Aaj Ki Stri (Hindi Story) : Ramgopal Bhavuk

आज की स्त्री (कहानी) : रामगोपाल भावुक

अस्पताल के डॉक्टर ने उससे पूछा - आप सुमन के पिता हैं?

‘जी, मैं के0आर0धर्मा।’

खच्चूराम धर्मा से जब कोई उसका परिचय पूछता है तो वह अपना नाम इसी तरह संक्षेप में बतलाता है। इस नाम करण के लिये अपने माता-पिता को मन ही मन कोसता है कि उन्हें यह अजीब सा नाम क्‍यों सूझा। हालांकि हर बार वह यह भी सोचता है कि इसमें मेरे माता-पिता का क्या दोष?उस जमाने में ऐस ही नाम रखने की परम्परा जो थी। तब नगर सेठ का नाम फकीर चंद हुआ करता था और अखाड़े के पहलवान घसीटाराम कहे जाते थे। बैसे ससुरे इन बामनों ने अपने नाम तो छाँट-छाँटकर रखे हैं। लोग नाम करण के लिये उनके यहाँ पहुँचते तो वे ऐसे ही अजीब नाम रखने का परामर्श देते और हमारे पूर्वज उनकी बात मान लेते।

डॉक्टर साहब के दिये हुए दस्तावेजों पर सुमन के हस्ताक्षर करने के बाद, उसको नर्स की नौकरी जाँइन करवा कर, के0आर0धर्मा घर लौट आया। उसके लिये पानी लेकर आयी पत्नी से बोला-‘हमारी सुमन ने गाँव के अस्पताल में नर्स की नौकरी जाँइन करली है। पण्डित रामभरोसे को जब से यह पता चला है तब से यह कहते फिर रहे हैं कि धर्मा की लड़की की नौकरी क्या लग गई, उसके तो भाव ही बढ़ गये हैं। फिर ऐसी बड़ी भारी नौकरी भी नहीं है, दाई-बरार के काम वाली नौकरी है, भले ही पगार अच्छी है। ऊपर की आमदानी है सो अलग।’

सुमन की माँ बात काट कर बोली-‘उनकी तीनों पढ़ी-लिखी बेटियां घर में बैठी- बैठी झगड़ती रहती हैं। उनके पास काम तो है नहीं कुछ भी। उनके पास तो अनाप-सनाप पैसा है सो तीनों बेटियों के ब्याह में सब लग जायेगा।’

यह सुनकर खच्चूराम गम्भीर होकर बोला-‘इन बामन-बनियों ने समाज में ऐसी हवा भरी है कि सारा समाज ही विकृत हो गया है। अब तो इनके देखा-देखी हमारे समाज में भी दहेज माँगने का चलन चल पड़ा है। सुमन की माँ ,मैं तो दहेज में एक पैसा देने वाला नहीं हूँ। हमारे भी कुछ सिद्धान्त हैं। हमने लड़की को अपने पैरो पर खड़ा कर दिया। ऐसी सुन्दर कमाऊ लड़कीं विरली ही मिलती हैं। अपने समाज के बडे़-बडे़ घरों से रिश्ते की माँग आ रही हैं।

‘‘अधिक बड़ों के चक्कर में मत पड़ो। ये पहले छोटा बनकर बेटी मांगेंगे , बाद में मुँह फैलायेंगे-कहेंगे ,हमारी भी समाज में इज्जत है। उसका ख्याल तो आपको रखना ही चाहिये। ये भी उन बाभन-बनियों से कम नहीं हैं जो तौल- तौल कर हमारा मांस खा रहे हैं। काम लेंगे सैकड़ों का और पकड़ायेंगे दस-पाँच ।’’

खच्चूराम बोला-‘ जो हो मैंने तो आज सिरोही गाँव के खेतसिंह के लड़के के साथ सुमन का रिश्ता पक्का कर दिया।’

यह सुनकर सुमन की माँ सोचने लगी-कहाँ हमारी सोने सी लड़की और कहाँ खेतसिंह का काला-कलूटा, सकल का न सूरत का लड़का! लेकिन सहसा उसे खेत सिंह की स्थिति का ख्याल आया तो बोली-‘सुना है उन पर नहर वाली बीस बीघा जमीन, एक करोड़ की तो है। सुना है उसमें अम्मोक बोरिंग भी है। उसके पास शहर में पक्का मकान है। वह पढ़ा-लिखा है, उसकी नौकरी भी लग सकती है।’

‘जो हो, अपने समाज के रोशन कक्का और भवानी बब्बा ने मुझे दबाया तो मैंने आज उसके पिता से हाँ कह दी है। अब हाँ करदी तो करदी,आदमी की जुबान की भी कीमत होती है।’’

सुमन की माँ बोली-‘किन्तु....।’

बात खच्चूराम ने पूरी की-‘किन्तु तुम सोचती हो वह जरा ज्यादा साँवला है यही ना। अरे!श्रीकृष्ण भी तो सांवले थे। अपनी सुमन की तरह राधा जी बहुत सुन्दर थीं। बोल-दोनों के प्रेम में कहीं कोई कमी दिखी।’’

मम्मी-पापा की बात सुन रही आंगन में बैठी सुमन ने थूक का घूंट गले के नीचे उतारा-पापा जी कहाँ तो सवर्णों की बातों का खुलकर विरोध करते हैं और आज उन्हीं के इष्ट श्रीकृष्ण का उदाहरण देकर अपने आप को सांत्वना दे रहे हैं। पापा का यह दोहरा व्यक्तित्व कुछ समझ नहीं आता।

मुझे बचपन से ही अपनी सुन्दरता पर नाज था। जब मैं दर्पण के सामने जाती, अपने को देखती ही रह जाती। मेरी सहेलियाँ भी मेरी सुन्दरता देखकर कहती-‘री! तू बहुत ही सुन्दर है। देखना, तुझे ऐसा ही सुन्दर पति मिलेगा।’ उनकी बातें सुनकर मैं मुस्कुराकर रह जाती।

मेरी बुघ्दि भी कुशाग्र थी। इसी कारण पापा मेरी पढ़ाई नहीं रोक सके। मैंने प्रथम श्रेणी से हाई स्कूल की परीक्षा उतीर्ण कर ली।

पड़ोस में रहने वाले शर्मा अंकल ने पापा को एक दिन नर्स की ट्रेनिंग का विज्ञापन दिखाया। यह बात पापा के समझ में आ गई। मैंने नर्स की ट्रनिंग करने के लिए फार्म भर दिया। ...और मेरा नर्स की की ट्रेनिंग के लिए नम्बर आ गया। मैंने देर नहीं की और की ट्रेनिंग जाँइन करली।

दो वर्ष में नर्स का डिप्लोमा पूरा होते ही दस किलोमीटर दूर पिछोर गाँव के अस्पताल में मेरी नौकरी लग गई। टेम्पू से रोज का आना-जाना शुरु हो गया। कुछ ही दिनों में समाज के बड़े-बड़े घरों से रिस्ते आने लगे लेकिन काले-कलूटे नकटू राम अर्थात एन0 आर0 वर्मा से पापा ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है। सुना है राजनीति में उनका अच्छा असर है। धनी लोग हैं। पापा की इज्जत का सवाल़़ बन गया है किन्तु मुझे एन0 आर0 वर्मा बिल्कल अच्छा नहीं लग रहा है। मैंने उससे ब्याह न करने का मन बनाया। सोचा कैसे मना की जाये? यही सोचते रहने में समय व्यतीत हो गया।

निश्चित दिन उसका खूब धूम-धाम से ब्याह हो गया। क्षेत्र कें विधायक और सांसद उसके ब्याह में आशीर्वाद देने अपना फौज-फाँटा लेकर उपस्थित हुए। इससे एन0 आर0 वर्मा के पिता श्री के सम्मान में चार चाँद लग गये। उनका अहम सातवे आसमान पर पहुँच गया। ......और सुमन बेमन से ससुराल पहुँच गई।

नौकरी वाली सुन्दर पत्नी पाकर एन0 आर0 वर्मा फूला नहीं समा रहा था। सुहागरात के दिन वह खूब सज-सम्हलकर, इत्र लगाकर सुमन के कक्ष में पहुँचा। सुमन एक कोने में सिमटकर खड़ी हो गई। उसके चेहरे पर मायूसी देखकर वह बोला-‘‘सोचती होगी, कहाँ फस गई! लेकिन अब क्या हो सकता है? इन सवर्णों की तरह हमारी जाति में भी औरत को बँधकर रहना पड़ता है। अब तुम मेरी सम्पति हो। भारतीय संस्कृति के अनुसार अब तो तुम्हें अपना पत्नी धर्म निभाना ही पड़ेगा। पति की सेवा करना ही औरत का सच्चा धर्म है।’’

यह सुनकर सुमन सोचने लगी- अरे! यह भी औरों की तरह मुझे बस्तु ही मान रहा है। इसमें औरत के लिये सम्बेदना का अभाव लग रहा है। मैं सोचती थी, यह बदसूरत तो है लेकिन इसकी सोच सुन्दर होंगी, मैं इसी में संतोष कर लूंगी। यह तो अन्दर से भी बदसूरत है। यह सोचकर घूंघट डाले उसकी ओर मुड़कर बोली-‘‘आज मेरा जी अच्छा नहीं है जी।’’

यह बात सुनकर नक्टूराम को लगा-शायद, पत्नी महिने से है,इसीलिये जी अच्छा न होने की बात कह रही है। यह सोचकर बोला-‘ये चोंचले सवर्णों में खूब चलते हैं। बेचारी औरत को तीन-तीन दिन तक चौके-चूल्हे में नहीं घुसने देंगे। ये लोग जैसे हमसे छुआ-छूत मानते हैं बैसे औरत से भी मानते हैं। यह मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं सवर्णों की तरह उन बातों को नहीं मानता।’’

सुमन ने उसे पुनःसमझाया-‘‘एक दो दिन में जी ठीक हो जायगा। अब मुझे रहना तो यही हैं।’’

एन0आर0वर्मा ने अपना रुतबा प्रदर्शित करने के लिये पूछा-‘देख री, मैं समझ रहा हूँ तू मुझ से छिड़क रही है। इससे मुझे तो तेरे खानदान में ही कमी दिख रही है। कहीं तेरी आँखें किसी से लग तो नहीं गईं। सुना है उस अस्पताल में एक कम्पाउन्डर है, उसके साथ तू बन-ठनकर बाइक पर घूमती है। क्या नाम है उसका?’ ’

उसकी बातें सुनकर सुमन सोचने लगी-ससुरा, यह तो खानदान की बात करके सीधे- सीधे मेरी माँ‘ के चरित्र पर सन्देह कर रहा है। यह तो बहुत ही घटिया इंसान है। उसे उसके प्रश्न का उत्तर देना ही था इसलिये उत्तर में बोली-‘ सुरजीत सिंह।’

सुरजीत का नाम सुनकर उसने फुफकार मारी-‘तेरी सुन्दरता देखकर अच्छे-अच्छों की लार टपकने लगती होगी। तू अपने को स्वर्ग की परी समझ रही है। मैंने अपने दोस्तों से सुना है सुन्दर औरते बिगडेल हो जातीं हैं। देख, तूने सुन्दरता के नखरे दिखाये तो तेरी सुन्दरता मिटाने में देर नहीं करुँगा। जिससे तू जिन्दगी भर अपनी औकात में बनी रहेगी।’’

यह सुनकर तो सुमन का दिल काँप गया- सोचा था ये दिल का अच्छा इंसान होगा। इसी भरोसे चुप बनी रही। ये तो दिल का भी पूरा काला है। कहीं ये मेरी सुन्दरता को ही न मिटा दे!

दरवाजा खोलकर बाहर जाने को हुई तो उसने उसे बेरहमी से दबोचते हुये कहा-‘‘तुझे अभी पता नहीं हैं,यहाँ के सांसद और विधयक मेरे घर चक्कर लगाते हैं। अच्छे-अच्छे मेरे यहाँ पानी भरते हैं, एक तू है कि नखरे दिखा रही है।’’

सुमन ने छूटने का प्रयास किया तो उसने घसीटते हुए अन्दर खीचा और दरबाजे की चटकनी लगादी।

कुछ देर बाद सुमन को लगा-क्या मेरी सुन्दरता का यही उपयोग है कि वह इस तरह मसली जाये। हमारे समाज के लोग सभी बातों में सवर्णों की होड़ करने में लगे हैं इधर उनके इन्हीं आचरण के लिये उन्हें गालियाँ भी देते जाते हैं। हमारे लोगों का दोहरा व्यक्तित्व कुछ समझ में नहीं आता। मैं भी कैसी कायर निकली, बारात नहीं लौटा सकी! मम्मी-पापा के दबाव में यहाँ चली आई। अब मेरे साथ अनैतिक व्यवहार किया जा रहा है। मैंने समर्पण का विरोघ किया तो आज मेरी यह दुर्दशा हो रही है। वह तो भूखे भेड़िये की तरह मेरे ऊपर झपट पडा! कैसे-कैसे उसने मेरे अंगों को मसला है! अंग-अंग में टीभन हो रही है। जब उसके पुरुषत्व का वेग कम हुआ तब ही मैं उसके चंगुल से छूट पाई हूँ।

सोच मैं डूबी सुमन की मनोदशा को भापते हुए एन0आर0वर्मा बोला-‘‘लगता है मेडम किसी को दिल दे बैठी हैं। यदि तू राजी से नहीं मानी तो मैं फिर कहता हूँ तुझे बदसूरत बनाने में देर नहीं करुँगा, फिर तू छुट्टर सूगरी की तरह चाहे जहाँ मुँह मारते फिरना।’’

यह सुनकर तो सुमन का सारा जोश ठन्डा पड़ गया। अब तो एन0आर0वर्मा के अस्तित्व को स्वीकारना ही उचित लग रहा है। वह मन ही मन अपनी सुन्दरता को कोसने लगी-उसे याद हो आई उस दिन की, जब वह ग्वालियर से काम निपटाकर बस से लौट रही थी। सुरजीत और वह एक ही सीट पर बैठे थे। दोपहरी का समय था। सारे यात्री ऊँघ रहे थे। वह भी नीद में थी। अचानक नीद में उसका सिर सुरजीत के सिर से जा टकराया। दोनों ओर से शव्द निकले-‘सैारी.।’

उसके चहरे पर दृष्टि गडाते हुये सुरजीत बोला-‘‘आपके कहीं चोट तो नहीं लग गई? मैं नहीं चाहता मेरे कारण आपको दुःख पहुँचे, इसीलिये आपसे फिर से क्षमा याचना चाहता हूँ।’’

उसकी यह बात मुझे वहुत अच्छी लगी थी। मैंने उसका परिचय जानने के लिये पुछा-‘आप....?’

वह बोला-‘मैं सुरजीत सिंह गिल। पिछोर गाँव के हास्पीटल में कम्पाउन्डर के पद पर ट्रान्सफर हो गया है। आज ही ज्याँइन करने जा रहा हूँ और तुम़़.....?’

‘मैं उसी गाँव में नर्स हूँ। मैंने भी हाल ही नौकरी ज्याँइन की है।’

यों उनका परिचय अनायास ही हो गया था।

सुमन का टेम्पो से जाना-आना था। सुरजीत ने एक दिन प्रस्ताव रखा-‘सुमन, तुम चाहो तो प्रतिदिन मेरे साथ आ-जा सकती हो।’

यों सुरजीत के साथ बाइक से उसका जाना-आना शुरु हो गया।

पहले उन्होंने एक दूसरे को समझा। फिर जाना। हँसना-बोलना शुरु हो गया।

एक दिन की बात है-ठन्ड के दिन थे। रास्ते में तेज बारिश शुरु हो गई। वर्षा से बचने के लिये उन्होंने एक घने पेड का सहारा लिया। सुमन के मुँह से निकला-‘‘सर्दी लगने लगी है।’’

यह सुनकर उसने झट से अपना कोट उतारा और उसे ओढ़ा दिया। सुमन ने इसका विरोध किया-‘यह आप क्या कर रहे हैं?आपको सर्दी लग जायेगी।’

वह बोला-‘मैंनू सिख है, ये छोटे-मोटे संकट हमारे नाम से दूर भागते हैं।’

सुमन ने कोट उतारने का प्रयास किया। सुरजीत ने उसकी दोनों भुजायें थामलीं। बोला-‘मुझे आपकी सुरक्षा करने दीजिये ना।’

...और एक यह है कि सुमन की सुन्दरता ही मिटा देना चाहता है। इसी में इसका सुख है।

उसने सुरजीत को आगाह किया था-‘‘तुम्हें पता है मेरी जाति...।’

वह बात काटकर झट से बोला-‘तुम्हें भी पता है सिख लोग जात-पांत नहीं मानते। फिर स्त्री तो हर जाति में समाहित है। वह जिस जाति में पहुँच जाती है ,उसी जाति की हो जाती है कि नहीं बोल ?’

सुमन ने कहा-‘स्त्री की जाति स्त्री है। काश! यह गुण पुरुष में आ जाता तो आज देश में जितना जातिबाद पनप रहा है वह नहीं होता।’

‘सुमन,तुम बहुत गहरा सोचती हो।’सुरजीत ने कहा था।

सुमन को सोच में डूबी देखकर सामने खड़ा एन0आर0वर्मा बोला-‘‘क्या सुरजीत की याद आ रही है?’ ’

सुमन ने कहा-‘‘मैं उसकी याद क्यों करती?’ ’

वह बोला-‘‘उसके साथ रोज का आना-जाना जो था।’’

‘‘इससे क्या? काम-घन्धे का साथ अलग बात है।’’

‘मुझे तो लगता है, तू उसी के चक्कर में फस गई है। इसीलिये मुझ से दूर भाग रही है। देख, मैं अच्छे-अच्छों की नजर पहचानता हूँ। तेरी सुन्दरता की वजह से तू सुरजीत से नहीं बच पाई होगी।’’

सुमन ने उसे समझाया-‘अरे! स्त्री को अपने स्वविवेक से अपने को बचाकर रखना पड़ता है।’

सुमन की यह बात सुनकर तो वह चुप रह गया था।

क्षेत्रिय परम्परा के अनुसार पहली बार शादी हुई लड़की को उसके माता-पिता पखवाड़ा बदलने से पहले वापस बुला लेते हैं। यों सुमन को लेने उसका भाई पहुँच गया। एन0आर0वर्मा के पिता ने यह कहकर उसे मैके भेजा-‘‘हमें बहू से नौकरी नहीं करानी। मैं तीन दिन बाद ही बहू को लेने अपने लड़के को भेज रहा हूँ।’’

सुमन अपने माता-पिता के घर आ गई

रात भर सोच में सो नहीं सकी। रह-रहकर करवटें बदलती रही। जिन्दगी बहुत लम्बी होती है। मर-मर कर जीने से तो एक बार मर जाना बेहतर है। शंकालू स्वभाव जीवन भर शंका का आइना लिये खड़े रहते हैं। इस दिशा में मुझे कोई ठोस निर्णण लेना ही पड़ेगा।

दूसरे दिन सुरजीत को पता चल गया होगा कि सुमन आ गई है। वह पहले की तरह उसे ले जाने के लिये उसके दरवाजे पर पहुँच गया। सुरजीत को दरवाजे पर आया हुआ देखकर सुमन के पिता घर से बाहर निकल आये और बोले-‘‘सरदार जी, सुमन के ससुराल वाले नहीं चाहते कि वह नौकरी करे इसलिये अब सुमन नौकरी पर नहीं जायगी।’

सुमन सुरजीत की प्रतिक्षा कर रही थी। वह नर्स की वेश-भूषा में अन्दर से बाहर निकल आई और द्रढ़ता से पापा जी से बोली-पापाजी मैं नौकरी तो छोडने वाली हूँ नहीं, चाहे और कुछ छूट जाये।’ यह कहकर वह आगे बढ़ी और रोज की तरह सुरजीत की बाइक पर जाकर बैठ गई।