Nikolai Gogol
निकोलाई गोगोल

निकोलाई गोगोल (20 मार्च, 1809 ई०, नये कैलेंडर के अनुसार 1 अप्रैल, 1809 ई०-21 फरवरी 1852ई०, नये कैलेंडर के अनुसार 4 मार्च, 1852ई०) का जन्म यूक्रेन के एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता भी उत्तम शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे तथा कविताएँ एवं हास्य भी लिखते थे। इसके अतिरिक्त वे रंगमंच पर अभिनय भी किया करते थे। अपने पिता के इन गुणों के कारण गोगोल को बचपन से साहित्य के साथ-साथ रंगमंच के प्रति भी अभिरुचि जग गयी। अपनी रचनाओं के माध्यम से गोगोल रूसी साहित्य में आलोचनात्मक यथार्थवाद के प्रवर्तक थे। मानव-व्यक्तित्व को अपमानित करने और कुरूप बनाने वाली हर चीज़ पर उनका क्रोधपूर्ण और रौद्र ठहाका, "छोटे मानव" के साथ उनकी दिली हमदर्दी तथा नेकी और इन्साफ़ की जीत में उनका विश्वास - इन्हीं तत्त्वों ने भावी पीढ़ियों के लिए उनके चिरन्तन महत्त्व तथा विश्व ख्याति को सुनिश्चित किया। उनकी रचनाएँ विश्व की अनेक भाषाओं में, जिनमें हिन्दी भी सम्मिलित है, अनूदित हुई हैं। उनकी रचनाओं में शामिल हैं: दिकान्का के पास ग्रामीण संध्याएँ, मीरगोरोद (मीर गोरद), पीटर्सबर्ग की कहानियाँ, तारास बुल्बा, द गवर्नमेंट इंस्पेक्टर (आला अफ़सर), मृत आत्माएँ, मानिलोय, करोवोचका (डिबिया), 'नज्द्रेव', 'सवाकेविच' (कुत्ते का पिल्ला), 'प्ल्यूश्किन', चिचिकोव' आदि।