आमुख कथा : सिंहासन बत्तीसी

Aamukh Katha : Sinhasan Battisi

बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज आदर्शवादी, सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। उन्हीं के समय से चली आ रही कहावत, 'कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली' आज भी जनसाधारण को प्रभावित करती है।

उज्जैन नगरी में कुम्हारों की एक चर्चित बस्ती थी। इस बस्ती के कुम्हार मिट्टी से आकर्षक और मनमोहक बर्तन बनाते थे। उनके द्वारा बनाए बर्तनों और आश्चर्यजनक कार्यो को दूसरे राज्यों में बड़े ही सम्मानपूर्वक देखा जाता था। यही कारण था कि इस बस्ती के सभी कुम्हार सम्पन्न और सम्मानित थे। कुम्हारों की इस बस्ती के आस-पास मिट्टी के छोटे-बड़े टीले थे, जिनकी मिट्टी बड़ी सुगंधित और चिकनी थी। राजा भोज के शासनकाल में प्रत्येक व्यक्ति संपन्न एवं सुखी था। कृषि भी होती थी और किसी भी प्रकार की कोई कमी न थी। इसी बस्ती में कई वर्षों से एक गड़रिया भी काम करता था जिसका नाम सूरजभान था।

सूरजभान के घर से कुछ ही दूरी पर उसका एक घनिष्ट मित्र रहता था। दोनों पड़ोसी होने के साथ-साथ एक दूसरे से इतना प्यार करते थे कि एक दूसरे के लिए अपनी जान तक दे सकते थे।

लेकिन एक बार छोटे बच्चों के मध्य झगड़े को लेकर दोनों में अनबन हुई तो दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदलती चली गई। लेकिन सूरजभान ने अच्छे अवसर की तलाश कर फिर से दोस्ती को सहज बना दिया। लेकिन दूसरे गांव का एक व्यक्ति उनकी दोस्ती से नफरत करता था और उनकी दोस्ती तुड़वाना चाहता था। किन्तु उसे कोई मौका नहीं मिल रहा था।

सूरजभान और उसके दोस्त को उस व्यक्ति के ईर्ष्यालु स्वभाव की कोई परवाह नहीं थी। वे दोनों दस-दस आदमियों पर भारी पड़ सकते थे। दोनों बड़े आराम से गांव के आस-पास के क्षेत्र के लोगों के पशुओं को चराया करते थे। एक दिन कुम्हार जब मिट्टी खोद रहा था तो मजबूत ईंट, मूर्तियां और घर-गृहस्थी का बहुत सारा सामान निकल आया। समस्त राज्य में यही चर्चा थी कि कभी वहां किसी राजा का दरबार था। वह महल भयानक भूकम्प के कारण देखते ही देखते तबाह हो गया। धीरे-धीरे इस मिट्टी के ऊंचे टीले पर कुम्हारों ने अपनी बस्ती बना ली। इसका मुख्य कारण यहां की चिकनी और लोचदार मिट्टी थी।

सूरजभान का एक लड़का था। जिसका नाम चंद्रभान था। चंद्रभान भी सामाजिकता में अपने पिता के पद चिन्हों पर ही चल रहा था। वह भी अपने पिता की तरह लोगों की भलाई करता था और सभी से मैत्रीपूर्ण व्यवहार करता था।

जब लोग टीले की खुदाई करके उसमें मिलने वाले सामान को उठाकर ले जाने की कोशिश करते तो चंद्रभान उस सामान के बारे में कहता कि धरती माँ से प्राप्त वस्तुओं पर जनता का समान अधिकार है। कोई भी व्यक्ति इन सामानों को व्यक्तिगत नहीं मान सकता और ये सभी में बराबर-बराबर बटनी चाहिए।

लोग उसकी बातों का उपहास उड़ाते थे और मूर्ख कहकर उस पर हंसते थे। चंद्रभान शरीर में तो कमजोर था किन्तु दिमागी ताकत में वह किसी से कम नहीं था। वह प्रत्येक दिन टीले पर जाता और लोगों को खुदाई में मिलने वाले सभी सामानों को बराबर-बराबर हिस्सों में बांटता। धीरे-धीरे लोग उसका सम्मान करने लगे थे। उसका यह स्वभाव देखकर कुछ लोग स्वार्थवश उससे नफरत करने लगे। कुछ लोग कभी- कभी उससे नजरें बचाकर टीले से मिट्टी खोदकर मूल्यवान वस्तुओं की चोरी जैसा कार्य भी कर लेते थे।

मगर सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह होती थी कि जब चंद्रभान को चोरी से खुदाई करने वाले लोगों का पता चलता तो वह उन लोगों से सामान वापस लेकर, सामान का पुनः बटवारा कर देता था। धीरे-धीरे चंद्रभान के इस तरीके की चर्चा पूरे राज्य में फैलने लगी कि चंद्रभान एक न्याय प्रिय बाला लड़का है। गांव के समस्त लोगों ने उसको अधिक सम्मान देना शुरू कर दिया। चंद्रभान की सभी बातें ज्ञान-ध्यान की होती थीं। वह लोगों को टीले पर एकत्रित कर लेता और उन्हें ज्ञान-ध्यान की बातें बताता था। सभी लोग ध्यान लगाकर उसकी बातों को सुना करते थे। कभी-कभी गांव के लोगों के बीच अन्य गांव के लोग भी शामिल हो जाया करते थे और उसकी बातें सुनकर राज्य के अन्य लोगों से भी चर्चा करते।

चंद्रभान जब टीले से उतरकर अपने घर की ओर जाता था तो उसका व्यक्तित्व सभी लोगों को आकर्षित करता था। चंद्रभान हमेशा की तरह प्रत्येक सुबह उस टीले पर चढ़ जाता और आने वाले लोगों की बातें सुनता और कुछ-न-कुछ समाधान प्रस्तुत करता। उसकी बातों को सुनकर लोग अब अमल करने लगे थे।

एक दिन चंद्रभान ने आने वाले लोगों से एक सवाल किया कि हमारे राज्य का राजा कौन है? तो कुछ लोगों को राजा का नाम तक याद नहीं था। किसी ने तो उसका चेहरा भी नहीं देखा था, बल्कि एक ने कहा जब हमारे गांव में राजा आया तो पूरे गांव की फसल सैनिकों के आने से बर्बाद हो गई और पूरे गांव को सालभर भूखा मरना पड़ा।

चंद्रभान ने लोगों की बातें सुनकर कहा कि राजा वह होता है जो मुसीबत के समय ही काम नहीं आता बल्कि मुसीबत आने से पहले ही कुछ-न-कुछ बंदोबस्त कर देता है।

लोगों के मन में चंद्रभान की बात कुछ अटपटी लगी कि उसको राजा भोज के विषय में कुछ भी नहीं बोलना चाहिए था। गांव के लोगों की समस्या सुलझाना एक अलग बात है और पूरे राज्य की देख-रेख करना दूसरी बात है।

अब गांव वालों को डर लगने लगा कि यदि चंद्रभान की बातें राजा भोज तक पहुंच गईं तो इसे अवश्य ही फांसी पर लटका दिया जाएगा।

गांव के सभी लोगों के चेहरों का रंग उड़ चुका था। वे सभी सोच रहे थे कि अगर किसी ने इस बात को सुन लिया और जाकर राजा से शिकायत कर दी तो चंद्रभान के साथ-साथ गांव के सभी लोग भी राजा का अपमान करने के मुजरिम माने जाएंगे। क्योंकि सभी गांव वाले भी अपने राजा के विरुद्ध उसकी बातें सुन रहे थे।

बस्तीवालों के दिल में डर बढ़ता चला जा रहा था। एक-एक करके सभी बस्ती वाले धीरे-धीरे उसकी चौपाल में कम जाने लगे।

जब उसको एहसास हुआ कि अब बहुत कम लोग उसकी बातें सुनने आते हैं तो उसने टीले पर जाना कम कर दिया।

जब उसने गांव वालों से टीले पर न आने का कारण पूछा तो लोगों ने कहा कि अगर तुम्हारी बातें किसी भेदिये ने सुन ली होती तो राजा के सिपाही तुम्हें पकड़कर ले जा चुके होते और साथ में हमें भी तुम्हारे जुर्म की सजा भुगतनी पड़ती।

चंद्रभान ने गांव वालों को आश्चर्य से देखा। जैसे कि सभी लोग झूठ बोल रहे हों। उसने कहा कि मैंने किसी व्यक्ति विशेष के विषय में कुछ भी नहीं कहा बल्कि मैंने तो सामान्य बात कही कि एक राजा को कैसा होना चाहिए और वो किसी भी देश का हो सकता है। यदि मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के अनुसार अगर हमारा राजा भी उन विषयों का पालन नहीं करता तो तब भी मैं अपनी बात पर अटल हूं। धीरे-धीरे यह बात पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गई। गांव वालों में जो बातें हो रही थीं उसकी सुगबुगाहट दूसरे गांव के उस व्यक्ति तक पहुंची जो सुरजभान से ईर्ष्या करता था। उसने विचार किया, यह मौका अच्छा हाथ लगा है। उसने गांव के अन्य लोगों से भी इस विषय में पूछताछ की।

उसने सोचा कि सूरजभान से बदला लेने का इससे अच्छा अवसर और कोई नहीं हो सकता है। अगले दिन उसने सारा काम छोड़कर दोपहर के समय चंद्रभान को टीले पर बैठे हुए देखा। वह टीले पर गांव वालों से बात कर रहा था। उसने देखा कि चंद्रभान दो लोगों के आपसी झगड़े निपटा रहा था। दोनों का झगड़ा एक बकरी को लेकर था। उस बकरी पर दो लोग अपना-अपना अधिकार जमाने का प्रयास कर रहे थे। चंद्रभान टीले पर बैठे-बैठे ही उनकी समस्या सुन रहा था।

व्यक्तियों की समस्या हल करते हुए उसने ऐसा न्याय किया, जिसे देख-सुनकर लोग चकित हो गये। उनमें से एक व्यक्ति खुशी-खुशी अपनी बकरी लेकर चला गया और दूसरा व्यक्ति चंद्रभान के न्याय से संतुष्ट था।

यह एक उलझा हुआ मामला था, गांव वालों में किसी का भी दिमाग काम नहीं कर रहा था लेकिन चंद्रभान ने असली दावेदार को आसानी से पहचान लिया।

उसने अगले दिन पड़ोसियों के बीच एक बच्चे को लेकर हुए विवाद को निपाटते देखा। उस दिन भी चंद्रभान के न्याय की तारीफ सभी गांव वाले कर रहे थे।

जब कुछ ही दिनों में चंद्रभान का नाम दूर-दूर तक फैला तो उससे ईर्ष्या करने वाला दूसरे गांव का व्यक्ति और अधिक परेशान हो उठा कि चंद्रभान की चर्चा दूर-दूर तक फैल चुकी थी। एक दिन उसने मौका पाकर राजा भोज से शिकायत कर दी हे राजा भोज! सूरजभान का लड़का स्वयं अपने आपको राजा मानकर प्रजा की समस्याओं का निदान कर रहा है।'
'महाराज! वह आपके लिए अपशब्दों का भी प्रयोग कर रहा है।'

ईर्ष्यालु भानूप्रताप मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि वह अब किसी भी सूरत में नहीं बच सकता। उसे भी अपने अपमान का बदला चुकाने का अच्छा मौका दिख रहा था।

राजा भोज ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि 'वे सूरजभान के लड़के पर नजर रखें। उसके पास न्याय पाने जाने वालों को रोकें और फरियादियों को न्याय के लिए मेरे पास लेकर आएं।' सिपाहियों ने राजा भोज के आदेश का पालन करना शुरू कर दिया।

अगले दिन एक व्यापारी को राज दरबार में लाया गया। राजा भोज ने व्यापारी से राजदरबार में आने का कारण पूछा। व्यापारी ने कहा-"महाराज मैं एक छोटा-सा व्यापारी हूं और व्यापार करना मेरा मुख्य पेशा है। नगर से बाहर जाते समय मैंने अपने व्यापारी मित्र के पास कुछ बहुमूल्य वस्तुएं बतौर अमानत रखी थीं, ताकि जब मैं लौटकर आऊं तो मेरी बहुमूल्य वस्तुएं सुरक्षित वापिस मिल सकें। जब मैंने व्यापारी मित्र से वे बहुमूल्य वस्तुएं मांगी तो उसने देने से इंकार कर दिया। इसीलिए हम दोनों का आपस में झगड़ा हो गया है।"

