कमाल का दिन : उज़्बेक लोक-कथा

Kamaal Ka Din: Uzbek Folk Tale

खजूरी इतनी बातूनी थी कि जहां कहीं उसे कोई बात करने वाले मिल जाए, वह उसे ढेर सारी बातें सुनाए बिना नहीं छोड़ती थी । गांव में उसकी ढेरों सहेलियां थीं । उसका जब कभी बातें करने का मन करता तो कभी किसी के घर चली जाती, तो कभी किसी के घर ।

स्त्रियां उसकी बातें सुनकर खूब आनन्दित होती थीं । खजूरी के पास जब कोई बात सुनाने को न होती तो वह बड़ी-बड़ी गप्पें हांका करती । कभी-कभी तो वह ऐसी गप्प हांकती कि लोगों को यकीन हो जाता कि वह सच बोल रही है ।

ज्यादा बातूनी होने के कारण वह अपने घर की निजी बातें भी लोगों को बता देती थी । असल में उसके पेट में कोई बात पचती ही नहीं थी । इस कारण उसे जो भी इधर-उधर की बात पता लगती, बढ़ा-चढ़ा कर दूसरों को बता आती थी । कुछ लोग तो उसकी गप्प मारने व ज्यादा बोलने की आदत से बहुत परेशान थे ।

उसकी इस आदत से सबसे ज्यादा परेशान उसका पति अन्द्रेई था । वह उसे हरदम समझता था कि कम बोला करो, घर की बातें बाहर मत बताया करो । परंतु खजूरी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी । बातें करने के चक्कर में अक्सर उसे खाना बनाने को देर हो जाया करती थी ।

कभी-कभी तो वह घर के जरूरी काम तक भूल जाती थी । शाम को जब थका हुआ अन्द्रेई खेत से लौटता तो उसे खूब डांटता । खजूरी अपनी आदत से मजबूर थी । गप्पें उसके लिए समय बिताने का सबसे अच्छा साधन थीं ।

एक बार अन्द्रेई अपने खेत में हल चला रहा था । तभी उसके हल से कोई वस्तु टकराई, खन-खन की आवाज सुनकर वह चौकन्ना हो गया । उसने हाथ से थोड़ी मिट्टी खोदी तो उसे यकीन हो गया कि यहां कोई धातु की चीज गड़ी हुई है । उसने उस स्थान पर निशान लगा दिया ।

वह सारे दिन चुपचाप खेत पर काम करता रहा ताकि दिन की रोशनी में कोई उसे जमीन खोदते न देख ले । जब शाम हो गई और हल्का अंधेरा होने लगा तो उसने मौका पाकर खेत में उसी स्थान पर खुदाई शुरू कर दी ।

थोड़ी ही देर में जगमगाता खजाना उसके सामने था । उस खजाने में हीरे-मोती, सोने के आभूषणों का ढेर था । वे सब एक स्वर्ण कलश में भरे हुए थे । उस खजाने को देखकर अन्द्रेई की बांछें खिल गईं ।

ज्यों ही अन्द्रेई वह खजाना घर ले जाने के लिए निकालने लगा त्यों ही उसे याद आया कि उसकी पत्नी को जैसे ही खजाने का पता लगेगा वह सारे शहर में ढिंढोरा पीट देगी, फिर तो खजाना राजा के पास चला जाएगा । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह खजाने को क्या करे ? घर ले जाए तो पत्नी से कैसे छिपाए ?

उसने खजाने को वहीं पास के जंगल में दबा दिया और मन ही मन एक योजना बनाई । फिर वह घर पहुंच गया । घर जाकर खजूरी से कहा कि आज मेरी पूरियां खाने का मन है, जरा जल्दी से बना दो ।
खजूरी बोली - "आज कोई खास बात है क्या ?"
"हो सकता है, कोई खुशखबरी हो । तुम्हें बाद में बताऊंगा ।" अन्द्रेई ने कहा ।

सुनकर खजूरी को जोश आ गया और वह खुशखबरी जानने को बैचेन हो गई और फटाफट पूरियां बनाने लगी । अन्द्रेई चुपचाप पूरियां खाने लगा । वह एक साथ 4-5 पूरी उठाता और उसमें एक-एक पूरी स्वयं खाता, बाकी चुपचाप थैले में डाल लेता । उसकी पत्नी यह देखकर भौचक्की हुई जा रही थी कि अन्द्रेई इतनी तेजी से पूरियां खाए जा रहा है ।
जब अन्द्रेई का थैला पूरियों से भर गया तो बोला अब मेरा पेट भर गया । खजूरी बोली - "अब खुशखबरी तो बताओ ।"
अन्द्रेई बोला - "खुशखबरी यह है कि आज राजा के बेटे की शादी है । पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा है । मैं जगमग देखकर थोड़ी देर में लौटता हूं ।"
अन्द्रेई चुपचाप थैला उठाकर चल दिया और बाजार जाकर बहुत सारी जलेबियां और मछलियां खरीद लीं, फिर अपनी योजना के अनुसार जंगल में पूरी तैयारी कर आया ।

जब वह खुशी-खुशी घर लौटा तो पत्नी उसकी राह देख रही थी । उसने पत्नी के कान में फुसफुसा कर कहा - "जानती हो, दूसरी बड़ी खुशखबरी क्या है ?.... हमें बहुत बड़ा खजाना मिला है । जल्दी से तैयार हो जाओ । हम खजाना रात में घर लेकर आएंगे ।"

खजूरी जल्दी से तैयार हो गई । कुछ ही देर में वे जंगलों से गुजर रहे थे । अचानक एक पेड़ की नीची टहनी से खजूरी के सिर पर कुछ टकराया । उसने सिर झुकाकर ऊपर की चीज पकड़ने की कोशिश की तो देखा हाथ में जलेबी थी । खजूरी जलेबी देखकर हैरान रह गई । वह अन्द्रेई से बोली - "सुनते ही जी, यहां पेड़ पर जलेबी लटकी थी, मेरे हाथ में आ गई । है न कैसी आश्चर्य की बात ?"
अन्द्रेई बोला - "इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? ये जलेबियों के ही पेड़ हैं, क्या तुमने जलेबी का पेड़ नहीं देखा ?"

खजूरी आश्चर्यचकित होकर ऊपर देखने लगी । उसने देखा, सभी पेड़ों पर ढेरों जलेबियां उगी हैं । वह उनमें से दो-तीन जलेबी तोड़कर आगे बढ़ने लगी और चलते-चलते खाने लगी । वह बोली - "आज कमाल का दिन है । आज ही हमें खजाना मिला है, आज ही राजा के बेटे की शादी है, आज ही मैंने जलेबियां के पेड़ देखे हैं ?"
"हां, वाकई आज कमाल का दिन है ।" अन्द्रेई ने हां में हां मिलाई ।

वे जंगल में कुछ ही दूर गए थे कि खजूरी ने देखा जंगल में स्थान-स्थान पर मछलियां पड़ी थीं । वहां जमीन भी हल्की-सी गीली थी । कुछ मछलियां मरी हुई थीं और कुछ हिल-डुल रही थीं । उनमें अभी जान बाकी थी ।

इतने में अन्द्रेई खजूरी से बोला - "लगता है आज जंगल में मछलियों की बारिश हुई है और मजे की बात यह है कि यह बारिश अभी थोड़ी ही देर पहले हुई लगती है क्योंकि कुछ मछलियां जिंदा हैं । आज तो हम जरा जल्दी में हैं, वरना मछलियां अपने थैले में भर लेते, खाने के काम आतीं ।"

खजूरी ने विस्मय से आंखें फैलाकर पूछा - "क्या कहा, मछलियों की बारिश ? यह तो कमाल हो गया । वाकई आज कमाल का दिन है । मुझे एक और नई चीज देखने और सुनने को मिल रही है । मैंने तो मछलियों की बारिश के बारे में आज तक नहीं सुना ।"

"असल में तुम्हें बाहर की चीजों का पता नहीं रहता, क्योंकि तुम घर में ही रहती हो । वरना तुम्हें जंगल में मछलियों की बारिश का अवश्य पता होता ।" अन्द्रेई बोला ।

