अद्भुत पुष्प की कहानी : (आंध्र प्रदेश/तेलंगाना) की लोक-कथा

Adbhut Pushp Ki Kahani : Lok-Katha (Andhra Pradesh/Telangana)

एक दिन दोपहर के समय में एक ब्राह्मण ने जंगल के मार्ग पर चलते समय देखा था कि एक पेड़ के नीचे एक सुंदर स्त्री बैठी हुई थी। वह देवकन्या-सी है। उसकी बगल में एक घोड़ा था।

वह स्त्री, उससे बात कर, उसकी गरीबी के बारे में सुनकर काफी चिंतित होकर एक क्षण के लिए सोचकर उसने आँचल में बाँधे हुए अद्भुत पुष्प को देकर, उसकी महिमा के बारे में कहा, “सदा तुम्हारे परिवार का पोषण करनेवाले को इसे दे दो।” यों कहकर घोड़े पर बैठकर चली गई। वह पैदल चल-चलकर शाम तक एक गाँव पहुँच गया। उसका नाम उसे मालूम नहीं था। दो आदमी घोड़े पर बैठकर कहीं जाते हुए उसके सामने दिखाई पड़े।

उसकी गठरी में रही पुष्प की सुगंध ने शायद उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया। उस सुगंध वश में उसे ढूँढ़ते हुए उस आदमी के पास आकर, “हे ब्राह्मण! तुम्हारे पास कोई सुगंधित द्रव्य है?” यों पूछा था।

उसने इस रहस्य को छुपा न सकने के कारण गाँठ को खोलकर पुष्प को दिखाते हुए उसका विवरण दिया और उसकी विशेषता भी बता दी। सुनकर वे असीम आनंद का अनुभव कर, “ओह! हम तुम्हारे परिवार का पोषण सदा के लिए करेंगे। हमारे घर आइए। इस पुष्प को हमें दीजिए।” उससे, मेरे परिवार का पोषण सदा करेंगे, यों उनसे वादा लेकर मैंने उस पुष्प को उन्हें दे दिया।

उन्होंने उसे अपने घर ले जाकर आवास एवं भोजन की व्यवस्था की। अत्यंत गरीब व्यक्ति को यही बहुत कुछ था।

वे दोनों मित्र हैं। पता चला कि दोनों के लिए एक ही वेश्या होने के कारण वे दोनों मित्र हो गए। यह जानकर वह पश्चात्ताप करने लगा कि ऐसे अधम व्यक्तियों को मैंने पुष्प दिया।

कुछ दिनों के बाद उस वेश्या के कारण ही उन दोनों के बीच में शत्रुता हुई। एक-दूसरे के मुँह को देखना भी बंद किया। एक रात दोनों एक-दूसरे के सामने आए और क्रोध के मारे एक-दूसरे को मार डाला। उस ब्राह्मण का पोषण करनेवाला नहीं रहा। उसे मालूम पड़ा कि वह पुष्प वेश्या के घर में है, तो उसने उसके पास जाकर जो कुछ हुआ था, उसका पूरा विवरण उसे देकर पुष्प को उसे वापस देने को माँगा था। “यह वेश्या की संपत्ति है, इसे तुझे देने की आवश्यकता नहीं है।” उसने कहा। उसने गाँव की मुखिया के पास जाकर सबकुछ बता दिया। उसे भी क्या करना है, सूझा नहीं। इतने में चंद्र वर्मा महाराज यहाँ की सभा में उपस्थित होने के लिए आते हुए उस गाँव में ठहरे थे। विषय सारा उसे स्पष्ट कर दिया गया।

श्रेष्ठ वस्तुओं के प्रति राजा लोग अनुरक्त होते हैं न। बाकी विषय बाद में सोचेंगे, यों समझकर पहले उस पुष्प को अपने साथ सभा में ले आए थे। तब चंद्र वर्मा महाराज उठकर सभा में उपस्थित सदस्यों को संबोधित कर कहने लगा, “इस अद्भुत फल एवं पुष्प के बारे में हम सभी ने सुना है। ब्रह्मचारी ने मुझे यह फल दिया। वृद्ध ब्राह्मण को इस अद्भुत पुष्प को एक स्त्री ने दिया है”, कहा। इस मामले में मुझे संदेह है। उसे मिटाने का प्रयास करने का अवसर दीजिए।”

यों कहते हुए, “तुम फल दिए हुए उस आदमी की सूरत का विवरण दे सकते हो?” उस ब्राह्मण से पूछा था।

वह ब्राह्मण बोला, “उस समय धुँधला-सा अंधकार था। मैंने गौर से नहीं देखा। पुरुष समझने के अलावा और कुछ ठीक से नहीं बता सकता हूँ। घोड़े पर चढ़ा था, इसलिए पुरुष समझा हूँ, लेकिन गाँठ खोलते समय आँचल का छोर सा दिखाई पड़ा।” कहा! चंद्र वर्मा फिर कहने लगा, “अद्भुत फल और पुष्प जो दिया, वह एक ही है। वह स्त्री ही है। मनुष-स्त्री नहीं है। इस प्रकार की विरल, विशिष्ट चीजें महाराजाओं के पास ही रहनी चाहिए, न कि आम जनता के पास। उनकी पूजा हर दिन करनी पड़ती है। इन दोनों ब्राह्मणों को उचित उपहार दूँगा।” कहा।

“सच ही है। वही उचित है।” सदस्यों ने कहा। तब मणिमंजरी ने वीणा पर गीतों का आलाप किया। गान विद्या का ज्ञान जिनमें है, वे अन्य लोग जब गाते हैं, तब उन्हें भी गाने का मन होता है। वीणावती के द्वारा किए गए सारे स्वर अच्छी तरह उसके स्मरण में रहने के कारण पुरुष वेश में रही विशालाक्षी में भी गाने की उत्सुकता जगी और सभा में जाकर उस गाँव की मुखिया से, “श्रीमान! मैं भी थोड़ा बहुत गान विद्या को जानती हूँ। थोड़े समय के लिए मेरे गीत को भी सुनकर मेरे जन्म को धन्य कीजिए” यों विनती की। उसने इसके लिए स्वीकृति प्रदान कर उसे एक वीणा दिलवाई। कुछ गीत गाने के बाद वीणावती ने जिन स्वरों का संकल्प किया, उन्हें गाने लगी। सभी सदस्य पहले गीत को सुनकर प्रतिमाओं के जैसे स्तंभित रहे। दूसरे गीत का आलाप करते समय सदस्यगण उठकर नाचने लगे। तीसरे गीत, गाते समय वे भी स्वर मिलाकर गुनगुनाने लगें।

सभी उस आलाप को देवगान कहकर प्रशंसा करने लगे। वह या तो तुंबुर होगा या नहीं तो नारद होगा।” कहा। मणिमंजरी भी उस आलाप की विशेषता का अनुभव कर आश्चर्यचकित हुई थी। धर्मांगद, चंद्र वर्मा आदि राजाओं ने अपने आपमें कुछ सोचकर कहा, “राजकुमार तुम मानवातीत प्रभाववाले हो। तुम्हारी विद्याएँ भी वैसी ही हैं, मुख्यतः तुम्हारे रूप के जैसा संगीत भी अद्भुत है। तुम्हारे लायक इनाम देना चाहें तो यह पूरा राज्य भी बराबर नहीं है। भगवान् के जैसे तुम भी इन फल-पुष्पों से संतुष्ट हो जाओ।” यों कहते हुए उस अद्भुत पुष्प एवं फल को श्रद्धापूर्वक उसे समर्पित किया। उन्हें स्वीकार कर “उन ब्राह्मणों को अधिक संपन्न बनाना...” कहकर रुक गया। राजा ने उन दोनों ब्राह्मणों को एक-एक अग्रहार दिया। सभी राजा से खुश हुए।

राजकुमार ने सरहद पर छोड़े हुए अपने अश्व को वहाँ लिवा लाने के लिए कहा। न्यायबद्ध संपत्ति नदी के बीच में गिरने पर भी जरूर घर के अंदर पहुँचेगी, कहावत विशालाक्षी के प्रति भी सच निकली।

राजकुमार के वेश में अद्भुत फल एवं पुष्पों को सामने रखकर विलास सौध में बैठी हुई वीणावती ने विशेष स्वरों का गायन करते हुए प्रजा के प्रेम एवं राजा के प्रेम को प्राप्त कर सुख से कुछ दिन बिताए, फिर एक दिन उसके सामने एक तोता आकर बैठा। वह संदेश लाया। उसने राजकुमार को एक पत्र दिया। उसे राजा ने पढ़ा।

(साभार : प्रो. एस. शेषारत्नम्)

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