अक्लमन्द वासिलीसा और बाबा यागा : रूसी लोक-कथा

Akalmand Vasilisa Aur Baba Yaga : Russian Folk Tale

एक बार एक बूढ़ा और उसकी बुढ़िया पत्नी अपनी बेटी वासिलीसा के साथ रहते थे। एक बार वह बुढ़िया बहुत बीमार पड़ी तो एक दिन उसने अपनी बेटी को बुलाया और उससे कहा —

“बेटी मैं बहुत जल्दी ही मरने वाली हूँ इसलिये जो मैं कहती हूँ तू उसको ध्यान से सुन।”

इसके बाद उसने अपनी चादर के नीचे से एक छोटी सी गुड़िया निकाली और उसे वासिलीसा को देते हुए कहा — “देख तू इस गुड़िया को रख और इसकी बहुत अच्छी तरह से देखभाल करना और किसी और को इसके बारे में बताना नहीं।

जब तुझे किसी चीज़ की जरूरत पड़े तो इस गुड़िया को कुछ खाना देना और उससे सलाह माँगना। यह तुझे बतायेगी कि तुझे क्या करना है।”

इसके बाद माँ ने अपनी बेटी को प्यार से चूमा और आँखें बन्द कर ली। उसने अपनी आखिरी साँस ले ली थी।

काफी समय तक तो बूढ़े ने अपनी पत्नी का दुख मनाया पर फिर दूसरी शादी कर ली। उसकी दूसरी पत्नी एक विधवा थी और उसकी अपनी दो बेटियाँ थीं। उसकी दोनों बेटियाँ बहुत ही बुरी थीं। उनको खुश करना बहुत मुश्किल काम था।

वासिलीसा इतनी सुन्दर थी कि उसकी दोनों सौतेली बहिनें उससे बहुत जलती थीं। वे और उनकी माँ तीनों उसको हमेशा ही सताती रहती थीं। वे उससे सुबह से शाम तक काम कराती रहती थीं और फिर भी उसको डाँटती रहती थीं।

वह हमेशा यह चाहती थीं कि हवा से उसका चेहरा खराब हो जाये या फिर धूप में सख्त हो जाये या फिर बारिश में काला पड़ जाये।

पर फिर भी वासिलीसा उन सबके ये ताने चुपचाप सहती रहती और अपना सारा काम समय पर पूरा कर लेती। उसकी सौतेली बहिनें क्योंकि कोई काम नहीं करती थीं वे बहुत मोटी और बदसूरत होती जा रही थीं जब कि वह दिन ब दिन ही नहीं बल्कि हर घंटे सुन्दर और सुन्दर होती जा रही थी।

उसकी गुड़िया उसकी जब तब बहुत सहायता करती। रोज सुबह वासिलीसा गाय का दूध दुहती और उस गुड़िया को देती और कहती —

छोटी गुड़िया छोटी गुड़िया सुन मेरी प्यारी, मैं अपनी सारी मुश्किलें तुझे सुनाती हूँ

और रात को जब सब सो जाते तो वह अपना दरवाजा बन्द कर लेती और गुड़िया को अपनी बाँहों में झुलाती। वह उसको अपने खाने में से बचा हुआ खाना खिलाती और फिर गाती —

छोटी गुड़िया छोटी गुड़िया सुन मेरी प्यारी. मैं अपनी सारी मुश्किलें तुझे सुनाती हूँ

फिर वह उस गुड़िया से कहती कि वह कितनी दुखी थी। कैसे उसकी सौतेली माँ और सौतेली बहिनें उसको हमेशा डाँटती रहतीं। वह गुड़िया पहले तो खाती पीती फिर उसको तसल्ली देती और उसका रोज का काम भी करा देती।

जब वासिलीसा छाया में बैठ कर अपने बालों में फूल गूँधती तो वह गुड़िया उसकी फूलों की क्यारियाँ साफ कर देती। उसकी रसोईघर में आग जला देती। उसके घर के फर्श झाड़ बुहार देती। उसका नाश्ता बना देती। और वह भी सब पलक झपकते ही।