वे आगे बढ़ने लगे । रात का अंधियारा बढ़ता जा रहा था । कुछ ही देर में कंटीली झाड़ियों पर कोई सफेद-सी वस्तु दिखाई देने लगी । खजूरी पहले से ही आश्चर्य में डूबी हुई थी । आगे झुककर देखने लगी - "यह सफेद-सफेद गोल-सा क्या हो सकता है ?" इतने में उसने हाथ बढ़ाया और बोली - "झाड़ पर पूरियां ? लगता है कि जलेबी के पेड़ की तरफ जंगल में पूरियों के झाड़ भी होते हैं । अब मुझे समझ आ गया कि जंगल में कैसे अनोखे पेड़ होते हैं ।"
अन्द्रेई ने कहा - "लगता है तुम्हें एक ही दिन में जंगल की सारी चीजों की अच्छी जानकारी हो गई है । तुमने पूरियों के झाड़ भी पहली बार देखे हैं न ?"
"हां, सो तो है । अब आज कमाल का दिन है तो कमाल ही कमाल देखने को मिल रहे हैं । चलो, अब यह भी बताओ, खजाना कहां है ?" खजूरी बोली ।
"हम खजाने के पास पहुंचने ही वाले हैं । वो देखो, पास के तालाब में किसी ने जाल बिछाया हुआ है । मैं देखता हूं कि जाल में कुछ फंसा या यूं ही लटका हुआ है ।"

अन्द्रेई ने आगे बढ़कर जाल उठा लिया । जाल देखकर खजूरी आश्चर्य से आंखें फैलाते हुए बोली - "पानी के अंदर खरगोश ? यह कैसे हो सकता है । क्या जंगल में खरगोश पानी में भी रहते हैं ?"
"हां, हां क्यों नहीं, सामने देखो खजाना यहीं है । अब हम खजाना निकालेंगे ।" अन्द्रेई ने रुकते हुए कहा ।
एक स्थान से मिट्टी खोदकर अन्द्रेई ने सोने का कलश निकाल का खजूरी को खजाना दिखाया । खजूरी की खुशी और विस्मय देखते ही बनता था ।

अन्द्रेई ने चुपचाप गड्ढा वापस भरा और अपने दुशाले में कलश को ढक लिया । कुछ ही देर में अन्द्रेई और खजूरी खजाना लेकर वापस घर पहुंचे । दोनों ही चल-चलकर थक गए थे । अत: दोनों ने सलाह की कि सुबह उठकर सोचेंगे कि हमें इस खजाने का क्या इंतजाम करना है, अभी सो जाते हैं ।

दोनों लेटते ही सो गए । सोते ही अन्द्रेई को खजाने के बारे में बुरे-बुरे सपने आने लगे और कुछ ही देर में अन्द्रेई घबराकर उठ बैठा । उसने देखा खजाना सही-सलामत घर में रखा है और सुबह होने में देर है ।
अन्द्रेई चुपचाप उठा और स्वर्ण कलश को ढककर सुरक्षित स्थान पर रख आया, फिर चैन से सो गया ।
सुबह निकले 2-3 घंटे हो चुके थे, पर अन्द्रेई सोया हुआ था । अचानक घर के बाहर शोर-शराबा सुनकर अन्द्रेई की आंख खुली ।

उसने उठकर देखा, बाहर लोगों की भीड़ जमा थी । पूछने पर पता लगा कि लोग खजाना देखने आए थे । उसकी पत्नी खजूरी सुबह ही पानी भरने गई तो अपनी पड़ोसिनों को खुशखबरी सुना आई थी कि हमें बहुत बड़ा खजाना मिला है । अत लोग उसे बधाई देने व खजाने के दर्शन करने आए थे ।