“महाराज! मुझे मेरी वस्तुएं वापस दिला दीजिए। मेरे साथ न्याय कीजिए महाराज, यही वस्तुएं परिवार का एक मात्र सहारा हैं।" राजा ने व्यापारी द्वारा लगाए गये आरोप के बारे में उसके व्यापारी मित्र से पूछा तो व्यापारी मित्र ने कहा कि 'यह बात तो सत्य है कि व्यापार के लिए जाते समय यह अपनी बहुमूल्य वस्तुएं मेरे पास रख गया था। इसने मुझसे वायदा किया था कि वह छ: महीने बाद लौटकर अपनी वस्तुएं वापिस ले लेगा। जब यह छ: महीने बीत जाने के बाद लौटा तो मैंने इसकी अमानत लौटा दी।'

राजा भोज ने उस व्यापारी से कहा कि क्या तुम्हारे पास कोई गवाह है जो यह सिद्ध कर सके कि तुमने इसकी बहुमूल्य वस्तुएं लौटा दी थीं।'
“अवश्य महाराज! मैंने गांव के मुखिया और मंदिर के पुजारी के सामने सभी वस्तुएँ लौटायी थीं।'

व्यापारी के मित्र की बात सुनकर राजा भोज ने उन दोनों को बुलाने का आदेश दिया। कुछ देर बाद राजा के सिपाही मुखिया और पुजारी को दरबार में ले आए। दोनों की गवाही व्यापारी के मित्र के पक्ष में थी। उन दोनों की पूरी बात सुनने के बाद राजा ने अपना निर्णय सुनाया।

“यह व्यापारी झूठ बोल रहा है। इसलिए उसे आदेश दिया जाता है कि वह झूठ बोलने के अपराध में अपने मित्र व्यापारी से क्षमा मांगे वरना उसे राजदण्ड भोगना पड़ेगा।'

“यह न्याय नहीं, अन्याय है अन्नदाता। यदि मैं चन्द्रभान के पास न्याय हेतु जाता तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता। लेकिन आपके सिपाही जबरदस्ती हमें पकड़कर आपके दरबार में ले आए।' व्यापारी ने रोते हुए कहा।

व्यापारी की बात सुनकर राजा भोज क्रोधित नहीं हुए बल्कि यह सोचने लगे कि सूरजभान का लड़का कैसा न्याय करता है, जिसकी चर्चा हर जगह है। उसे चलकर देखना चाहिए।

राजा भोज ने कहा- “अगर तुम दोनों मेरे न्याय से असंतुष्ट हो तो जाकर उसी से न्याय मांगकर देख लो। मैं भी देखना चाहता हूं कि वह किस प्रकार का न्याय करता है।'

राजा भोज की बात सुनकर व्यापारी और दोनों गवाह भी उसके पीछे-पीछे चल दिए। बस्ती के सबसे ऊंचे टीले पर हमेशा की तरह, चंद्रभान पहले से ही बैठा हुआ था। गांव के लोग उसके इर्द-गिर्द जमा थे। राजा भोज भी भेश बदलकर वहां बैठ गया और उसका न्याय देखने लगा।

व्यापारी ने चंद्रभान को जब अपनी विपदा सुनाई तो उसकी बात सुनकर चंद्रभान तेज स्वर में बोला- “न्याय करने के लिए राजा होने की आवश्यकता नहीं, न्याय का अपना दृष्टिकोण होता है। यदि न्यायपूर्ण दृष्टिकोण हो तो कोई भी किसी भी समय सही न्याय कर सकता है।'

“यदि मेरे वश में होता तो राजा भोज को यहां बुलाकर दिखाता कि न्याय किसे कहते हैं।' चंद्रभान ने सबसे पहले व्यापारी के गवाह गांव के मुखिया और मंदिर के पुजारी को बुलाया और पूछा कि बताओ उन बहुमूल्य वस्तुओं में कौन-कौन-सी कितनी वस्तुएं थीं।

चंद्रभान का यह सवाल सुनते ही मुखिया और पुजारी के होश उड़ गये। उन्होंने लड़खड़ाती जुबान में कहा-"हमने तो बस पोटली देखी।"

व्यापारी के मित्र से चंद्रभान ने कहा कि तुमने तो कहा था कि उन दोनों को दिखाकर बहुमूल्य वस्तुएं लौटा दी थीं। अरे तुम तो एक बेईमान इनसान हो। दोनों को झूठी गवाही देने के लिये किस प्रकार का सौदा किया था? व्यापारी मित्र बुरी तरह कांपने लगा, उसकी टांगें लड़खड़ाने लगीं। व्यापारी का मित्र चंद्रभान के कदमों में गिरकर रोने लगा।
मुझे क्षमा करें! मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई।

“मैं इनकी बहुमूल्य वस्तुएं लौटाने का वादा करता हूं कि घर जाते ही इनकी वस्तुएं दे दूंगा।'

राजा भोज ने देखा कि सूरजभान का लड़का चतुर और न्याय प्रिय है। राजा उसके न्याय करने का ढंग देखकर काफी प्रभावित हुए और अपने राजमहल वापस आ गये। वह रात भार चंद्रभान के बारे में सोचते रहे। अगले ही दिन उसने चंद्रभान को राजदरबार में बुलाया और कहा कि "मैं तुम्हारे न्याय करने के तरीके से काफी प्रभावित हूं। लेकिन एक बात हमारी समझ में नहीं आई।'
'कौन-सी बात महाराज ?' चंद्रभान ने हाथ जोड़कर राजा भोज से पूछा।

“तुम अनपढ़ और एक मामूली चरवाहे हो फिर भी इतना अच्छा न्याय कैसे कर लेते हो?” 'यह सब उस टीले की करामात है महाराज! जब भी मैं उस टीले पर बैठता हूं तो मुझमें न जाने कौन-सी शक्ति आ जाती है। मैं वहां बैठकर ही सही न्याय करता हूं। बाकी जगह तो मुझसे कुछ बोला भी नहीं जाता है।'

राजा भोज ने काफी स्रोच-विचार करने के बाद अपने मंत्रियों से विचार-विमर्श किया। अंतत: यह निर्णय हुआ कि टीले के नीचे अवश्य ही कोई देवीय शक्ति है, इसे खुदवाकर देखा जाए।

अगले ही दिन सैकड़ों मजदूरों ने उस टीले की खुदाई की। बहुत गहराई तक खुदाई करने के पश्चात्‌ मजदूरों को एक राजसिंहासन मिला। राजा भोज ने देखा तो सिंहासन की चमक से उसकी आंखें चौंधिया गईं। उनके सामने सोने-चांदी एवं रत्नों से जड़ा हुआ बहुमूल्य सिंहासन था।

राजा भोज के आदेश पर सिंहासन को राजमहल लाया गया। सिंहासन को साफ किया गया। सफाई के बाद वह और निखर गया। इतना सुन्दर सिंहासन अभी तक किसी ने भी नहीं देखा था।

सिंहासन के चारों ओर आठ-आठ पुतलियां बनी थीं। पुतलियां इतनी सजीव लगती थीं मानों अभी बोल पड़ेंगी। राजा भोज ने इस सिंहासन पर बैठने के लिए एक दिन निश्चित किया और उस दिन दरबार में जश्न का सा माहौल बना हुआ था। राजा भोज जैसे ही सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़े तभी सिंहासन में जड़ी सभी बत्तीस पुतलियां राजा भोज को देखकर हंसने लगीं। राजा भोज ने सहमकर अपने कदम पीछे खींच लिए और उन पुतलियों से पूछा- 'पुतलियो तुम सब मुझे देखकर एक साथ क्‍यों हंस रही हो ?'
राजा भोज का प्रश्न सुनकर एक पुतली रत्नमंजरी राजा भोज को कुछ बताने के लिए आगे आयी।

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