ची के सर पर वही टोपी जिसमें शुतुरमुर्ग का पंख लगा हुआ था।

वह प्रशंसापत्र न जाने कैसे कतेरीना इवानोव्ना के बिस्तर पर, उनकी बगल में प्रकट हुआ वह तकिए के पास पड़ा था; रस्कोलनिकोव ने उसे देखा।

वह खिड़की के पास चला गया। लेबेजियातनिकोव भी लपक कर पास पहुँचा।

'मर चुकी हैं,' लेबेजियातनिकोव ने कहा।

'मैं आपसे कुछ बातें करना चाहता हूँ, रोदिओन रोमानोविच,' स्विद्रिगाइलोव ने पास आ कर कहा। लेबेजियातनिकोव परिस्थिति को समझ कर चुपचाप वहाँ से हट गया। स्विद्रिगाइलोव आश्चर्यचकित रस्कोलनिकोव को ले कर और भी दूर, कमरे के एक कोने में पहुँच गया।

'आप यह सारा काम, मेरा मतलब है कफन-दफन का काम मुझ पर छोड़ सकते हैं। आप जानते ही हैं कि इसमें पैसा लगेगा और जैसा कि मैं बता चुका हूँ, मेरे पास कुछ फालतू पैसा है। इन दोनों बच्चों को और उस छोटी लड़की पोलेच्का को मैं किसी अनाथालय में रखवा दूँगा, किसी अच्छे से अनाथालय में, और उनमें से हरेक के नाम पंद्रह-पंद्रह सौ रूबल जमा करवा दूँगा, जो बालिग होने पर उन्हें मिल जाएँगे, ताकि सोफ्या सेम्योनोव्ना को किसी बात की चिंता न करनी पड़े। मैं उसे भी इस कीचड़ से बाहर निकालूँगा क्योंकि वह बहुत अच्छी लड़की है, है कि नहीं... तो जनाब, आप अपनी बहन से कह सकते हैं कि उनके नाम किए गए दस हजार रूबल मैंने इस तरह खर्च कर दिए।'

'आप अचानक भला इतना उदार कैसे हो गए?' रस्कोलनिकोव ने पूछा।

'आह, आप भी अजीब शक्की आदमी हैं।' स्विद्रिगाइलोव ने हँस कर कहा। 'मैंने आपको बताया था न कि मुझे पैसे की जरूरत नहीं है। क्या आप इतना नहीं समझ सकते कि मैं यह बात सिर्फ इनसानियत के नाते कर रहा हूँ बहरहाल, वे...' उसने कमरे के उस कोने की तरफ इशारा किया जहाँ कतेरीना इवानोव्ना मरी पड़ी थीं, 'वे कोई 'जूँ' तो थीं नहीं, किसी खूसट सूदखोर बुढ़िया की तरह, या थीं...? या आप सचमुच यह समझते हैं कि, 'लूजिन को जिंदा रहना और अपनी बेहूदगियाँ करते रहना चाहिए और इनको मर जाना चाहिए और अगर मैं उन्हें बचाने न आता तो 'नन्ही पोलेच्का भी, मिसाल के लिए, उसी रास्ते पर लग गई होती...'

उसने ये सारी बातें चटखारे ले-ले कर, आँख मार कर और शरारत भरे अंदाज में कहीं और लगातार रस्कोलनिकोव पर अपनी नजरें जमाए रहा। उसके मुँह से हू-ब-हू वही शब्द सुन कर जो खुद उसने सोन्या के साथ अपनी बातचीत के दौरान इस्तेमाल किए थे, रस्कोलनिकोव का रंग सफेद हो गया। उसका शरीर ठंडा पड़ गया। वह चौंक कर पीछे हटा और फटी-फटी आँखों से स्विद्रिगाइलोव को देखने लगा।

'आपको... कैसे मालूम?' उसने बहुत धीमे स्वर में कहा। उसकी साँस भी ठीक से नहीं चल रही थी।

'मेरे दोस्त, मैं यहीं रहता हूँ... श्रीमती रेसलिख के यहाँ लकड़ी की उस ओट के पीछे। इस फ्लैट में कापरनाउमोव रहता है, और उस फ्लैट में मिसेज रेसलिख रहती हैं। मेरी श्रीमती रेसलिख से पुरानी दोस्ती है। मुझे बहुत मानती हैं। हम पड़ोसी हैं।'

'आप?'

'हाँ, मैं,' स्विद्रिगाइलोव ने ठहाका लगा कर कहा। 'और, प्यारे रोदिओन रस्कोलनिकोव, तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मुझे तुममें बेहद दिलचस्पी है। मैंने तुमसे कहा भी था कि हम दोनों गहरे दोस्त बन जाएँगे, कहा था कि नहीं? मैंने तो पहले ही तुम्हें बता दिया था। तो हम दोस्त बन ही गए। तुम देखोगे कि मैं कितना मस्त-मौला आदमी हूँ। देखोगे कि मुझसे तुम्हारी कैसी अच्छी पटती है!'

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