यही नहीं बल्कि वह गुड़िया उसको कुछ ऐसी पत्तियाँ भी देती जिनको लगाने से उसकी खाल सूरज की धूप. हवा और बारिश से बची रहे। इससे वह और ज़्यादा सुन्दर होती जा रही थी।

एक दिन पतझड़ के मौसम में वासिलीसा का पिता बाजार गया। उसको वहाँ कई दिन तक रहना था।

उस रात जब अँधेरा हो गया तो बहुत ज़ोर की बारिश पड़ने लगी। बारिश की बूंदें खिड़कियों पर ज़ोर ज़ोर से पड़ रही थी।

हवा भी बहुत तेज़ बह रही थी। वह हवा गुफाओं में जा कर बहुत तेज़ आवाज कर रही थी।

सौतेली माँ ने तीनों लड़कियों को एक एक काम सौंपा। सबसे बड़ी वाली लड़की को उसने कढ़ाई का काम दिया। दूसरी बेटी को उसने मोजा बुनने का काम दिया और वासिलीसा को उसने सूत कातने का काम दिया।

जहाँ वे तीनों लड़कियाँ बैठी बैठी अपना काम कर रही थीं वहाँ उनकी माँ ने कोने में केवल एक बिर्च के पेड़ की शाख जलती छोड़ दी और सोने चली गयी। कुछ देर तक तो वह शाख जली पर फिर अचानक वह बुझ गयी।

दोनों सौतेली बहिनें चिल्लायीं — “अब हम क्या करें। चारों तरफ तो अँधेरा ही अँधेरा है और हमको अपना काम खत्म करना है। किसी को तो रोशनी लानी ही पड़ेगी।”

सबसे बड़ी बेटी बोली — “मैं तो बाबा यागा के घर जा नहीं रही।”

दूसरी बेटी बोली — “मैं भी उसके घर नहीं जा रही।”

तो दोनों एक साथ बोलीं — “तब तो वासिलीसा को ही उसके घर जाना पड़ेगा और उसके घर से रोशनी लानी पड़ेगी।”

ऐसा कह कर उन दोनों ने अपनी सौतेली बहिन को बाबा यागा के घर से रोशनी लाने के लिये धक्का दे कर बाहर निकाल दिया। बेचारी वासिलीसा पहले तो जानवरों के बाड़े में गयी वहाँ उसने कुछ खाने के टुकड़े अपनी गुड़िया को खिलाये और बोली —

छोटी गुड़िया छोटी गुड़िया सुन मेरी प्यारी. मैं अपनी सारी मुश्किलें तुझे सुनाती हूँ

और फिर उसने उसको बताया कि उसकी सौतेली बहिनों ने उसको बाबा यागा के घर जा कर रोशनी लाने को कहा है। वह चुड़ैल जादूगरनी तो उसको यकीनन खा ही जायेगी।

उस छोटी गुड़िया ने अपना खाना शान्ति से चुपचाप खाया। खाना खाने के बाद उसकी दोनों आँखें दो चमकीली जलती हुई मोमबत्ती की तरह से चमकने लगीं।

वह बोली — “डरो नहीं वासिलीसा। तुम मुझे अपने पास ही रखो और बेधड़क हो कर तुम बाबा यागा के पास जाओ। बाबा यागा तुमको कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकती।”

वासिलीसा ने गुड़िया को अपनी जेब में रखा और अँधेरे जंगल की तरफ चल दी। वहाँ उसके चारों तरफ के पेड़ ऊँचे ऊँचे खड़े हो गये। अब आसमान में न तो चाँद और न ही तारे दिखायी दे रहे थे।

अचानक पता नहीं कहाँ से एक घुड़सवार वहाँ से गुजरा। उस घुड़सवार का मुँह बिल्कुल सफेद था। उसका शाल भी सफेद था। उसका घोड़ा भी सफेद था और उसकी लगाम भी सफेद थी जो अँधेरे जंगल में उजली उजली चमक रही थी।

जैसे ही वह वहाँ से वह गुजरा तो सुबह की रोशनी पेड़ों से छन छन कर आने लगी और वासिलीसा उस रोशनी में चलती चली गयी।

