आश्चर्यजनक बर्तन : डैनिश लोक-कथा

The Wonderful Pot : Danish Folktale

एक बार की बात है कि डेनमार्क देश में एक आदमी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक छोटे से घर में रहता था। वे बहुत मेहनत करते थे और बहुत ही सादा सी ज़िन्दगी गुजारते थे।
उनके खेतों पर उनकी सहायता करने के लिये उनके पास एक घोड़ा था। ताजा अंडों के लिये उनके पास कुछ मुर्गियाँ थीं। और उनके पास एक गाय थी जो उनके बच्चों के पीने के लिये काफी दूध दे देती थी और थोड़ा सा मक्खन भी।
उनके खेत में उनकी जरूरत को लायक गेंहू उग जाता था जिससे वे अपने घर के लिये रोटी बना लेते थे।
इस तरह गरीब होने के बावजूद वे खुश थे। फिर एक दिन वह हो गया जिसने उनकी ज़िन्दगी ही पलट दी।
उनके गाँव में एक बहुत ही अमीर और ताकतवर आदमी आया और उसने सबकी जमीनें ले ली। उसने उनसे उनके अपने ही घर में रहने का किराया लेना शुरू कर दिया। और उनका किराया भी बहुत ज़्यादा था। हालाँकि वह आदमी पहले से ही बहुत अमीर था पर वह और अमीर बनना चाहता था।
अपने घर में से न निकाले जाने के लिये उस आदमी और उसकी पत्नी ने उनके पास जो कुछ भी था करीब करीब सारा कुछ बेच दिया था।
उन्होंने अपनी मुर्गियाँ बेच दी थीं, उन्होंने अपना घोड़ा बेच दिया था। अब उस घर को अपने पास रखने के लिये गाय को बेचने की बारी थी।
सो उस आदमी ने अपनी गाय के गले में एक रस्सी बाँधी और दुखी मन से उसको बेचने के लिये ले चला।
सड़क पर एक अजनबी जा रहा था। उस अजनबी ने उस आदमी से पूछा — “क्या तुम यह गाय बेचने के लिये ले कर जा रहे हो?”
आदमी बोला — “हाँ, तुम इसका कितना दाम दोगे? मुझे यह पैसा अपने घर का किराया और अपने परिवार के लिये खाना खरीदने के लिये चाहिये। ”
वह अजनबी बोला — “मैं अपना यह करामाती बर्तन तुमको इस गाय के बदले में देने को तैयार हूँ। यह बर्तन तुमको हर चीज़ देगा जो भी तुम इससे माँगोगे। यह बहुत ही आश्चर्यजनक बर्तन है। ”
किसान ने उस बर्तन को देखा तो उसकी तीन टाँगें थीं, वह बहुत गन्दा था, और देखने में तो वह कुछ खास आश्चर्यजनक बर्तन भी नहीं लग रहा था।
वह उसको अभी खड़ा खड़ा देख ही रहा था कि वह बर्तन बोला — “खरीद लो मुझे, तुम जो भी चाहोगे वह तुम्हें मिल जायेगा। ”
यह सुनते ही किसान बोला — “अरे यह तो बोलता भी है तब तो यह वाकई आश्चर्यजनक है। ”
उसने खुशी खुशी अपनी गाय उस अजनबी को दे दी और उस गाय के बदले में वह बर्तन खरीद कर उसको अपने घर ले गया।
घर पहुँचते ही उसकी पत्नी ने बर्तन की तरफ देखते हुए पूछा — “कितने पैसे मिले गाय के? क्या इतने पैसे मिल गये कि हम अपने मकान का किराया दे सकें और परिवार के लिये खाना खरीद सकें?”
उसके पति ने कहा — “मैं उस गाय के बदले में यह बर्तन ले आया हूँ। ”
पत्नी बोली — “लगता है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। यह बर्तन तो इतना पुराना है कि इसमें तो हम अपना खाना भी नहीं पका सकते। अब हम क्या करेंगे?”
बर्तन बोला — “तुम मुझे साफ करो और आग पर रखो तो तुमको वह सब कुछ मिल जायेगा जो तुम्हें चाहिये। ”
पत्नी तो यह सुन कर बहुत खुश हो गयी। यह बर्तन तो बोलता है तो फिर यह यकीनन आश्चर्यजनक भी होगा। उसने तुरन्त ही बर्तन साफ किया और उसे आग पर रख दिया।
बर्तन बोला — “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ”
पत्नी ने आश्चर्य से पूछा — “अरे तुम भागते कहाँ हो?”
बर्तन बोला — “मैं तुम लोगों के पेट भरने के लिये बाहर भागता हूँ। ”

और इससे पहले कि पत्नी उसको रोक सके वह यह कह कर चूल्हे पर से उतर कर दरवाजे से बाहर भागा और सड़क पर निकल गया। पत्नी तो उसको भागता हुआ देखती की देखती ही रह गयी।
वह अपनी तीन छोटी टाँगों पर भी पत्नी की दो लम्बी टाँगों से भी ज़्यादा तेज़ी से भाग रहा था। वह बर्तन उस अमीर आदमी के घर में घुस गया जिसने गाँव वालों की जमीनें ले ली थीं और उसकी रसोई में चला गया।
अमीर आदमी की पत्नी ने उस बर्तन को देखा तो बोली — “आहा, लगता है कि मेरे पति ने मेरे लिये यह नया बर्तन खरीदा है। मैं इसमें आज एक नयी तरह की खीर बनाऊँगी। मैं अपने अमीर परिवार के लिये बहुत ही बढ़िया स्वादिष्ट खीर बनाऊँगी। ”
उस अमीर आदमी की पत्नी ने खीर बनाने के लिये उस बर्तन में आटा, चीनी, मक्खन, किशमिश और बादाम आदि डाले। वह उनको चला कर आग पर रखने ही वाली थी कि बर्तन बोला — “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ”
यह कहता हुआ वह दरवाजे से बाहर निकला और सड़क पर आ गया। सब आने जाने वालों और गाड़ियों को हटाता हुआ वह भागा चला जा रहा था। अमीर आदमी की पत्नी तो बस उसको देखती ही रह गयी। वह तो उससे यह भी न पूछ सकी कि “तुम कहाँ भाग रहे हो?”
भागता भागता वह बर्तन उस गरीब आदमी के घर आ गया। गरीब परिवार ने जब उस बर्तन को अपने घर के दरवाजे में घुसते हुए देखा तो वह तो बहुत खुश हो गया।
उसने बर्तन में झाँक कर देखा तो वह बर्तन तो बहुत ही बढ़िया स्वादिष्ट खुशबूदार खीर से भरा हुआ था। जब वह बर्तन सीढ़ियाँ चढ़ रहा था तो वे आपस में बोले — “देखो न यह कितना आश्चर्यजनक बर्तन है। ” और वह बर्तन जा कर फिर से चूल्हे पर बैठ गया।
उसमें परिवार के खाने के लिये बहुत सारी खीर थी। उनके अभी के खाने के बाद भी वह खीर उनके हफ्ते भर के लिये और पड़ोसियों को खिलाने के लिये भी बहुत थी।
अगले दिन उस बर्तन ने फिर कहा — “मुझे साफ करो और आग पर रखो। ”
पति पत्नी दोनों ने मिल कर उस बर्तन को फिर से घिस घिस कर चमका कर साफ किया। साफ करके उन्होंने उसे फिर आग पर रखा तो वह फिर बोला — “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ”
पति पत्नी ने पूछा — “अरे तुम कहाँ भागे जाते हो?”
बर्तन बोला — “मैं तुम्हारे अनाज रखने की जगह भरने के लिये भागा जाता हूँ। ”
और यह कह कर वह फिर घर से बाहर सड़क पर भाग गया। वह फिर उसी अमीर आदमी के अनाजघर में गया और जा कर उसके दरवाजे पर बैठ गया।
वहाँ के एक काम करने वाले ने उस बर्तन को देखा तो बोला — “अरे इस चमकते हुए काले लोहे के बर्तन को तो देखो कितना सुन्दर है यह। देखते हैं कि इसमें कितना गेंहू आता है। ”
कह कर उन्होंने उस बर्तन में एक बुशैल गेंहू पलट दिया। इतना गेहूँ पलटने के बाद वे यह सोच रहे थे कि शायद वह भर जायेगा और उसमें से गेंहू बाहर गिर पड़ेगा पर उनके आश्चर्य का तो ठिकाना ही न रहा जब उन्होंने देखा कि उतने गेहूँ ने तो केवल उसकी तली ही छुई थी।
सो वे उसमें गेंहू भरते गये और भरते गये और जल्दी ही अनाजघर खाली हो गया।
बस तभी वह बर्तन बोला — “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ” और वह बर्तन तो उन काम करने वालों को भी वहीं छोड़ कर सड़क पर भागा चला गया।
भागा भागा वह फिर से उस गरीब परिवार के घर आ गया और उनके अनाजघर में घुस गया। पति यह देख कर बहुत आश्चर्यचकित हुआ और उसने अपनी पत्नी को बुला कर उसे दिखाया।
दोनों ने मिल कर उस बर्तन का गेंहू अपने अनाजघर में खाली कर लिया। अब तो उनके पास अपने लिये ही साल भर का खाना मौजूद नहीं था बल्कि उसमें से बहुत सारा गेंहू उन्होंने अपने पड़ोसियों को भी बाँट दिया।
कितना अच्छा बर्तन था वह?
अगले दिन उस बर्तन ने फिर कहा — “मुझे साफ करो और आग पर रखो। ”
पति पत्नी दोनों ने मिल कर फिर इस बर्तन को घिस घिस कर चमका कर साफ किया। साफ करके उन्होंने उसे फिर आग पर रखा तो वह फिर बोला — “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ”
पति पत्नी दोनों ने फिर पूछा — “अरे तुम कहाँ भागे जाते हो?”
बर्तन बोला — “मैं तुम्हारे मकान का किराया देने जाता हूँ। ”
अमीर आदमी के पास बहुत पैसा था। उस पैसे को रखने और गिनने के लिये उसके पास एक अलग घर था।
सो वह बर्तन उसके उस पैसे वाले घर तक पहुँच गया जिसमें वह अपना पैसा रखता था। वहाँ वह अमीर आदमी अपने उस घर का दरवाजा खोल कर अपना पैसा गिनने के लिये अन्दर जा रहा था।
बर्तन उसको पीछे छोड़ कर आगे निकल गया और फर्श पर उस आदमी के पास ही बैठ गया जहाँ वह पैसे गिनने वाला था। अमीर आदमी ने सोचा ऐसा लगता है कि मेरी पत्नी ने मेरे पैसे रखने के लिये कोई नया बर्तन खरीदा है। वह बहुत खुश हुआ।
वह उन पैसों को गिनने लगा जो उसने पिछले महीने कमाये थे और उन पैसों को गिन गिन कर वह उस बर्तन में डालने लगा। धीरे धीरे वह बर्तन भर गया। अब वह आदमी वहाँ से बाहर निकला।
बर्तन बोला — “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ” कह कर वह बर्तन फिर एक बार उस आदमी से पहले ही भाग कर दरवाजे से बाहर निकल गया।
अपने पैसे को इस तरह जाते देख कर उस अमीर आदमी ने उस बर्तन का पीछा किया पर वह अपनी तीन टाँगों पर इतनी तेज़ भाग रहा था कि वह आदमी उसको पकड़ ही नहीं सका।
बर्तन भागता भागता फिर अपने उस गरीब परिवार के घर आ पहुँचा। वे गरीब लोग बर्तन को वापस आया देख कर फिर से बहुत खुश थे।
इस बार तो वह बर्तन इतने सारे पैसों से भरा हुआ था कि वे उससे सालों तक किराया दे सकते थे। और वे ही नहीं बल्कि उनके पड़ोसी भी।
अगले दिन उस बर्तन ने फिर कहा — “मुझे साफ करो और आग पर रखो। ”
पति पत्नी दोनों ने मिल कर फिर उस बर्तन को घिस घिस कर चमका कर साफ किया। साफ करके उन्होंने उसे आग पर रखा तो वह फिर बोला — “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ”
पति पत्नी ने फिर पूछा — “अब तुम कहाँ जाते हो?”
बर्तन बोला — “अब मैं तुम लोगों के लिये न्याय माँगने जाता हूँ ताकि तुम्हारी यह परेशानी हमेशा के लिये दूर हो जाये। ” यह कह कर वह बर्तन फिर भाग गया और फिर से उस अमीर आदमी के घर पहुँचा।
अमीर आदमी ने देखा कि एक बर्तन सड़क पर भागा जा रहा है। वह बर्तन तो उसी के मकान की तरफ ही आ रहा था। उसने उस बर्तन को पहचान लिया।
वह गुस्से से बोला — “तो तुम ही वह बर्तन हो जो मेरा दलिया ले कर भागे थे। तुम ही वह बर्तन हो जो मेरे अनाजघर से गेंहू ले कर भागे थे जो मैंने हर एक के खेत से इकठ्ठा किया था।
और तुम ही वही बर्तन हो जो मेरे कमरे से वह पैसे ले कर भी भागे थे जो मैंने हर एक का घर ले कर इकठ्ठा किया था। अब तुम यहाँ आओ तो। मैं देखता हूँ तुमको। ”
कह कर वह आदमी उस बर्तन पर कूद पड़ा और उसको कस कर पकड़ लिया। वह उसे छोड़ ही नहीं रहा था।
पर “मैं भागता हूँ, मैं भागता हूँ। ” कहता हुआ वह बर्तन वहाँ से फिर भाग लिया।
आदमी चिल्लाया — “अब तुम जहाँ चाहो वहाँ जाओ चाहे उत्तरी ध्रुव जाओ और चाहे दक्षिणी ध्रुव, पर अबकी बार मैं तुमको नहीं छोड़ने वाला। ” कह कर उसने उस बर्तन को और कस कर पकड़ लिया। सो वह बर्तन उस आदमी को लिये हुए ही भागता रहा।
गरीब लोगों ने उसको अपने घर के दरवाजे के सामने से गुजरते देखा पर वह वहाँ रुका नहीं और चिल्ला कर बोला — “मैं तुम्हारी मुसीबत को साथ लिये जा रहा हूँ। ”
उनको नहीं मालूम कि वह कहाँ तक दौड़ा। यह भी हो सकता है कि वह उत्तरी ध्रुव तक दौड़ गया हो या फिर दक्षिणी ध्रुव ही चला गया हो क्योंकि उसके बाद उन दोनों को फिर किसी ने कभी नहीं देखा।
वह गरीब परिवार अब गरीब नहीं रह गया था। उनको अपनी जमीन वापस मिल गयी थी। उनके पास अब कपड़ों के लिये पैसे थे सो उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया। गाँव में सब लोग अब खुशी से रहने लगे थे।

(सुषमा गुप्ता)

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