अन्द्रेई ने लोगों से कहा - "लगता है मेरी पत्नी ने सपने में कोई खजाना देखा है, जिसके बारे में उसने आप लोगों को बताया है । मुझे तो ऐसा कोई खजाना नहीं मिला ।"
लोग निराश होकर लौट गए । बात फैलते-फैलते राजा तक पहुंच गई । राजा ने अन्द्रेई को बुलवा भेजा । अन्द्रेई की राजा के सामने पेशी हुई ।
राजा ने पूछा - "सुना है, तुम्हें कोई बहुत बड़ा खजाना मिला है ? कहां है वह खजाना ?"
"हुजूर, मुझे तो ऐसा कोई खजाना नहीं मिला । मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप क्या बात कर रहे हैं ?" अन्द्रेई बोला ।
"यह कैसे हो सकता है । तुम्हारी पत्नी ने स्वयं लोगों को उस खजाने के बारे में बताया है ।" राजा ने कहा ।
"हुजूर माफ करें मेरी पत्नी बहुत गप्पी है । आप उसकी बात का यकीन न करें ।"
"नहीं, हम इस बात की परीक्षा स्वयं करेंगे," राजा ने कहा । फिर राजा ने अन्द्रेई की पत्नी खजूरी को अगले दिन दरबार में पेश होने की आज्ञा दी ।
खजूरी खुशी-खुशी राजा के दरबार में हाजिर हो गई ।
राजा ने पूछा - "सुना है कि तुम्हें कोई बड़ा खजाना मिला है ।"
"जी माई बाप, आप सही फरमा रहे हैं । हमें वह खजाना 2-3 दिन पहले मिला था ।" खजूरी बोली ।
राजा ने पूछा - "तुम्हें वह खजाना कहां मिला, जरा विस्तार से बताओ ?"

खजूरी आत्मविश्वास से भर कर बोली - "हुजूर, उस दिन कमाल का दिन था, परसों की ही बात है । हुजूर उस दिन राजा के यानी आपके बेटे की शादी भी थी । मेरे पति शहर की जगमग देखने गए थे ।"

राजा एकदम चुप हो गया, फिर बोला - "मेरा तो कोई शादी लायक बेटा नहीं है । मेरा बेटा तो सिर्फ चार वर्ष का है । तुम्हें ठीक से तो याद है न ? जरा सोच-समझ कर बोलो ।"

खजूरी बोली - "साहब, हम उसी रात को खजाना लेने गए थे, उस दिन कमाल का दिन था । मैंने उस दिन पहली बार जलेबियों के पेड़ देखे । बहुत सारी जलेबियां तोड़कर खाईं भी ।"
राजा आश्चर्य से खजूरी को देख रहा था - "जलेबियों के पेड़ ?"
"हुजूर, उस कमाल के दिन मैंने मछलियों की बरसात देखी, पानी में रहने वाले खरगोश को देखा और... ।"
राजा ने कहा - "लगता है, यह कोई पागल औरत है । इसे यहां से ले जाओ ।"
जब राजा के सैनिक उसे बाहर ले जाने लगे तो खजूरी चिल्लाकर कहने लगी ।
"मैं सच कहती हूं कि हमें सोने के कलश में खजाना मिला था, उस दिन कमाल का दिन था । मैंने पूरियों के झाड़ भी उसी दिन देखे थे ।"
राजा के सैनिकों ने खजूरी को बाहर निकाल दिया । अन्द्रेई बोला - "हुजूर, मैं न कहता था कि मेरी पत्नी की बातों का विश्वास न करें ।"

राजा ने अन्द्रेई को छोड़ दिया । अपने दौ सैनिकों को अगले दिन अन्द्रेई के घर भेजा । उन्होंने खजूरी से पूछा - "अच्छा यह बताओ कि घर में खजाना कहां रखा है ।"

खजूरी दौड़कर उसी कोने में गई जहां उन्होंने खजाना रखा था । परंतु वहां कोई खजाना न था । वह इधर-उधर देखती रही, परंतु उसे कोई खजाना न मिला । राजा के सिपाही वापस लौट गए ।

अन्द्रेई ने खैर मनाई कि उसकी चतुराई से उसका खजाना बच गया था । वे दोनों सुख से रहने लगे । फिर खजूरी ने भी गप्प मारना व ज्यादा बातें करना छोड़ दिया ।

(रुचि मिश्रा मिन्की)

  • उज़्बेकिस्तान की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां