गिरि और शोआन : लोक-कथा (अंडमान निकोबार)

Giri Aur Shoaan : Lok-Katha (Andaman & Nicobar)

बहुत समय पहले निकोबार में अरंग नाम का एक आदमी था। उसकी एक पत्नी थी। उन दोनों के तीन बेटे और तीन बेटियाँ थीं। अरंग काफी धनवान था। उसने परिवार के लिए एक आलीशान मकान बनाया।

एक दिन बह अपने बड़े बेटे शोआन के साथ समुद्र से मछली पकड़ने को गया। अचानक तेज आँधी आई। समुद्र में ज्वार आने लगा। उनकी डोंगी उलट गई। बाप और बेटा दोनों समुद्र में डूब गए। जब पिता डूब रहा था तो लड़का डोंगी के ऊपर सरक आया और चिल्लाया, “मेरे पिता मर गए हैं। हाय, मैं क्या करूँ? मैं घर कैसे जाऊँगा ?"
तभी एक व्हेल उसके सामने आई।
“मेरी पीठ पर बैठो। मैंने रास्ता देखा है।” व्हेल ने कहा।

व्हेल बहुत बड़ी मछली होती है। उसे सागर की रानी कहा जाता है। यद्यपि शोआन को उससे कुछ डर लगा लेकिन वह हिम्मत करके उसकी पीठ पर बैठ गया।

व्हेल उसको मंजिल की ओर ले चली। उसे देखकर समुद्र के सभी जीव डर कर भागने लगे। उड़ने वाली मछलियाँ इधर-उधर उड़ गईं। शार्क गहरे सागर में उतर गई। समुद्री साँप तलहटी की रेत में जा छिपे। डॉल्फिनें तेजी के साथ दूर तैर गईं।

तैरते-तैरते वे व्हेल के देश में जा पहुँचे। वह कीमती पत्थर की एक बड़ी गुम्बदनुमा हवेली में रहती थी। उसकी दीवारें लाल मूँगे से बनी थीं। घर के अन्दर व्हेल की बेटी 'गिरि' बैठी थी।
शोआन वहाँ खूबसूरत गिरि की सेवा में रहने लगा।
“तुम्हें क्या-क्या काम आता है ?'' गिरि ने पूछा।
“मैं जंगल से नारियल इकट्ठे कर सकता हूँ।" शोआन बोला।
“इससे क्या? नारियल यहाँ होता ही नहीं है।” गिरि ने कहा।
“मैं नाव बना सकता हूँ।'
“नाव की हमें क्या जरूरत है ? कुछ और बताओ।''
“मैं बरछी से मछलियाँ मार सकता हूँ।''

“तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे ।” गिरि तेज स्वर में बोली, “हम मछलियों को प्यार करते हैं। मेरे पिता मछलियों के राजा हैं। अब तुम मेरे बालों में कंघी करो।'' गिरि ने शोआन को आदेश दिया।

शोआन उसके बालों में कंघी करने लगा। वह वहाँ रहता रहा। दोनों आपस में खूब हँसी-मजाक करते। कुछ समय बाद दोनों में प्रेम हो गया और उन्होंने परस्पर विवाह कर लिया। गिरि के पास दर्पण नहीं था। उसने शोआन से एक दर्पण लाने को कहा।
“मेरे घर में एक दर्पण है।'” शोआन बोला, ''लेकिन मैं वहाँ जाऊँगा कैसे ?''

“इसमें क्‍या है। मैं तुम्हें वहाँ पहुँचा दूँगी। तुम मेरी पीठ पर बैठो, मैं तुम्हें किनारे पर छोड़ देती हूँ।" गिरि ने कहा।

गिरि शोआन को लेकर किनारे पर आ गई। वह समुद्र में एक बड़े पत्थर के पीछे रुक गई। शोआन जल्दी लौटने का वादा करके अपने गाँव को चला गया। शीघ्र ही वह अपने घर जा पहुँचा।

शोआन को देखकर उसकी माँ को विश्वास ही नहीं हुआ कि वह जिंदा है! उसके जीवित लौट आने की खबर सुनकर गाँव के सारे लोग उसे देखने को उमड़ पड़े ।

उसने सबको व्हेल वाली घटना सुनाई और गिरि के साथ अपने विवाह की बात बताई। लोग उसकी बातों पर हँसने लगे। उसकी सारी बातें उन्हें गप लगीं। शोआन को उनके रवैये से बड़ा दुख हुआ। उसने दर्पण उठाया और घर से भाग खड़ा हुआ।

गाँव के लोग अनपढ़ और अंधविश्वासी थे। समुद्र में डूबने के वर्षों बाद वापस लौटे शोआन को वे उसका भूत समझ रहे थे। जब वह दर्पण उठाकर भागने लगा तो उनका संदेह विश्वास में बदल गया। उन्होंने उसका पीछा किया और बरछियों से उस पर वार किया।
बरछियों ने भागते हुए शोआन के पूरे शरीर को बींध डाला। वह मर गया।

उधर, सागर में मूँगे की पहाड़ी के पीछे रुकी गिरि उसकी प्रतीक्षा करती रही। लेकिन वह गिरि के पास तक नहीं पहुँच पाया।

अक्सर ही चाँदनी रातों में मछुआरे सागर में दर्दभरी आवाजें सुनते हैं। उन्हें लगता है जैसे कोई स्त्री लम्बे समय से अपने पति के इन्तजार में सिसक रही हो।

वे लोग, जिन्हें गिरि की कहानी नहीं पता, इन आवाजों पर आश्चर्य करते हैं। गिरि शोआन के बिना अकेली अपने घर नहीं लौट सकती। इसलिए वह दर्दीली आवाज में उसे पुकारती है---

लौट आओ शोआन, लौट आओ... लौट आओ... !
आधी रात को समुद्र में अब भी यह आवाज गूँजती है।

(प्रस्तुति: बलराम अग्रवाल)

  • मुख्य पृष्ठ : अण्डमान और निकोबार कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां