आलसी कछुआ : मेघालय की लोक-कथा

Aalsi Kachhua : Lok-Katha (Meghalaya)

एक समय की बात है। एक बड़े तालाब के नजदीक एक कछुआ युवती निवास करती थी। उसके शरीर से बहुत बुरी गंध आती थी और उसका चेहरा भी बहुत बदसूरत था। वह बहुत मूर्ख भी थी। साथ ही वह उतनी ही आलसी और तमाम तरह की गंदी आदतों वाली थी। उसका नाम का पाशांडी था।

वह जिस तालाब के नजदीक रहती थी उस तालाब का पानी बहुत साफ था। तारे और तमाम दूसरे ग्रह नक्षत्र इस निर्मल सरोवर के जल में अपनी परछाईं नित्य प्रति देखते रहते और उसकी सुंदरता पर मुग्ध रहते, जब सरोवर के जल में अनंत तारों का प्रकाश फैल जाता, टिमटिमाते तारे उसके निर्मल जल में अठखेलियाँ करते प्रतीत होते और वह सरोवर पृथ्वी पर आकाश का एक छोटा टुकड़ा सा प्रतीत होता। ऐसे समय में का पाशांडी को सरोवर में कूदकर नहाना, इधर से उधर तक अपने सिर को उठाए तैरना बहुत सुखकर प्रतीत होता। वह पानी में दूर तक तैरती और फिर वापस लौटती। तारों की परछाइयों के बीच आनंद से ओतप्रोत होकर उनसे विभिन्न प्रकार के खेल खेलती।

उस सरोवर में एक चमकीला तारा रोज अपनी परछाईं देखने आता और जल की निर्मलता में अपने रूप सौंदर्य को देखकर खुद अपने ऊपर मोहित सा रहता। उसका नाम उ लुरमांगख्रा था। वह का पाशांडी को रोज जल में अठखेलियाँ करते हुए देखता। उसे आश्चर्य होता कि का पाशांडी उसकी परछाईं के साथ बहुत समय तक बड़े प्यार से खेलती रहती थी। वह आकाश में इतनी दूर था कि का पाशांडी की बदसूरती को नहीं देख सकता था और न ही उसे यह पता था कि वह कितनी आलसी और मूर्ख युवती है। उसे सिर्फ इतना ही पता था कि रात में वह बहुत खुलकर उसकी परछाईं के साथ बहुत प्यार से तमाम तरह के खेल खेलती है। यह देख कर उसे बहुत अच्छा लगता था। एक दिन उसने सोचा कि वह अगर उसकी परछाईं

पर इतनी मुग्ध है तो अगर वह वास्तव में उसे मिल जाए तो वह कितनी खुश होगी और उसे कितना अधिक प्रेम करेगी। यह सोच उ लुरमांगख्रा मन-ही-मन का पाशांडी से प्रेम करने लगा। उसने निश्चय किया कि एक दिन वह उससे मिलने पृथ्वी पर अवश्य जाएगा और का पाशांडी से विवाह करेगा। जब उसके दोस्तों ने इस संबंध के बारे में सुना वे बुरी तरह परेशान हो गए। उन लोगों ने उसे समझाने की कोशिश की कि उसका निर्णय अत्यधिक खतरनाक है। किसी दूसरी भूमि पर जाना और वहाँ अपना घर बनाना तथा एक ऐसे व्यक्ति से संबंध स्थापित करना, जिसके बारे में वह कुछ नहीं जानता, किसी भी तरह उचित नहीं है। दूसरी भूमि के लोगों की आदतें और स्वभाव पूरी तरह अलग होते हैं, इसलिए उनके साथ सहज संबंध बनाना कतई आसान नहीं होता, परंतु उ लुरमांगख्रा ने किसी की बात न मानी। सचमुच प्रेम में डूबे व्यक्ति को कुछ भी दिखाई नहीं देता, अतः एक दिन वह चमकीला तारा आकाश में अपने घर को छोड़ अपनी पूरी संपत्ति के साथ पृथ्वी पर का पाशांडी से मिलने उसके पास पहुँच गया। उसने अपनी पूरी संपत्ति का पाशांडी को अर्पित कर दी।

जब का पाशांडी को इसका अहसास हुआ कि अचानक वह इतनी अमीर हो गई है और दुनिया में सबसे अलौकिक व्यक्ति से उसका विवाह हुआ है तो उसका सिर गर्व से ऊँचा उठ गया। वह और भी अहंकार से भर उठी। उसकी अकर्मण्यता और आलस्य भी निरंतर बढ़ता गया, अब वह पहले से भी अधिक आलसी और सुस्त हो गई थी। उसका घर पूरी तरह गंदगी से भरा और अस्त-व्यस्त रहता तथा उसका शरीर भी कीचड़ से सना होता, फिर भी वह उन्हें साफ करने का कोई प्रयास न करती। उसे यह देखकर भी बिल्कुल शरम नहीं आती कि उसके पति को बहुत गंदे और टूटे-फूटे बरतनों में खाना मिलता है।

का पाशांडी के इस व्यवहार को देखकर उ लुरमांगख्रा बहुत उदास और दुःखी हुआ, परंतु अत्यंत ध्यानपूर्वक वह अपनी पत्नी को समझाने का प्रयास करता रहा। उसे साफ सफाई से रहने और अपने व्यवहार में सुधार करने की प्रार्थना करता रहा, परंतु इन सबका का पाशांडी के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा। वह दिन-ब-दिन और अधिक आलसी और आराम तलब होती गई। पैसे, धन-संपत्ति की अधिकता के कारण उसका अहंकार भी दिनों दिन और भी गहरा होता गया। ठीक ही कहा गया है कि किसी आलसी की आदत को सुधारना दुनिया में सबसे मुश्किल काम होता है।

अंत में परेशान होकर उ लुरमांगख्रा ने उसे छोड़ देने की धमकी दी। उसके पड़ोसियों ने भी उसे समझाया कि वह अपनी आदतों में सुधार कर ले नहीं तो अगर उसके पति ने उसे छोड़ दिया तो उसकी स्थिति बहुत बुरी हो जाएगी, परंतु इतना होने के बावजूद भी का पाशांडी की आदतों में कोई बदलाव नहीं आया। अंत में पूरी तरह निराश हो जाने के बाद उ लुरमांगना अपनी सारी संपत्ति अपने साथ समेटकर वापस अपने घर आकाश में चला गया।

अब अचानक का पाशांडी को अपनी गलती का एहसास हुआ। पति के वापस चले जाने से वह दुःख और पीड़ा से भर उठी। उसे अपना जीवन तमाम तरह के अभाव से ग्रस्त और परेशानियों से भरा हुआ प्रतीत हुआ। वह आकाश की ओर जाते हुई अपने पति को गिड़गिड़ाकर पुकारने लगी कि बस एक बार वह वापस चला आए, अब वह अपनी आदतों में सुधार कर लेगी और जैसा वह कहेगा, वैसा ही व्यवहार करेगी, परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी। उसका पति फिर वापस कभी नहीं आया और वह अकेले ही पीड़ा और शरम में डूबी अपना जीवन निर्वाह करती रही।

आज भी का पाशांडी इस उम्मीद में रहती है कि उसका पति वापस पृथ्वी पर लौटकर आएगा। वह आकाश की ओर अपनी गरदन उठाएँ, निरंतर उसी तरफ देखती रहती है। दुःख से भरी हुई, धीरे-धीरे चलती, वह एकटक आकाश की ओर देखती है और उसे लगता है कि उसका पति किसी भी क्षण वापस आ सकता है। इस घटना के बाद का पाशांडी का नाम उस पूरे क्षेत्र में अत्यंत घृणा के साथ लिया जाने लगा। लोग उसका मजाक उड़ाते और वह सब के लिए घृणा का पात्र बन गई। उसे मूर्खता और गंदगी का पर्याय माना जाने लगा। उसको लेकर तमाम तरह के मुहावरे और गीत बने और लोग आज भी आलसी और अकर्मण्य पत्नियों को चेतावनी देने के लिए उसका उदहारण देते हैं और उन मुहावरों का प्रयोग करते हैं, जो उसके अपमान में बने थे। समाज की परित्यक्त स्त्रियों को शिक्षा देने के लिए आज भी खासी समाज में का पाशांडी की कथा कही जाती है।

(साभार : माधवेंद्र/श्रुति)

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