तभी एक दूसरा घुड़सवार अपना घोड़ा दौड़ाता आया। उसका चेहरा लाल था। उसका शाल भी लाल था। उसका घोड़ा भी लाल था और उसके घोड़े की लाल लगाम उस सुबह की रोशनी में लाली फैला रही थी।

जैसे ही वह लाल चेहरे वाला घुड़सवार वहाँ से गुजरा तो लाल लाल सूरज निकल आया और उसकी गरम गरम किरनें वासिलीसा के चेहरे को छूने लगीं। वे किरनें उसके बालों पर पड़ी ओस की बूँदों को सुखाने लगीं।

वासिलीसा बिना आराम किये जंगल में सारा दिन चलती रही। शाम तक चलते चलते वह जंगल में एक खुली जगह में आ गयी।

उस खुली जगह के बीच में मुर्गी के पंजों पर लकड़ी की एक झोंपड़ी खड़ी थी। उस झोंपड़ी के चारों तरफ एक चहारदीवारी लगी हुई थी जिस पर आदमियों की खोपड़ियाँ सजी हुई थीं। उस चहारदीवारी में एक दरवाजा था जिसके डंडे एक मरे हुए आदमी की टाँगों के थे। उस दरवाजे के कुंडे मरे हुए आदमी की बाँहों के थे और उस दरवाजे के ताले मरे हुए आदमी के दाँतों के थे।

इस सब को देख कर वासिलीसा तो वहाँ डर के मारे बिल्कुल ही बिना हिले डुले जमीन से चिपकी खड़ी रह गयी।

तभी एक तीसरा घुड़सवार वहाँ अपना घोड़ा दौड़ाता हुआ आया। उसका चेहरा काला था। उसका शाल भी काला था। उसका घोड़ा भी काला था और उसके घोड़े की लगाम भी काली ही थी।

जैसे ही वह वहाँ आया तो वह अपने घोड़े से उतरा और उन खोपड़ियों की अँधेरी आँखें जो उस झोंपड़ी की चहारदीवारी पर लगी थीं आग की तरह चमकने लगीं। इससे वहाँ खुली जगह में दिन की तरह रोशनी हो गयी।

यह देख कर वासिलीसा काँपने लगी। इनको देख कर तो वह इतनी डर गयी कि हिल भी नहीं पा रही थी। पर इससे ज़्यादा बुरा हाल तो उसका अभी होने वाला था।

जल्दी ही उसने महसूस किया कि हवा काँप रही थी और उसके पैरों के नीचे जमीन हिल रही थी। बाबा यागा जंगल में अपनी ओखली में बैठी, उसको अपने मूसल से उड़ाती और झाड़ू से अपने पीछे के निशान मिटाती उड़ती चली आ रही थी।

झोंपड़ी के दरवाजे पर आ कर वह रुकी. और वहाँ उसने अपनी नुकीली नाक उस लड़की की तरफ करके हवा में कुछ सूँघा और बोली — “फ़ू फ़ी फ़ो फुम। मुझे एक रूसी के खून की खुशबू आ रही है। तुम कौन हो?”

लड़की बोली — “मैं वासिलीसा हूँ। मेरी बहिनों ने मुझे यहाँ रोशनी लाने के लिये भेजा है।”

वह जादूगरनी चिल्लायी — “आहा वासिलीसा। मैं तुम्हारी सौतेली माँ को बहुत अच्छी तरह जानती हूँ। तो तुमको रोशनी चाहिये। इसके लिये तुमको यहाँ ठहर कर मेरे लिये पहले कुछ काम करना पड़ेगा। उसके बाद हम देखेंगे।” फिर वह अपने दरवाजे की तरफ मुड़ी और बोली —

ओ मेरे मजबूत कुंडे खुल जा. खुल जा मेरे चौड़े दरवाजे खुल जा दरवाजा तुरन्त ही खुल गया। दरवाजा खुलते ही बाबा यागा अपनी ओखली में बैठी अन्दर चली गयी। वासिलीसा उसके पीछे पीछे थी। जैसे ही दोनों उस दरवाजे के अन्दर घुसीं तो वह दरवाजा अपने आप फिर से वैसे ही कस कर बन्द हो गया।

अन्दर पहुँचते ही उस जादूगरनी का बागीचा था जिसमें एक बिर्च का पेड़ खड़ा हुआ था। वह बिचका पेड़ वासिलीसा की आँखें निकालने के लिये नीचे की तरफ झुका तो जादूगरनी चिल्लायी — “उसको छोड़ दे। मैं बाबा यागा उसको यहाँ ले कर आयी हूँ।”

पेड़ ने उसको छोड़ दिया। वे आगे चले तो झोंपड़ी के दरवाजे पर एक बहुत ही भयानक कुत्ता लेटा हुआ था वह उस लड़की को देख कर उसको काटने दौड़ा।

जादूगरनी वहाँ भी चिल्लायी — “ओ कुत्ते, उसको छोड़ दे। मैं बाबा यागा उसको यहाँ ले कर आयी हूँ।”

यह सुन कर कुत्ते ने भी उस को छोड़ दिया। दोनों घर में अन्दर घुसीं तो अन्दर एक काली बिल्ली वासिलीसा को खरोंचने के लिये दौड़ी।

जादूगरनी उससे भी चिल्ला कर बोली — “छोड़ दे उसको. ओ बिल्ली। मैं बाबा यागा उसको यहाँ ले कर आयी हूँ।”

फिर वह वासिलीसा से बोली — “तुम देख रही हो न वासिलीसा? तुम मुझसे ऐसे ही नहीं बच सकतीं। मेरी बिल्ली तुमको खरोंच लेगी। मेरा कुत्ता तुमको काट लेगा। मेरा बिर्च का पेड़ तुम्हारी आँखें निकाल लेगा और मेरा दरवाजा तो तुमको अन्दर ही नहीं आने देगा।”

अन्दर जा कर बाबा यागा पत्थर के बने एक चूल्हे पर जा कर लेट गयी और अपने रसोईघर से चिल्ला कर बोली — “आ ओ लड़की, मेरा खाना ले आ।”

तभी एक काली आँखों वाली नौकरानी वहाँ खाना ले कर आयी। उसका वह खाना 10 लोगों के खाने के बराबर था —

एक बालटी भर कर गाय का माँस था
दस लोटे भर कर दूध था. एक भुना हुआ सूअर था
बीस मुर्गे थे और चालीस बतखें थीं
दो बैल के माँस की पाई थीं और चीज़ थी
साइडर और घर की बनी शराब थी
एक बैरल बीयर थी और एक बालटी क्वास थी

बाबा यागा ने वह सब खाना बड़े लालची ढंग से खाया और वासिलीसा के खाने के लिये तो केवल हड्डियाँ ही बचीं। खाना खा कर जादूगरनी सोने चल दी।

चलते चलते वह वासिलीसा से बोली — “देखो यह अनाज का थैला ले जाओ और इसमें से अनाज के दाने बीन लो। इसके भूसे में अनाज का कोई दाना नहीं रहना चाहिये। जब तक मैं सो कर उठती हूँ तब तक तुम इस काम को खत्म कर लो नहीं तो मैं तुमको खा जाऊँगी।”

कह कर उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं और खर्राटे मारने लगी। उसके खर्राटों की आवाज से आस पास की सब लकड़ियाँ भी हिलने लगीं।

बेचारी वासिलीसा ने डबल रोटी का एक टुकड़ा उठा कर गुड़िया के सामने रखा और उसकी सलाह माँगी।

गुड़िया ने चुपचाप वह डबल रोटी का टुकड़ा खाया और बोली

— “तुम डरो मत। तुम अपनी प्रार्थना कहो और सोने जाओ। सुबह शाम से ज़्यादा अक्लमन्द होती है।”

वासिलीसा यह सुन कर सोने चली गयी। जैसे ही वह लड़की सो गयी उस छोटी गुड़िया ने अपनी साफ आवाज में पुकारा —

कबूतरों चिड़ियों चैटफिन्च काइट आज की रात तुम्हारे लिये बहुत काम है ओ मेरी पंखों वाली दोस्तों तुम्हारे काम पर सुन्दर वासिलीसा की ज़िन्दगी निर्भर है।

गुड़िया की पुकार सुन कर बहुत सारी चिड़ियें झुंड में उड़ती हुई वहाँ आ गयीं – इतनी सारी चिड़ियें कि उन्हें आँखें भी नहीं देख सकतीं थीं और उन्हें जबान भी नहीं गिन सकती थी।

उन सबने उस भूसे में से अनाज के सारे दाने बीन दिये। फिर उन्होंने उन दानों को थैले में भर दिया और भूसे को डिब्बे में डाल दिया। इस तरह उन्होंने रात खत्म होने से पहले पहले सारा काम खत्म कर दिया।

जैसे ही वे चिड़ियाँ अपना काम खत्म करके चुकीं तो एक बार फिर से वह सफेद घोड़े वाला घुड़सवार आ कर गुजर गया और एक नयी सुबह हो गयी।

जब बाबा यागा सुबह सो कर उठी तो उसको तो विश्वास ही नहीं हुआ कि उसका सारा काम खतम हो चुका था।

बाबा यागा फिर बोली — “देखो मैं बाहर जा रही हूँ। तुम वह सफेद लोभिया और पोस्त के बीजों का थैला उठा लो और उनको अलग अलग कर लो। अगर यह काम मेरे लौटने तक नहीं हुआ तो मैं तुमको अपने शाम के खाने में भून कर खा जाऊँगी।”

यह कह कर उसने दरवाजा खोला और ज़ोर से सीटी बजायी। उसकी ओखली और मूसल तुरन्त ही वहाँ आ गये। वह अपनी ओखली के अन्दर बैठी और पल भर में ही अपने घर के कम्पाउंड में से बाहर निकल कर पेड़ों के ऊपर उड़ने लगी।

उसके जाने के बाद वह लाल रंग वाला घुड़सवार वहाँ आया और लाल रंग का सूरज आसमान में निकल आया।

वासिलीसा ने फिर डबल रोटी का एक टुकड़ा उठा कर गुड़िया को खिलाया और उससे सहायता माँगी। जल्दी ही गुड़िया ने अपनी साफ आवाज में कहा —

मेरे पास आओ ओ घर और मैदान के चूहो
ये बीज चुन दो वरना यह बेचारी मर जायेगी

यह सुनते ही बहुत सारे चूहे दौड़ते हुए वहाँ आ गये – इतने सारे कि उन सबको न तो आँखें देख सकती थीं और न ज़बान बता सकती थी। उन्होंने दिन खत्म होने से पहले पहले ही अपना सारा काम खत्म कर दिया।

जब वे अपना काम खत्म कर रहे थे तभी काले रंग का एक घुड़सवार वहाँ से गुजरा और रात होने लगी। चहारदीवारी पर लगी हुई खोपड़ियों की आँखें आग की तरह से जगमगाने लगीं, पेड़ सनसना कर हिलने लगे और उनकी पत्तियाँ हिलने लगीं।

बाबा यागा वापस आ रही थी। उसने पूछा — “क्या तुमने वह सब कर लिया जो मैं तुमसे कह कर गयी थी?”

“जी दादी माँ। सब कर लिया।” उसका सारा काम खत्म देख कर बाबा यागा तो बहुत गुस्सा हो गयी क्योंकि इसकी तो उसको बिल्कुल भी आशा नहीं थी पर वह कुछ कर भी नहीं सकती थी क्योंकि उसका सारा काम तो खत्म हो गया था।

वह बोली — “ठीक है तुम जा कर सो जाओ अब मैं खाना खाऊँगी।”

वासिलीसा अँगीठी के पीछे फटे कपड़ों पर लेट गयी। वह वहाँ लेटी लेटी बाबा यागा और काली आँखों वाली नौकरानी की बातें सुनती रही।

बाबा यागा उससे कह रही थी — “अँगीठी जलाओ और उसको खूब गरम करके खूब लाल कर लो। जब मैं सो कर उठूँगी तो उस लड़की को अपनी अँगीठी में भूनूँगी।”

उसके बाद वह अँगीठी पर जा कर लेट गयी। उसने अपनी ठोड़ी एक आलमारी पर रख ली, अपनी नाक एक बैन्च पर रख दी और अपने आपको अपने पैर से ढक लिया। उसने इतनी ज़ोर से खरार्टे मारने शुरू कर दिये कि सारा जंगल हिलने लगा।

वासिलीसा यह सब सुन कर रोने लगी। उसने अपनी छोटी गुड़िया अपनी जेब से निकाली और उसके सामने डबल रोटी का एक टुकड़ा रख कर बोली —

छोटी गुड़िया छोटी गुड़िया सुन मेरी प्यारी. मैं अपनी सारी मुश्किलें तुझे सुनाती हूँ

गुड़िया ने उसको बताया कि उसको क्या करना है।

वासिलीसा रसोईघर में गयी और उस काली आँखों वाली नौकरानी के सामने सिर झुकाया और बोली — “मेहरबानी करके मेरी सहायता करो। जब तुम अँगीठी जलाओ तो लकड़ी पर थोड़ा सा पानी डाल देना ताकि वे कम कम जलें। इस काम के लिये तुम मेरा यह सिर का स्कार्फ रख लो।”

नौकरानी बोली — “ठीक है वासिलीसा। मैं तुम्हारी सहायता जरूर करूँगी। आज से पहले मुझे किसी ने कभी कोई भेंट नहीं दी है। मैं जा कर उस जादूगरनी के पैर सहलाती हूँ ताकि वह और देर तक सोये। इतनी देर में तुम यहाँ से जितनी जल्दी हो सके भाग जाना।”

वासिलीसा ने पूछा — “पर क्या वे तीनों घुड़सवार मुझे पकड़ कर यहाँ वापस नहीं ले आयेंगे?”

नौकरानी बोली — “ओह नहीं। देखो न वह जो सफेद रंग का घुड़सवार है वह सुबह है। वह जो लाल रंग का घुड़सवार है वह उगता हुआ सूरज है और वह जो काले रंग का घुड़सवार है वह रात है। वे तुमको कोई नुकसान नहीं पहुँचायेंगे।”

इस बात से सन्तुष्ट हो कर वासिलीसा झोंपड़ी से भाग ली पर वह बड़ी काली बिल्ली उसके ऊपर तुरन्त ही कूदी।

वह उसके चेहरे को खरोंच देती कि तभी उसने उस बिल्ली की तरफ एक पाई फेंक दी। बिल्ली पाई खाने में लग गयी और वासिलीसा सीढ़ियाँ उतरने लगी।

नीचे उतरी तो बाबा यागा का कुत्ता बाहर निकला। वह उसे खा जाता अगर वह उसको हड्डी न फेंक देती तो।

अब वह घर से बाहर जाने वाले रास्ते पर भाग रही थी कि बिर्च के पेड़ ने अपनी शाखाओं से उसके चेहरे को मारने की कोशिश की पर तुरन्त ही उसने उनको अपने बालों के एक रिबन से बाँध दिया और पेड़ ने उसको बाहर जाने दिया।

घर के बाहर जाने वाला दरवाजा बार बार खुलता और बन्द हो रहा था तो उसने उसके कब्जों में सुबह की थोड़ी सी ओस लगा दी। दरवाजा खुल गया और वह उसके बाहर निकल गयी।

फिर उसको अपनी बहिनों के लिये रोशनी की याद आयी तो उसने चहारदीवारी पर से एक खोपड़ी उठायी. उसको एक डंडे पर लगाया और अपने घर की तरफ भाग ली।

उस खोपड़ी की आँखों से निकलती हुई चमकती हुई रोशनी उसको उसके घर का रास्ता दिखा रही थी।

इस बीच बाबा यागा जाग गयी। उसने देखा कि लड़की तो भाग गयी। वह अपनी काली आँखों वाली नौकरानी पर चिल्लायी — “तुमने उसको जाने ही क्यों दिया?”

नौकरानी बोली — “क्योंकि उसने मुझे अपना स्कार्फ दिया। मैंने तुम्हारी इतने दिनों सेवा की है पर तुमने मुझे सिवाय बुरा भला कहने के और कुछ नहीं दिया।”

फिर वह अपनी बड़ी काली बिल्ली की तरफ घूमी और उस पर चिल्लायी — “तुमने उसको क्यों जाने दिया?”

बिल्ली बोली — “उसने मुझे पाई दी। मैं तुम्हारी इतने साल सेवा करती रही पर तुमने तो मुझे कभी डबल रोटी के ऊपर का टुकड़ा तक नहीं दिया।”

तब वह जादूगरनी गुस्से में भर कर घर के बाहर भागी और अपने कुत्ते से बोली — “और तुम बताओ कि तुमने उसको क्यों जाने दिया?”

“क्योंकि उसने मुझे हड्डी दी। मैंने तुम्हारी इतने साल सेवा की पर तुमने तो मुझे खाने के लिये हड्डी का कभी कोई छोटा सा टुकड़ा भी नहीं दिया।”

यह सुन कर जादूगरनी और बाहर की तरफ भागी और बिर्च के पेड़ से बोली — “ओ बिर्च के पेड़. क्या तुमने अपनी शाखाऐं उसके चेहरे पर नहीं मारीं?”

बिर्च का पेड़ बोला — “नहीं. मैंने उसको जाने दिया क्योंकि उसने अपने बालों में से रिबन निकाल कर उससे मेरी शाखाऐं बाँध दी थीं। मैं यहाँ 10 साल से खड़ा हूँ पर तुमने तो मेरी शाखाओं में कभी एक धागा भी नहीं बाँधा।”

अब तो बाबा यागा का गुस्सा बहुत ऊपर चढ़ गया। वह भागी भागी दरवाजे पर गयी और उस पर चिल्ला कर बोली — “दरवाजे. दरवाजे। क्या तुमने उसको नहीं रोका?”

दरवाजा बोला — “नहीं, मैंने उसको नहीं रोका। मैंने उसको जाने दिया क्योंकि उसने मेरे कब्जों में ओस लगायी थी। मैंने तुम्हारी इतने साल सेवा की है पर तुमने तो उन पर कभी पानी भी नहीं छिड़का।”

बाबा यागा गुस्से में भर कर उड़ चली। उसने अपने कुत्ते और बिल्ली को पीटा. नौकरानी को कोड़े मारे. बिर्च के पेड़ को काटा और दरवाजे को तोड़ा।

पर यह सब करते करते वह इतना थक गयी कि वह उस लड़की के बारे में बिल्कुल ही भूल गयी।

इस बीच वासिलीसा उस खोपड़ी की रोशनी में अपने घर भाग गयी। अगले दिन सुबह सवेरे वह अपने घर पहुँची तो वहाँ जा कर उसने देखा कि वहाँ तो तभी भी कोई रोशनी नहीं थी।

उसकी सौतेली माँ और बहिनें उसको दरवाजे पर ही मिल गयीं। वे तीनों उसके ऊपर एक साथ चिल्लायीं — “अरी तू तो किसी काम की नहीं. कहाँ रह गयी थी तू?”

और वह खोपड़ी उसके हाथ से छीनते हुए वे उसको घर के अन्दर ले गयीं। उसको घर के अन्दर ले जाते ही एक अजीब सी घटना घटी।

उस खोपड़ी की चमकती हुई आँखें वासिलीसा की सौतेली माँ और बहिनों के ऊपर जम गयीं और उनकी रोशनी उनके अन्दर घुसती चली गयी। उन्होंने अपने आपको बचाने की कितनी कोशिश की पर वे आँखें उनका पीछा करती ही रहीं।

इससे वे तीनों जलती रहीं. काली होती रहीं. जब तक कि वे पूरी की पूरी जल नहीं गयीं। केवल वासिलीसा ही बची रही।

अगली सुबह वासिलीसा ने वह खोपड़ी ली और उसको बागीचे में गाड़ दिया। कुछ समय बाद वहाँ गहरे लाल रंग के गुलाब का एक पेड़ उग आया।

उसी दिन वासिलीसा का पिता बाजार से घर वापस लौटा और वासिलीसा से सारी कहानी सुनी तो वह अपनी उस बुरी पत्नी और उसकी दोनों बिगड़ी हुई बेटियों से छुटकारा पा कर बहुत खुश हुआ।

उस दिन के बाद वासिलीसा और उसके पिता दोनों शान्ति से रहने लगे।

वासिलीसा उस गुड़िया को अभी भी अपनी जेब में रखती। क्या पता उसको कब उसकी जरूरत पड़ जाये।

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