वही लड़की (ओड़िआ कहानी) : दाशरथि भूयाँ

Vahi Ladki (Odia Story) : Dasarathi Bhuiyan

हीराखण्ड एक्सप्रेस दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुँह किये दौड़ रही थी। खटरखट-खटरखट के संगीत से ताल मिलाते हुए पेड़-पौधे, मील के पत्थर, बिजली के खम्भे, पहाड़-पर्वत, सभी ट्रेन की विपरीत दिशा में दौड़ रहे थे। मानो सारी पृथिवी ट्रेन के यात्रियों को पीछे छोड़कर भाग रही हो। खोरधा स्टेशन में साधारण डिब्बे में भीड़ बेहद बढ़ गयी थी। भीड़ में से एक दुबली-पतली कमजोर बूढ़ी औरत, जो जगन्नाथ धाम से एक मास का कार्तिक-व्रत समाप्त करके लौट रही थी, खोरधा स्टेशन में चढ़ी । वृद्धा की थकी हुई आँखें बैठने के लिए थो़ड़ी-जगह तलाशने लगीं। कहीं भी उन्हें खाली जगह नजर नहीं आयी। खड़े होकर यात्रा करना उस वृद्धा के लिए काफी कठिन था। यह बात उनके चेहरे से साफ झलक रही थी। वृद्धा के कन्धे में लटका हुआ एक पुराना थैला सामने बैठे एक युवक को सिर पर झूल रहा था । बीच-बीच में वह थैला युवक के सिर से हल्का-हल्का टकराता था। उस थैले को वहाँ से हटाने के लिए युवक वृद्धा को बार- बार ताकीद कर रहा था। थकावट के कारण उनका बदन काँपने लगा। वृद्धा को अपने पास बैठाने के लिए कोई भी सहयात्री तैयार नहीं था।

वृद्धा की नजर सुरत से लौट रहे अर्द्धशिक्षित-अशिक्षित चार-पाँच युवकों पर प़़ड़ीr, जो तास खेल रहे थे। वे सुरत-पुरी एक्सप्रेस से सम्बलपुर होते हुए आकर भुवनेश्वर में उतरे थे। फिर वहाँ से कोरापुट जाने वाली हीराखण्ड एक्सप्रेस में आ बैठे थे। उनके पास बैठने के लिए थो़ड़ी जगह मिलने की संभावना थी; किन्तु वे युवक उस वृद्धा को अपने पास बैठना चाह नहीं रहे थे। तास खेलने वाले युवकों के पास एक युवती बैठी हुई थी, वृद्धा की पीड़ा और व्याकुलता को भली-भाँति महसूस कर पा रही थी। युवती ने एक बार वृद्धा के चेहरे को देखने के बाद तास खेलने वाले युवकों के चेहरों पर निगाह डाली। वे सब तास खेलने में मशगूल थे। उन्हें अपने खेल में किसी और का हस्तक्षेप बिलकुल पसंद नहीं था। वे खेल रहे थे, हँस रहे थे, और पास में बैठी युवती के सौंदर्य को कनखियों से देखने का आनन्द ले रहे थे।

ट्रेन निराकारपुर स्टेशन पार कर चुकी थी। भीड़ में वृद्धा की पीड़ा काफी बढ़ गयी थी। युवती ने फिर एक बार वृद्धा के व्याकुल और पीड़ित चेहरे को देखा। बैठी हुई युवती और खड़ी हुई वृद्धा के बीच अटाची को रख कर, उस पर चादर बिछा कर युवक तास खेल रहे थे। वृद्धा के चेहरे की ओर अपलक नयनों से निहारते हुए युवती कुछ सोचने लगी। सोचते हुए किसी एक निर्णय पर पहुँचने के बाद उसके होठों पर एक मुसकान फैल गयी। उसने वृद्धा को आमंत्रण देते हुए कहा-“ मौसी, आप यहाँ आइए। मेरे पास बैठिए ।”

युवती की उदारता को देख कर तास खेलने वाले युवकों के मन में गुस्से का वातावरण फैल गया। युवकों ने एक दूसरे के चेहरों को देखा फिर युवती पर अपना गुस्सा जाहिर किया। एक युवक ने दूसरे युवक के कान में फुसफुसाते हुए कहा-“ साली! उदारता का ज्यादा दिखावा कर रही है।”

एक दूसरे युवक ने युवती को ऊँची आवाज में सुनाया- “यहाँ बैठने के लिए जगह कहाँ है? बूढ़ी क्या हमारे सिर पर बैठेगी? ”

तीसरे युवक ने दो युवकों का समर्थन करते हुए कहा- “बूढ़ी को अन्दर बिलकुल आने मत दो। देखते हैं हमारा कौन क्या कर लेगा? ”

वृद्धा ने युवती के पास जाने की प्रबल इच्छा जाहिर की; लेकिन युवकों के नकारात्मक मनोभाव को देखते हुए वृद्धा वहीं खड़ी रही। युवती ने वृद्धा को अपने पास बैठने के लिए फिर से निमंत्रित किया। वृद्धा साहस बटोरते हुए जब युवती के पास जाने को उद्यत हुई, तब युवकों ने उसे अंगुली दिखाते हुए कहा-“ ठहर जा बुढ़िया। हमारा खेल खत्म होने दो। हम ब्रह्मपुर में उतर जाएँगे। फिर आराम से बैठना। वृद्धा ने काफी दीनता भरी आवाज में अनुनय किया-“ हे बाबुओं ! मैं भी ब्रह्मपुर तक ही जाऊँगी। ”

ट्रेन दौड़ रही थी उसी पुरानी गति से। काफी देर खड़े रहने के कारण उस वृद्धा का थका हुआ और हल्का बदन ट्रेन के खटर-खटर संगीत के साथ ताल मिलाते हुए काँप रहा था। फिर से एक बार वृद्धा ने युवकों से विनती करते हुए कहा-“ हे बाबुओं ! तुम लोगों के खेल में बाधा बिलकुल नहीं उपजाऊँगी। मुझे जरा बैठने दो । ”

वृद्धा द्वारा बार-बार अनुरोध किये जाने से खेल की एकाग्रता नष्ट हो रही थी। एक युवक गुस्से में आकर कह उठा- “ए डोकरी! पहले खेल खत्म हो जाने दे। फिर तेरे बैठने की बात सोचेंगे। ”

वृद्धा और उस युवती के साथ चल रहे इस भिन्न किस्म के खेल का दूसरी तरफ आमने-सामने बैठे एक युवक और प्रौढ़ खूब आनन्द ले रहे थे।

युवती ने तीसरी बार तास खेल रहे युवकों से अनुरोध करते हुए कहा-“ मौसी को जरा बैठने दीजिए। ”

तीसरी बार युवती का अनुरोध सुनने के बाद भी युवकों ने कोई उत्तर नहीं दिया। युवती समझ गयी कि सारे युवक जानबूझ कर उसके अनुरोध की उपेक्षा कर रहे हैं। इसलिए उसने क्रोध भरी आवाज में कहा-“ यदि मौसी को मेरे पास आने नहीं देंगे, तो मुझे अटाची को हटाना ही पड़ेगा। ”

उनमें से एक निर्दय स्वभाव के हट्टे-कट्टे काले युवक ने क्रूर नयनों से युवती को देख कर प्रतिवाद करते हुए कहा- “ए छोकरी! यदि हटा सकती हो, तो हमारी अटाची को एक बार हाथ लगा के तो देख। ”

युवती भी छोड़ने वाली थोड़े ही थी। हाजिर जवाब वाली युवती ने उत्तर देते हुए कहा-“ फिर तुम क्या कर लोगे? ठीक है, देखो। मैं अभी तुम्हारी अटाची को यहाँ से हटा कर मौसी को बैठाऊँगी। यह कहते हुए युवती ने दो अटाचियों पर फैलायी गयी चादर को हटा दिया। चादर पर रखे हुए सारे तास सरसराते हुए गिर पड़े। फौरन एक अटाची को सीट के नीचे धकेल कर युवती ने वृद्धा का हाथ पकड़ कर अपने पास खींचते हुए ले आयी और बैठा दिया।

गुस्सैल आवाज में युवकों ने ब्रह्मपुर की भाषा में बकना शुरू किया-“ ए छोरी! औरत जात में पैदा होकर मर्दों की तरह मर्दानगी दिखा रही है। रहने दे अपने पास यह मर्दानगी। ब्रह्मपुर स्टेशन आने दो। हम अपनी असली मर्दानगी दिखाएँगे। ”

लड़की ने कटाक्ष के साथ ठहाके लगाते हुए कहा-“ ब्रह्मपुर स्टेशन में चार-पाँच युवक मिलकर एक लड़की पर जुल्म करते हुए भाग निकलने की योजना कौन-सी मर्दानगी में गिनी जाएगी। धिक्कार है तुम्हारी मर्दानगी को। ”

यद्यपि क्रोधित युवती के वाक्य-बाण से सारे युवक क्रुद्ध हो उठे थे, परन्तु उनका स्टेशन नजदीक आने के कारण वे अपना-अपना सामान समेटने में व्यस्त हो गये।

दूसरों के झगड़े को देखने में सब को मजा आता है। अब तक दूसरे के झगड़े का मजा उठा रहे मामा और भाँजा, यह जानने के लिए उत्सुक थे कि अब परिणति क्या होने वाली है; लेकिन युवकों के नरम पड़ जाने के स्वभाव को देख कर दोनों का मन फीका पड़ गया था। इस घटना का इतनी आसानी से समाधान हो जाएगा, इसका उन्हें पहले से अन्दाजा नहीं था। युवती की इस तरह की हिम्मत को देख कर वे उसके चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देखने लगे थे। तब तक ट्रेन आकर ब्रह्मपुर स्टेशन में पहुँची। बेशर्म युवक कोई उत्तर दिये बिना ही उतर गये थे। युवकों के उतरने से पहले युवती ने उन्हें इतना ही कहा था- “मुझे इसका खेद है कि आप लोगों के खेल में बाधा उपजी।

ब्रह्मपुर स्टेशन में उस युवती ने वृद्धा का हाथ पकड़ कर उन्हें प्लेटफार्म पर उतार दिया था। युवती के बैठने की सीट के पास सारी जगह खाली हो गयी, तो दूसरी तरफ बैठे मामा और भाँजा झटपट युवती की सिट के पास दौड़ आये और वहीं एक-एक सीट अख्तियार करके बैठ गये।

मामा और भाँजा यह सोचकर मन ही मन खुश हुए कि उस युवती के पास बैठ कर यात्रा करने से यात्रा आनन्ददायक होगी।

मामा ने युवती से कहना शुरू किया-“ समझे मैडॅम, आपकी बुद्धि और साहस की तारीफ किये बिना रहते नहीं बनता है। आपके वाक्य-बाणों से घायल होकर युवक इतना नरम पड़ गये कि वे उत्तर देने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाये। बेचारे सिर खुजलाते हुए चुपचाप उतर कर चले गये। आप शायद कोरापुट जाऐँगी? हम भी कोरापुट जा रहे हैं। मेरे भाँजे के लिए लड़की देखने। ”

उन्होंने फिर अपना भाषण शुरू किया-“ यह मेरा भाँजा वीरेन्द्र है। मैं उसका मामा हूँ प्रभु प्रसाद पाढ़ी। संक्षेप में पी.पी.पी. कहने से सारा ओ़ड़िशा मुझे जानता है। हमारी पार्टी अभी सत्ता में है। ये छोकरे यदि ज्यादा कुछ कहते, तो मैं ब्रह्मपुर के एस.पी. को मोबाइल से बता देता। अब मेरे दोस्त का बेटा गंजाम का कलक्टर है। वह सब कुछ सँभाल लेता। ”

फिर उन्होंने अपने भाँजे का परिचय कराने के उद्देश्य से लड़की से कहा-“ मेरा भाँजा वीरेन्द्र एक बहुत बड़ी स्वेच्छासेवी संस्था की सर्वमय कर्ता है। वह संस्था महिलाओंके लिए काम कर रही है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर से अनुदान मिल रहा है। उनके आफिस में सैकड़ों कर्मचारी काम कर रहे हैं। उसे भी ओड़िशाके सारे बुद्धिजीवी अच्छी तरह जानते हैं; यानी एक लेखक के रूप में उसका खूब परिचय है। उसकी लिखी हुई किताब नारी सशक्तिकरण को लेकर साहित्य अकादमी ने उन्हें पुरस्कृत किया है। वह किताब अभी ओड़िशा के सभी विश्वविद्यालयों में पाठ्यपुस्तक के रूप में प्रचलित है। ”

मामा की चापलूसी भरी उक्ति से भाँजा वीरेन्द्र गर्व के मारे फूले नहीं समाये। युवती की प्रतिक्रिया जानने के लिए उसके चेहरे की और देख कर वीरेन्द्र ने एक कुटिल मुस्कान बिखेर दी। इस प्रकार के परिवेश में मामा-भाँजा दोनों की ट्रेन की यात्रा रसमय हो उठी थी।

विजयनगरम् स्टेशन में कुछ और यात्री उस साधारण डिब्बे में चढ़े। नये चढ़नेवालों में तीन युवक थे। तीनों युवकों के कंधों पर एक-एक बैग लटक रहा था। वे अजीब किस्म के कपड़े-लत्ते पहने हुए थे। बाघ की खाल की तरह चुस्त पैंट पहने हुए थे। पहने हुए टीसर्ट में द्वि-अर्थबोधक अंग्रेजी शब्द लिखे हुए थे। उनके हाव-भाव से वे छात्र तो लग नहीं रहे थे।

उनमें से पिण्टू नामक युवक की आँखों के लेंस में युवती का रूप जैसे ही प्रतिबिम्बित हुआ, उसी क्षण वह औरों को बुलाने के लिए चिल्लाने लगा-“ अरे बण्टी, मिटू यहाँ सीट खाली है। अबे, आओ यहाँ बैठते हैं। ऐसा कहते हुए पिण्टू युवती के पास सट कर बैठ गया। ”

दरवाजे के पास खड़े बण्टी और मिटू फौरन वहाँ आ पहुँचे। युवकों के इस तरह के अनुप्रवेश और हरकत को देख मामा और भाँजा का मन फीका पड़ गया।

उनके बैठने के ढंग से नाराज होकर मामा ने कह दिया-“ए बाबुओं आगे बहुत जगह खाली पड़ी है। यहाँ भीड़ में क्यों बैठ गये। ”

मामा की बातें सुनकर पिण्टू नामक युवक ने गुस्से में आकर कहा-“ मौसा, अब तुम ज्यादा बकबक मत करो। आजकल उपदेश बड़े सस्ते हो गये हैं। अपने उपदेशों को बेचने के लिए कहीं और जाओ। मौसा, तुम आगे क्यों नहीं जाते झरोखे के पास बैठोगे। पान की पीक डालने के लिए भी सहूलियत होगी। इसके साथ खुली हवा भी मिलेगी। ऐसा कहते हुए पिण्टू आकर बैठ गया मामा के पास। ”

मामा ने बौखलाते हुए कहा-“ अरे ए, तुम मेरे सिर पर आकर बैठोगे क्या? ”

अब की बार पिण्टू ने व्यंग्य करते हुए सिनेमा का एक गीत गाकर मामा को चि़ढ़ाया-“हाय मैं क्या करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया। ”

पिण्टू की इस तरह की पैनी व्यंग्य भरी बातों से तनिक लज्जित और अपमानित अनुभव करते हुए मामाजी भाँजा वीरेन्द्र से सहायता चाहते हुए उसकी और देखने लगे; लेकिन उन युवकों को ताकीद करने की हिम्मत वीरेन्द्र की हुई नहीं। उन युवकों के बैठ जाने के बाद मामा और भाँजा की ट्रेन-यात्रा मानो विषमय हो उठी थी। ट्रेन अपनी पारंपरिक गति से आगे की ओर बढ़ती जा रही थी।

कुछ पल नीरवता के साथ बीत जाने के बाद मिटू नामक युवक ने युवती को टेढ़ी नजर से निहारते हुए पूछा- “ आप शायद कोरापुट तक जा रही हैं?

युवती ने सुजनता की दृष्टि से उत्तर दिया-“ हाँ मैं कोरापुट लौट रही हूँ। ”

युवक ने फिर से पूछा-“ आप क्या करती हैं? ”

युवती ने उत्तर दिया-“ मैं कुछ नहीं करती। पुलिस एस.आइ. इण्टरव्यू देने के लिए भुवनेश्वर गयी थी। ”

तीनों युवक एक दूसरे के चेहरे को देखने लगे। उसका अर्थ यह है कि यह युवती अकेली है। फिर भी संदेह दूर करने के लिए उन्होंने फिर एक बार युवती से पूछ़ा-“ आप क्या इण्टरव्यू देने अकेली गयी थीं? ”

वीरेन्द्र ने युवकों की बातों में दखल देते हुए कहा-“ लड़कियों का ट्रेन में अकेले यात्रा करना शायद आपको अजीब लगता है। नारी सशक्तिकरण के इस युग में महिलाओं को आप लोग इतना कमजोर क्यों समझते हैं? मैंने अपनी पुस्तक में नारियों की इस नई शक्ति का ही बारीकी से विश्लेषण किया है। ”

मामा-भाँजा और इन तीन युवकों में युवती की अकेले ट्रेन-यात्रा को लेकर जो विवाद चल रहा था, उससे युवती को तनिक शर्म महसूस हुई। उसके अकेले यात्रा करने के साथ इनका क्या संपर्क है। उसे लेकर इन लोगों में इतना वाद-विवाद चल क्यों रहा है। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी।

बेटी अकेले ट्रेन में भुवनेश्वर इंटरव्यू देने जाएगी। लड़की के पिताजी इसके लिए राजी नहीं थे। उन्होंने बेटी के साथ भुवनेश्वर आने की जिद की थी; लेकिन बेटी ने पिताजी को समझाते हुए कहा था-“ हर पल सुरक्षा देने के लिए एक नारी के पास एक पुरुष का रहना क्या निहायत जरूरी है? वह भी पुरुषों की तरह हर परिस्थिति में खुद को ताल मिलाते हुए चल सकती है। हर परेशानी का सामना कर सकती है। ”

पिताजी साथ आएँगे। युवती का स्वाभिमान इसे बिलकुल स्वीकार नहीं कर पा रहा था। बेटी के तर्क से पिताजी चुप हो गये थे।

तब तक ट्रेन आन्ध्र प्रदेश को पार करके रायगड़ इलाके में प्रवेश कर चुकी थी। रायगड़-कोरापुट के जंगल के घाटी-रास्ते में सुरंग के बीच ट्रेन के बिगुल की आवाज प्रतिध्वनित हो रही थी। एक के बाद एक छोटी-बड़ी सुरंग। कभी अंधकार तो कभी प्रकाश। युवती को भावना में डूबा हुआ देखकर बण्टी ने पूछा-“ क्या सोच रही हैं आप? अकेली महसूस कर रही हैं क्या ? आप अब अकेली नहीं हैं। हम आपके साथ हैं। आपको कोई कुछ भी नुकसान पहुँचा नहीं सकता। मेरे पिताजी एक ऊँचे ओहदे के अफसर हैं। आप जो इण्टरव्यू देकर आयी हैं, उनकी सिफारिश से उसमें सफल हो सकती हैं। आप ट्रेन से उतरने के बाद हमारे साथ चलिए। स्टेशन के पास हमारा एक होटल है। वहाँ से मैं अपने पिताजी को फोन करके आपके इण्टरव्यू की बात बताऊँगा। आप मेरे साथ चलेंगी न? ”

युवकों के अजीब प्रस्ताव का कोई उत्तर न देकर युवती चुप रही। इन युवकों के साथ उनका क्या संपर्क है? उन्हें वह तनिक भी न जानती है, न पहचानती है। फिर भी ये युवक उन्हें जोर जबरदस्ती ऐसा प्रस्ताव क्यों दे रहे हैं, उनका उद्देश्य क्या है? युवती ने अपने मनोबल को दृढ़ बनाते हुए उन्हें कहा-“ थैंकस् फार फार युअॅ र प्रपोजाल। मैं ट्रेन से उतर कर सीधा घर चली जाऊँगी। उधर पिताजी और चिन्तित होकर मेरे लौटने का बाट जोह रहे होंगे। ”

बण्टी ने युवती को ढाड़स दिलाते हुए समझाने की कोशिश की-“ आप एक आधुनिक और स्वाधीन नारी हैं। हर एक बात माँ और पिताजी को बता कर टेंशन देना उचित नहीं होगा। ”

युवती अब की बार उनकी बातों को महत्व दिये बिना ही न सुनने की तरह झरोखे से बाहर की ओर निहारती रही। यह जानकर कि युवती उनकी बातों की उपेक्षा कर रही है, मिटू नामक युवक ने कहा-“ इधर देखिए मैडम। उन अंधेरे से भरे पहाड़-पर्वतों से क्या मिलेगा? आप हमारे साथ होटल चलेंगी या नहीं? ”

और दो युवकों ने मिटू की बातों का समर्थन करते हुए कहा-“ मैडॅम हमारे साथ जरूर जाएँगी। न जाएँगी तो हम थोड़े ही छोड़ने वाले हैं। जबरदस्ती ले जाएँगे न। मैड़म सिर्फ ऊपर से ना-ना कर रही हैं। पर अन्दर ही अन्दर पूरी तरह खुश हैं। ”

युवकों के असभ्य आचरण से पूरी तरह भयभीत होकर सहायता की आशा से मामा और भाँजा वीरेन्द्र के चेहरे को व्याकुल नयनों से निहारने लगी। युवती की व्याकुलता को देख कर मामा और भाँजा दोनों ने युवकों से कहा-“तुम लोग शरीफ घर के लड़के हो या नक्सल। यदि तुम्हारे साथ होटल जाने के लिए लड़की तैयार नहीं है, तो उसके साथ जबरदस्ती क्यों कर रहे हो? ”

मामा और भाँजा को तीनों युवकों ने लाल आँखें दिखाते हुए कहा-“ तुम क्यों कबाब में हड्डी बन रहे हो। यह हम लोगों का अंदरूनी मामला है। तुम इसमें सिर खपाने वाले कौन हो?जान लो कि नतीजा अच्छा नहीं होगा। ”

ठीक उस समय दो रेलवे पुलिस के जवान उस डिब्बे से होकर गुजर रहे थे। युवती ने सोचा कि वह युवकों के खिलाफ पुलिस से शिकायत करेगी; लेकिन पुलिस को देखते ही बण्टी नामक युवक खुशी के मारे कह उठा-“ अरे नागा मामा, तुम? ”

बड़ी-बड़ी मूँछों वाले काले-कलूटे पुलिस के जवान ने आवभगत करते हुए कहा-“ बण्टी बाबू, तुम इस ट्रेन में? तुम्हारे साथ यह लड़की कौन है?

बण्टी ने फौरन कह दिया-“ मेरी गर्ल फ्रेंड है। ”

जी.आर.पी. पुलिस नागा रेड्डी ने अपने साथी पुलिस को बता दिया-“ ये हमारी कालोनी के साधु बाबू के बेटे हैं। ”

फिर दोनों पुलिस कर्मी बण्टी से हाथ मिलाकर डिब्बे की भीड़ में आगे की ओर बढ़ चले। दोनों पुलिसकर्मियों के गायब हो जाने के बाद युवकों की नजर फिर से युवती पर टिक गयी। युवती की बगल में बैठे बण्टी नामक युवक ने युवती के कन्धे पर हाथ डालते हुए कहा-“ फ्रेंड, तुम इस तरह नाराज क्यों हो रही हो? ”

बण्टी के इस तरह के असामाजिक स्वभाव को देख कर युवती गुस्से में आग बबूला हो उठी। उसकी आँखों में अँधेरा छा गया। वह गुस्से में खुद को सँभाल नहीं सकी और उसने बण्टी के गाल पर एक सख्त चाँटा मारा। बौखलाते हुए अपनी जेब से एक धारदार छुरी निकाल कर बण्टी चिल्लाया-“ तू ने यह क्या किया हरामजादी छोरी? ”

धारदार छुरी देखकर आस-पास के सभी यात्री डर के मारे काँपने लगे। सभी यात्रियों की ओर निगाह दौड़ाते हुए बण्टी जोर से चीखने लगा। सभी यहाँ से दूसरी जगह जाते हो या नहीं? मैं कहता हूँ कि जाते हो या नहीं। ऐसा कहते-कहते सामने बैठे मामा और भाँजे को लाल आँखें दिखाते हुए अँखों मे आँखें डालकर भौहों के माध्यम से उस जगह को छोड़कर चले जाने का निर्देश दिया। बण्टी की भयानक धमकी से मामा की नेतागिरी और वीरेन्द्र की वीरता फीकी पड़ गयी। उसी क्षण मामा ने अनुभव किया कि उनके पिछले हिस्से का कपड़ा गीला होने लगा है। मामा और भ़ाँजा अपने बैठे हुए जगह से हड़बड़ाते हुए उठकर दूसरी जगह चले गये। उनका पीछा करते हुए दूसरे यात्री भी उस स्थान से एक-एक करके अपनी सीट छोड़कर चले गये।

सभी यात्रियों के दूसरी जगह चले जाने के वाद तीन युवकों ने मिलकर युवती के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। शहर के बिजली के खम्भों पर जलती रोशनी की कतार से युवती ने यह अन्दाजा लगा लिया कि जरूर ट्रेन किसी शहर में प्रवेश कर चुकी है। स्टेशन को नजदीक आते देख उसने बड़ी होशियारी से चेन पुलिंग की। घटना की जानकारी लेने के लिए और डिब्बों से यात्री उतर कर उस डिब्बे के आसपास इकट्ठे हो गये । घटना की जाँच-पड़ताल के लिए जी.आर.पी. पुलिस की एक टोली दौड आयी । तीनों अभियुक्त युवकों के साथ युवती को पुलिस ले गयी जी.आर.पी. थाने में।

दूसरी जगह बैठे मामा और भाँजा दोनों झरोखे की दरार से घटना का बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे। एफ.आइ.आर. दर्ज करने का काम खत्म होने के बाद युवकों को हवालात में बन्द करके युवती को छोड़ दिया गया । अब की बार युवती इंजन के पीछे के डिब्बे में चढ़ गयी । युवती का ट्रेन में दोबारा लौटना मामा और भाँजे को दिखायी नहीं पड़ा। उन्होंने सोचा कि तीन युवकों के साथ युवती को भी जी.आर.पी. पुलिस ने स्टेशन में रोक लिया है।

ट्रेन का हॉर्न दोबारा सुनायी पड़ा। इसका अर्थ है कि ट्रेन फिर से यात्रा के लिए तैयार है। आधा घण्टा रुक जाने के बाद ट्रेन फिर से अपने तय पथ पर दौड़ने लगी। भोर की ठण्ड हवा के कारण मामा और भाँजा दोनों को नींद आ गयी थी। यात्रियों के उतरते समय के शोरगुल से मामा और भाँजा की नींद टूटी।

मामा और भाँजा दोपहार तक कोरापुट स्टेशन में उतर कर लड़की देखने के लिए सीधा पहुँच गये। लड़की के पिता के घर पर लड़की देखने से पहले शिष्टाचार की दृष्टि से चाय-नाश्ता परोसा गया। चाय-नास्ते के दौरान ट्रेन-यात्रा की अनुभूति का वर्णन करते हुए मामा-भाँजा ठहाके लगा रहे थे। अन्त में कहा कि हम नहीं होते तो उस लड़की का हाल क्या होता?

चूँकि पिताजी बेटी के साथ जाने की जिद कर रहे थे, इसलिए ट्रेन में हुए हादसे के बारे में उसने अपने पिताजी को अब तक कुछ नहीं कहा था। चाय-नाश्ता खत्म होने के बाद पिताजी घर के अन्दर आये और बेटी से कहा-“ बेटी तू अब तक तैयार नहीं हुई? वे लड़की देखने आये हैं न? ”

बेटी ने कहा-“ पिताजी! जो मुझे देखने आये हैं, उन्हीं के साथ मैं सहयात्री बनकर भुवनेश्वर से कोरापुट लौटा हूँ। ट्रेन में हम लोगों ने एक-दूसरे को अच्छी तरह पहचान लिया है। वे मुझे और ज्यादा क्या देखेंगे? मामा पी.पी.पी. बाबू ओड़िशा के एक दमदार नेता हैं और वीरेन्द्र बाबू एक वीर और साहसी युवक हैं। मेरा इण्टरव्यू बहुत अच्छा हुआ है। मेरा आत्मविश्वास है कि अबकी बार मैं जरूर सफल होऊँगी। मैं जब तक स्वाबलम्बी न हो जाऊँ, तब तक मेरे लिए रिश्ता मत लाइएगा। मैं उन्हें अब डिस्टॅर्ब करना नहीं चाहती। मैं ट्रेन में सारी रात बिना सोये लौटी हूँ। मुझे नींद जोर से आ रही है पिताजी । मुझे पूरी तरह विश्राम करने दीजिए। ”

बेटी की जिद को पिता जानते हैं। इसके अलावा वे यदि ट्रेन में लड़की के हाव-भाव और कार्यकलाप का बारीकी से निरीक्षण करके आये हैं, फिर यहाँ देखने के लिए रह क्या गया है?

लड़की के पिता लौट कर आये और अतिथियों से इतना ही कहा-“ जी साहब! मुझे इस बात का पता नहीं था। बीते कल आप लोग मेरी बेटी के साथ एक ही ट्रेन में, एक ही जगह भुवनेश्वर से आत्मीयता के साथ बातचीत करके आये हैं। वह यह भी कह रही थी की मामाजी एक दमदार नेता हैं। हर जिले के हर थाने में उनका काफी प्रभाव है। और भाँजा वीरेन्द्र बाबू भी नारी सशक्तिकरण के एक प्रखर प्रवक्ता हैं। उन्हें इस साल नारी सशक्तिकरण पर लिखी गयी पुस्तक के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया है। मेरी बेटी कह रही थी कि वीरेन्द्र बाबू में एक और अच्छा गुण है। वीरेन्द्र बाबू बहुत बड़े साहसी और वीर पुरुष हैं। बड़ी से बड़ी समस्या ने आते पर भी दूसरों को सहायता पहुँचा सकते हैं। दोनों एक दूसरे के बारे में इतना सब जान चुकने के बाद, अब लड़की देखने की फॉर्मेलिटी की जरूरत ही क्या है? ”

पत्नी की आवाज को सुन कर लड़की के पिता घर के अन्दर चले गये। मामा और वीरेन्द्र बैठने की जगह से उठ कर खड़े हो गये और पल भर के लिए एक दूसरे के चेहरे को टुकुर-टुकुर निहारते रहे। दोनों के मुँह से एक साथ एक ही आवाज निकल पड़ी-“ वही लड़की! ”

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